शनिवार, 18 जून 2011

ना संसद ना संविधान अब अन्ना विधान

                                                 ना संसद ना संविधान से अब देश चलेगा अन्ना के विधान से और देश में केवल नकारात्मक बात करने वाले और भोजपुरी में कहे तो गलचौरी करने वाले इस विधान के लागू होने से पहले तक ताली बजायेंगें ,लेख लिखेंगे ,फेसबुक सहित सभी ऐसे स्थानों पर नयी आजादी की कहानियां लिखेंगे | ऐसा लगेगा कि महात्मा गाँधी ,सुभाष चन्द्र बोस,तिलक ,भगत सिंह ,आजाद सभी ये लोग ही है | सीमाओ पर कुर्बानियां इन्होने या इनके परिवारों ने ही दिया है और अब जीत का जश्न मना रहे है | इनकी बातो से ऐसा भी लगता है कि भारत के लिए कुर्बानियां देने वाले आजादी कि लड़ाई लड़ने वाले निहायत नासमझ थे | ऐसा भी लगता है कि संविधान सभा में जो लोग बैठे थे वे देशद्रोही ,बिना पढ़े लिखे ,और गैर जिम्मेदार लोग थे | बाबा साहब आंबेडकर से लेकर डॉ राजेंद्र प्रसाद हो या एच एन कुंजरू तक सभी को इस सूरमाओ से राय लिए बिना संविधान कि रचना नहीं करना चाहिए था |
                                                इस वक्त देश में जिस तरह कि बहसे चलाई जा रही है उससे दो बाते प्रचारित करने कि पूरी कोशिश कुछ लोगो द्वारा कि जा रही है १ - ६३ सालो में इस देश में कुछ हुआ ही नहीं ,देश बर्बाद हो गया और बहुत पिछड़ गया | २ - भारत में केवल भ्स्ताचार होता है ,काला धन का कारोबार होता है और कुछ होता ही नहीं है | ये लोग ये बताना चाहते है कि भारत ना तो विज्ञानं में आगे बढ़ा ,ना शिक्षा में ,ना चिकित्सा में ,ना शक्ति में और किसी भी क्षेत्र में नहीं  | इन्हें भारतियों के मिलने वाले नोबल पुरष्कारों से नफरत है ,इन्हें भारत कि एकता से नफरत है ,इन्हें ६५ ,७१ ,कारगिल कि जीत से नफरत है ,इन्हें असमान में छोड़े जा रहे केवल अपने नहीं दुनिया के दूसरे देशो के भी उपग्रहों कि सफलता से नफ़रत है | इन्हें दुनिया के चंद प्रगतिशील देशो में भारत के शामिल हो जाने से नफरत है | इन्हें दुनिया कि पहली या दूसरी ताकत बनते हुए भारत से नफरत है |तभी तो आत्मविश्वाश से लबरेज होते भारत में विश्वाश का बड़ा संकट खड़ा करने का प्रयास बड़े सोचे समझे तरीके से किया जा रहा है | किसी देश के जीवन में ६० साल ६० सेकण्ड के बराबर होता है और दुनिया के तथाकथित बड़े और विकसित देशो के मुकाबले हमारे महान भारत ने ज्यादा तेजी से तरक्की भी किया ,अपनी कमियों पर विजय भी पाया और जहा जो कमजोरियां दिखी उनको दूर भी किया | जहा दूसरे  एक बोली ,एक भाषा ,एक धर्म वाले देशो को भी एक साथ रखने में कामयाबी  नहीं  मिल पा रही है और गृहयुद्ध तथा आतंकवाद और विभिन्न समस्याओ के शिकार है और फ़ौज तथा तानाशाही से भी काबू में नहीं कर पा रहे है वहीँ तमाम भाषाओ,बोलियों ,संस्कृतियों ,जातियों और धर्मो वाले इस देश कि मजबूत एकता और दुनिया का सिद्ध हो चूका सबसे मजबूत लोकतंत्र कुछ लोगो को चुभ रहा है | कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी भी पता नहीं कैसे बिना इतिहास और वर्तमान कि समीक्षा किये इस अभियान में शामिल हो जाते है तो जो अभी तक नासमझ है या देश और नागरिकता का अर्थ ही नहीं समझना चाहते है उनको क्या कहा जाये ?जनसंख्या १२० करोड़ से ज्यादा है पर नागरिक कितने है ?यह बहस का विषय है | जब जो धर्म अपने उपदेशो के द्वारा समाज को सही दिशा और त्याग कि शिक्षा देता था वही अनाप शनाप धन दौलत और तमाम बुराइयों का शिकार दिखलाई पड़ रहा है तो उस चर्च और राजा के सौ साल से ज्यादा चले युद्ध कि याद आ ही जाती है | किसी ने लिखा था कि ; बादशाहों से फकीरों का बड़ा था मर्तबा ,जब तक सियासत से उनका कोई मतलब ना था ;| 
                                                                  देश के चिंतनशील और जिम्मेदार लोग समझ ही नहीं पा रहे है कि ज्यो ही अमरीका के राष्ट्रपति ओबामा भारत आये और संसद को संबोधित कर भारत को महान स्वीकार किया तथा हर भारतीय सीना चौड़ा कर चलने लगा ,दुनिया के लोग भारत में आकर पैसा लगाने को तैयार होने लगे ,देश के विरुद्ध सोचने वाले और षड़यंत्र करने वाले ठिठक कर खड़े हो गए ,अचानक ऐसा क्या हुआ कि उस स्थित को भारत के लिए प्रयोग होने से पहले ही भारतं को बुरा रास्त्र घोषित करने कि मुहीम देश के अंदर से ही शुरू हो गयी | इतिहास इसकी समीक्षा करेगा जरूर और वे ताकतें  बेनकाब भी होगी | आजादी कि लड़ाई में भी तो इस देश कि बहुत सी ताकतें  या तो फिरंगियों के साथ सीधे सीधे खड़ी थी या स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ मुखबिरी कर रही थी | कुछ वैसी ही ताकतें आज भी देश के खिलाफ खड़ी है | इनकी संख्या हजारों या लाखों में होती है और ये १२० करोड़ से ज्यादा के देश को आदेशित करना और तानाशाही पूर्ण तरीके संचालित करना चाहते है | 
