बुधवार, 25 सितंबर 2024

#जिंदगी के झरोखे से= जब स्वतंत्रता सेनानी आदरणीय ह्रदय नारायण कुजरू से मैं क्लास के लिए पंखा मांगने पहुच गया था

जब स्वतंत्रता सेनानी आदरणीय ह्रदय नारायण कुजरू से मैं क्लास के लिए पंखा मांगने पहुच गया था 

मैं छठवी क्लास में पढ़ रहा था | बचपन में मेरी शिक्षा आजमगढ़ के मधसिया गाँव में हुयी थी पर अब पिताजी के साथ हम लोग आगरा आ गए थे | मेरे पिता को बहुत संघर्ष करना पड़ा था | अचानक जमीदारी ख़त्म होंने तथा उसके बाद के कुछ  पारिवारिक कारणों से मेरा परिवार बहुत संकट में आ गया था | जो चालाक लोग थे वे जमीदारी ख़त्म होते होते भी अपनी काफी जमीन बचाने में कामयाब रहे थे पर मेरे दादा जी सीधे व्यक्ति थे और कानून का पालन करने वाले भी तो उनके पास नाम मात्र की जमीन रह गयी थी और हमारी दादी जी नही थी तथा जो चचेरी दादी जी थी उन्होंने उसी वक्त को घर के बटवारे लायक समझा और वो हो गया था | परिवार बहुत ही परेशानी में था तो चूँकि गाँव और आसपास स्कूल नहीं था तो गाँव से बहुत दूर आ जाकर मेरे पिता ने किसी तरह आठवी क्लास पास कर लिया और छः रूपये महीने की नौकरी कर लिया था | फिर धीरे धीरे पढ़ते गए और हाई स्कूल ,इंटर ,बी ए करते गए और पढ़ाते गए | पिता जी और पास के दो राय भाइयो तथा गाँव के एक चौबे जी ने मिलकर विचार किया क्यों न अपने क्षेत्र में स्कूल खोला जाए और गांब के पास ही ब्लोक के पास तहबरपुर में उन राय भाइयो की जमीन पर स्कूल खुल गया था जो भीख मांग कर खुला और सबके परिश्रम से इंटर कालेज तक पहुच गया | पिता जी उसी में लेक्चरार और प्रिंसिपल तक पहुचे | इस बीच पिता जी ने मेहनत से एम् ए कर लिया | उस समय उत्तर प्रदेश भर के इम्तहान आगरा विश्वविद्यालय करवाता था और प्राइवेट पढ़ाई तथा परीक्षा भी वही से होती थी | आगरा के आर बी एस कालेज में कार्यरत शिक्षको के लिए बी एड की जगह एल टी फॉर टीचर्स होती थी जिसमे दो साल तीन तीन महीने के लिए जाना होता था | पिता जी ने वहा से वो कर लिया तो और शिक्षा के लिए आर बी एस कालेज ही एम् एड करने चले गए | एम् एड करने के दौरान किसी तरह उनके ऊपर आर बी एस कालेज के प्राचार्य डा आर के सिंह जी की निगाह पड गयी .| डा आर के सिह वो थे जिनके प्राचार्य रहने के दौरान अमरीका के दो राष्ट्रपति आइजन हावर और लिंडन जांनसन ने आर बी  एस कालेज का दौरा किया था .डा आर के सिह का नेहरु जी से शिक्षा के किसी मुद्दे पर हुआ विवाद भी चर्चित हुआ था ,डा आर के सिह दो विश्वविद्यालयो के कुलपति रहे ,कुछ समय अमरीका में रहे तथा जिसे चाहा अमरीका उच्च शिक्षा और पी एच दी के लिए भेज दिया | उन्होंने आदेश कर दिया की पिता जी अगली जुलाई में आगरा आ जाए और आर बी एस कालेज के बी एड् ,एम् एड विभाग में लेक्चरार के रूप में ज्वाइन कर ले |तब प्राचार्य लोग किसी भी योग्य छात्र को शिक्षक नियुक्त कर देते थे ,यहाँ तक की विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में सभी प्रचार्य् निगाह रखते थे टॉप करने वाले छात्रो पर या मैडल पाने वाले छात्रो पर और वाही पंडाल में ही खीचतान होती थी की होनहार छात्र को कौन अपने कालेज में अध्यापक