मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

आंदोलन_पर_रोक_निकले_तो_सजा

#आंदोलन_पर_रोक_निकले_तो_सजा

सिविल नाफरमानी,करो या मरो , सत्याग्रह , नमक कानून तोड़ो, डांडी मार्च , असहयोग आन्दोलन इत्यादि से ही आजादी मिली और अपना गिरेबान पकड़ने वाली महिला से नेहरू जी ने कहा कि आजादी में ये अधिकार मिला है ।
1947 के बाद से ही विपक्ष के और कुछ सत्ता पक्ष के नेता भी धरना प्रदर्शन रैली चक्का जाम सड़क जाम से विरोध व्यक्त करते रहे भाजपा सहित 
पर 
अब इस सत्ता के आने के बाद दो चीजे हो रही है - 
1- कोई किसी तरह विरोध नही कर सकता बल्कि प्रदर्शन की आशंका में ही घर में कैद कर दिए जाते है और दरवाजे से निकले तो सैकड़ों मुकदमे लग जाते है और शिकायत ये भी की अदालते मुकदमे खत्म क्यों नही कर रही है और रोज संख्या बढ़ाते जाओ। 
2- अगर कभी धरना प्रदर्शन किया इत्यादि किया था तो पहले अदालतें उनको लोकतांत्रिक अधिकार मान कर बरी कर देती थी 
पर अब हर मामले में राजनैतिक कार्यकर्ताओं को 2/3 साल की सजा दे दे रही है अदालतें खासकर गैर भाजपा दलों के कार्यक्रताओ को ।
(हा अगर तोड़फोड़ , आगजनी हुई हो तो जरूर जुर्माना या मात्रा में सजा हो सकती है )
दुनिया के लिए भी लोकतांत्रिक देश में ये दोनो काम नही होते है 
क्या लोकतंत्र को धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है ? क्या वर्तमान सत्ता पार्टी ने मान लिया है की अब वो कभी विपक्ष में नही आयेगी ? 
क्या दूसरी सरकारों में भाजपा के लोगो के साथ भी यही व्यवहार हो रहा है ? 
यदि नही तो क्यों यही व्यवहार नहीं हो रहा है ।
आजादी मिले अभी चंद दिन ही तो हुए । अभी शहीदों का लहू ठीक से सूखा भी नही और उनके सपनों और इरादों को कुचला क्यों जा रहा है ?
अब भारत के क्या सत्ता और प्रशासन की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाना अपराधी बन जाना होगा ? 
सवाल बढ़ते जा रहे है 
महात्मा गांधी से लेकर सुभाष बाबू तक , सरदार पटेल से लेकर आजाद और भगत सिंह तक , सरदार पटेल से लेकर हजारों अनाम शहीदों की आत्माएं आज के भारत से और की जवानी से सवाल पूछ रही है 
और 
जवाब में या तो सन्नाटा है या लाठी गोली मुकदमा और जेल है ।
इस अघोषित वीभत्स आपातकाल से  भारत को मुक्ति कब मिलेगी 
और 
शहीदों के सपनो का स्वतंत्र भारत खुलकर कब हसेगा और सड़क परचलेगा 
डा लोहिया ने कहा था " जिंदा कौम पांच साल इंतजार नही करती 
उन्होंने ये भी था कि 
जब सड़के सूनी और खामोश हो जाएगी तो संसद आवारा हो जाएगी 
फिर सड़को को सूना और खामोश करने का क्या अर्थ लगाया जाए 
धरना और प्रदर्शन पर लगातार मिलती सजाओ का क्या अर्थ लगाया जाए 
जिन सांसदों और विधायकों की अपराधियों में गिनती की जाती है सैकड़ों में क्या वो सब अपराधी है या उनमें से उंगलियों पर गिनने लायक ही अपराधी है 
और बाकी सब पर तो आंदोलनों के ही मुकदमे है जो आई पी सी में ही दर्ज होने के कारण अपराधी में गिन लिए जाते है
क्या संसद और विधान सभाओं को आगे आकर खुद इसका प्रतिकार नही करना चाहिए 
क्या आंदोलनो और प्रदर्शन के लिए अलग कानून और नियमावली तथा क्या और कहा तक किया जा सकता है ये नही बना देना चाहिए
और 
क्या मांगो प्रदर्शनों के प्रति प्रशासन और सत्ता की भी जवाबदेही नही तय हो जानी चाहिए की कितने दिन में सुनवाई और निर्णय करना ही पड़ेगा 
और नही किया तो फिर देश की जनता आगे क्या कर सकती है ? 
क्या सत्याग्रह और आंदोलन की हत्या और सजा महात्मा गांधी और सभी स्वतंत्रता सेनानियो को गाली ,उनका , अपमान, उनके दिखाए मार्ग की उपेक्षा और उनके सपनों  की हत्या नही है ? 
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

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