रविवार, 21 अप्रैल 2013

मन को मार कर ,दिमाग को दबा कर ,आत्मा को नकार कर कोई फैसला लेना कितना दुखदाई और क्रूर होता है । ये आप को कई साल बूढा बना देता है । आप को मन से इतना बीमार कर देता है की फिर तन हमेशा ही बीमार रहता है और फिर आप जी नहीं बल्कि घसीट रहे होते है जीवन को अपने कर्तव्यों के लिए । कुछ भी तो नहीं बचता है, हंसने ,मुस्कराने को । क्या ऐसी किसी की कथा को आप जान पाते है उसके अभिनय के पीछे भी ।

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