सोमवार, 7 दिसंबर 2020

जिंदगी के झरोखे से 1980 बनारस

#जिंदगी_के_झरोखे_से   #1980_बनारस 

#लोकबंधु_राजनारायण_का_चुनाव_और_आरएसएस 

1980 , चौ चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री थे राजनारायण जी के कारण और राजनारायण जी यानी पुरे देश के नेताजी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे । चौ चरण सिंह ने राजनारायण जी को बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ने को कहा ।यदि जातिवाद मे यकींन करते नेताजी तो कई ऐसी सीट थी जहा से लड़ सकते थे और पूर्ण सुरक्षित सीट भी तय कर सकते थे पर अभी पिछ्ले चुनाव मे ही देश की ताकतवर प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी जी को चुनाव मे हराया था उन्होने तो मान लिया बात और वैसे भी बनारस उनका गृह जिला था पर ये दिक्कत थी कि कांग्रेस से वहा से पंडित कमलापति त्रिपाठी जी चुनाव लड़ रहे थे जिनकी नेताजी बहुत इज्जत करते थे (इस पर किस्सा अलग से बाद मे )
पर 
1980 के इस चुनाव की नौबत चौ चरण सिंह की सरकार से कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस लेने के नाते आयी थी और उसके पहले जनता पार्टी टूटने की नौबत जनसंघीयो की दोहरी सदस्यता और आरएसएस के नाते आयी थी (इस सब पर भी विस्तार से अलग से बाद मे ) । उसी उठापटक मे नेताजी का निस्कासन और उनके समर्थन मे केन्द्र के कई मंत्रियो सहित 100 से ज्यादा सांसदो का इस्तीफा ,उनके द्वारा नेताजी यानी राजनारायण जी को अपना नेता चुनना और नेताजी द्वारा चौ साहब को नेता मानना और दो सांसदो को उनके पास भेजना ,तब चौ साहब का उप प्रधानमंत्री पद से स्तीफा और प्रधानमंत्री बनना इत्यादि अलग अलग लिखा जायेगा और ये भी कि दोहरी सदस्यता का सवाल उठाने और आरएसएस की भूमिका पर सवाल उठाने पर आरएसएस और उससे जुड़े लोगो ने किस कदर कमर के नीचे तक हमला किया लगातार और मुहिम चलायी राजनारायण जी के खिलाफ ये सब लिखूंगा अलग अलग हिस्सो मे ।
फिलहाल बनारस के चुनाव तक सीमित करता हू। राजनारायण जी का चुनाव करीब एकतरफा सा हो गया था उसी मे पहली घटना तो उस दिन हुयी जब चौ चरण सिंह बनिया बाग मे सभा करने आये और मंच से राजनारायण जी की तारीफ करते करते एक हल्का शब्द बोल गये पता नही जान बूझ कर या अनजाने मे जिसका विरोध भी किया मैने उनके मंच से उतरते वक्त और तब राजनारायण जी ने मुझे ज्यादा न बोलने को कह कर चुप करा दिया था ।
चुनाव जब सर्फ दो दिन रह गया था तो हम लोग शहर भर मे अन्तिम व्यवस्थाओ और जन सम्पर्क के लिए घूम रहे थे ।उस दिन शाम थोडी गहरी हो ही रही थी की अचानक नेकरधारी दिखने लगे शहर मे जगह जगह संख्या बहुत नही थी पर वो हर व्यक्ति को बस एक बात कह रहे थे की फैसला हो गया है कि बोट पंडित जी को देना है यानी कांग्रेस उम्मीदवार कमलापति त्रिपाठी जी को जबकी जनता पार्टी जिसके अध्यक्ष चंद्रशेखर जी थे और वर्तमान भाजपा यानी तत्कालीन जनसंघ उसी मे शामिल थी उसके उम्मीदवार जनसंघ के ही ओमप्रकाश सिंह थे जो बाद मे कई बार उत्तर प्रदेश में मंत्री बने भाजपा की सरकारो ने । लेकिन राजनारायण जी आरएसएस के निशाने पर थी और उनके निशाने पर आरएसएस और आरएसएस ये समझ चुकी थी कि जिस आदमी ने कभी डरना और झुकना नही सीखा और तय कर लिया की कांग्रेस को हराना है तो इन्दिरा गांधी जैसी नेता को पहले कोर्ट मे हरा दिया और फिर जनता की अदालत मे भी और ये आदमी अगर मजबूत रह गया तो आरएसएस को कही का नही छोड़ेगा और देश के सामने नंगा कर देगा उनका सिद्धांत और इरादा और फिर उस फकीर आदमी की देश मे विश्वस्नीयता भी जबरदस्त थी ।
कई जगह ये दृश्य देखने के बाद मैं थोडा विचलित हुआ और भाग कर उनके पास पहुचा और उनको बताया की आरएसएस तो अपने उम्मीदवार को हरा कर भी आप को हराने के लिये पंडित जी को वोट डालने की अपील कर रही है और अगर 25/30 हजार वोट भी इधर उधर हो गया तो मुश्किल होगी क्योकि काँटे की टक्कर है ।
नेताजी थोडा सा विचलित हुये पर फिर तुरंत बोले कि ये आप लोग बाहर किसी और से और खासकर अपने कार्यकर्ताओं से मत कहना और जाओ अपना अपना काम करो ।
और नेता जी चंद हजार वोट से चुनाव हार गये ।
लिखने का मकसद चरित्र की व्याख्या करना है ।
बाकी किस्सा अगली कडियो मे और इस चुनाव के दृश्य भी अगली कडियो मे ।

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