बनाने के लिए तैयार कर ले | खैर  पिता जी ने बहुत कहा की गाँव की जिम्मेदारी है और वहा का अन्तर कालेज तथा क्षेत्र के बच्चों की पढाई की जिम्मेदारी है पर डा आर के सिंह नहीं माने और बोले की तुम यहाँ जोईन करोगे तो तुम्हारे ज्ञान का लाभ इस स्तर के बच्चों को मिलेगा तथा तुम्हारे क्षेत्र के लोगो को तुमसे प्रेरणा मिलेगी और तुम अपने क्षेत्र के लोगो को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करना और मेरे पिता को उस दिन तहबरपुर इंटर कालेज में आसपास के गाँवों से विदा करने आई हजारों की भीड़ को रोता हुआ छोड़कर आगरा आ जाना पड़ा | अगले साल पिता जी हम लोगो को भी आगरा ले आये थे | { पिता जी के बारे में तथा उनके और मेरे परिवार के संघर्ष के बारे में मेरी दूसरी पुस्तक में लिखूंगा } 
आर बी एस कालेज में प्राइमरी स्कूल और आठवी तक की क्लास खंदारी हाउस जो रानी का महल कहलाता था और कालेज ने खरीद लिया था उसमे होती थी | इंटर कालेज अलग था | डिग्री कालेज की आर्ट की साइंस की ग्रेजुएशन की और कामर्स की क्लास मुख्य बिल्डिंग में होती थी | भरत हाउस जो राजा का महल था उसमे बी एड तथा एम् एड की क्लास होती थी और छोटा सा होस्टल भी बगल में था | कालेज का बड़ा होस्टल कालेज में ही था | कृषि के बच्चों `के लिए पास में ही बड़ा कृषि फ़ार्म था जिसका अनाज सब लोग खरीदते थे और कृषि तथा अन्य साइंस की पी जी का कालेज शहर से थोडा दूर बिचपुरी में था और आज भी है जिसका देश के लिए काफी योगदान है | पिता जी भारतपुर हाउस में पढ़ाते और कुछ समय बाहर किराए के मकान म इ रहने के बाद हम लोगो को खंदारी हाउस में एक कालेज का निवास मिल गया था जहा हम लोग करीब तीस साल तक रहे | 
मेरी क्लास खंदारी हाउस में ही लगती थी | हमारी क्लास ऊपर की मंजिल पर दक्षिन तरफ के बरामदे में लगाती थी | आगरा में वैसे भी गर्मी ज्यादा होती थी ऊपर से दोपहर का सूरज सीधे हम लोगो पर पड़ता था | मैंने पिता जी से कहा की क्लास में हम लोगो को गर्मी लगाती है और क्लास में पंखा नहीं लगा है जबकी अन्य कई क्लास में पंखा लगा है ,इसपर पिता जी बोले की हेड मास्टर साहब से तुम लोग कहो क्लास के इकट्ठे होकर और मुझेक मिलेंगे तो मैं भिऊ कह दूंगा क्योकि पंखा की फीस तो लगाती है | जी हा तब स्कूल की फीस की रसीद में पंखा फीस कालम के सामने दो पैसा लिखा होता था | अगले दिन मैं हेड मास्टर साहब के पास कुछ बच्चों के साथ गया और ऊँ से ये बात कहा की पिता जी ने आप से कहने को कहा है तो वो बोले तू तो बी एड वाले राय साहब का बेटा है न तो पिता जी से कह की कुजरू  साहब से जाकर मिले और कहे या फिर तुम बच्चों मिलकर जाओ और उनको बात बताओ पर छुट्टी होने पर जाना और एक साथ जाना तो मैंने पुछा की कुजरू  साहब कौन है तो बोले की कुजरू साहब बहुत बड़े स्वतंत्रता सेनानी है और वाही कालेज के सर्वे सर्वा  है और इंटर कालेज के पास रहते है |ये तो मैं बाद में जान पाया की मैं कितनी बड़ी हस्ती से उस छोटी उम्र में मिला था | कुजरू साहब स्वतंत्रता सेनानी थे ,संविधान सभा के सदस्य थे | कई सदनों के सदस्य रहे थे और बहुत बड़ी बड़ी उप्ल्ब्धियां उनके खाते में है |

