#जिंदगी_के_झरोखे_से
एक लघु कथा --
माँ ।---
वो पुराना घर
कहते थे की किसी राजा के कारिंदों का था
कुछ लोग बताते थे की राजा के घोड़े बांधते थे
पर अब तो कुछ लोग रह रहे थे वहां
और
ऐसा घर पाना भी कितनी बडी सुविधा थी ।
उस छोटे से दो कमरे के घर में वही एक कमरा टपकता था बारिश में
और उस परिवार के पास उस कमरे की छत की मरम्मत लायक पैसे नहीं थे
और
जिस संस्था का घर था उसके पास तब तक पैसे नहीं थे जब तक ये परिवार रहां उस घर में
ज्यो ही जाती विशेष का व्यक्ति उसी घर में आ गया पूरा घर ही बदल गया और बहुत कुछ नया भी बन गया
पर भटक न जाऊं मैं तो बस एक माँ की कहानी लिख रहा था
तो
बारिश कितनी बड़ी सजा थी उस माँ के लिए और बच्चो के लिए
पिता तो सो जाता था
पर माँ कैसे भीग जाने देती अपने छोटे छोटे बच्चो को ।
पहले मच्छरदानी लगाया
फिर उस पर कुछ प्लास्टिक बिछाया
फिर भी बात नही बनी तो बच्चो को उस कोने में लिटाया जहा पानी नही आ रहा था और
पानी वाली जगह कही बाल्टी रखा और कही टब ।
पूरी रात जी पूरी पूरी रात
वो बैठी रहती थी बर्तन बदल बदल कर पानी फेंकने को कि एकमात्र बिस्तर भीग न जाये ।
कितनी राते नहीं सोती थी वो माँ अपने बच्चो के लिए औरअपने परिवार के लिए
पूरे दिन काम भी पूरा करती थी बिना चेहरे पर शिकन लिए
अभी कल की ही तो बात है
बेटी पैदा होने वाली थी । पैसे नहीं थी तो सरकारी अस्पताल के जर्नल वार्ड में कुछ अपनों के कारण इंतजाम हो गया था
और डॉ चार दिन कम से कम रोकते है और कुछ दिन आराम करने तथा शरीर के सामान्य हो जाने को समय देने को बोलते है पर गरीबी और घर की मजबूरी के कारण वो एक दिन में ही घर आ गयी थी और लग गई थी घर के हर काम में ।
और ऊपर से ये टपकती छत
पर कोई भी हालात उसे नहीं तोड़ पाता था ।
वही खिलखिलाती हंसी
वही समर्पण और कभी उफ़ की आवाज़ नहीं
और बारिश भी निकल गयी तथा वो दौर भी ।
बड़ा कर काबिल बना दिया उसने अपने बच्चो को बिना शिकन और अभावों का एहसास किये और कराये हुए ।
वो बस एक माँ थी ।
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