बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

मेरे नेताओ ने रटाया था की एक पल की सम्मान की जिंदगी सौ साल के अपमान की जिंदगी से बेहतर होती है | क्या ये सच है ?? क्या उसके बाद जिंदगी का कोई मतलब नहीं ??? या कृष्ण ने कहां था अपमान होने पर ;;;
रे दुर्योधन मैं जाता हूँ
तुझको संकल्प सुनाता हूँ
याचना नहीं अब रण होगा
ये रण बड़ा भीषण होगा
दुर्योधन तू भूशाई होगा
हिंसा का उत्तरदायी होगा

ये भी रास्ता है
और रस्त्र्कवि दिनकर ने जयप्रकाश आन्दोलन में कहा था --
कुर्सी खली करो की जनता आती है
और मैंने देखा है की फ़कीर बन कर सड़क पर उतर जाओ
सड़क तुम्हारी हो जाती है और सड़क तथा खेत खलिहान के लोग भी ,,
ये जज्बा भी पैदा किया जा सकता है ,,,,
जो तथस्थ है समय लिखेगा उनका भी इतिहास .....

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