मंगलवार, 10 सितंबर 2024

जिन्दगी_के_झरोखे_से जब जब मुझे बड़े नेता के लिए भीड़ को रोक रखने को डेढ़ घंटे या उससे ज्यादा लंबा भाषण देना पड़ा ;

#जिन्दगी_के_झरोखे_से 

जब जब मुझे बड़े नेता के लिए भीड़ को रोक रखने को डेढ़ घंटे या उससे ज्यादा लंबा भाषण देना पड़ा ;

1: 1977 की बात है । आपतकात लंबी कैद से भारत मुक्त होने को छटपटा रहा था । जेल बंद नेता और एक हो चुके थे ।जनता पार्टी घोषित हो चुकी थी । वरिष्ठम होने के कारण मोरारजी देसाई पार्टी के अध्यक्ष बने थे और देश में इंदिरा जी के बाद सबसे बड़ा जनाधार होने के कारण चौ चरण सिंह उपाध्यक्ष बन गए थे । अपने छोटे से मुख्यमंत्री के कार्यकाल में चौधरी चरण सिंह जी ने अपनी ईमानदारी और सख्त प्रशासन से कठोर प्रशासक होने की छाप छोड़ी थी ।चौधरी चरण सिंह पंडित गोविंद बल्लभ पंत की उत्तर प्रदेश में पहली सरकार में भी मंत्री और संपूणानंद जी की सरकार में भी मंत्री रहे थे । चौधरी साहब ने भूमि सुधार और लगान इत्यादि पर व्यवहारिक और अच्छे कानून बनाए थे वो देश के लिए नजीर बनी थी ।उन्होंने ने भूमिहीन लोगो के लिए कानून बनवाया और खेती पर सीमा लागू किया था जो पहले 18 एकड़ थी और बाद में 12,5 एकड़ हो गई की कोई उससे ज्यादा जमीन नही रख सकता और उसके ऊपर नही खरीद सकता । उन्होंने ही वो बिल पास करवाया था की यदि गन्ना मिल किसान का पेमेंट नहीं करती है तो सरकार मिल का अधिग्रहण कर खुद चलाए और उसकी मिल से जुड़ी अन्य संपत्तियां कुर्क कर ले । पर बात उस घटना की जिसने चौधरी साहब को किसानों के मसीहा बना दिया । वैसे चौधरी साहब आर्य समाजी थे और उन्होंने जाति की राजनीति नही किया बल्कि जिन्दगी भर किसानों की लड़ाई लड़ते रहे इसलिए उनकें समर्थन में जाती की दीवार तोड़ कर लोग उसके पीछे खड़े हो गए थे । वैसे वो जमाना भी जाती की राजनीति के नही बल्कि विचारो की राजनीति का था और साम्यवादी हो या समाजवादी सबका कितना वैचारिक बढ़ पाया उतना ही विस्तार हुआ । आर एस एस की राजनीतिक शाखा तक केवल शहर के चंद व्यापारियों की पार्टी कहलाती थी और उसका आधार उतना ही था । मेरा गांव भी किसान नेता के नाम पर चौधरी साहब का समर्थक था । उनके बारे में तमाम सही गलत किदवंतिया है की कैसे वो वेश बदल कर थाने में पहुंच गए और कैसे साधारण आदमी के रूप में चीनी और सीमेंट खरीदने पहुंच गए और जमाखोरो को पकड़वाया । इन कहानियों से पूरे प्रशासन में उनका भय व्याप्त हो गया था और सभी समय से ऑफिस आकर पूरे समय रहते तथा क्या मजाल की कोई घूस ले ले ।
 
