गुरुवार, 29 मई 2025

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

आज से इतने साल_पहले का यह #1977_का_समाचार है जब ड़ा शिवानंद नौटियाल उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री थे रामनरेश यादव जी की सरकार मे मेरे नेत्रत्व मे छात्रो का प्रतिनिधि मंडल मिला था उनसे आगरा के कुलपति को बर्खास्त करवाने को ।
बाद मे हम लोगो ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल एम चन्ना रेड्डी को घेर लिया आगरा के सर्किट हाऊस मे ,लाठीचार्ज हुआ पर हटे नही हम लोग और सुबह से रात हो गयी तो सर्किट हाऊस की लाईट बुझा कर उन्हे पीछे के रास्ते से निकाला गया ।
दूसरे दिन राज्यपाल ने उस कुलपति को बर्खास्त कर दिया ।
इसके पहले एक दिन कुलपति को उठा कर मैं उनकी कुर्सी पर बैठ गया और आदेश शुरू कर दिये ।एस पी ए एन सिंह और ए डी एम सिटी राम कुमार कुंवर मे बाहर लाठी चार्ज कर छात्रो को तीतर बितर कर दिया और अंदर आकर मुझसे उठने का आग्रह किया पर तब भी मैने इस शर्त  पर उठना मंजूर किया की कुछ घंटे का ही सही मेरे कुलपति होने पर पहले चाय पिए सब लोग तब उठ जाऊंगा ।
और वही हुआ ।किसी पर कोई मुकदमा कायम नही हुआ ।
कुलपति बहुत भ्रष्ट था एक तरफ हम लोगो को लालच देता था और दूसर तरफ कुछ पालतू गुंडो जिसमे से एक सरगना को ओ एस डी बना लिया था उनसे धमकवाता था ।पर उस जमाने मे गुंडो की हैसियत ही नही थी कि सामना कर सके ।

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

सिर्फ मुरली मनोहर जोशी जी को ही नही बल्की शाही इमाम को भी जवाब होता था मेरा -

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी और बहुत बुरा दौर था वो 
पर कही भी किसी से भी टकरा जाने के लिए हम जैसे लोग थे न ।

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

यह एक दिन के समचार का हिस्सा है #मद्रास से ,जब #मुलायम_सिंह_यादव जी के साथ हम लोग 5 लोग जिसमे से 4 सांसद थे मद्रास से त्रिवेंद्रम तक 7 दिन के दौरे पर थे 
और वहा से भी पूरे उत्तर प्रदेश में मैं सभी अखबारो मे बडा बडा कवरेज करवाने मे कामयाब रहा अपने घनिष्ट मित्रो के कारण ।

बुधवार, 28 मई 2025

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

कितने लोगो को पता है की इस #देश से #लाटरी #मैने_खत्म_करवाया ।
पुराने लोग जानते है की एक समय था देश भर मे हर सड़क हर गली और हर बाजार मे लाटरी बहुत बडा व्यवसाय बन गया था । परिवार के परिवार तबाह हो रहे थे ।
उसी दौर मे मुझे कुछ घटनाए पता लगी जिसमे से अभी सिर्फ एक का जिक्र कर दे रहा हूँ -
एक मध्यम वर्ग की महिला भी इसका शिकार हो गयी । हुआ ये की वो घर का समान लेने जाती सब्जी इत्यादि और इस उम्मीद मे लाटरी का टिकेट भी खरीद लेती की शायद घर की हालात कुछ अच्छे हो जाये । उसकी एक बेटी थी शादी को और पति मे घर खर्च काट काट कर कुछ पैसा इकट्ठा किया था ।धीरे धीरे जुवरियो की तरह वो उस पैसे को भी ज्यादा टिकेट खरीद खर्च करने लगी और सब बर्बाद कर बैठी । फिर सब खत्म हो जाने पर परेशान रहने लगी । किसी दुकान पर उसकी किसी औरत से दोस्ती हो गयी थी और जब उसे समस्या पता लगी तो उसने इस महिला को वेश्यावृत्ति मे धकेल दिया । अक्सर ये महिला आत्महत्या करने का सोचती थी इसलिए इसने सारा ब्योरा और अपना गुनाह एक जगह लिख कर रख दिया की उसकी मौत के लिए वो खुद जिम्मेदार है और दूसरे कागज पर अपने पति को सारी बात और अपना माफीनामा । वेश्यावृत्ति के चक्कर मे एक दिन वह जहा पहुची वहा उसके खुद का बेटा और उसके दोस्त थे जिन्होंने दलाल से उसे बुलवाया था और फिर वहा से भाग कर उसने आत्महत्या कर लिया ।
