सोमवार, 23 मार्च 2015

राजनीती शास्त्र में एक पुरानी बहस है की लोक कल्याणकारी तथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था उतनी ज्यादा अच्छी मानी जाएगी जितना सरकार और उसके तंत्र का नागरिक के जीवन में हस्तक्षेप कम होगा तथा जितना नागरिक को इनसे दूर रहने की सुविधा मिलेगी |
परन्तु विभाग बढ़ाते जा रहे है ,कानून बढ़ाते जा रहे है और जिंदगी में हस्तक्षेप करने वाले लोग बढ़ते जा रहे है |
क्या सरकारे इस दिशा में ठोस कदम बढ़ा सकती है की ये सब कम से कम हो और जनता को दफ्तरों के चक्कर न काटने पड़े | क्योकि जो इ गवर्न्नेंस के मामले है उसमे भी लोगो को खुद तक आने से मजबूर करने के रास्ते खोज लिए है कर्मचारियों ने |
जब ये माना जाता है की नागरिक सभी कानून और नियम जानता  है तो उसे स्वयम कानून को मानाने वाला मन कर रहने दिया जाये |
रेंडम जांच में अगर गलत पाया जाये तो अधिक आर्थिक दंड भुगते पर हर किसी को हर दफतर हर महीने या साल क्यों जाना पड़े ?

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