खैर बात पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के साथ बहस की है । पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के सिर्फ प्रधानमंत्री ही नहीं थे बल्कि सर्वमान्य नेता थे । हुआ ये की पंडित जवाहरलाल नेहरु जी रूस के दौरे पर गए और वहा की कोप्रेटिव खेती यानी सहकारी खेती से बहुत प्रभावित हुए थे । वहा से आने के बाद संभवतः 1959 में नागपुर में कांग्रेस का खुला अधिवेशन हुआ और उसमे पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने सहकारी का मसवदा पेश की ताकि पार्टी का समर्थन मिल जाने के बाद वो उस संबंध में बिल ला सके । समझने की बात है की देश के बंडे सर्वमान्य नेता जो प्रधानमंत्री थे भी तब कोई बड़ा फैसला लेने से पहले पार्टी में उसपर बहस होने देते थे यानी वो सत्ता से पार्टी को बड़ा मानते थे ।आज की नेताओ जैसा नहीं था । पंडित जवाहरलाल नेहरू जी ने अधिवेशन में सहकारी खेती का मसौदा पेश किया तो चौधरी चरण ने उस विषय पर अपना विचार रखने इस आग्रह किया और सवा या डेढ़ घंटे तक चौधरी साहब सहकारी खेती के खिलाफ अपने ट्रक देते रहे । पंडित जवाहरलाल नेहरू जी भी इन तर्को से सहमत हो गए और सहकारी खेती का विचार लागू नहीं हुआ । ऐसे थे चौधरी चरण सिंह जी ।

इंदिरा जी के बाद चौधरी चरण सिंह जी देश के सबसे बड़े जनाधार वाले नेता थे । 1974 में 7 पार्टियों के विलय से बने लोक दल में देश के बड़े बड़े नेता शामिल हो गए थे भारतीय क्रांति दल , संयुक्त सोशलिष्ट पार्टी , स्वतंत्र पार्टी और उत्कल कांग्रेस इत्यादि प्रमुख पार्टियां थी । राज नारायण जी ,महारानी गायत्री देवी , पीलू मोदी , मीनू मसानी , बीजू पटनायक , देवीलाल ,कर्पूरी ठाकुर जैसे तमाम बड़े नेता थे कुछ का नाम मैं विस्मृत कर रहा हूं ।आजादी की लड़ाई में भी चौधरी चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश था । उन्होंने राजस्व की वकालत भी किया था और गांव गरीबी तथा खेती का दर्द उन्होंने खुद झेला था इसलिए उन संदर्भों में वो अच्छा काम कर पाए । 

बात आपातकाल की हो रही थी। चढ़ाई साहब भी देश के सभी नेताओं के साथ गिरफ्तार हो गए थे और जेल में थे । इंदिरा जी ने बड़ी कोशिश किया की पुराने कांगेसी पर बड़ा जनाधार रखने वाले चौधरी चरण सिंह कांग्रेस में आ जाए । इंदिरा जी ने चौधरी चरण सिंह के प्रति सौहार्द दिखाने के लिए उनकी जेल से छोड़ दिया । मुझे याद है की वो आगरा से निकले थे तो उनके साथ प्रधानमंत्री जैसी सुरक्षा और प्रोटोकॉल था और सड़क पर हर थोड़ी दूर पर सिपाही खड़े थे जो उनको सलाम कर रहे थे । पर चौधरी चरण सिंह जी ने अलीगढ़ पहुंचते ही जानता को संबोधित करते हुए आपातकाल और इंदिरा जी पर खूब हमला किया और वो फिर गिरफ्तार कर जेल भेज दिए गए। 