ये और कुछ अन्य दर्दनाक घटनाए जो मैं आत्मकथा मे विस्तार से लिखूंगा जिनमे ना जाने कितने लाख घर और लोग बर्बाद हुये , कितनो ने आत्महत्या कर लिया , मेरे संज्ञान मे आई तो मेरी आत्मा ने धिक्कारा की क्या सिर्फ जिन्दाबाद मुर्दाबाद ही राजनीती है या समाज के असली जहर के खिलाफ लड़ना ।
#अलोक_रंजन जो उत्तर प्रदेश के #मुख्यसचिव से रिटायर हुये है और अभी भी लखनऊ मे है वो मेरे यहा डी एम थे और बाबा हरदेव सिंह ए डी एम सिटी ।भाजपा की कल्याण सिंह की सरकार थी ।
मैं अलोक रंजन से मिला और उनके सामने मैने वो सारी घटनाए रखा और कहा की मैं कम से कम अपने शहर मे तो लाटरी नही बिकने दूंगा । वो बोले की सरकार के बड़े राजस्व का भी सवाल है और कानून व्यव्स्था का भी पर नैतिक रूप से मैं आप की बात का समर्थन करता हूँ । बस एक प्रेस कांफ्रेंस और उसके बाद लाटरी फाडो अभियान की शुरुवात हो गयी ।उस वक्त की मीडिया ऐसी नही थी सारे अखबारो ने रोज बडा कवरेज दिया और मेरा समाचार पूरे देश के एडिशन मे छापा मेरे आग्रह पर की ये देश भर मे अभियान शायद बन जाये ।
और हा #भाजपा पूरी ताकत से इस आन्दोलन के खिलाफ और #लाटरी व्यापार #के_पक्ष_मे_थी ।
बहुत कुछ झेलना पडा , पथराव , झगड़े और एक बड़े माफिया जो अब जेल मे है उनका लाटरी का होल सेल का काम था उनकी धमकी और लालच भी ,जी उस समय मुझे 5 लाख मे खरीदने या गोली खाने का आफर मिला और मेरा वही जवाब की बिकाउ मै हूँ नही और मुझे मार सकना तेरे बस मे नही है और अगर अच्छे काम के लिए मर भी गया तो शायद ये अन्दोलन भी जोर पकड़ ले और कामयाबी मिल जाये वर्ना कम से कम अच्छे काम के लिए मरूँगा ।
देश मे मेरा समचार देख कर अन्य जगहो पर भी लोगो ने छिटपुट अन्दोलन शुरू कर दिया ।
कितना लोकप्रिय था वह मेरा अन्दोलन इससे समझ लीजिये की - नैनीताल मे पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक तय हो गयी और मुझे रिजर्वेशन नही मिला तो सीधे ट्रेन पर पहुच गया ,ट्रेन मे टीटी ने पहचान लिया और बर्थ दे दिया । यही काठगोदाम मे हुआ वहा के स्टेशन मास्टर ने पहचान लिया बैठा कर चाय पिलाया और नैनीताल उनके एक दोस्त जा रहे थे उनके साथ मुझे भेजा और वापसी के रिजर्वेशन का इन्तजाम भी किया । (ऐसा मेरे साथ मुशर्रफ वाले अन्दोलन मे भी हुआ था जब उसके अगले दिन मैं फैजाबाद गया तो बस स्टेशन के पास जो उस बक्त का अच्छा होटल था उसमे किसी ने रुकने का इन्तजाम किया था , मैं काऊंटर पर पहुचा तो आजतक पर मेरा ही समचार चल रहा था ,वहा बैठा मालिक टीवी और मुझे आश्चर्य से देखने लगा ,खैर फिर उसने होटल के बजाय अपने घर का खाना खिलाया और कमरे का पैसा लेने से भी इन्कार कर दिया ) 
थोडे दिन बाद हमारी सरकार बन गयी और #मुलायम_सिंह_यादव जी #मुख्यमंत्री । तब उनके सामने मैने उत्तर प्रदेश में लाटरी खत्म करने का प्रस्ताव किया जिसका एक पूरा विभाग था । 300 या 400 करोड़ लाटरी से प्रदेश को मिलता था उस समय ।पर मेरे अन्दोलन का नैतिक दबाव भी था और मुख्यमंत्री ने भी जरूरी समझा और उत्तर प्रदेश में तत्काल प्रभाव से लाटरी बंद कर दी गयी फिर ऐसा माहौल बना की धीरे धीरे सभी प्रदेशो को लाटरी बंद करनी पडी ।

