इधर देख रहा हूँ कि शहरों में पढ़े लिए लोग जिसमे नौजवान ज्यादा है उनका रुझान सामाजिक सरोकारों की तरफ बढ़ रहा है
पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी महसूस करने के साथ समाज के पीछे रह गए लोगो या किसी भी तरह की अपंगता या कमी के शिकार लोगों के प्रति भी लोग ज्यादा ही संवेदनशील हो रहे है ।
पिछले दिनों नेत्रहीन लोगो द्वारा बनाये गए सामानों को यद्धपि बाजार में मशीन से बनी वही चीजे सस्ती पड़ती पंर इन लोगों द्वारा बनाई चीजो को खरीदने के लिए भीड़ उमड़ी और खरीदने के लिए लोगों को इंतजार करना भी बुरा नही लगा
दीपावली के मौके पर भी बड़े सबके ने कुम्हार के बनाये दियो और मिट्टी के अन्य सामानों को लेने में कुछ ज्यादा ही रुचि दिखलाया है
पहले तीन दिन पहले से पटाखे कान फोड़ने लगते थे और चारो तरफ धुवाँ ही धुआं होता था
पर इस बार वो दृश्य कम से कम मुझे दिल्ली और नोएडा में तो अभी तक नही दिखा ।
काश समाज और उपेक्षित तथा पीछे छूट गए लोगो के प्रति जिम्मेदारी का ये एहसास एक आंदोलन बन जाये ।
और
विश्वास है कि नई पीढ़ी बना देगी ।
जय हिंद ।
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
मंगलवार, 6 नवंबर 2018
समाज परिवर्तन -2
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