आपातकाल के बाद चुनाव घोषित हो गया था । आगरा में रामलीला मैदान में जनता पार्टी की सभाएं होती थी और लाखों लोग सुनने आते थे । मंच के समाने , दाएं बाएं और पीछे हुजूम होता था । जन समुद्र हिलोरे लेता था । कई बड़े नेता आगरा आए पर जितनी भीड़ राज नारायण जी के लिए हुई थी और जो दीवानगी जनता ने उनके प्रति थी वो सब पर भारी थी , क्योंकि राज नारायण जी ने ही अदालत में इंदिरा गांधी जी के खिलाफ रायबरेली से लोकसभा चुनाव में धाघली सिद्ध कर मुकदमा जीता था और फिर बाद में तो उन्होंने चुनाव में इंदिरा जी को हरा भी दिया था । उस चुनाव में उत्तर भारत में कांग्रेस बिलकुल साफ़ हो गई थी पर दक्षिण भारत ने उसका साथ दिया था क्योंकि दक्षिण भारत में वो ज्यादती नही हुई थी ।आपातकाल की कैद से जनता स्वतंत्र होकर सड़क पर आ रही थी । उस दिन रामलीला मैदान में चौधरी चरण सिंह की सभा था । पहले नेता लोग हेलीकोटर से नही चलते थे बल्कि अपनी गाड़ियों से एक तरफ से शुरू करते और सभाएं करते आगे बढ़ते जाते थे । चौधरी साहब के पास एक सफेद फिएट कार थी ,उसी से चलते थे । पूर्व मुख्यमंत्री थे पर कोई एस्कॉर्ट या सुरक्षा नही होती थी । नेता लोग दूर के लिए ट्रेन का प्रयोग करते थे । उस दिन रामलीला मैदान में सभा चल रही थी और धीरे धीरे सभी वक्त बोल चुके पर चौधरी साहब का पता नही थी । तभी जनसंघ के नेता योगेंद्र सिंह चौहान ने मेंरी तरफ देखा और संचालन कर रहे भगवान शकर रावत जो बाद में भाजपा से तीन बार सांसद हुए से कहा की चंद्र प्रकाश राय को माइक पर बुला लो वो तब तक कविताएं सुना कर जनता को रोकेंगे । तब तक मेरी कुछ कविताएं फेमस हो गई थी और मैं कवि गोष्ठियों तथा कवि सम्मेलनो में हिस्सा लेने लगा था । योगेंद्र सिंह चौहान ने ऐसे ही एक कवि सम्मेलन में मुझे सुना था और छात्र नेता के रूप में , विश्वविद्यालय के बेस्ट डिबेटर के रूम में मेरे भाषणों की चर्चा होने लगी थी । भगवान शकर रावत ने माइक से पुकारा की बहुत ही क्रांतकारी छात्र नेता जी कविताएं भी क्रांतिकारी ही करते है उनको बुला रहा हूं की जब तक चौधरी साहब आते है तब तक वो अपनी कविताएं सुनाए । 

मैं माइक पर पहुंचा और बोलना शुरू किया। मैने कहा की आज देश के जो हालत है और पिछले 19  महीने देश ने जो दर्द भोगा है वो इतना भयानक है की आज कविता और गाने का समय नहीं है बल्कि कुछ बात करने का समय है को आजादी या तानाशाही चाहिए ।तब तक जनता से आवाज आई कविता सुनाइए । मैने कहा कविता भी सुनाऊंगा पर पहले कुछ मिनट मेरी बात सुन ले । अचानक पता नही कहा से मेरे मन में विचार और और मैं बोलने लगा की दोस्तो भारत में दो माताएं हुई है ।एक माता थी पन्ना दाई राजा के बेटे को बचा रही थी क्योंकि तब राजा ही राज का प्रतीक होता था । पन्ना दाई का अपना भी बेटा उतना ही बड़ा था जितना राजा का बेटा । दुश्मनों ने पन्ना दाई से पूछा की राजा का बेटा कौन सा है तो पन्ना दाई ने अपने बेटे की तरफ इशारा कर दिया की ये है राजा का बेटा और उसके सामने उसके बेटे का सर काट दिया गया । पर पन्ना दाई ने देशभक्ति और वफादारी की मिसाल कायम कर दिया और राजा के बेटे को बचा लिया या राज को बचा लिया । भारत में एक मां इस वक्त भी है जिसने अपने बेटे की खातिर देश को कटवा दिया ( नसबंदी के संदर्भ में ) । मेरे इस वाक्य का बाद पूरा जन समुद्र पागल हो गया और अगले 10 मिनट तक बस नारे लगते रहे जनता पार्टी जिंदाबाद , जयप्रकाश नारायण जिंदबाद ,इंदिरा गांधी मुर्दाबाद के ।( आज उस समय के थ्रिल और आतंक को महसूस नहीं किया जा सकता है जो उस समय था की शरीर के बाल खड़े हो जाते थे ऐसी बातो पर । जनता पर मेरी वाणी का नशा चढ़ चुका था और मैं बोलता चला गया । मेरा भाषण करीब एक घंटे से भी ज्यादा के बाद तभी रुका जब आवाज आई की चौधरी साहब मंच के पीछे आ गए है । बस एक लाइन समापन की बोल कर और एक बार चौधरी साहब का नारा लगा कर मैने माइक भगवान शकर रावत जी को सौप दिया तथा वो लोगो से नारे लगवा सके और चौधरी साहब का स्वागत कर सके । मैं भी चौधरी साहब को रिसीव करने मंच से नीचे उतर गया । 