पर राजनीति में ऐसे कामों की कोई क़ीमत नही ,  क़ीमत है तो जाति की , ठेकेदारों की ,दलालों की और चापलूसों की ।

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

चाहे तो इस सम्मेलन मे जनेश्वर मिश्रा जी और आज़म खान साहब के बाद मेरा भाषण भी पढिये की 2003 मे मैने क्या कहा था और आज क्या चर्चा हो रही है ।
कहा तो जनेश्वर मिश्रा पार्क मे भी मैने बहुत कुछ ऐसा था कि कम से कम उत्तर प्रदेश की तस्वीर 2017 से आज तक कुछ और होती पर एक तथाकथित विद्वान नेता को पसंद नही आया और वो टोकता रहा और जिस नेता को समझाने की कोशिश कर रहा था वो सुनने के बजाय मोबाइल से खेलता रहा और अहंकार सर चढ़ कर बोलता रहा ।
जाने दो ।अब तो रास्ते एक दूसरे के विपरीत दिशा मे जा रहे है ।

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

#भाजपा_अध्यक्ष #मुरली_मनोहर_जोशी जी ने कुछ सवाल किये थे अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान 
और उनका जवाब देना था मुझे पार्टी प्रवक्ता के रूप मे भी और हिन्दुस्तानियत के प्रवक्ता के रूप मे भी और दिया और सभी अखबार इतना बडा स्थान देते थे मुझे  ।
प्रवक्ता तो आज भी बहुत है और बड़े बड़े नेता भी पर ये चुप्पी क्यो ?

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से--

हमेशा हर महीने और हर रोज #जनता #के हर #मुद्दे पर खुद भी #सड़क_पर_उतर_जाना और संगठन को भी उतरने को मजबूर कर देना मेरा आदत रही है ,चाहे शासन प्रशासन कितना भी ताकत लगाये विरोध मे ।
वैसा ही ये अनशन भी था जिसमे पहले धमकाया गया, फिर छोटे अधिकारी मिलने आये और अन्त मे आगरा के कमिश्नर जो बहुत ही वरिष्ठ आई ए एस थे उन्होने सम्मान से कार्यालय मे बुलाकर बात किया और सम्बंधित विभाग को निदान करने का निर्देश दिया 
और 
एक शिकायत भी की राय साहब इतने दिन से मैं यहा हूँ आप कभी मिले ही नही ? कभी घर चाय पीने आइये ।
बस आप इमानदार हो और आप का मुद्दा जायज हो तो भगवान से भी टकरा जाना चाहिये ।
फ़ोटो में मौजूद राम शकल गूजर ज़िलाध्यक्ष थे , एम एल सी और मंत्री बने , बहुत सम्पन्न हुए और सरकार जाने पर अब भाजपा में है । एक समय इनके सामने यहाँ के तीनो सांसदो सहित किसी की भी कोई हैसियत नहीं थी ।
इनको वहाँ भी वैसी ही तरक़्क़ी के लिए शुभकामनाएँ ।

