सोमवार, 16 अगस्त 2010

आजादी दिवस कि किसानो को सौगात ;गोली और मौते

                                           एक तरफ आजादी का जश्न मनाया जा रहा था ,देश की शान ,अस्मिता का प्रतीक ,आजादी का प्रतीक ,सार्वभौमिकता का प्रतीक तिरंगा फहराया जा रहा था .देश के लिए हुई कुर्बानियों पर भाषण दिए जा रहे थे ,भाषणों में बताया जा रहा था कि भारत गावो में बसता है .यह भी कहा जा रहा था कि देश में किसान हर मौसम में बिना दिन या रात देखे बिना जाड़ा गरमी बरसात देखे खेत में खड़ा रहता है और देश को आश्वस्त करता रहता है कि जब तक मै खड़ा हूँ देश के लोगो निश्चिन्त रहो किसी को भूखा नही रहने दूंगा और उसी किसान का बेटा गला देने वाली हो या जला देने वाली सीमा वहा खड़ा होकर हमें निश्चिन्त रखता है कि जब तक मै खड़ा हूँ देश कि लोगो किसी तरह का खतरा नही है .जैसे चाहो जिंदगी जियो .इन सारे बखानो के उलट दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश कि सरकार कुछ पूंजीपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए या यू कहे कहे कि कुछ खास लोगो कि जेब भरने के लिए उन्ही किसानो कि जमीन औने पौने दामो पर कब्ज़ा कर रही थी और जब अन्नदाता किसान न्याय मांगने निकला तों सरकारी बन्दूको से निकाली गोलियों ने दो किसानो और एक उसके अबोध बच्चे कि जान ले ली उत्तर प्रदेश के अलीगढ में  .
पता नही ये सरकारे क्यों भूल जाती है  किसान कि शक्ति को ,उसकी ताकत को उसके योगदान को और ये भी भूल जाती है कि किसानो से टकरा कर तथा किसानो को बर्बाद कर कोई भी मुल्क नही चल सकता है, कोई भी सरकार नही चल सकती है .ये किसान है कोई अपराधी नही है कि इन्हें बन्दूको से डराया जा सके .धरती किसान कि माँ है और जब किसी से भी किसी कि माँ को छीना जायेगा तों वह बागी तों होगा ही .जब भाषणों में हम कहते है कि किसान अस्सी प्रतिशत है तों कितनो पर गोली चलाओगे,कितनो को मारोगे .शायद सरकार में बैठे हुए लोगो कि याददाश्त कमजोर हो जाती है और वे अपना भाषण भूल जाते है और किसानो के आन्दोलन का तथा उनकी बहादुरी का इतिहास भूल जाते है .
यह भी समझ में नही आता कि सत्ता में बैठे हुए लोगो को होश कुछ लोगो के मरने के बाद ही क्यों आता है ,समस्याओ का निदान खून देखने के बाद ही क्यों खोजने लगते है सत्ते बैठे हुए लोग भी और नौकरशाही भी .यही अब भी हो रहा है .किसान तों लगातार अपनी फरियाद कर रहा है लेकिन किसी के कान पर जू नही रेंग रही थी .ज्यो ही गोली चली ,लोग मरे,वोट का सवाल पैदा हुआ या वोट कि लड़ाई शुरू हुई तुरंत आनन फानन में मरने वालो को मुवावजा ,घटना कि उच्चस्तरीय जांच ,अधिकारियो का तबादला और समस्या जाने का नाटक करने वाले बयान और कमेटी जो समस्या जानेगी और सरकार को निदान बताएगी .ये पहला मौका तों है नही यह किसान कि समस्या लगातार उठ रही है ,लगातार कही ना कही गोलिया भी चल रही है .पर शर्मनाक ये है कि इस बार किसान पर गोली ठीक आजादी के दिन चली है .ऐसा कारनामा केवल उत्तर प्रदेश कि सरकार ही कर सकती थी क्यों कि उसमे बैठे हुए लोगो का आजादी कि लड़ाई से भी कोई मतलब नही था और उसके मूल्यों से कोई मतलब कभी भी कभी नही रहा  .इनका सम्बन्ध किसानो से भी केवल इतना है कि उसी कि जाती के किसी को टिकट देकर जातिवाद के नाम पर वोट हासिल कर लो .
क्या होगा मुआवजे में मिले पाँच लाख रुपयों से क्या उस महिला का सुहाग वापस आ जायेगा ,रक्षाबंधन आने वाला है क्या उस बहन का भाई वापस मिल जायेगा ,क्या उस अनाथ बच्चे को बाप मिल जायेगा ,क्या उस बूढी माँ का सहारा उसे मिल जायगा ?लेकिन ये दर्द तों तब महसूस होते है जब अपना कोई जाता है .सरकार में बैठे हुए लोगो ने इन सब रिश्तो और जिम्मेदारियों का मूल्य लगाया है पाँच लाख रूपया .बाद में फिर यही कहानी दोहराई जाती रहेगी .क्या कोई है जो किसान के दर्द को सुने और उसके स्थाई इलाज का इंतजाम करे ,कोई सुने उसके उस जवान बेटे कि आवाज जो हर समय देश के लिया गोली खाने के लिए सीमा पर सीना तने खड़ा है और वह अपने पिता या भाई को ही नही  बचा पाया ,क्या बीतती होगी उसपर क्या कोई इन दर्दो को मसूस करने को तैयार है .कम से कम इस सरकार में बैठे हुए लोगो से तों कोई उम्मीद ही नही कि जा सकती है .
देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक दावपेंच में कौन किसकी पतंग कितनी डोरे के साथ काट पता है और राजनीति कि पिच पर कौन कौन सी गेंदे फेंकी जाति है और कौन से ढंग से उसे खेला जाता है .किसी भी तरह कि गेंद हो या शोट हो पीटना तों किसान को ही है .लगता है अभी किसान कि फैसलाकुन लड़ाई दूर है .पर फिर या तों वे भाषण ना हो या कम से कम उसकी लाज रखते हुए आजादी या ऐसे किसी दिवस पर अपनी ही जनता कि हत्या तों नही ही हो ,ऐसी उम्मीद तों कि ही जा सकती है .

                                                                                                        डॉ सी पी राय
                                                                                             पूर्व राज्य मंत्री एवं राजनैतिक स्तंभकार

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