मंच के पीछे भी एक किस्सा हुआ जो बताता है कि भारत में आई ए एस कितना ताकतवर है । हुआ ये की पूर्व मुख्यमंत्री और  वो भी चौधरी चरण सिंह थे तो आगरा के तत्कालिक डी एम और एस एस पी प्रोटोकॉल में मंच के पीछे खड़े थे । चौधरी साहब कार से उतरे तो उनकी निगाह डी एम माता प्रसाद पर पद गई जो नमस्ते करने को हाथ जोड़े खड़े थे । माता प्रसाद पर आरोप था की दूसरे जिले में डी एम रहने के दौरान उन्होंने लोगो के नाखून उखड़वा दिए थे और भी कई अधिकारियों पर आरोप थे कानून को ताक पर रख कर ज्यादती करने के और उसी सब का जनता में गुस्सा व्याप्त हो गया था। चौधरी साहब बोले अरे ये तो माता प्रसाद है जिसने नाखून उखड़े थे । भगाओ इसे । इसे तो नौकरी से तुरंत बर्खास्त होना चाहिए। माता प्रसाद को मैने कांपते और फिर पेंट सम्हालते हुए जोर से अपनी कार की तरफ भागते देखा । बाद में चौधरी चरण सिंह देश के गृह मंत्री बने , उप प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री बने पर माता प्रसाद का कुछ नही बिगड़ा । उन्होंने अपनी नौकरी पूरा किया और संभवतः  देश के सबसे बड़े पद कैबिनेट सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए । ये है नेता और आई ए एस की ताकत और एकता का फर्क । नेता ट्रांसफर पोस्टिंग कर देता है और अधिक से अधिक सस्पेंड कर देता है पर पूरी आई ए एस लाबी अपने आदमी को हर हाल में बचा लेती है ।
ये मेरा पहला किस्सा था बड़े नेता के लिए भीड़ को रोकने का । 

दूसरा किस्सा 1978 का है । आजमगढ़ से राम नरेश यादव जी संसद थे और बाद में प्रदेश में सरकार बनने पर राज नारायण जी ने उन्हे उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनवा दिया था तो उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था और उसी सीट का चुनाव हो रहा था । भारत सरकार के मंत्री राज नारायण जी जॉर्ज फर्नांडीज , पुरषोत्तम कौशिक ,जनेश्वर मिश्रा सहित कई मंत्री और मुख्यमंत्री रामनरेश यादव सहित पूरा उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल आजमगढ़ में आ डटा था । आजमगढ़ कस्बे जैसा छोटा सा शहर था , कोई खास होटल नही था और पी डब्लू डी का छोटा सा गेस्ट हाउस था जिसमे राज नारायण जी , मुख्यमंत्री राम नरेश जी रुके थे , जॉर्ज फर्नांडीज किसी के घर के एक ऐसे कमरे में रुके थे जिसका दरवाजा बाहर खुलता था ।उन्होंने आते ही कह दिया था की उनको एक खुली जीप दे दिया जाए माइक सहित और ऐसा कमरा किसी के घर में जो अलग खुलता हो ताकि इस परिवार को कोई दिक्कत न हो । जॉर्ज सहबके प्रति नौजवानों में जबरदात दीवानगी थी की ये पता चलने पर की वो आजमगढ़ में है बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के तमाम लड़के लड़कियां उनसे मिलने आते रहे और साथ दौरा करते रहे । जॉर्ज फर्नांडीज साहब आपातकाल के डाईमाइनाइट कांड के हीरो जो थे ।मुझे भी उनके साथ एक पूरे दिन रहने का मैया मिला । ऐसे ही पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर जी और राजा दिनेश सिंह के साथ भी एक दिन रहना पड़ा ।  चूंकि और कोई जगह नही थी तो इंदिरा गांधी जी को शहर में रुकने की जगह नही मिली । वो गांव गांव गई और कहा कही ठीक जगह मिली वही रुक गई ।मेरे गांव और मेरे घर भी आई थी । ये किस्सा आगे ।  ऐसे ही सभी मंत्री कही न कही रुके थे ।पूरब के गांधी कहलाने वाले बाबू विश्राम राय चुनाव के संचालक बनाए गए । जनता पार्टी ने राम बचन यादव को अपना उम्मीदवार बनाया और इंदिरा जी ने मोहसिना किदवई जी को मुकाबले में उतार दिया ।