रविवार, 25 मई 2025

ज़िंदगी_के_झरोखे_से

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से
आज ये फ़ोटो एक साथी से मिली जब मैं 2014 मे  आज़मगढ़ में मुलायम सिंह यादव जी के लिए सुबह से रात १ बजे तक शहर की बस्तियों से लेकर गावो तक रोज़ २०/२५ छोटी से बड़ी तब सभाए और रणनीतिक बैठके कर रहा था उसी में एक ये सभा जो बसपा के उम्मीदवार के गढ़ में हुई थी और काफ़ी कुछ निर्णायक साबित हुई थी । विशाल सभा थी यह जिसमें काफ़ी मंत्री भी मौजूद थे । मुझे चूँकि आगे की सभाओं में भी जाना था तो अपने फ़ैसलाकुन भाषण के बाद मैं चल दिया पर आश्चर्य तब हुआ जब बड़ी संख्या में लोग मेरे साथ चल दिए और हाथ जोड़कर सबको मुश्किल से लौटा पाया मैं की और बड़े नेता बोलेंगे उन्हें  सुनकर जाइएगा । 
आज़मगढ़ में मेरे लोगों ने भी पूरा प्यार दिया और बाक़ी भी जहा जहा चला गया सबने मेरी इज्जत रखा । वरना अपने घरों पर पहले लगे झंडे कौन बदलता है गाँव में और दूसरी पार्टी का होते हुए भी न जाने कितने गाँवो ने मेरी वजह से मेरी पार्टी को वोट दिया । 
पर सब बेकार 
क्योंकि धृतराष्ट्र को और कुछ कहा दिखा था महाभारत में ?

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

 4/5 नवम्बर 1992 को जब #मुलायम_सिंह यादव समाजवादी पार्टी के लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क मे आयोजित स्थापना सम्मेलन मे पार्टी के राश्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिए गए उस वक्त की पहली माला और पहली फोटो ।
इस सम्मेलन मे काफी महत्वपुर्ण जिम्मेदारियां  थी मेरे ऊपर इसलिए मंच पर सिर्फ 4 बार ही आ पाया । पहला उद्घाटन के समय , दूसरा जनेश्वर जी के प्रस्ताव पर बोलने के लिए और तीसरा अध्यक्ष के चुनाव के वक्त और चौथा समापन भाषण और राष्ट्रगान के समय ।।
उस सम्मेलन मे समाजवाद पर मैने जल्दी जल्दी मे एक छोटी सी पुस्तिका लिख कर छपवा दिया था जिसकी कीमत संभवतः 4 या 8 आना ही थी शायद और वो करीब करीब सारी किताब लोगो ने खरीद लिया था । 
आसाम ,तमिलनाडू, केरल ,आन्ध्र प्रदेश ,कर्नाटक,
महारास्ट्र गुजरात ,उड़ीसा ,बिहार ,मध्य प्रदेश, राजस्थान , हरियाणा ,दिल्ली और उत्तर प्रदेश से लोग आये थे उस सम्मेलन मे जिसमे मुलायम सिंह यादव सहित तीन पूर्व मुख्यमंत्री थे और बहुत बड़े बड़े नाम वाले नेता शामिल हुये थे ।
पर हम उन्हे सब को सम्हाल कर रख नही पाये या हमारी छोटी और थोडी ही दूर तक की सोच उन्हे नही रख पायी वैसे परिवार के एक आदमी का खराब व्यवहार और अहंकार भी इसका एक कारण मान सकते है ।

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जनता_दल के नेता और #प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार #विश्वनाथ_प्रताप_सिंह से उस दौर मे मुलाकाते भी खूब होती थी और कई सभाओ मे साथ रहने और भाषण देने का मौका मिला ।
पहली फोटो जनता दल की अलीगढ की सभा का जिसमे विश्वनाथ प्रताप सिंह के साथ चौ #अजीत_सिंह  #रामविलास_पासवान और हमारा भाषण भी हुआ ,दूसरी मे विश्वनाथ प्रताप सिंह के घर मे उनसे आगे के मुद्दो पर चर्चा करते हुये और ऐसे ही इटावा , मथुरा ,फतेहपुर और इलाहबाद तथा दिल्ली के वोट क्लब पर भी रैलियो मे साथ होने का मौका मिला । 
कुछ चित्र यहा ।

जिन्दगी_के_झरोखे_से

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

पहले #हरियाणा के #मुख्यमंत्री और फिर #देश के #उप_प्रधानमंत्री चौ #देवीलाल का भी मुझे बहुत स्नेह प्राप्त था ,उनके हरियाणा भवन या राष्ट्रपति भवन के गेट नम्बर ३६ के अंदर उनके घर जाना होता था तो घर के पीछे के लॉन में मिलते थे बातें पूछते और कुछ खिला कर ही जाने देते ।
उप प्रधान-मंत्री के रूप मे उन्होने मेरे घर का कार्यक्रम बनाया , जनता दल क्या पूर्ण विपक्ष का एक सबसे बडा स्तम्भ और धुरी बन गए थे उस वक्त वो और देश के सारे नेता उनकी तरफ देखने लगे थे, वही प्रेरणा थे , वही फैसलाकुन होते थे और उन्ही की सहयता पर सब आश्रित हो गए थे ।
वो तो मुझे 1989 का चुनाव भी लड़वाना चाहते थे और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते उनका फैसला आखिरी होता और बोर्ड के सदस्यो मे से बहुमत मेरे पक्ष मे था ।
पर हरियाणा भवन मे बोर्ड की बैठक मे  मुलायम सिंह यादव जी ने ये कह दिया की मैं देश मे प्रचार करूँगा तो सी पी राय मेरा चुनाव देखेंगे और जब मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो फिर एम एल ए और एम पी क्या होता है उनका ऐसा स्थान हो जायेगा । बोर्ड की बैठक से आकर पहले जॉर्ज फर्नांडीज साहब ने कहा की जब होने वाला सी एम आप को अपना चुनाव इंचार्ज बनाना चाहता है तो चुनाव मत लडो उसका काम देखो ।फिर विश्वनाथ प्रताप सिंह और अन्य भी निकल कर यही बोले ।
एक दिन सुबह 4 बजे अशोका होटल दिल्ली मे भी कुछ ऐसा ही हुआ और फिर दिल्ली एयरपोर्ट के वी आई पी लाऊन्ज मे ।
वो सब किस्से फिर कभी ।
मैं मुलायम सिंह यादव जी के पूरे चुनाव मे जान की बाजी लगाकर जुटा रहा कि एक दिन वो बहुत गुस्से मे बोले की यहा से इलाहबाद जनेश्वर जी के यहा चले जाओ वर्ना आप की यहा हड्डियां भी नही मिलेंगी भट्टे मे झोंक दिये जावोगे जैसा दुस्साहस आप कर रहे हो ।
मेरा जवाब क्या था वो जाने देते है 
पर मैं रिजल्ट तक वही डटा रहा ।
बल्की मुलायम सिंह यादव जी अपने क्षेत्र के दौरे मे मुझे साथ रखते और अपने से पहले मेरा भाषण करवाते थे ।जो क्रम 1993 के बद तक के चुनावो मे भी चलता रहा की उनकी सभावो मे उनसे पहले मेरा भाषण होने लगा सब जगह ।
और बाद मे या आज तक क्या हुआ वो लिखने की जरूरत इसलिए नही की सब जानते है ।

