शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

शायद ज्ञान ,निष्ठां ,मेहनत, लगन,चरित्र ,इमानदारी इत्यादि बस किताबी शब्द रह गए हैं आज जो बस किताबो में पढने ,दूसरो को सीख और प्रवचन देने ,भाषण देने और अपनी कमजोरियां ढकने के काम आते है ।
आज के समय में जो पूरी तरह इन बातो के विपरीत है वही प्रिय है ,वही तरक्की कर रहा है ,वही समाज और देश का आदर्श है और वही सभी क्षेत्रो में ऊँचाइयाँ हासिल कर रहा है ।
बिलकुल वैसे की गलत काम मत करो और घूस मत दो पर ट्रेन छूट न जाये इसके लिए कुछ दे देना ,काम हो जाये चाहे कुछ देना पड़े इत्यादि सार्वभौमिक सच्चाई बन गये हैं ।
किसी फ़िल्मी हीरो और अम्बानी जैसो के लिए बिछे जाते है पर आदर्शवादी या स्वतंत्रता सेनानी खाने और दवाई बिना मर जाता है तथा उसके बच्चे पढाई और शादी जैसी मूल चीजो के लिए भी वंचित रहते है ।
पूरा जीवन ,जीवन मूल्य और समाज ही दोहरेपन का शिकार हो चूका है ।
जो अगुवा है वो क्या न पा जाऊं की चूहा दौड़ में बस आसमान की तरह देख रहे हैं की कैसे ये चाँद सितारे भी उनकी मिलकियत हो जाये ।पर सब इसी व्यवस्था से संतुष्ट भी है इसलिए व्यवस्था और व्यवस्था में बैठे लोग इस रास्ते पर भागे जा रहे है ।जिस दिन डर बैठ जायेगा की भूख की आग महलो को जला भी सकती है उस दिन नजर अपने आप जमीन पर ही नहीं बल्कि झोपड़ो के अन्दर भी हर वक्त देखने लगेगी ।
पर सवाल तो यही है की वो सच्ची आजादी और सच्चे कल्याणकारी लोकतंत्र का दिन कब आएगा और कैसे आएगा ।
बस ?????????????????????? ! ! !
( आज का चिंतन )

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