सिनेमा की टिकट , होटल का खाना , कपड़ा , पैरोल , कार ,स्कूटर , यात्राएं इत्यादि किसी भी चीज की महंगाई हमे न प्रभावित करती है और न मितव्ययी ही बनाती है
बस किसान की पैदावार के थोड़े और पैसे देने में हमे भी आफत लगती है और सरकारों की भी
किसान का खेत , उसका बीज , उसका श्रम , उसका रिस्क और मुनाफा बिचौलिए तथा व्यापारी की जेब मे जाकर उन्हें करोड़पति बनाता है
किसान आधा कपड़ा पहन कर , आधा पेट खाकर भी देश का पेट पालने में लगा है
नौकरी करने वालो की तनख्वाह कई गुना बढ़ गयी और उन्हें तरह तरह की सुरक्षा , सुविधा के साथ तमाम भत्ते मिलते है
व्यापारी को भी कर्ज , कर्जमाफी , और तमाम सुविधाएं मिली है
फिर किसान ने क्या अपराध किया है
उसे स्वाथ्य बीमा और सुविधा क्यो न मिले , उसे बच्चों की शिक्षा का अलाउंस क्यो न मिले , गर्भवती महिला को वो सब कुछ क्यो न मिले जो शहरों में मिलता है , उसकी फसल को भी उद्योग की सुरक्षा और दर्जा क्यो न मिले , उसे भी अच्छे निवास में रहने की सुविधा और सस्ते कपड़े की सुविधा क्यो न हो ।
बस उसकी उपज की कीमत केवल उसकी लागत और श्रम से नही बल्कि ये सब जोड़ कर तय कर दीजिये ,
गांवों में भी अच्छे स्कूल , चिकित्सा का इंतजाम कर दीजिये , व्यवस्था का आतंक और शोषण खत्म कर दीजिये , बिचौलियों को किसान से दूर कर दीजिये , सभी स्तर के विकास का विकेंद्रीकरण कर दीजिये न्यायपूर्ण
फिर देखिए
गांवों से पलायन रुक जाएगा बल्कि बाहर गए लोग गांव की तरफ लौटने लगेंगे , शहरों के स्लम खत्म होंगे बोझ खत्म होगा और तब कह सकेगे की समाज , देश और मानव शक्ति का समग्र और सामूहिक विकास हो रहा है
वरना आर्थिक ऑंखडे और जी डी पी , प्रति व्यक्ति आय सब झूठा छलावा है ।
मैंने कई बार चुनौती दिया कि ऊपर के 10000 लोगों को अलग कर ये सब देखिये की फिर आंकड़े क्या कहते है
ऊपर के 1 लाख को अलग कर यदि बाकी एक करोड़ 29 लाख लोगों को इन पैमानों पर कसा जाएगा तो देश के सारे आंकड़े औंधे मुंह पड़े होंगे
और सब सर्फ छलावा ही साबित होगा
हिन्दुतान और इंडिया के अंतर को मिटाना ही होगा और योजनाबद्ध तरीके से अब जल्दी मिटाना होगा
बस सरकारों की दृष्टि और संकल्प की ईमानदारी चाहिए
वरना ईश्वर ही मालिक है ।
पर अच्छे की उम्मीद के साथ
जय हिंद ।
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
मंगलवार, 6 नवंबर 2018
किसान का दर्द दूर किये बिना देश का दूर नही होगा ।
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