जिंदगी_के_झरोखे_से

#जिंदगी_के_झरोखे_से

1991/ 1992 की बात है, हम बुरी तरह हार गए थे जिसके बारे में मैंने पहले ही इशारा कर दिया  ।1991 के चुनाव मे मै प्रदेश कार्यालय मे बैठता था और चुनाव का काम भी देख रहा था ,बीच मे प्रचार के लिए या अन्य कामो के लिए भी चला जाता था । 
इसी मे ऐसा भी हुआ की सुब्रमण्यम स्वामी चंद्रशेखर जी की सरकार के मह्त्वपूर्ण मंत्री थे ।(ये किस्सा बाद मे लिखूंगा ) ।
सत्ता मे मुझसे कभी न मिले मुलायम सिंह यादव को सत्ता के आखिरी महीने मे मैं याद आ गया और मैं पार्टी का प्रदेश महामंत्री और प्रवक्ता बना दिया गया और ओर प्रदेश के चुनाव के काम लायक भी समझा गया ।चुनाव की हार के बाद आगरा मंडल का विशेस रूप से प्रभारी भी बना दिया गया पर जिम्मेदारी हर जगह पहुचने और अच्छा मीडिया कवरेज करवाने की होती थी दिल्ली मे ,प्रदेश मे और देश मे कही भी मद्रास से देहरादूण तक और  मुलायम सिंह यादव जी के साथ पूरे प्रदेश और देश के बहुत से प्रदेश के दौरे पर भी रहना होता  था और दिल्ली मे भी प्रेस के अलावा कुछ और काम सम्हालता था ।
मुलायम सिंह जी को जब दिल्ली आना होता था तो मुझे पहले ही दिल्ली पहुच कर यू पी भवन मे रुक कर कुछ इन्तजाम करने होते थे जिसमे पहले सम्राट होटल और फिर बाद मे अशोका होटल का सुईट बुक करना , एन एस जी जो चन्द्रशेखर जी ने पी एम पद से हटने से पहले दे दिया था ( क्यो और कैसे ये जाने देते है )  को खबर करना , उस समय सरकारी गाडी नही मिलती थी इसलिए आर के पुरम के सरदार जी से तीन अच्छी टैक्सी के बारे मे बोलना और जहाज के समय एयरपोर्ट जाकर उन्हे लाना और फिर जब तक दिल्ली मे हो साथ रहना ,लोगो से मिलवाना तथा वापसी पर एयरपोर्ट छोड़ने के बाद वापस घर जाना ।
डिटेल मे सब लिखना विश्वास भंग की श्रेणी मे आता है इसलिए वो मेरे बाद छपने वाली आत्मकथा या अनटोल्ड  स्टोरीस ऑफ इंडियन पोलटिक्स के लिए छोड़ता हूँ ।
ये किस्सा तब का है जब सम्राट छोड दिया था और अशोका होटल मे मुलायम सिंह जी रुकने लगे थे । दो कमरे वाला सुईट होता था जिसमे बाहरी ड्राइंग रूम में मे मैं बैठता था और दूसरे कमरे मे वो और एक अन्य साथी भी जो मुलायम सिंह के दिखाने को बड़े विश्वासपात्र थे जिसका कारण मैं आज तक नही समझ पाया ।कम उम्र के थे बंगाली थे । पर बहुत ही पावरफुल थे ।मेरे सामने ही मुलायम सिंह का उनको दिन भर मे कई बार फ़ोन आता था चाहे सत्ता रही हो या उसके बाद और वो अंदर जाकर बात करते थे । 
वो भी हमेशा होते थे दिल्ली आने पर साथ ही और अंदर होते थे 90% सिवाय जब खाना खाना या चाय पीना होता था तब हम सब साथ बाहर के कमरे मे बैठते थे । 
वो सज्जन कितने पावर फुल थे की दिल्ली के 
कैलाश हिल्स जैसी जगह जगह जहा बहुत ही बड़े लोग रहते है उन्होने 3 या 4मंजिल की बहुत ही भव्य कोठी बना ली थी और सत्ता के दौरान उत्तर प्रदेश के काफी सुरक्षा कर्मी उनके यहा ड्यूटी करते थे खैर उनको पद भी दिया गया था जिसका दर्जा संभवतः चीफ सेक्रेटरी के बराबर कर दिया गया था । और काफी संपन्न होने के बाद एक दिन अचानक कैलाश हाइट्स की कोठी बेच कर वो सम्भवतः न्यूजीलैंड चले गए परिवार के साथ या कही और पता नही पर सुना यही था ।
उनपर विस्तार से बाद मे लिखूंगा ।
अभी बस एक घटना तक सीमित करता हूँ ।
एक दिन की बात है मुलायम सिंह यादव जी अशोका होटल मे रुके थे और हा इन दोनो होटलो के सारे बिल पर हस्ताक्षर मुझे करने होते थे किसी के बिहाफ पर जो देश के बहुत बड़े सेठ है ।
उस दिन मुलायम सिंह से कोई बहुत ही खास मिलने आने वाला था ।सारे फ़ोन पहले मैं ही उठाता था इसलिए उन्होने मुझसे कहा की फला मिलने आयेंगे उनको सीधे बाहर से मेरे वाले कमरे मे पहुचा दीजियेगा और फिर चाहे जिसका फ़ोन आये मना कर दीजियेगा की मैं कही जरूरी काम से गया हूँ और कह गया हूँ की शाम को आऊँगा । मैने पूछा भी की अगर फला फला का फ़ोन आया तो ? 
तो बोले की कहा न की किसी का भी तो किसी का भी ।
कुछ समय हुआ और पहले चौ हरमोहन सिंह का फ़ोन आया ,फिर उदय प्रताप सिंह का , फिर ईशदत्त यादव का और इसी तरह अन्त मे राम गोपाल यादव का ।
मैने सबको वही जवाब दे दिया । पर चूँकि दिल्ली मे भी मैं हर जगह साथ जाता था तो लगता है इन लोगो को शक हो गया और ये लोग एक ही जगह बैठे थे ।एक साथ अशोका होटल आ गये । मेरी साइड का दरवाज खुला रहता था तो सब अंदर आ गए और मुझे काटो तो खून नही क्योकी मैं झूठ नही बोलता पर यहा नेता के आदेश का पालन कर रहा था । इन लोगो को तो होटल से बाहर ही पता लग गया था की मुलायम सिंह अंदर ही है क्योकी ब्लैक कैट कमांडो और गाडी बाहर पोर्च मे मौजूद थी । इन सबकी आंखो से लगता था की मुझे भस्म कर देगे । मैने अंदर जाकर बता दिया की ये लोग मना करने पर आ गए है ।
थोडी देर मे जो आये थे दूसरे कमरे के दरवाजे से सीधे बाहर निकल गए तो मैं फिर अंदर गया और मैने कहा की एक आप के भाई है और बाकी भी सब सांसद अब ये सब मुझे दुश्मन मांन लेंगे तो मुलायम सिंह बोले की चिंता मत करो ये सब मेरी वजह से है ।
आगे लिखने की जरूरत नही की राम गोपाल सहित सभी ने मेरे बारे मे क्या विचार बनाया होगा और फिर क्या किया होगा 
पर अफसोस की मुलायम सिंह ने कभी ये साफ नही किया की उन्होने मना किया था और न कभी रामगोपाल के प्रकोप से कभी बचाया जो पीठ पीछे ही होता रहा घातक तरीके से ,बल्की उनका नाम लेकर ही मेरा अहित करते रहे की उससे बात करो की क्यो नाराज है ।
जैसे मैं बच्चा हूँ या मन्द बुद्धि हूँ ।
यह नीचे की फोटो नैनीताल मे आयोजित प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक के समय की है ।
इसपर भी लिखूंगा ।

