गुरुवार, 23 मई 2013

अच्छा शासन न तो तानाशाह ,सनकी और लट्ठमार लोगो से चलता है और न मासूम और शरीफ लोगो से । पहले के चाणक्य को और मैक्यावली को वर्तमान संदर्भो में पढ़ना फिर उसमे महात्मा गाँधी ,लोहिया के साथ थोडा इतिहास ,थोडा अर्थशास्त्र ,और थोडा दंड शास्त्र के गारे से गूथना और अपनी इस नयी ज्ञान परिकल्पना पर बहुत लोगो और स्थानों के अनुभव का रंग रोगन हो जाये तो  फिर क्या बात है । खुद सालो तक तैराकी सीखने से अच्छा है लोगो के ज्ञान और अनुभव रुपी नव का इस्तेमाल करना । सालो तक समय सीखने में बिताने के बजाय हर समय नदी पर राज्य करने को तैयार रहना शायद ज्यादा व्यावहारिक है ।
लोकतंत्र की बहस का ये परिणाम है की ; a minister can,t be a expert ,but there are many experts to give him advise ,he takes advise but he takes decisions him self as par public demands and requirements because he is there because of public and for the public :       ये जरूरी नहीं की व्यवस्था में स्थाई रूप से बैठे लोग आप के शुभचिंतक हो और सच्चे सलाहकार भी हो ।

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