मंगलवार, 10 सितंबर 2024

जिंदगी के झरोखे से प्रकाश भैया

मैं जब अमरीका में था तो कुछ दिन मैने प्रकाश भैया यानी प्रोफेसर डा प्रकाश चंद्र शर्मा ( मेरी स्वर्गीय पत्नी के फुफेरे बड़े भाई ) जो सालो से अमरीका में है और फिजिक्स के प्रोफेसर होने के साथ एक वैज्ञानिक भी है जिनके अंदर एक रिसर्च उस वक्त चल रही थी की कैसे गाड़ी की बैटरी हल्की और छोटी हो पर वो ज्यादा मील तक जाए और एक रिसर्च ये भी चल रही थी की क्या सड़क से चलती गाड़ी बिजली बना सकती है अगर सड़क मैग्नेट से बन जाए तो , के साथ व्यतीत किया था । उनके साथ अबर्न विश्वविद्यालय देखने का मौका मिला जिसमे मेरा 1983 में पी एच डी के लिए स्कालरशिपं के एडमीशन हो गया पर मैं नहीं जा पाया था ,उसपर मैं लिख चुका हूं । उनके साथ की हिंदुस्तानी प्रोफेसर्स के साथ मिलने और लंच करने का मौका मिला जिसमें से अधिकांश उनके छात्र थे । उनके साथ अटलांटा जैसा शहर देखने को मिला जहां भारतीय रेस्त्रां में खाना खाया तो अंतर्राष्ट्रीय किसान बाजार भी देखना एक रोमांचक अनुभव था और ज्ञानवर्धक भी था ।उनके साथ एक हजार मील की यात्रा करते हुए रास्ते में अमरीका की खेती और सिंचाई का तरीका देखा और 
ये भी देखा की कैसे खेत में चाहे कपास हो या कुछ और उसके पैकेजिंग की व्यवस्था भी और कुछ फसलों  के अन्य उत्पाद बनाने की फैक्टरी भी खेती की जगह पर ही है । उनके कारण नासा में दिन बिताने का मौका मिला और वहा अंतरिक्ष के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका मिला । उनसे बहुत ज्यादा जानने और सीखने को मिला बल्कि मैं कहूं को इस दौरे में जिस विश्वविद्यालय में एक कोर्स भी कर रहा था और उसी के अंदर हिलेरी क्लिंटन के लिए काम कर अमरीका को राष्ट्रपति चुनाव को बारीकियां सीख रहा था वहा कुछ नही सीखा और प्रकाश भैया खुद एक विश्वविद्यालय है उनसे कही बहुत ज्यादा सीखने को मिला । 
उन्होंने अमेरिका की तमाम व्यवस्थाओं के बारे में बताया ।उन्होंने बहुत मजेदार बात बताया की कैसे मैक्सिको और अमरीका के बीच एक नदी है जिसको पर अमरीका में घुसने  को मैक्सिकन लोग कोशिश करते है और पुलिस उन्हे रोकती है पर अगर आधी नदी पार कर लेते है तो वही पुलिस उन्हे नए कपड़े पहनने को देती है और अमेरिकी अदालत में पेश  करती है और वहा के कानून के कारण अधिकतर अमरीका में ही रह जाते है । मैने देखा अधिकतर सामान्य काम करने वाले लोग चाहे टैक्सी या बस चला रहे हो या होटल में रूम तैयार कर रहे हो वो अधिकतर मैक्सिकन है या अफ्रीकन , भारतीय और पाकिस्तानी भी मिल जाते है ।
लगता है विषय से भटक गया । 
इस सब पर अलग से लिखूंगा ।
अभी तो प्रकाश भैया की ये पोस्ट शेयर कर रहा हूं की 2016 में उन्होंने जो जो शोध हो रहे है बताया था वो सब कितना आगे निकल गए । 
हमे भी आत्मचिंतन करना चाहिए की अमोरीका , इंग्लैंड सहित सभी विकसित देश अपने विकास से संतुष्ट होकर बैठ नही गए है बल्कि भविष्य की और वर्तमान की चुनौतिया का आकलन कर उसके निदान की पूरी ताकत से खोज में लग गए है और हमारे यहां भी हर साल करोड़ों लोग कैंसर से मर जाते है ,दूसरी बीमारियों से मर जाते है तो हम गाय के पेशाब कर गोबर में इसका इलाज ढूंढ रहे है और मस्जिदों में शिवलिंग ढूंढ रहे है तो धर्म और जाति के आधार पर लड़ने को विवाद ढूढ़ रहे है ।
पढ़िए प्रकाश भैया की ये पोस्ट की अमेरिका कहा जा रहा है और हम कहा जा रहे है ::::;;;
Now coming back to your informative posting above.   May I add to it for the benefit of the group.
This is an era of enormous revolutions in almost all disciplines.
For example, Plastic Currency (Credit Cards), managing office, home, contents in referigerators, meetings, friendly discussions etc. from remote distances by electronic control, Star Wars (deploying war weapons in space and conducting war strategies from space) etcetera.  Please add to your list “the self monitored 24- wheeler-trucks”.  These trucks are self driven, (driverless) using advanced Artificial Intelligence.  The trucks have capability of loading packages from stores without involving any human body and driving directly to the location marked for delivery; unload it and secure the receipt of money without involving anybody.

Please also note (ATTENTION : Specially For DINESH BHAIYA) 
Produced in Lab:  now the roads would be heavily doped with magnetic particles.  Cars running on it would have a huge rotating Coils (with several rotations of coiled wires).  
From middle-school-Physics, we know that a rotating coil placed in a magnetic field produces electric current.  In other words, thus produced electric current with no additional cost would be used to run the electric car with literally zero expense.  Suppose you are on a long trip and hence produced excess current (more than what you can use in running the car) can be stored in space and reused in the residential and commercial areas.  To store the extra electric current is a simple process by converting in electromagnetic energy/Photonic energy and taking to storage area with speed of light ( 186,000 miles/ second).

     This would probably solve the energy crisis all over the world.

 Similarly at home, a hand held laser beam shining on your own nails (or hair) and using Laser Induced Breakdown Spectroscopy (LIBS), one can immediately determine the elemental-deficiencies in the body and even detect the cancerous cells. 

With discovery of materials exhibiting superconductivity at high temperatures has given a hope to mankind to definitely resolve the energy issues throughout the world.
  
Suppose one has a house consisting of several rooms with AC, fans and beautiful recess lights, referigerator and other electrical appliances etc. and wired with room temperature superconducting materials.  
So you switch on all the appliances for 1 second 
and then switch off.  In this process of switching on and off you probably spent 5 paise.  

But all the appliances would keep running for several decades just by spending 5 paise.  This already has been achieved in lab in low temperature superconductors , e.g. mercury.

After the full scale development, this would also overcome the energy crisis and the Middle East OPEC politics.
Sorry for very long posting.

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