गुरुवार, 27 नवंबर 2014

राजनीती में बहुत से लोग परजीवी बनकर आते है और खुराक पाते ही ताड़ की तरह बढ़ने लगते है जिसमे न तो छाया होती है और न फल लगता है | बस खाद पानी सब सोख कर बढ़ते जाते है बस खुद और खुद के लिए |
क्या इन ताड़ो के पेड़ से कभी राजनीती और देश को मुक्ति मिलेगी ?

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