मैं भी आजमगढ़ पहुंच गया और एक मुंशी जी मौर्य थे और सब्जी तथा बीज का कारोबार करते थे । उनसे मेरा दादा जी जब शहर मुकदमे इत्यादि के लिए आते थे तो किसी तरह रिश्ता बन गया था और शहर आने पर मेरे परिवार के लोग उन्हीं घर रुकते और खाते थे , यहां तक कि शहर में पढ़ने वाले घर के लोग उन्हीं के घर रहते थे और न भी रहना हो तो भी शहर आने पर उनके घर सब लोग जाते ही था  । वो परिवार बन गए थे और बाद में उनके पास  जमीन ज्यादा थी तो उन्होंने एक तरफ कई कमरे और बाथरूम बनवा कर होस्टल चालू कर दिया था ।मैने उन्हीं के घर डेरा जमाया । उनके घर के सामने ही धोबी था तो कपड़े धोने की चिंता भी नही थी। मैने उनसे कहा की मुझे रात में देर भी हो सकती है इसलिए बाहर ही एक चारपाई और कुछ बिछाने ओढ़ने को रख दिया करिए , रात का खाना मैं कही खा लूंगा , हा सुबह की चाय और कुछ भारी नाश्ता दे दीजिएगा । वो बोले आप हमारे घर के बच्चे है और बड़े काम के लिए यहां आए है इसलिए कोई चिंता मत करिए कुछ रोटी और सब्जी हम दे दिया करेंगे शाम को खा लीजिएगा वरना इस शहर में रात को खाना नही मिलेगा , तो मैने कहा कोई बात नही मुझे लाई चना या भूजा और भेली यानी गुड़ दे दीजिए वो में साथ रखूंगा और कही मिलेगा तो केला खा लूंगा । 

खैर उनके घर समान रख कर में चुनाव कार्यालय पहुंचा और बाबू विश्राम राय से मिला । उनसे पूछा की मुझे क्या क्या करना है तो मेरे पिता और परिवार का हाल पूछने के बाद बोले और आगरा शहर के छात्र नेता है तो आप ऐसा करिए की रोज जो भी कार्यक्रम बनेगा उसे स्थानीय समाचार पत्रों को बताना , शहर में होने वाली बड़े नेताओ की सभा का संचालन करना तथा जो बड़े नेता दौरे पर आए उनके साथ उनका कार्यक्रम करवाना ये सब कर लीजिए पर एक बात ध्यान रखिए की इसी से सब नही होगा बल्कि साथ साथ अपने गांव और ब्लॉक पर जिताने की जिम्मेदारी भी आप की है । अब ये सब कैसे करेंगे ये आप तय करिए तो मैने पूछा ये दौरे इत्यादि में कैसे करूंगा ?  किसकी गाड़ी में जाऊंगा ? तो बोले की आप को एक अलग से गाड़ी देंगे ,उसके पेट्रोल की पर्ची यही से मिलेगी और आप को दिन भर अपने खर्च के लिए 10 रुपया रोज मिलेगा । 

