बुधवार, 22 मई 2013

कल का मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का बयान मन को उद्वेलित कर गया और किसी का ये कहना की अभिमन्यु चक्रव्यूह में अकेला फंस गया है ऐसा लगा की फ़ांस अटक गयी गले में ।भारी बहुमत लाखो लोगो का साथ और हर तरह का ज्ञान रखने वाले तमाम लोग । यदि ज्योति बासु ने भी नौकरशाही के भरोसे सरकार चलाया होता तो तो वो भी पांच साल बाद फिर चले जाते । लम्बे समय सरकार चलाने  वाले वे लोग रहे है जिन्होंने अपने लोगो को घोड़ो की निगहबानी पर लगा दिया ,उन पर विश्वास करके और उनकी योग्यताओ को देख कर । अकेला क्यों समझे जब हम जैसे तमाम लोग साथ है इस चक्रव्यूह में ,और अखिलेश जी को अभिमन्यु कहना ठीक  नहीं है । अखिलेश जी को ज्ञान सब है ,आखिरी चक्र को तोड़ने का भी, पर शराफत आड़े आ रही है ठीक वैसे ही जैसे अपने से बड़ो को देख कर अर्जुन ठिठक गये थे । ज्यो ही कोई कृष्ण सारथी बन कर गीता का ज्ञान देगा और बताएगा कि  तुम केवल कर्तव्य करो ,उस कर्त्तव्य पालन में कौन कौन काम आ गया, ये देखना तुमहरा काम नहीं है । समय तुम्हे तुम्हारे कर्तव्य की कसौटी पर कसेगा । इतिहास में भावनावो और शराफत का नहीं बल्कि जीत और हार का आकलन होता है । इसलिए हे आज के अर्जुन आगे बढ़ो और किसी की चीख मत सुनो, मत देखो की तुम्हारे रथ के नीचे कौन कुचल गया ,मत देखो कौन तुम्हारे बाणों से घायल है और उसकी जान बच भी सकती है ,क्योकि तुम्हारा काम केवल चलना है ,अपने कर्तव्य पथ पर चलना और धेय केवल जीत है और जीतोगे तब जब कर्तव्य की कसौटी पर पूरी तरह खरे उतरोगे । इतिहास जीतने वालो का लिखा जाता है और उन्हें हीरो बनाता है हारने वालो का केवल प्रसंग वश जिक्र होता है जिससे जीतने वाले की जीत का पैमाना तय हो सके इसलिए उठो और जीतने के लिए आगे बढ़ो । जीत भाड़े के टट्टूवो से नहीं बल्कि साथ रहने वाले वफादार पर ज्ञान रखने वाले रणनीतिकारो के दम पर मिलती है घोड़े केवल इस्तेमाल करने के लिए होते है उनके विवेक पर युद्ध तय नहीं होता है । इसलिए हर स्थान पर ये तक करना जरूरी है की अपनों में कौन किस स्थान पर युद्ध लड़ सकता हैं कौन किस कला का ज्ञाता है । अर्जुन यदि तुमने अपने लोगो को उनके ज्ञान के अनुरूप उचित स्थोनो पर इस्तेमाल कर लिया तो जीत तुम्हारी है और घोड़ो की लगाम उन हाथो में थमा दो जो उन्हें मजबूती से पकड़ सकते हो और एडा लगाकर कर घोड़ो को अपने हिसाब अपनी मनचाही दिशा में चला सकें न की उनकी पीठ से ही गिर जाये या घोड़े कही और भगा ले जाये युद्ध भूमि से दूर  ।  भविष्य तुमहरा है अर्जुन ,अगले बीस साल तक कम से कम लगातार राज्य चलाने का व्रत ठान लो फिर देखो करिश्मा की क्या परिवर्तन होता है तुममे भी और लोगो में भी । बस कम से कम बीस साल अब नहीं हटना है ,एक व्रत ,एक संकल्प । सफलता तुम्हारे कदमो में होगी ।
इति वर्तमान गीता कथा सम्पन्न्तः ।

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