गुरुवार, 2 नवंबर 2017

जातिवाद का दोगला चारित्र

जातिवाद को लेकर दोगले चरित्र होते कैसे खत्म होगा जातिवाद ?
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तमाम लोगो सहित मैं भी जातिवाद के आतंक से पीड़ित हूँ और उसके ख़त्म होने की कामना करता हूँ पर कैसे ख़त्म होगा जातिवाद ?  मैं ५५ के दशक  में गँव में पैदा हुआ और गाँव से जुडा हूँ और वो भी पूर्वांचल के पर मैंने अपने बचपन में भी जातिवाद का इतना उफान और इतनी घृणा नहीं  देखा था जब लोग पढ़े लिखे नहीं थे ,जितना अब पढ़े लिखो में देश रहा हूँ और वो भी जो तब पैदा हुए जब जातिवाद ख़त्म हो जाना  चाहिए था और कम से कम कही जातिवाद का जहर था भी तो स्कूलों कालेजो में सामान ड्रेस ,समान शिक्षा { उस स्कूल और कालेज में } के कारन ख़त्म हो जाना चाहिए था ,,उस वक्त जातियां थी पर एक दूसरे की पूरक थी और पूरा गाँव एक परिवार था ,किसी का कोई कम नही  रुकता था ,सब सब पर आश्रित थे और सब सबका ध्यान रखते थे और सम्मान करते थे
किसी भी जाति के व्यक्ति के साथ अकेले बैठ जाइये और उसकी जाती का इतिहास भूगोल पूछ लीजिये फिर देखिये उसकी गौरव गाथा  और साथ उसकी जाती में कौन कौन आता है देश भर में उनमे कौन उच्च है और कौन नीच ,उसकी कितनी धाराये होती है और किनकी किससे शादी नहीं होती ,कौन किसके यहाँ उसी जाती में भी खाना क्या पानी भी नहीं पीता इत्यादि सब सुनने को मिलेगा
इस पर पूरा लेख बाद में लिखूंगा अभी केवल अपने आसपास के चेहरों का बिना नाम लिखे चरित्र उजागर कर आहा हूँ बड़ा सन्देश देने को काफी लोगो को जिनमे इतनी घृणा भरी है की लगता है कोई बड़ा युद्ध छेड़ने की तैयारी में है जाती के नाम पर समाज में और वो भी आरपार की मार काट वालीं
मेरे साथ सभी वर्गों के लोग जुड़े है और खुद को समाजवादी भी कहते है पर जैसे मैं उन्हें समाजवाद नहीं पढ़ा पाया सचमुच में इतने सालो में वैसे ही उनमे संस्कार भी नहीं डाल पाया समाजवाद का ,कह सकते है की मेरी असफलता है पर वो सभी मेरे साथ तो कभी कभी कुछ घंटे रहते है बाकि सारा समय तो अपने परिवार और अपनी जाती के साथ रहते है सारी शिक्षा उर संस्कार तो वहा का भरा पड़ा है खून के कतरे कतरे में
जो साथी प्रमुख पिछड़े वर्ग के है वो बताते है की की हमारा फला धारा से तो शादी ब्याह का रिश्ता ही नहीं पर कुछ लोग महत्वपूर्ण हो गए तो कुछ लोग करने लगे पर हम तो अभी भी नहीं करते है
जब कभी मैं किसी दलित या मुसलमान के यहाँ किसी अवसर पर जाता हूँ तो ये कन्नी काटने की कोशिश करते है और चले गए तो तबियत कुछ खराब  होती है और वहा खाना पानी कुछ नहीं
जो साथी बघेल जाती के है क्या मजाल की उनकी आप दलित या मुसलमान के घर पानी भी पिला दे ,जो दलित जाती के है उनको बाल्मीकी के घर आप खला पिला नहीं सकते है ;बेचारे देखते रहते है मन मसोस कर और हम खाते पीते रहते है
कौन बड़ा जातिवादी है और जाती के नाम पर भीतर तक घृणा रखता है ?
कुछ ऐसा ही चरित्र है समाज का सम्पुर्ण ,ब्राह्मण सरयूपारी ,कान्यकुब्ज इत्यादि में फंसा है तो क्षत्रिय भी अपने अलग अलग धाराओं में ,बनिया  हो या अन्य सभी का यही हाल है ,पिछड़े और दलित भी इसी चरित्र के साथ जी रहे है तो मुसलमानो से भी सुनता हूँ की फला तो फला है और ऐसा होता है
कौन ख़त्म करेगा जातिवाद ?
और ऐसे चरित्र वाले जब उपदेश देते है और घृणा का हद दर्जे का प्रदर्शन करते है तो आइना दिखाना ही पड़ता है

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