रविवार, 19 सितंबर 2010

मुशर्रफ के बयान के बाद भी क्या कुछ होगा

                                                                                                                                                                              पाकिस्तान के पूर्व सेनापति और राष्ट्रपति मुशर्रफ ने अमरीका में यह बयान देकर की अतंकवादियो को पाकिस्तान लगातार प्रशिक्षण दे रहा है ,भारत के आरोपों को तों स्वीकार ही है ,चोरी और सीनाजोरी वाला काम भी किया है |एक तरह देखे तों इस तरह उसने  भारत की सत्ता को, साहस को,और सहन शक्ति को चुनौती दी है | अब तों  भारत को कुछ कड़े कदम उठाने ही होंगे | इसमे तों कोई शक ही नही था  कि ये सारी वारदातें कहा से होती है ,कहा से षड़यंत्र होता है और कहा से हथियार और चंद सिक्को के बदले मरने और मारने के लिए ये लडके भेजे जाते है | अमरीका एक तरफ आतंकवाद से लड़ने कि बात करता है इसी नाम पर कभी इराक तों कभी अफगानिस्तान में फ़ौज उतार देता है  और दूसरी तरफ आतंकवाद कि खेती को उगाने  और उसके लिए खाद पानी का इंतजाम करने के लिए आतंकवाद के जनक और सबसे बड़े सप्लायर देश पाकिस्तान को अरबो डालर हर साल देता है |क्या अमरीका को मुशर्रफ के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में कार्यवाही नही करनी चाहिये ,क्या मुशर्रफ़ के इस बयान के बाद अमरीका को पाकिस्तान को दी जाने वाली खरबो डालर  वाली सहायता सिर्फ बंद ही नही कर देनी चाहिए  बल्कि दिया हुआ धन वापस नही मांग लेना चाहिए ,क्या इंग्लॅण्ड को मुशर्रफ़ का उनके देश में निवास रद्द नही कर देना चाहिए |यह सवाल कम से कम आतंकवाद का सबसे बड़ा दंश झेल रहे भारतियो के दिमाग में तों कौंध ही रहा है पर अमरीका शायद दोअहरी नीति ही अपनाये रखे |
अमरीका कि यह दोगली नीति उसे भी खोखला कर रही है ,वह भी एक बड़ा आतंकवादी हमला झेल चुका है ,जिसमे उसकी सारी व्यवस्थाएं धरी कि धरी रह गयी |आतंकवादियों ने उन्ही का जहाज इस्तेमाल किया और उनका गरूर भी तोडा तथा उनकी सत्ता को चुनौती भी दिया |इनकी खुद कि रपट बताती है कि उस वक्त किस तरह सारे हुक्मरान जमीन के नीचे बनी खंदको में छुप गए थे |पाकिस्तान हर बार हर युद्ध में मुह कि खा चुका है ,यह अमरीका अच्छी तरह जानता है |लेकिन भारत बड़ी शक्ति ना बन जाये ,उसके सामने खड़ा ना हो जाये और अमरीकी व्यापारियों का हथियार बिकता रहे ,इसके लिए वह जरूरी समझाता है कि भारत को उलझाये रखो |पड़ोसियों को लड़ाते  रहो ,.ठीक वैसे जैसे आजादी के पहले हिन्दू मुसलमानों को लड़ाया करते थे |पाकिस्तान कि हालात इतनी ख़राब है कि वह अमरीका कि भीख पर जीने को मजबूर है ,वरना वहा भूखो मरने कि नौबत आ जाएगी |कभी कुछ नही करने के कारण ,कभी कट्टर कठ मुल्लाओ के दबाव में होने के कारण और ज्यादातर फ़ौज का शासन होने के कारण वहा विकास कि बात ही नही ,और जनता भी अपना दबाव नही बना पाई | पाकिस्तान से मिली खैरात का इस्तेमाल केवल भारत के खिलाफ करता है ,यहाँ कि तरक्की के खिलाफ करता है ,विकास के खिलाफ करता है | क्योकि उसका तों विकास से कुछ लेना देना नही है | वहा तों फ़ौज के बूटो के नीचे लोकतंत्र कुचला जा चुका है और फ़ौज को ताकतवर रहना है तों भारत का हौवा दिखा कर छद्म युद्ध छेड़े ही रखना होगा | वहा के राजनीतिको को भी कुछ काम करने के बजाय यही विकल्प ठीक लगता है कि इस कायराना युद्ध से फायदे ही फायदे है | बिना कुछ किये फ़ौज के साये में सत्ता का लुत्फ़ भी उठाते है और इसके खर्चो का कोई हिसाब किताब नही होता है | जिसके कारण वहा के सारे नेता भारी दौलत और संपत्ति विदेश में बना कर रखते है कि पता नही कब फ़ौज भागा दे और देश छोड़ कर कही शरण लेनी पड़े | कई साल पहले पाकिस्तान के एक बड़े अधिकारी से मिलने का मौका मिला | वे आजादी के बाद अलीगढ से पढ़ कर वहा गए थे | देश के एक विभाग के सबसे बड़े पद पर थे | उन्होंने कहा कि मै यहाँ होता तों क्या होता ? वहा हम सभी भाइयो कि अलग अलग कई एकड़ में कोठियां है ,कई एकड़ का चिलगोजे का फार्म है और बाहर भी बहुत कुछ है ,क्या उतना यहाँ होता ?वे रिटायर होने के बाद सब बेंच कर उसी पच्छिमी देश चले गए जहा सम्पति होने का उन्होंने जिक्र किया था | उस वक्त जिया राष्ट्रपति थे तथा जुनेजो प्रधान मंत्री थे | कट्टर इस्लाम कानून लागू था | उनके बच्चे कि शादी हुई जिसमे मै नही जा पाया था | लेकिन एक हमारे साथी गए थे ,जिनके कारण मेरा परिचय हुआ था | उस साथी ने लौट कर जो फोटो दिखाए तथा जो वर्णन किया वह पाकिस्तान का असली चेहरा जानने के लिए काफी था  | जहा भारत के खिलाफ केवल कायराना युद्ध लड़ कर इतना सब हासिल हो और जनता कोई सवाल नही करती हो ,आतंकवाद वहा का सबसे बड़ा रोजगार बन गया है तों क्या बड़ी बात है |
