रविवार, 9 जून 2013

आज फिर से मेरी धारणा पुष्ट हो गयी की आप किसी संघी को दोस्त ,सहपाठी ,पडोसी या रिश्तदार समझ कर मिल रहे हैं और बात कर रहे है तो गलती कर रहे है । वो हर वक्त सोते जगते केवल संघी होता हैं और उसी के एजेंडा के लिए बात करता है ,काम करता है और आप को नफ़रत या साजिश की निगाह से देख रहा होता है । ऐसा कभी कम्यूनिस्टो के साथ भी था ।
अब लगता है की संघी से बात करते हुए हर वक्त दिमाग में रखना होगा की वो बस संघी है ,यानि स्वाभाविक सम्बन्ध के लिए कोई स्थान नहीं बल्कि  बस ------

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