(कौन थे कुजरू साहब ?   हृदयनाथ कुंजरू (1 अक्टूबर 1887 - 3 अप्रैल 1978) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और सार्वजनिक व्यक्ति थे। वे लंबे समय तक सांसद रहे, उन्होंने लगभग चार दशकों तक प्रांतीय और केंद्रीय स्तर पर विभिन्न विधायी निकायों में सेवा की। वे भारत की संविधान सभा (1946-50) के सदस्य थे, जिसने भारत का संविधान तैयार किया । [ 1 ] उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भी गहरी दिलचस्पी थी और उन्होंने भारतीय विश्व मामलों की परिषद और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विद्यालय की सह-स्थापना की ।  

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

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कुंजरू कश्मीरी पंडित अयोध्या नाथ कुंजरू और उनकी दूसरी पत्नी जनकेश्वरी के दूसरे बेटे थे । उनका जन्म 1 अक्टूबर 1887 को इलाहाबाद में हुआ था। हालाँकि उनकी शादी 1908 में हुई थी, लेकिन 1911 में प्रसव के दौरान उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई , उसके छह महीने बाद बच्चे की भी मृत्यु हो गई। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था और उन्होंने अपना जीवन सार्वजनिक सेवा के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया। [ 2 ] उन्होंने 1903 में मैट्रिक और 1905 में आगरा कॉलेज से एफए किया। उन्होंने 1907 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा पास की । इसके बाद, वे 1910 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स चले गए जहाँ उन्होंने राजनीति विज्ञान में बीएससी की डिग्री पूरी की। [ 3 ]

राजनीति मीमांसा

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पंडित कुंजरू ने अपना राजनीतिक जीवन कांग्रेस से शुरू किया, लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और तेज बहादुर सप्रू और मदन मोहन मालवीय जैसे अन्य उदारवादियों के साथ मिलकर नेशनल लिबरल फेडरेशन का गठन किया । 1934 में वे इसके अध्यक्ष बने। नेशनल लिबरल फेडरेशन उच्च विचार वाले व्यक्तियों का एक ढीला-ढाला समूह था और कुंजरू उस परंपरा के प्रति सच्चे रहे, उन्होंने अपना पहला चुनाव और उसके बाद हर चुनाव में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा।  गैर-सरकारी संगठनों के प्रति उनका जोरदार समर्थन भी उदारवादी दर्शन से जुड़ा था कि लोकतंत्र में सरकार को सर्वशक्तिमान नहीं होना चाहिए। संविधान सभा की बहसों में उनके कई हस्तक्षेप लोगों पर सरकार की शक्ति को कम करने के लिए भी थे।

एक सांसद के रूप में

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वे संयुक्त प्रांत की विधान परिषद (1921-26) के सदस्य बने, और तत्पश्चात केन्द्रीय विधान सभा (1926-30), राज्य परिषद (1936), अनंतिम संसद (1950-52) और राज्य सभा (1952-64) के सदस्य बने।

कुंजरू ने रेलवे की जांच के लिए गठित दो विशेषज्ञ समितियों का नेतृत्व किया, पहली समिति 1944 में विभिन्न मौजूदा रेलवे कंपनियों को भारतीय रेलवे में मिलाने के लिए स्थापित की गई थी । उन्होंने 1962 में स्थापित रेलवे दुर्घटना समिति की भी अध्यक्षता की। वह 1946 में स्थापित समिति के अध्यक्ष थे जिसने एक कैडेट कोर की स्थापना की सिफारिश की, जिसने अंततः 1948 में राष्ट्रीय कैडेट कोर के रूप में आकार लिया। उन्होंने एक अन्य समिति की अध्यक्षता की जिसने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की स्थापना की सिफारिश की । वह 1953 से 1955 तक राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य थे। उन्होंने ने व्यापक रूप से यात्रा की और दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और पाकिस्तान सहित कई देशों में संसदीय और अन्य प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा थे। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ पेसिफिक रिलेशंस द्वारा आयोजित 1950, 1954 और 1958 के प्रशांत सम्मेलनों की भी अध्यक्षता की । 

एक शिक्षाविद् के रूप में

कुंजरू साहब ने भारत में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने भारतीय विश्व मामलों की परिषद और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन स्कूल की स्थापना में मदद की , अपने प्रभाव और संपर्कों का उपयोग करके भारतीय विश्व मामलों की परिषद के मुख्यालय सप्रू हाउस के निर्माण के लिए 600,000 रुपये की राशि जुटाने के लिए। विभिन्न समयों पर, वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय , दिल्ली विश्वविद्यालय , इलाहाबाद विश्वविद्यालय और श्री राम संस्थान, दिल्ली की सीनेट और कार्यकारी परिषद के सदस्य थे। उनके काम के सम्मान में, उन्हें इनमें से कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियाँ प्रदान की गईं। वे १९५३ से १९६६ तक १२ वर्षों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य रहे और १९६६ में थोड़े समय के लिए इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 