बुधवार, 14 मई 2025

जिंदगी के झरोखे से

#जिंदगी_के_झरोखे_से 

कई साल पहले ये लिखा था 

कुछ अपनों को बहुत कुछ याद दिलाने को ---------------- ---------------------------------------------समाजवादी पार्टी पुनः बनाया जाये ये प्रस्ताव रखने वाला पहला व्यक्ति मैं था । स्थापना सम्मलेन में मेरी भूमिका भगवती सिंह जी को याद होगी और बहुत पुराने पत्रकारो को ।
पर पता नहीं संस्थापक सदस्यों का नाम लेते वक्त मेरा नाम क्यों भुला दिया जाता है । मैंने जाती की राजनीती नहीं किया समाजवाद की राजनीती किया और चुनाव नहीं लड़ा संगठन में काम करता रहा ,कभी एम् पी ,एम एल ए और मंत्री नहीं बना इसलिए या भूमिहार जाती में पैदा हुआ हूँ और इस जाती की राजनीती में कीमत नहीं है ,पिछडो की राजनीती में इसलिए ।
मैंने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन में भाग लिया छोटी उम्र में और : अंग्रेजी में काम न होगा फिर से देश गुलाम न होगा ;का नारा लगाया .।
मैं सोशलिष्ट मूवमेंट में था और : संसोपा ने बाँधी गाँठ पिछड़े मांगे सौ में साठ ;का नारा लगता रहा ।
मैं जयप्रकाश आंदोलन में था ।
मैंने नेता जी का चुनाव देख 1989 और फिर रद्द होने वाला बीजेपी के जुल्म में हुआ 1992 में ।
मैं प्रदेश का चुनाव प्रभारी था 1991 ।
91 में चुनाव हार जाने पर जिद कर के आगरा में विशाल मंडलीय सम्मलेन करवाया ताकि पार्टी का मनोबल गिर न जाये और 14 लाख से अधिक की थैली भेंट किया ।
मेरे प्रस्ताव पर बनी समाजवादी पार्टी के स्थापना सम्मलेन में तीन दिन सोया नहीं तो घूम तो नहीं रहा था और सम्मलेन ख़त्म होने पर कुर्सी पर बैठ ही सो गया था जब नेता जी ने स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 43 में आकर जगाया और फिर कोफ़ी पीने बैठ गए और बोले की बहुत मेहनत पद गयी ,बस एक दिन और सबको विदा कर पूरा दिन सो कर फिर मेरे पास आइयेगा । तो रात भर भुट्टे तो नहीं बेच रहा था ।
विशेष --- - स्थापना सम्मलेन का बेनी प्रसाद वर्मा ने बहिष्कार किया और पहले दिन आये ही नहीं । वो ये पार्टी बनाने के खिलाफ थे । दूसरे दिन मैं और रामसरन दास घर से मना कर लाये तो वो हो गए संस्थापक और नाम रखने वाले क्योकि कुर्मी है और हम कोई नहीं क्योकि रॉय है ।
पार्टी की स्थापना के बाद पहली राष्ट्रीय कार्यसमिति करवाया आगरा में जो अपनी व्यवस्थाओ और प्रचार के लिए मील का पत्थर साबित हुयी और उसका रेकॉर्ड आज तक नहीं टूट पाया और इसके बाद सरकार बन गयी थी ।
जब 92 का नेता जी का चुनाव था तो टी एन शेषन से संपर्क रखने से लेकर जिस गांव में भी जुल्म होता था वहां जाने और सम्हालने की जिम्मेदारी मेरी थी ।
चुनाव में पहली सभा में साथ रह कर भाषण देने के बाद मैं अगली सभा में चला जाता और वहां जनता को जोड़ता भीड़ इकट्ठी करता और बाते बताता फिर नेता जी के आने में बाद आगे चला और फिर आखिरी सभा चाहे रात को 1 बजे हो हम साथ करते ।
1993 में राजभवन कॉलोनी के दफ्तर से मेरे भाषण के कैसेट बिके थे । 
मेरे जामा मस्जिद पर दिए गए भाषण पर स्वर्गीय अशोक सिंघल ने प्रमुख अख़बार को बयांन दे दिया की सी पी राय किसी मुसलमान को बाप बना ले जो पहले पन्ने पर छपा और मेरा जवाब भी ठीक से मिला ।
जब etv कॉनक्लेव हुआ जयपुर में तो जहा कांग्रेस से विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहमान ,बीजेपी से राजनाथ और ऐसे ही बड़े लोग थे तो समाजवादी सिपाही के रूप में वहां भी पार्टी का झंडा बुलंद रखा जो यू टयूब पर मौजूद है ।
जो ईमानदार होंगे वो ये सब स्वीकार करेंगे ।
और भी बहुत कुछ जो कहने से लोगो के अहम् को आज चोट लगेगी । 
जब मैं राज्यसभा सौचता भी नहीं था तब नेता जी ने एक बड़े नेता का नाम लेकर कहा की उसे भेज कर गलती हो गयी । वहां तो आप मेरे काम के है ।
इधर मेरी भूमिका पूरे दिन महामंत्री के रूप में ऑफिस में समय देने की हो या मीडिया में मेरी भूमिका या अज़मगढ़ में मेरी भूमिका ईमानदार लीग ही उसे स्वीकार कर सकते ।
शायद पार्टी से मिले पैसे में से बचा हुआ लौट देने वाला मैं अकेला हूँ ।
लोकसभा चुनाव हारने पर नैतिकता के नाते खुद पर जिम्मेदारी लेकर मंत्री और महामन्त्री पद से इतीफे की पेशकश करने वाला भी मैं अकेला हूँ ।
योजना आयोग का प्रतिष्ठित पद ठुकराने वाला भी मैं अकेला हूँ ।
आज तक कोई दाग नहीं ,ठेका नहीं ,खनन नहीं ,दलाली नहीं ।
पर मैं कही गिनती में नहीं हुआ वर्ना जब ये जिक्र आता है की संस्थापक कौन कौन तो मुझ साधारण व्यक्ति को किनारे नहीं किया जाता ।
आज बहुत दुखी होकर और अपनी घिर उपेक्षा झेल कर सार्वजानिक रूप से लिखने को मजबूर हुआ और ये अखिलेश जी को भी लिख रहा हूँ ।
क्या क्या बताऊँ किताब लिख जायेगी ।
तो फिर क्या सारी उपेक्षा ,तिराष्कार और पीछे छोड़ देना तथा सब किया भुला देना सिर्फ इसलिए की मैं भूमिहार जाती में पैदा हुआ हूँ । पिछड़ा या अल्पसंख्यक नहीं हूँ ।
बहुत दुखी होकर आज लिख रहा हूँ ।
हो सकता है को महाभ्रष्ट ,दलाल इस पर प्रतिक्रिया भी दे चापलूसी में ।
पर जनता की अदालत में मेरा दर्द हाजिर है ।जब अदालत न सुने तो जनता की अदालत में जाने का ही विकल्प बचता है ।
आज बहुत दुखी होकर और जिसे बहुत अपना समझता था उससे झटका मिलने पर ।

शनिवार, 3 मई 2025

क्या कांग्रेस सबक लेगी

क्या चुनावो से #कांग्रेस सबक लेगी ? 

