गुरुवार, 27 नवंबर 2014

राजनीती में अगर विरोध में है तो संघर्ष और खुद के जनता के लिए कार्यक्रम और वादों को लोगो तक पहुंचना तथा सत्ता की हर बुराई और कमजोरी पर हमला करना और जनता के साथ हर पल खड़ा होना होता है ।
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अगर खुद सत्ता में है तो जितना जरूरी वादों को पूरा करना तथा विकास करना है उतना ही जरूरी वो काम तथा विकास बिना बाधा और भेद भाव के लोगो तक पहुंचे ये भी है ।
उससे भी ज्यादा जरूरी उसका सम्पूर्ण और आखिरी व्यक्ति तक प्रभावशाली प्रचार करना है ताकि लोग जहा अपने हक़ पर निगाह रखे तथा विकास की निगरानी करे वही उनके मनो में ये बैठे की आप क्या क्या कर रहे है ।
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उससे भी ज्यादा जरूरी आखिरी कार्यकर्ता को भी सत्ता तथा संगठन दोनों से जोड़े रखना और उसे ये एहसास करवाना की वो भी सत्ता का बराबर का भागिदार है तथा उसके सुख और दुःख से पार्टी तथा सत्ता जुडी हुयी है ।
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उससे साथ ही बहुत महत्वपूर्ण है केवल तन्त्र के बजे पार्टी तथा सरकार दोनों स्तरों पर समाज के मुद्दों से जुड़ना और सामाजिक मुद्दों पर भी सतत कार्यक्रम चलाना ।
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जरूरी है की विरोधी के हर राजनीतिक दांव पेंच को तुरंत भोथरा करते रहना ।विरोधी किसी चीज का श्रेय ले उसके पहले अपने ही संगठन से उठवा कर उसे श्रेय देना ।
विरोधी हमला करे उसके पहले उसके खेमे और उसके पाले में घुस कर उस सार्थक और धारदार राजनैतिक और सैधांतिक हमला कर देना और उसे उसके पाले में ही घेर कर उस पर हमला करते रहना ।
फिर जीत पर जीत आप की होगी क्योंकि जनता का और कार्यकर्ताओ का दिल जीत लेंगे आप ।विरोधी के हर वार को भोथरा और नाकाम कर देंगे आप ।
( बस यूँ ही आज का विचार है ये )

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