बुधवार, 27 अक्तूबर 2021

सपने और आन्दोलन तब से

हमें याद है युवा आंदोलन और उसकी आवाजे क्योकि हम उसका हिस्सा रहे है ।
1967/68 अंग्रेजी हटाओ आंदोलन ( बहुत दिनों तक नारा लगता रहा - अंग्रेजी में काम न होगा फिर से देश गुलाम न होगा )
परिणाम ?????% अंग्रेजी बढती गयी और आंदोलन करने वाला छात्र और नौजवान छला गया ।
1975 जयप्रकाश आंदोलन , कुर्सी खाली करो की जनता आती है , संघर्ष हमारा नारा है ,भावी इतिहास हमारा है , और सत्ता नही व्यवस्था परिवर्तन करना है ।
परिणाम- बस सत्ता बदली और नौजवान फिर छला गया । पढाई और रोजगार का नुकसान हुआ ।
1989 राजा नहीं फ़कीर है देश की तकदीर है ।
परिणाम - एक और सत्ता परिवर्तन और नौजवान से बस छलावा ।
से लेकर 2014 - अच्छे दिन ,2 करोड़ रोजगार ,15 लाख ,गुजरात मॉडल तक 
कब तक नौजवान केवल लोगो को सत्ता दिलवाने का हथियार बनता रहेगा ? इस उम्मीद में की शायद अब उसके लिए अच्छे दिन आएंगे ।
नौजवान भावना में बह कर केवल अपनी जिंदगियां ख़राब करता रहा है ।
नौजवानों कब चेतोगे और एक फैसलकुन फैसला करोगे सचमुच के व्यवस्था परिवर्तन के लिए ,समाज परिवर्तन के लिए ,गैर बराबरी ,भ्र्ष्टाचार और धोखे से मुक्ति के लिए ।
नहीं चेते तो बस किसी न किसी के नारे लगाते रहोगे और अपनी जिंदगी में हारते रहोगे उन लाखो की तरह जो तुमसे पहले हार कर बूढा गए है भरी जवानी में ।
और तुम्हारी जगह फिर नए नौजवानो की फ़ौज तैयार हो जायेगी किसी का आंख बंद कर और जूनून के साथ नारा लगाने को और वो कुर्सियों पर बैठते रहेंगे ।
पर व्यवस्था कभी नहीं बदलेगी ,समाज कभी नहीँ बदलेगा और तुम भी कभी नहीं बदलोगे ।
या फिर खूब चिंतन कर एक बार खड़े हो जाओ और आने वाली पीढ़ियों को मुक्त कर दो इस छल से और उसका रास्ता सुगम बना दो ।
( एक  सफर का चिंतन पर पता नहीं क्यों और कितनी भृकुटियां तन जाएँगी मुझपर जिसकी मैंने कभी चिंता नहीं किया क्योंकि सच जिन्दा रहना चाहिए --- क्योकि मेरी आँखों में कुछ सपने है )
जय हिंद
#मैं_भी_सोचूँ_तू_भी_सोच

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