एक इन्दिरा गाँधी थी वही जिनसे आरएसएस के चीफ और लाखो सन्घियो ने माफी मांगा था ,वही जो दुनिया के 120 देशो की नेता थी नान एलायन मूवमेंट संगठन के कारण और फिर भी रुस सच्चा दोस्त था पर दुश्मन भी कोई नही था,वही जिन्होने 1974 मे परमाणु विस्फोट कर दुनिया को चौंकाया था और चौंकाया तो सिक्किम के विलय से ,पाकिस्तान के दो टुकडे कर नया देश बंगला देश बना कर और अमरीका की धमकी और सातवे बड़े को हुह कह कर परवाह ना करने के कारण ।ऐसा बहुत कुछ है जो एक  किताब बन जायेगी ।
उनके घर के बाहर सिर्फ एक सिपाही खड़ा होता था जैसा छोटे छोटे अफसरो के यहाँ भी होता है पर रोज सुबह 9 बजे उनका बाहरी दरवाजा खुल जाता था और जितने लोग मिलना चाहते थे सब अन्दर जाते थे बिना भय और लिहाज के और अंदर जाने के लिये नेता होना जरूरी नही था ,कांग्रेसी होना जरूरी नही था ,मिलने का समय तय होना जरूरी नही था और किसी की पहचान भी जरूरी नही थी । इसलिए वो इन्दिरा गांधी थी पर आज की कांग्रेस डब्बे मे बंद ,।
आज की कांग्रेस जिसे लगातार सबक मिल रहे है और हर सबक पर चर्चा होती है कि अब बदलेगा सब ,चिंतन और मंथन होता है,वही पुरानी घिसी पिटी सोच के लोगो की चिंतन मंथन कमेटियां बनती है और फिर वो अपने ढर्रे पर ही चलती है  ।
कांग्रेस मे जितने नाम वाले नेता है और जितने अनुभवी है उतने सब दलो मे मिलाकर भी नही है पर लम्बी सत्ता के कारण जहा अहंकार से ग्रस्त है वही जंग भी लग गई है और अपनी पूरी ऊर्जा तथा ज्ञान विरोधी को परास्त करने मे इस्तेमाल करने के बजाय पार्टी के अन्दर ही खर्च कर देते है ।
इधर कांग्रेस सिर्फ वहां जीतती है जहा कोई स्थानीय नेता बड़े कद का हो और जनता उसे अपना नेता समझती हो और वहां कांग्रेस तथा दूसरे दल की सीधी लडाई है तथा नेता अधिक समय प्रदेश के लोगो के बीच मे देता हो ,शर्त ये भी है की वहा कोई तीसरी शक्ती खडी न हो रही हो क्योकी तीसरी शक्ती को देखते ही कांग्रेस के नेता उससे अन्दर से हाथ मिला लेते है की उनकी सीट किसी तरह बच जाये और बदले मे वो तीसरी शक्ती की इच्छानुसार उसकी मदद करते है पार्टी की पीठ मे छुरा घोप कर और नेतृत्व को भी मजबूर करते है की तीसरी शक्ती से बना कर चलना फायदेमंद होगा । कांग्रेस गठबंधन धर्म मे भी अक्सर फ़ेल हो जाती है ।
गोवा जैसे प्रदेशो मे सरकार गवा देना इसके नेताओ की अदूरदर्शीता तथा अहंकार दर्शाता है तो कर्नाटक और मध्य प्रदेश की आई सरकार गवा देना अहंकार और अव्य्हारिक राजनीति की निशानी है । राजस्थान बाल बाल बच गया पर पाइलट की अभी भी उपेक्षा समझ से बाहर है ।पंडीचेरी मे मात्र 16 विधायक भी सम्हाल कर न रख पाने वाला नेता तो नही हो सकता है ।
ममता ही जब कांग्रेस मे थी तो नेतृत्व से मिलने को तरस जाती थी और बाहर जाकर सबको परास्त कर तीन बार सरकार बना उन्होने सिद्ध कर दिया की सचमुच की नेता वो थी जिनकी उपेक्षा हुयी जगन मोहन रेड्डी भी खुशी से नही बल्कि अपमानित होकर गये और सच्चे नेता साबित हुये ।असम के शर्मा से लेकर लम्बी फेहरिश्त जो चक्कर काटते रहे की नेत्रत्व मिल कर बात सुन ले पर नही मिल पाये ।ममता जी ने एक बार किसी से दर्द बयान किया था तो ये भी कहा था की पहले जो लोग संमय माँगने पर कहते थे टॉक टू  जोर्ज , टॉक टू माधवन अब मिलने का इन्तजार करते है ,क्या हम लोग चपरासीयो और बाबुओ के यहा हज़िरी लगाने को नेता बने है ।कांग्रेस मे चंद को छोड कोई ये दावा नही कर सकता की वो नेत्रत्व से जरूरत पर मिल सकता है या उसकी कोई जायज बात मानी जायेगी ।
एक काल्पनिक स्वरूप का शिकार है कांग्रेस की बिना परिवार के जिन्दा नही रहेगी और न जितेगी तो नरसिंहा राव के समय कैसे चली ? जगजीवन राम ,बरुवा से लेकर शंकर दयाल शर्मा तक कैसे चली और जमीन पर शुन्य न शक्ल न आवाज उस सीताराम केसरी के समय भी शायद 116 सीट जीत गई थी दूसरी तरफ पूरा परिवार मिल कर भी अमेठी की अपनी ही सीट नही बचा पाया तो रायबरेली और अमेठी की अपनी नीचे की विधान सभा सीट नही जीता पाता ।सारे प्रचार के बावजूद सब जगह हार केवल वहाँ जीत जहा स्थानीय नेता मजबूत है और प्रदेश मे जुडा है ।नेत्रत्व अपने खास लोगो को भी पार्टी मे रोक नही पाता है और अगर उसकी चलती तो पंजाब मे अमरेंद्र सिंह शायद बाहर होते और हरियाणा मे हुडा भी फिर इन प्रदेशो मे भी क्या होता ।
मान लीजिए किन्ही नेताओ ने सवाल खड़ा किया तो क्या उन 23 और और भी लोगो को 6 महीने पहले से इन प्रदेशो की जिम्मेदारी नही देनी चाहिए थी उल्टे चमचो से उन्हे पार्टी द्रोही सिद्ध करवाया गया ।
क्यो परिवार ही नेतृत्व करे ? जाती धर्म और क्षेत्र इस देश की सच्चाई है और उन आकांक्षाओ पर खरा उतरने वाले लोग भी है क्यो उन लोगो को सबसे बड़ी जिम्मेदारी नही दी जा सकती ? क्यो और भी लोग प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार नही हो सकते और प्रतियोगिता के लिये भी नयी ऊर्जा , नयी समझ तथा नयी रणनीति के लिये क्यो बाहर के लोगो को नही लिया जा सकता ? क्यो सीट और जिलो के तथा प्रदेश के हिसाब से राजनीति और राजनीति के बाहर के लोगो को नही जोडा जा सकता है ,क्यो एक एक सीट एक एक जिला और एक एक ओर प्रदेश पर लगातार मंथन कर लोगो को जोड़ते कुन्बा बढ़ाते,रूठो को मना कर लाकर विस्तार नही किया जा सकता ? क्या पहले नही हुआ है पर पहले तो खुद को ही इकट्ठा रख सके ।कांग्रस अब भी जीत सकती है पर इतिहास मे जीने और इस सम्भावना से बैठने से नही जीतेगी कि कभी तो सबसे निराश होकर जनता आयेगी ।ऐसा नही होता वो जगह दूसरा सक्रिय और समझदार तथा व्यव्हारकुशल व्यक्ति भर देता है जैसा कई जगह हुआ ।
आज भी कांग्रेस पूरे देश की पार्टी है और खडी हो सकती है पर व्यवहारिक होना होगा ,जीत के जज्बे से आक्रमक राजनीति करनी होगी ,धर्मस्थलो के इवेंट के बजाय कांग्रेस की मूल प्रगतिशील सोच को उभारना होगा ,कल कारखानो और रोजगारपरक पीछे के कर्मो को आधार बना कर भविश्य के भारत की तस्वीर तय करनी होगी और भी बहुत कुछ ।अगर कांग्रेस को जिन्दा रहना है बल्कि तो पूरी तरह बदलना होगा ।

