मंगलवार, 19 अगस्त 2014

क्या कलयुग में सचमुच पैसा और पैसा पैदा करवाने वाले दलाल समाज ,देश ,संगठन ,आज़ादी और लोकतंत्र से बहुत बड़े हो गए है ? क्या अब कार्यकर्ताओ का स्थान मैनेजर ,दलाल और कम्पनियाँ ले लेंगी ?
क्या बचपन से विचारधारा और नारों के पीछे जिंदगियां बिगाड़े हुए लोग कही दूर उठा कर फेंक दिए जायेंगे ?
या ऐसे सभी लोगो को मिल कर कोई जयप्रकाश ढूढ़ना होगा और एक नया युद्ध छेड़ना होगा या किसी को चंद्रशेखर बन कर पैरो के छाले का एहसास करते हुए जागरण के लिए पदयात्रा करनी होगी और ऐसो से लोकतंत्र को बचाने की मुहिम छेड़नी होगी ?

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