#जिन्दगी_के_झरोखे_से-
जब वो #राजीव_गांधी_जिन्दाबाद_बोलते_हुए_आये
और #मुलायम_सिंह_जिन्दाबाद_करते_हुये_निकले
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ये 1993 के विधान सभा चुनाव की बात है ।मैं समाजवादी पार्टी का महामंत्री और प्रवक्ता था ।आगरा मे जातिगत कारणो से पार्टी का कोई बहुत मजबूत आधार नही था पर मेरी अति सक्रियता और सतत संघर्ष से पार्टी कुछ ज्यादा ही नजर आती थी सड़क से समाचारो तक और चूंकि आगरा तीन मध्यप्रदेश और राजस्थान से भी जुड़ा है और आगरा मंडल ही नही इटावा तक के मीडिया का मुख्य केन्द्र है तथा आरएसएस का भी पच्चिमी उत्तर प्रदेश का मुख्यालय है और इस बड़े क्षेत्र का शिक्षा और चिकत्सा का तथा बुद्धिजीवियो का भी केन्द्र रहा है और मुलायम सिंह यादव जी की शिक्षा भी यही से हुई है तो उनकी भी आगरा मे ज्यादा रुचि रही और एक टोटका भी शायद उनके दिमाग मे लगातार रहा कि आगरा मे मैने पार्टी का एक तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा और उसके बाद ही पार्टी की सरकार बन गई जो 2017 से पहले भी हुआ तो आगरा पार्टी की सक्रियता और प्रचार का केन्द्र था ।
चौ चरण सिंह के समय लोक दल को छोड दे जिसमे वो तीन विधान सभा सीट जीत जाते थे वर्ना 1977 से पहले जब पुरानी समाजवादी पार्टी जीतती थी कुछ सीटे और 1977 मे भी शहर की तीनो सीट कांग्रेस ही जीत गई
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
गुरुवार, 9 दिसंबर 2021
जिन्दगी_के_झरोखे_से
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