शनिवार, 25 अप्रैल 2015

पता नहीं क्यों मुझे लगता है की अंधाधुंध पूंजीवादियों की रफ्तार और सरकारो का केवल उनके लिए दिखना देश में नयी चेतना को जन्म देगा और राजनीती करवट लेगी तथा राजनीती के केंद्र में किसान ,मजदूर और बेरोजगार नौजवान होगा ।
अपनी पार्टी के राष्ट्रीय सम्मलेन में पार्टी को मैंने इस दिशा में मोड़ने की कोशिश किया था मेरी आवाज खो गयी थी ।
आज अगर कोई चौ चरण सिंह होते तो देश की राजनीती की धुरी बन जाते ।पर ऐसे लोग जो खुद दिन रात पूंजीपतियो के साथ ही गलबहियां करते है वो कितनो भी कोशिश कर लें किसान और मजबूर के नेता वो नहीं हो सकते ।
अगर सरकारे अपने इस केवल पूंजीपति समर्थक रूप से अलग नहीं हो पायी और तंत्र गरीबो ,किसानो और मजदूरो तथा मजबूरों से घृणा नहीं छोड़ पाया और प्रकृति भी प्रहार करती रही तो स्थिति विस्फोटक भी हो सकती है ।
उससे बचने के लिए सभी को सोचना और बदलना होगा और इन लोगो के प्रति उपेक्षा का नजरिया बदलते हुए इन सभी के हालातो को बदलने के लिए गंभीर और ईमानदार प्रयास करना होगा ।
(आज सुबह के चिंतन से )

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