सोमवार, 23 मार्च 2015

फांसी मजूर है माफ़ी मंजूर नहीं ।मेरी शहादत आजादी की जंग में नया रंग भरेगी ।और मुस्करा दिए ।
ये खालिस्तान के लिए या हिन्दू मुसलमान के लिए नहीं ,बल्कि हिंदुस्तान के लिए शहीद हुए ।ये फासीवाद के लिए नहीं बल्कि बहुलवादी व्यवस्था को रखते हुए लोकशाही के लिए शहीद हुए ।ये किसी केंद्रीयकृत सत्ता के लिए नहीं बल्कि जन की सत्ता के लिए शहीद हुए ।ये हिंदुस्तानियत और इंसानियत के लिए शहीद हुए ।
23 साल की उम्र में लोग अपनी पढाई और जिदगी की दिशा नहीं तय कर पाते और उस उम्र में इन्होने शाहदत या जिन्दगी में से चुन लिया फासी का फंदा ,उस उम्र इनके दिमाग में तय था समाज का भविष्य और देश के भविष्य का नक्शा हर परिपेक्ष्य में ।
देश का सलाम और हिंदुस्तानियत तथा इंसानियत की प्रतिबद्धता का सलाम ।

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