अन्य उपलब्धियां

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वे भारतीय स्काउटिंग के संस्थापकों में से एक थे , और भारत स्काउट्स और गाइड्स के पहले राष्ट्रीय आयुक्त के रूप में कार्य किया । वे 1909 में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी में शामिल हुए और 1936 में इसके आजीवन अध्यक्ष बने। वे चिल्ड्रन्स फ़िल्म सोसाइटी के पहले अध्यक्ष भी थे । 

कुजरू साहब इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की स्थापना करने वाली तैयारी समिति का हिस्सा थे और इसके पाँच मूल आजीवन ट्रस्टियों में से एक थे।  वह राज्य पुनर्गठन आयोग का भी हिस्सा थे ।

  • कुंजरू साहब को 1968 में सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न के लिए नामांकित किया गया था , लेकिन उन्होंने एक गणतंत्र में ऐसे सम्मानों के प्रति अपने विरोध का हवाला देते हुए इसे अस्वीकार कर दिया, जिसे उन्होंने पहली बार संविधान सभा की बहस के दौरान आवाज़ दी थी।
  • 1987 में भारत के एक डाक टिकट पर उन्हें सम्मानित किया गया। 
  • 1972 में उनके संरक्षण में पुणे में स्थापित रक्षा मामलों के अध्ययन केंद्र का नाम उनकी मृत्यु के बाद 1980 में कुंजरू केंद्र रखा गया। 
  • भारतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विद्यालय ने उनके नाम पर वार्षिक व्याख्यानों की एक श्रृंखला शुरू की, जो आज भी जारी है। 
  • उनकी मानद डिग्रियों में एल.एल.डी. ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ), डी. लिट. ( अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ) और डी.एल. ( बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से ) शामिल हैं। सोर्स विकिपीडिया 
पेडा मास्टर साहब जी यही नाम था हेड मास्टर साहब का क्योकि वो पैडा कितना खाते थे ये तो नहीं मालूम पर पेडे की बात बहुत करते थे तो उनका नाम यही पड गया था उन्होंने कह  मैं कोई मास्टर साथ भेज दूंगा पर वो अन्दर नहीं जायेंगे तुम लोग ही अपनी बात कहना | तय हुआ की अगले दिन हम पूरी क्लास के लोग कुजरू साहब के पास जायेंगे | अगले दिन मैं पिता जी से फीस की रसीद भी ले आया था | दूसरे दिन छुट्टी होने के समय पहले क्लास लगी की सब लोग दो लाइन में लग कर जायेंगे और वापिस आयेंगे तथा स्कूल वापस आकर फिर बस्त्ता लेकर घर जायेंगे | मुझे पुछा गया की मैं क्या बोलूँगा फिर आश्वस्त होने पर हम लोगो को कुजरू साहब के घर के लिए रवाना किया गया गया और एक अध्यापक साथ गए जो उनके घर के बाहर रुक गए |कुजरू साहब आर बी एस कालेज से दिल्ली गेट जाने वाले रास्ते पर इंटर कालेज के बाद बाई तरफ एक पीले रंग की कोठी में रहते थे । हम लोग अन्दर पहुच गए तो कुजरू साहब बाहर आये और उन्होंने पुछा की तुम इतने बच्चे एक साथ यहा क्या करने आये हो | छुट्टी के बाद घर नहीं गए तब मैंने आगे बढ़कर अपनी बात कहा की हम लोगो को बहुत गर्मी लगती है और क्लास में पंखा नहीं है | इसपर वो बोले की तुम लोगो को अभी से गर्मी लग रही है और पंखा चाहिए तो आगे क्या करोगे तब मैंने फीस की रसीद आगे कर दिया की देखिये पंखे की फीस लगती है और बाकी क्लास में पंखा है | वो थोडा मुस्कराए और मेरे गाल पर हल्का सी चपत लगाते हुए कहा की नेता बनेगा तो मैंने कही की नहीं फ़ौज में जाऊँगा तो बोले लक्षजन तो नेता वाले है | हम लोग लौट आये और अगले दो तीन दिन में मेरी क्लास में पंखा लग चूका था | ये मेरी जिन्दगी का पहला जुलुस था और पहली मांग थी जिसमे मैं सफल हो चूका था | कुजरू साहब का व्यक्तित्व ,उनकी प्यार भरी आवाज और उनका वो प्यार भरा चपत मैं कभी भी भूल नहीं सका | 

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