रविवार, 5 मई 2013

मामा मामा आरे आवा पारे आवा ,रेल भवन के द्वारे आवा ,, चांदी की कटोरिया में दूध भात लेले आवा ,, भांजे के मुह में घुट । कुछ ऐसा ही गाकर माँ गाँव में खिलाती पिलाती थी । कुछ गलत हो तो सही कर दे । पर अजीब समय बदला है ;;; मेरी कोई बहन ही नहीं तो भांजा कहा से आया ? अच्छा बहन तो है पर उनके कोई बेटा ही नहीं । हाँ याद आया भांजा तो है पर उससे कोई सम्बन्ध ही नहीं है । अच्छा सम्बन्ध है ? तो मुझे नहीं सजा उसे दो । आरे आवा पारे आवा ,रेल भवन के द्वारे आवा आ आ आ आ आ ,घुट घुट घुट ,,, न न न न ।

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