शुक्रवार, 2 मई 2025

2021

इस चुनाव के संदेश 

इस चुनाव ने क़ई संदेश दिए है । यूँ तो लोकतंत्र मे सभी चुनाव महत्वपूर्ण होते है पर ये चुनाव भारत की राजनीति की दिशा तय कर गया और सबक़ भी दे गया । २०१४ से एक बयार चली थी और आंधी बन गयी थी और ऐसा लगता था की ऐसा अश्वमेघ का घोड़ा मिल गया है आर एस एस और भाजपा को जो कही जीतते हुए भारत के बाहर न निकल जाए पर २०१८ आते ही घोड़ा थकने लगा जब मध्य प्रदेश ,राजस्थान ,छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे बड़े प्रदेशों ने लगाम पकड़ कर वापस लौटा दिया । ये अलग बात है कि मध्य प्रदेश और कर्नाटक मे दूसरी सेना मे तोड़फोड़ कर हार जीत मे तब्दील कर दी गयी , उससे पहले भी अश्वमेध यज्ञ करने वालों ने यही ट्रिक अपना कर कुछ हारे हुए प्रदेश अपने खाते मे दर्ज कर लिए थे ।२०१९ झारखंड , महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश ने भी इस घोड़े को बाहर ही रोक दिया फिर बिहार मे दूसरे के कंधे पर बैठ कर पार किया तो दिल्ली ने केंद्रीय सत्ता के घर होते हुए भी कोई लिहाज़ नहीं किया । ये अलग बात है की २०१९ के लोकसभा चुनाव मे पुलवामा नामक औषधी ने इस घोड़े को सरपट दौड़ाया था । 
ये चुनाव यूँ तो ५ प्रदेश मे थे पर पूरी चर्चा बंगाल पर ही सिमट गयी क्योंकि पिछले ५ साल से आर एस एस अपना जाना पहचाना हथियार लेकर जुट गयी थी जिसका हस्र क्या होगा ये तभी तय हो गया था जब बंगाल के मुसलमान गीता रामायण के संदर्भ संस्कृत में मेडिया को सुना रहे थे तो मुस्लिम बेटियाँ हनुमान चालीसा । भाजपा ने भी युद्द के सारे हथियार बंगाल मे उतार दिए जो कमर के नीचे, कमर के ऊपर ही नहीं पीठ पर भी सटीक वार के लिए पूर्व मे आज़माये जा चुके थे । पूरी केंद्र सरकार प्रधान मंत्री गृह मंत्री समेत , सारे प्रदेशों की सरकारें और लाखों कार्यकर्ता झोंक दिए गए और ज़्यादा से ज़्यादा दो या तीन चरणो मे हो सकने वाला चुनाव विशेष कारणो से ८ चरण का किया गया तो ममता बनर्जी के काफ़ी लोगों को तोड़ा गया और ई 
डी सी बी आइ सब लगा दी गयी और चुनाव को इतना आक्रामक बना दिया गया की खुद मोदी जी ने आपदा को एक तरफ़ रख खुद को ही दाव पर लगा दिया ।मीडिया का भी रोल आक्रामक ही रहा ।
पर चुनाव परिणाम ने इन सारे हथियारों को भोथरा साबित कर दिया और एक महिला ने अपनी हिम्मत , मेहनत और सूझबूझ से इन सभी को परास्त कर नया इतिहास दर्ज किया और जीत के बाद भी अपने संतुलित व्यवहार से तथा समय के सरोकार के प्रती प्रतिबद्धता दिखा कर देश का दिल जीता । युवक कांग्रेस की नेता से इतनी बड़ी ताक़तों को हरा कर तीसरी बार नयी लकीर खींच कर सत्ता हासिल करना उनके जुनून और समर्पण का नतीजा जबकि पीछे ना कोई ख़ानदान की विरासत है और ना धन्ना सेठों का हाथ ,ना नेताओ की फ़ौज ना मीडिया का साथ और न संघ जैसा संगठन ।सबक दिया बंगाल ने आर एस एस और भाजपा को तो कांग्रेस और कम्युनिस्टों को भी और खुद भी कुछ सबक़ लिया होगा ममता ने ।
केरल मे भी परिणाम आसमान पर लिखा दिख रहा था वहाँ की पूर्ण शिक्षा के कारण , वर्तमान सत्ता जनोन्मुख उपलब्धियों और मुख्य मंत्री की छवि के कारण तथा चुनाव के समय ही कांग्रेस से कुछ लोगों के पलायन के कारण । भाजपा ने यहाँ भी अपने सारे हथियार प्रयोग किए पर वो जनता पसंद नहीं आए और भाजपा ने एकमात्र सीट भी गँवाया और वोट भी । वहाँ से भी संघ भाजपा ने ही नहीं शायद राहुल गांधी ने भी कुछ सबक़ लिया होगा । 
तमिलनाडु पर निगाह रखने वाले वहाँ के परिणाम को जानते थे । वहाँ भी बालू से तेल नहीं निकला । 
असम असम गन परिषद से आए हुए सोनेवाल और कांग्रेस आए शर्मा की जोड़ी बचाने में सफल रही तो छोटे से केंद्र शासित पंडिचेरी  मे तोड़फोड़ ने आक्सीजन दे दिया ।
सबक़ और राजनीतिक मायने अगल लेख मे ।

डा सी पी राय