आगे की बात करूं उसके पहले एक बात बता दूं ताकि पाठक कुछ निष्कर्ष निकाल सके । हुआ ये की लोकसभा चुनाव में अभी कौमों में राम नरेश यादव जी को भरपूर वोट दिया था और वो भरी वोट से जीते थे पर विधान सभा चुनाव में यादव बिरादरी ने एक गड़बड़ कर दिया । आजमगढ़ सदर सीट से कपीलदेव सिंह जी बहुत जुझारू नेता था और वो भी 19 महीने जेल काट कर आए थे वो टिकट पाकर चुनाव लड़ रहे थे । उस चुनाव में यादव बिरादरी इस सीट पर जनता पार्टी और राम नरेश यादव जी के साथ रहने के बजाय एक यादव के साथ चली गई और पार्टी के नेता कपिल देव सिंह चुनाव हार गए । इस बात को यही छोड़ देता हूं । 

मैं अपने लिये निर्धारित सब काम करने लगा । अपने ब्लॉक के गावो में भी जाता समय निकाल कर और शाम को शहर में सभाओं का संचालन करता तथा भाषण देता । गांव गांव में घूमती इंदिरा गांधी जी गांव में घरों में चली जाती और महिलाओं से विशेषकर मिल लेती थी।एक दिन वो मेरे गांव भी आ गई और उनके प्रभाव में मुझे गांव और इलाका बदलता दिखा तो मैं अगले दिन राज नारायण जी के पास गया और उनको ये बात बताया । तो उन्होंने पूछा की क्या चाहते हो तो मैने कहा की समय निकाल कर आप मेरे ब्लॉक पर आ जाइए , शाम को सभा कर दीजिए और रात में मेरे घर मेरे गांव पर खाना खा लीजिए ,वहा में आसपास के सभी गांवों से मुख्य मुअज्जीज लोगो को भी बुला लूंगा । दो दिन बाद का कार्यक्रम तय हो गया । वही यहा भी हुआ कि राज नारायण जी लेट होने लगे और बाकी सारे प्रदेश के मंत्री , मुख्यमंत्री तथा केंद्रीय मंत्री भी उन्ही के साथ थे  । उनमें से कोई आ जाता तो काम चल जाता । मेरे साथ उस दिन एक बनारस के छात्र नेता जी बलिया के रहने वाले थे दुबे जी वोट और बी एच यू के छात्र नेता लाल बहादुर सिंह थे । मैने कुछ स्थानीय लोगो के बाद इन लोगो को भी बुलवा दिया और किसी नेता का दूर दूर तक कोई पता नहीं था । तब मैने माइक सम्हाला और ढाई घंटे बोलता रहा तब राज नारायण जी का पूरा लैब लश्कर आया । सबने तय किया की केवल राज नारायण जी बोले तो जनेश्वर जी जिनका भाषणों क्या क्रेज पूर्वांचल में ज्यादा ही था और पुरषोत्तम कौशिक जी सहित कोई प्रदेश का मंत्री कुछ नही बोला । सभा समाप्त हुई तो सब लोग बिलकुल बगल में मेरे गांव मेरे घर के चल दिए । मेरे गांव में रहने वाले चाचा जी ने सबके खाने की व्यस्था कर रखा था और पूरे गांव से चारपाई तथा तख्त एकत्र करवा कर मेरे घर के बाहर बड़ा द्वार