                                            इस बात से किसे एतराज है कि देश से बुराइयाँ मिटनी चाहिए ,भ्रस्ताचार ख़त्म होना चाहिए ,काला धन  का कारोबार बंद होना चाहिए इत्यादि | बहुत सी बाते है जिनपर देश में चिता भी है और चिन्तन भी | यदि चिंतन नहीं होता तो सूचना का अधिकार बना ही नहीं होता | जो भी हजारो करोड़ कला धन वापस आया है वो आया ही नहीं होता | सत्ता में भागीदार लोग जेल में गए ही नहीं होते और जेल जाने वाले यदि कोई और भी उनके कामो में शामिल है तो अब तक मुह खोल चुके होते | कम से कम पूर्व की सरकारों की तरह ये सरकार जिन पर भ्स्ताचार प्रमाणित हो जा रहा है उन्हें बचा नहीं रही है बल्कि कानून को मजबूती से काम करने को प्रोत्साहित कर रही है | किसी का पैसा खो जाता है या चोरी हो जाता है तो हमारी अपनी व्यवस्था हमें तुरंत नहीं दिलवा पाती है बल्कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने पर वो काफी दिन में मिल पाता है | यहाँ तो काला धन उन देशो में है जिनकी अर्थव्यवस्था ही उसी पर निर्भर है | अन्तेर्रस्त्रीय कानूनों के अंतर्गत प्रावधानों से ही वह वापस आयेगा और उसमे लगने वाला समय लगेगा  या फिर इतनी हिम्मत हो कि हमारी सेनाएं उन देशो पर हमला कर धन वापस ले आये | अगर मनमोहन सिंह और सोनिया गाँधी इमानदार नहीं है तो किसी के इमानदार होने की कल्पना ही नहीं की जा सकती है |
                                                   देश को भ्रमित करने वालो का कहना है की ८० % लोग चोर है इन्हें छोड़ कर, चुनाव में जनता पैसे और शराब लेकर वोट देती है इन्हें छोड़ कर ,सारे लोग काला धन रखते है इन्हें छोड़ कर ,संसद और विधान सभाओ में अयोग्य लोग है और कोई भी कानून बनाना नहीं जनता है इन्हें छोड़ कर | देश में कोई भी देश के बारे ने नहीं सोचता और न देश भक्त है इन्हें छोड़ कर | ये देश चलने का जो तरीका चाहते है उसमे देश की राजधानी हो या प्रदेश की ,जिला मुख्यालय हो या कोई और इनका कहना है की जहा भी कुछ लोग इकट्ठे हो जाये और ये ऐलान कर दे की वही देश के मालिक या प्रतिनिधि है तो उस वक्त वे जो भी आदेश देते जाये वही संविधान और कानून मान लिया जाये तथा उनके आदेशो का पालन तुरंत हो वर्ना वे जो चाहेंगे करेंगे |इस अन्ना विधान में फ़ौज के दफ्तर में इकट्ठे लोग फ़ौज की नीति और युद्ध की योजना तैयार करेंगे ,जो साईकिल नहीं चलाना जानते वे एयर फ़ोर्स को कौन सा जहाज खरीदना चाहिए या कौन सी मिसाइल लेनी चाहिए ये बताएँगे | जिन्होंने तालाब नहीं देखा वे नेवी की नीति तैयार करंगे | १० डकैत या चोर मिल कर पुलिस को कानून बताएँगे | जब भी कुछ लोग किसी अदालत में इकट्ठे हो  जायेंगे वो निचली अदालत हो या सर्वोच्च न्यायलय उनसे पूछ कर ही फैसले होंगे | जब भी कोई भीड़ अखबार के या टी वी के दफ्तर को घेर लेगी वह तय करेगी की अख़बार में क्या छपे या टी वी में क्या दिखाया जाये | इसी तरह भीड़ या यूँ कहे कि कुछ लोगो कि भीड़ देश कि नयी व्यवस्था चलाएगी | यदि लाखो लोगो कि क़ुरबानी से आजाद हुए और बड़ी कुरबानियों से कायम रहते हुए तरक्की करते देश को ऐसे ही चलना है तो इन मुट्ठी भर लोगो तथा इन के चंद समर्थको को ये व्यवस्था मुबारक | पर ऐसा लगता  नहीं है कि महान हिंदुस्तान इतना कमजोर हो गया है कि कुछ लोगो कि साजिश कामयाब हो पायेगी ,वे उसी गति को प्राप्त होंगे जिसको आजादी कि लड़ाई में गद्दारी कर प्राप्त हुए थे | ये देश १२० करोड़ कि इच्छा और उनके द्वारा बनाये संविधान से चलेगा न कि किसी और विधान से |
                                                    
                                                                                                                               
                                                                                                                  डॉ सी पी राय
                                                                                                 
                                                                                              स्वतंत्र राजनैतिक चिन्तक और स्तंभकार





                                                   

 


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