   जब दुनिया यह सब जानती है ,अमरीका सहित दुनिया के सभी देश यह सब जानते है और भारत कि सरकार यह सब जानती है तों फिर यह सहा क्यों जा रहा है ?अमरीका, इंग्लॅण्ड,सहित वे सभी देश जो सामूहिक रूप से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने कि बात करते है यहाँ उन्होंने चुप्पी क्यों ओढ़ राखी है |सिर्फ इसलिए कि उनके लिए आतकवाद नही ,मानवता नही बल्कि उनके हित और उनका व्यापार ज्यादा महत्वपूर्ण है |लेकिन भारत क्यों सह रहा है ?क्या भारत कमजोर हो गया है ?क्या भारत किसी दबाव में है ?क्या भारत में इच्छाशक्ति कि कमी हो गयी है या भारत के वर्तमान नेता कमजोर साबित हो रहे है |क्या यहाँ अब कोई इंदिरा गाँधी जैसा नही है ,लाल बहादुर शास्त्री जैसा नही है |या मन का विश्वास और खून कि गरमी कही कमजोर पड़ गयी है |19७१ में एक सबक दिया तों अगले २० साल से अधिक तक या कारगिल तक देश काफी चैन से रहा |सवाल है कि  युद्ध में हथियार खर्च होता है ,वह हो रहा है ,पैसा खर्च होता है ,वह और ज्यादा हो रहा है ,लोग प्राण गवांते है ,वह भी युद्ध के मुकाबले ज्यादा लोग मर रहे है | युद्ध में तों सिपाही लड़ कर कुछ लोगो को मार कर मरता है और जनता पूरी तरह सुरक्षित रहती है | पर इस युद्ध में तों सिपाही बिना लड़े ही मर रहा है और जनता भी मारी जा रही है ,बेगुनाह जनता  | जब सब कुछ युद्ध से ज्यादा हो रहा है और इन परिस्थितियों से विकास भी प्रभावित होता है और जीवन भी प्रभासित हो रहा है  तों फिर एक बार अंतिम लड़ाई क्यों नही |समझाने  कि कोशिश बहुत हो चुकी ,वार्ताएं बहुत हो चुकी ,बस और ट्रेन चल चुकी ,भारत पाक एकता कि बाते हो चुकी ,विभिन्न वर्गों का आदान प्रदान हो चुका लेकिन कुत्ते कि पूंछ इतने वर्षो बाद भी टेढ़ी कि टेढ़ी है तों अब रास्ता क्या है ,सरकार को बताना तों पड़ेगा कि सब्र का पैमाना कब भरा हुआ माना  जायेगा और सरकार कब फैसलाकुन फैसला लेगी | सौ करोड़ से बड़ा यह देश जवाब का इंतजार कर रहा है |
चार छोकरों कि हरकतें ,उनके धमाके और गोली भारत का रास्ता नही रोक सकती ,सरकार हार जाये पर भारत कि जनता बहुत बहादुर है |अमरीका कि तरह यहाँ कायरता पूर्ण हरकते भी नही होंगी | पूरी कोशिश थी रास्त्रमंडल खेल ख़राब करने की और देश की फिजा ख़राब करने की पर खेल भी हुआ  और  अयोध्या पर अदालत का फैसला भी हुआ और इस देश ने दिखा दिया की यह देश और इसका लोकतंत्र परिपक्व हो चुका है .सब अच्छे माहौल में हुआ और हो रहा है और रहेगा भी लेकिन पडोसी की और उसके पूर्व रास्त्रध्यक्ष की  यह चिकोटी अब बहुत बुरी लगने लगी है|जब कुछ लगातार बुरा लगत है  तों थप्पड़ तों बिना सोचे समझे अपने आप भी चल जाता है |क्या भारत कि सरकार का  स्वस्फूर्त थप्पड़ अब चलेगा ?नही तों कब चलेगा ?जनता रोज रोज के बजाय अब एक अंतिम इलाज चाहती है |जनता कह रही है ;रे रोक युधिस्ठिर को ना अब ,लौटा दे अर्जुन वीर हमें |                                                                                                     
                                                                                                   
                                                                                       
                                                                                                                                                                                                                                                               

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