था वहा बिछवा दिया था । तहबरपुर ब्लॉक का सभा वाला माइक मैने यहां मगवा लिया था । मुझे याद है की राज नारायण जी ने अपनी बात भोजपुरी में एक वाक्य से शुरू किया की का हो दिया तले अंधेरा रही का ? सब लोग मतलब नहीं समझ पाए तो उन्होंने कहा की आप लोगन के घर का बेटवा चंद्र प्रकाश इहा काम देखते हउये और यनहू के इज्जत का सवाल बा और हमरो इज्जत का सवाल बा तो का आप लोग हमें हरा देबा ? चारो तरफ से सब लोग एक स्वर में बोले की नही आपय जीतब । सब आप के साथ रही । काम हो गया था । सब लोग खाना खाकर शहर के लिए रवाना हो गए । जब परिणाम निकला तो रामनरेश यादव सहित सभी नेताओं के क्षेत्र में पार्टी हार गई थी पर मेरे ब्लॉक से जीती थी और मोहसिना किदवई जी जीत गई और वही से इंदिरा गांधी जी को ताकत मिली ,फिर वो देश भर में निकल पड़ी और 1980 में 353 जीत कर इंदिरा गांधी जी सत्ता में वापस आ गई और जनता ने आपातकाल को भुला कर उनके काम को याद कर उनकी झोली एक बार फिर वोट से भर दिया था । जनता पार्टी टूट चुकी थी जनता पार्टी में चंद्रशेखर जी अटल बिहारी वाजपेई और जगजीवन राम इत्यादि नेता थे और दूसरी पार्टी जनता पार्टी( एस) बन गई थी जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राज नारायण जी थे और उन्होंने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमंत्री बना दिया था । इस पर अलग एपिसोड में लिखूंगा । जनता पार्टी को केवल 31 सीट तथा राज नारायण जी की जनता एस को केवल 41 सीट मिली थी । कैसे बहुगुणा जी ने अंदर से इंदिरा जी से साठगांठ कर लिया था और चौधरी चरण सिंह की सरकार के मंत्री होकर चौधरी साहब को इस्तीफा देकर समझाया था और कलकत्ता से लौटने पर पहली बार राज नारायण जी ने चरण सिंह से मिल कर नाराजगी व्यक्त किया था ये सब एक अलग एपिसोड में होगा ।
मुझे जीवन में दो बार अपने से अलग दो नेताओ से मिलने का अवसर मिला और मैं चाहता तो उसका फायदा उठा कर उनके संघर्ष के वक्त में उनके साथ हो जाता तो शायद हो सकता है की मेरा राजनीतिक पड़ाव भी कुछ और रहा होता । 1978 में इंदिरा गांधी जी से और 1991 में अटल बिहारी बाजपेई जी से जिनके स्टेट गेस्ट हाउस के कमरे के बगल वाला कमरा पूरे चुनाव भर मेरा था और कई बार मुलाकात तथा बात हुई थी और उन्होंने दिल्ली आने पर मिलने को कहा था पर में कभी नही मिला ।जो होना था हो गया ,मेरी किस्मत में बस राजनीतिक छल लिखा था और वो मैने जीवन भर भोगा ।

