बुधवार, 14 मई 2025

जिंदगी के झरोखे से

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

कई साल पहले ये लिखा था 

कुछ अपनों को बहुत कुछ याद दिलाने को ---------------- ---------------------------------------------समाजवादी पार्टी पुनः बनाया जाये ये प्रस्ताव रखने वाला पहला व्यक्ति मैं था । स्थापना सम्मलेन में मेरी भूमिका भगवती सिंह जी को याद होगी और बहुत पुराने पत्रकारो को ।
पर पता नहीं संस्थापक सदस्यों का नाम लेते वक्त मेरा नाम क्यों भुला दिया जाता है । मैंने जाती की राजनीती नहीं किया समाजवाद की राजनीती किया और चुनाव नहीं लड़ा संगठन में काम करता रहा ,कभी एम् पी ,एम एल ए और मंत्री नहीं बना इसलिए या भूमिहार जाती में पैदा हुआ हूँ और इस जाती की राजनीती में कीमत नहीं है ,पिछडो की राजनीती में इसलिए ।
मैंने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में भाग लिया छोटी उम्र में और : अंग्रेजी में काम न होगा फिर से देश गुलाम न होगा ;का नारा लगाया .।
मैं सोशलिष्ट मूवमेंट में था और : संसोपा ने बाँधी गाँठ पिछड़े मांगे सौ में साठ ;का नारा लगता रहा ।
मैं जयप्रकाश आंदोलन में था ।
मैंने नेता जी का चुनाव देख 1989 और फिर रद्द होने वाला बीजेपी के जुल्म में हुआ 1992 में ।
मैं प्रदेश का चुनाव प्रभारी था 1991 ।
91 में चुनाव हार जाने पर जिद कर के आगरा में विशाल मंडलीय सम्मलेन करवाया ताकि पार्टी का मनोबल गिर न जाये और 14 लाख से अधिक की थैली भेंट किया ।
मेरे प्रस्ताव पर बनी समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मलेन में तीन दिन सोया नहीं तो घूम तो नहीं रहा था और सम्मलेन ख़त्म होने पर कुर्सी पर बैठ ही सो गया था जब नेता जी ने स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 43 में आकर जगाया और फिर कोफ़ी पीने बैठ गए और बोले की बहुत मेहनत पद गयी ,बस एक दिन और सबको विदा कर पूरा दिन सो कर फिर मेरे पास आइयेगा । तो रात भर भुट्टे तो नहीं बेच रहा था ।
विशेष --- - स्थापना सम्मलेन का बेनी प्रसाद वर्मा ने बहिष्कार किया और पहले दिन आये ही नहीं । वो ये पार्टी बनाने के खिलाफ थे । दूसरे दिन मैं और रामसरन दास घर से मना कर लाये तो वो हो गए संस्थापक और नाम रखने वाले क्योकि कुर्मी है और हम कोई नहीं क्योकि रॉय है ।
पार्टी की स्थापना के बाद पहली राष्ट्रीय कार्यसमिति करवाया आगरा में जो अपनी व्यवस्थाओ और प्रचार के लिए मील का पत्थर साबित हुयी और उसका रेकॉर्ड आज तक नहीं टूट पाया और इसके बाद सरकार बन गयी थी ।
जब 92 का नेता जी का चुनाव था तो टी एन शेषन से संपर्क रखने से लेकर जिस गांव में भी जुल्म होता था वहां जाने और सम्हालने की जिम्मेदारी मेरी थी ।
चुनाव में पहली सभा में साथ रह कर भाषण देने के बाद मैं अगली सभा में चला जाता और वहां जनता को जोड़ता भीड़ इकट्ठी करता और बाते बताता फिर नेता जी के आने में बाद आगे चला और फिर आखिरी सभा चाहे रात को 1 बजे हो हम साथ करते ।
1993 में राजभवन कॉलोनी के दफ्तर से मेरे भाषण के कैसेट बिके थे । 
मेरे जामा मस्जिद पर दिए गए भाषण पर स्वर्गीय अशोक सिंघल ने प्रमुख अख़बार को बयांन दे दिया की सी पी राय किसी मुसलमान को बाप बना ले जो पहले पन्ने पर छपा और मेरा जवाब भी ठीक से मिला ।
जब etv कॉनक्लेव हुआ जयपुर में तो जहा कांग्रेस से विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहमान ,बीजेपी से राजनाथ और ऐसे ही बड़े लोग थे तो समाजवादी सिपाही के रूप में वहां भी पार्टी का झंडा बुलंद रखा जो यू टयूब पर मौजूद है ।
जो ईमानदार होंगे वो ये सब स्वीकार करेंगे ।
और भी बहुत कुछ जो कहने से लोगो के अहम् को आज चोट लगेगी । 
जब मैं राज्यसभा सौचता भी नहीं था तब नेता जी ने एक बड़े नेता का नाम लेकर कहा की उसे भेज कर गलती हो गयी । वहां तो आप मेरे काम के है ।
इधर मेरी भूमिका पूरे दिन महामंत्री के रूप में ऑफिस में समय देने की हो या मीडिया में मेरी भूमिका या अज़मगढ़ में मेरी भूमिका ईमानदार लीग ही उसे स्वीकार कर सकते ।
शायद पार्टी से मिले पैसे में से बचा हुआ लौट देने वाला मैं अकेला हूँ ।
लोकसभा चुनाव हारने पर नैतिकता के नाते खुद पर जिम्मेदारी लेकर मंत्री और महामन्त्री पद से इतीफे की पेशकश करने वाला भी मैं अकेला हूँ ।
योजना आयोग का प्रतिष्ठित पद ठुकराने वाला भी मैं अकेला हूँ ।
आज तक कोई दाग नहीं ,ठेका नहीं ,खनन नहीं ,दलाली नहीं ।
पर मैं कही गिनती में नहीं हुआ वर्ना जब ये जिक्र आता है की संस्थापक कौन कौन तो मुझ साधारण व्यक्ति को किनारे नहीं किया जाता ।
आज बहुत दुखी होकर और अपनी घिर उपेक्षा झेल कर सार्वजानिक रूप से लिखने को मजबूर हुआ और ये अखिलेश जी को भी लिख रहा हूँ ।
क्या क्या बताऊँ किताब लिख जायेगी ।
तो फिर क्या सारी उपेक्षा ,तिराष्कार और पीछे छोड़ देना तथा सब किया भुला देना सिर्फ इसलिए की मैं भूमिहार जाती में पैदा हुआ हूँ । पिछड़ा या अल्पसंख्यक नहीं हूँ ।
बहुत दुखी होकर आज लिख रहा हूँ ।
हो सकता है को महाभ्रष्ट ,दलाल इस पर प्रतिक्रिया भी दे चापलूसी में ।
पर जनता की अदालत में मेरा दर्द हाजिर है ।जब अदालत न सुने तो जनता की अदालत में जाने का ही विकल्प बचता है ।
आज बहुत दुखी होकर और जिसे बहुत अपना समझता था उससे झटका मिलने पर ।

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