सोमवार, 24 जून 2013

25 करोड़ रूपया और अन्य सब तरह की सहायता देकर तथा हर तरह से साथ देने की बात कर अखिलेश यादव दुखी मन से केवल मदद कर रहे है क्योकि वो आपदा और मौत को राजनीती करने का विषय नहीं मानते है । परन्तु कुछ लोग २ करोड़ रूपया देकर और झूठ फेंक कर जो पकड़ा भी गया तुरंत गन्दी राजनीती कर रहे है ।
मैं ये नही समझ पा रहा हूँ की तमाम अरबपति और खरबपति बाबा कहा है और उनकी फ़ौज कहा है इस आपदा में जो हिन्दुओ की ठेकेदारी करते है । अब तो आँखे खोलो भारत के लोगो की ये बाबा नहीं बल्कि व्यापारी है और पाखंडी है ।
बाकी हिन्दुओ के ठेकेदार भी दिखलाई नहीं पड रहे है । हाँ तथाकथित राजनीतिक ठेकेदार जरूर अव्यवस्था फैला रहे है ।
  अभी आई एक बड़ी आपदा के बाद हमें ये भी सोचना होगा की ये स्थल सचमुच में उनके लिए बने थे जो सब त्याग कर आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहते थे । ये होटल बजी और पिकनिक के लिए नहीं बने थे । जैसे धरती अपे पर बोझ बढ़ने पर खुद व्यवस्था करती है { माल्थस की थ्योरी के अनुसार } वैसे ही पहाड़ो का भी धैर्य जवाब न दे जाये आगे ऐसा सोचना पड़ेगा । केवल अंधाधुंध कमाई के विचार को भी त्यागना होगा और इस नकली चूहा दौड़ को भी कि पूरे साल सरे प्राध करो , मिलावट करो जहर बेचो , कालाबाजारी करो , छिनाली करो और एक बार जाकर वह पवित्र हो जाओ । भगवन भी ऐसे लोगो को अब बर्दाश्त नही कर पा रहा है । हिन्दू का धर्म तो कहता है की कण कण में भगवन है तो अगर सचमुच आस्था है तो कही भी सच्चे मन से आराधना कर लो ।
एक चिंतन ये भी आया है की जो खुद को नहीं बचा पा रहा है वो किसी को क्या बचाएगा ? जिसको खुद लोगो की मदद की दरकार है उससे क्या मांगने इतनी बड़ी तदत में जा रहे हो ।
अगर इश्वर को मानते हो तो रो क्यों रहे हो और किसी से शिकायत क्यों कर रहे हो । क्यों  नहीं मन लेते की इश्वर ने जो आप के साथ लिखा था वही हुआ । जब ईश्वर ने आप का साथ नहीं दिया तो किसी और से क्या शिकायत ? इसका मतलब तो यही निकला न की आप की इश्वर में आस्था भी नकली है । नहीं तो छाती पीटने का क्या काम ? संतोष से इश्वर की कृपा और मदद का इन्तजार करो और जी नहीं रहे मान लो की इश्वर ने उन्हें अपने पास बुला लिया ।
सच तो ये है की आप ने खुद को इश्वर मन लिया हिया जो आप कर लेते हो या पा जाते हो तो खुद को उसका श्रेय देकर गर्व से फूल जाते हो और जहा आप हार जाते हो या कुछ खो देते हो तो उसे या तो इश्वर पर  देते हो या व्यवस्था को कोसने लगते हो ।
ये हमारी प्रकृति हो गयी है की हम सब बुरा करते जाये और फिर उसे या तो व्यवस्था सम्हाले या इश्वर सम्हाले । तो फिर आपदा तो व्यवस्था नहीं बल्कि इश्वर प्रदत्त है । इसे ख़ुशी से मिल जुल कर झेलो । अगर सिर्फ स्वार्थी बन कर अपने लिए भाग दौड़ करोगे तो वाही होगा जो हुआ यदि उस वक्त भी थोड़े समय के लिए खुद और अपनों के लिए स्वार्थी बनाने के स्थान पर सच्चे इश्वर भक्त और मानव बन गए होते तो बहुत कुछ तो इश्वर की कृपा से वह मौजूद सबने खुद बचा लिया होता । पर इश्वर की इस परीक्षा में भी फ़ैल हो गए  वो लोग जो तथाकथित रूप से इश्वर भक्त बन कर गए थे ।
ऐसा है की सभी के समग्र विचार का समय है ।

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