तीसरा किस्सा इटावा का है । अपने 1989 के एक एपीसोड में लिख चुका हूं की कैसे मुझे पार्टी का संसदीय बोर्ड आगरा के खेरागढ़ से विधान सभा का टिकेट दे रहा था पर मुलायम सिंह यादव जी एक अपराधी टाइप व्यक्ति को टिकट देना चाह रहे थे और उन्होंने देखा की संसदीय बोर्ड में उस वक्त के सबसे बेड़ा नेता और इस एकता की धुरी चौधरी देवीलाल जी , चंद्रशेखर जी , वी पी सिंह तथा जॉर्ज फर्नांडीज और प्रदेश के तीन में से दो लोग कुंवर रेवती रमण सिंह और डा संजय सिंह मेरे पक्ष में थे तो उन्होंने कहा की में देश में दौरा करूंगा तो मेरा चुनाव कौन देखेगा । में सी पी राय के टिकट के खिलाफ नही हूं बल्कि मैं चाहता हूं की वो मेरा चुनाव देखे और मेरे मुख्यमंत्री बन जाने के बाद एम एल ए क्या होता है सी पी राय उसे भी ज्यादा बड़े होंगे।  वो सारी बात आप लोग उस एपिसोड में पढ़ सकते है ।।में इटावा में मुलायम सिंह जी के चुनाव में काम कर रहा था । एक दिन वी पी सिंह जी की सभा शहर में लगी तो मुलायम सिंह जी बोले की आप शाम तक खाली हो जाए तो वी पी सिंह की सभा में भी चले जाइएगा । मैने अपने बाकी कामों से फ्री होकर सोचा की देख लूं वी पी सिंह होंगे तो मिल लूंगा वैसे दिए समय से ज्यादा हो गया था इसलिए कोई उम्मीद नहीं थी । पर वहा भी वही किस्सा हो गया था की वी पी सिंह लेट होते चले गए और कोई वक्ता बचा ही नहीं था ।सुखदा मिश्रा और  राम सिंह शाक्य परेशान थे की अब क्या होगा । वी पी सिंह के आने पर तो लोग ही कम बचेंगे । ये बात उन लोगो ने मुझे मंच पर बताया । मुझे जनता लौटती दिल्ली ।कुछ लोगो ने मुझे देख लिया तो बोले अरे सी पी राय है ये चलो सुनते है । मेरी गाडी सभा के ठीक सामने वाली सड़क पर पहुंची तो मंच से सुखदा मिश्रा और राम सिंह शाक्य ने देख लिया । सुखदा जी तुरंत माइक पर गई और बोली सी पी राय आ गए है आप लोग उन्हें सुन कर जाइए और माइक से ही बोली राय साहब जल्दी मंच पर आइए । मैं मंच पर पहुंचा और बोला शुरू किया और उसके भी करीब डेढ़ घाटे बाद वी पी सिंह आए ।  पर में इस बात में सफल रहा की जाते हुए लोग तो रुक ही गए , मेरे भाषण की आवाज जहा तक पहुंच रही थी तमाम लोग घरों में से निकल कर पुरबिया टोला के उस मैदान में आ गए । वी पी सिंह जी जब आए तो मैदान खचाखच भर चुका था पर मेरा अंदर से बाहर तक सब पहने हुए कपड़े पसीने में भीग गए थे और सर से पसीना चू रहा था । वी पी सिंह जी ज्यों ही मंच पर आए सुखदा मिश्रा ने उन्हे बताया की क्या हुआ था यहां और इस वक्त मैदान खाली होता पर सी पी राय ने सबको रोका भी और मैदान भी फिर से भर दिया । वी पी सिंह ने अपनी इलाहाबादी भाषा पूछा  क्या चंद्र प्रकाश आप चुनाव में यही हो क्या । हमारे यहां फतेहपुर में भी फला दिन आय जा और मुलायम सिंह जी से इजाजत लेकर  में गया और अरुण नेहरू के क्षेत्र में फिर  अमेठी में राज मोहन गांधी जी की सभा में भाषण दिया । फिर इलाहाबाद में कुंवर रेवती रमण सिंह जी के क्षेत्र के गांव में गया और शाम को शहर में जनेश्वर मिश्र जी की सभा में रहा और अगले दिन फतेहपुर में वी पी सिंह की सभा के भाषण कर देर रात वापस इटावा आ गया था ।  वी पी सिंह का भी किस्सा है की सभा के बाद उनको बाहर शायद बिहार जाना था सभा के लिए और उन्हें हम छोड़ने स्टेशन गए । वहा प्लेटफार्म पर खड़े थे की किसी ने आकर फुसफुसा कर कहा की वी पी सिंह कोई मारने के लिए आया है । वी पी सिंह घबरा गए बोले चलिए स्टेशन मास्टर के कमरे में चले और तेज चलते हुए स्टेशन मास्टर के कमरे में घुस गए । हम लोग वहा बैठ गए तो स्टेशन मास्टर के फोन से पुलिस को सूचित किया गया। 10 मिनट में पुलिस की गाड़ी आ गईं तब वी पी सिंह की जान में जान आई । विश्वनाथ प्रताप सिंह पर भी कुछ बाते उस दौर की याद आ गई वो सब किसी अलग दिन लिखूंगा ।  इति कथा संपन्नम ।

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