शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

क्या लिखूं ,लगता है कि सब गड मड हो गया है जीवन में । पता ही नहीं है कि जीवन कहा तक और कब तक और उसकी दिशा क्या होगी । कितना बुरा होता है, ऐसा जीवन हो जाना न । और जब ये किसी बाहरी घटना के कारण नहीं ,किसी बाहरी व्यक्ति के कारण नहीं बल्कि बहुत अपनों के कारण या अपने ही कारण हो तो क्या करेगा कोई । शायद इससे बड़ी कोई भी लड़ाई नहीं हो सकती है जिंदगी से । पर इस लड़ाई में भी ---ऐसी लड़ाइयों को लड़ते लड़ते आदी हो गया हूँ मैं । फिर भी अपने आप से लड़ना मुश्किल तो होता है न । बाहरी ताकतो से तो लड़ाई को कभी कुछ भी नहीं समझा मैंने और धीरे धीरे ही सही लड़ाइयां जीतता रहा मैं ,,पर लगता है कि अब हार रहा हूँ ,,,जो मेरा स्वाभाव नहीं है ,,,इसीलिए समझा नहीं पा रहा हूँ कि कैसे लड़ूं अपने आप से ऐसी लड़ाई । कोई भी तो नहीं है साथ ,,,कितना अकेला हो गया हूँ ,,,सचमुच अचानक अकेला हो जाना या धीरे धीरे ही सही बहुत दुखद अहसास होता है । क्या क्या कहूं ,, क्या क्या सहा ,,,क्या क्या देखा ,,,क्या क्या खोया ,,,और क्या क्या नहीं पाया ,,, क्या क्या दर्द है खून के कतरे कतरे में ,,,हर बूँद में आंसू की ,,, हर आह में ,,,हर सांस में ,,,हर सोच में ,हर पल ,,,हमेशा हमेशा ,,,हर कदम दर कदम । अब मूँद लूं आँखे तभी शायद ये लड़ाई ख़त्म होगी ,पता नहीं जीत होगी या हार होगी ।

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