गुरुवार, 22 जनवरी 2015

मुझे दो बाते लगती है ----
1---दूसरे की हार पर खुश होने के बजाय अपनी जीत हासिल कर खुश हुआ जाये ।
2--- दूसरे से गलती होने का इंतजार करने और उससे अपने लिए उम्मीद पालने के स्थान पर खुद अपने अच्छे कर्मो से ,अच्छे व्यवहार से ,जनता के हर वर्ग को जोड़ कर ,संगठन को मजबूर कर ,कार्यकर्ताओ को हर स्थान पर अधिकार, अवसर और अपनापन देकर तथा सबका दिल जीत कर उम्मीद नहीं बल्कि लोगो के दिलो पर स्थायी राज किया जाये ।
बस यूँ ही विचार आ गया कुछ वर्तमान संदर्भो पर ।

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