समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
रविवार, 28 अप्रैल 2013
अबकी
बार कोई दिल्ली में या संसद में घुसा तो हमारे प्रधानमंत्री जी सैनिको को
हटा देंगे औए वार्ताकारो को आगे कर देंगे क्योकि ये छोटा सा स्थानीय मुद्दा
जो होगा ।ग्रेट पी एम् ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें