गांय भैंस बैल ही नही हाथी भी ऐसी रस्सी से बांध दिया जाता है को वो थोड़ी सी कोशिश से तोड़ सकते है
वही रस्सी पकड़ कर पालने वाले का छोटा बच्चा भी किधर भी घुमा लाता है
ऐसे ही इंसानों में भी तमाम स्त्री पुरुष युवा और बच्चे भी बांध दिए गए है रंग बिरंगी रस्सियों से हाथो में और गर्दनों में और उसके गुलाम बना दिए है । बच्चो को छोड़ दे तो बाकी सब तोड़ सकते है इस अंधविश्वास की रस्सियों को पर
ऐसी अज्ञात भय और लालच के शिकार है बड़ी संख्या में लोग सभी धर्मो के
और जानवर पालने वाले के बचे की तरह ये भी हांके जाते रहते है किधर भी इन अंधविश्वास की रस्सियों और मान्यताओं के सहारे तमाम कमजोर पाखंडी अज्ञानियो द्वारा ।
पता नही कब मुक्त होगा मनुष्य इन सबसे ।
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
बुधवार, 15 फ़रवरी 2023
रस्सियों से बंधे पशु और धागों तथा अंधविश्वासों से बंधे मनुष्य में अंतर ही क्या है ?
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