रविवार, 16 अक्तूबर 2011

                           ~  पूजीवाद नहीं, ग़रीबवाद भी वर्ना रोम जल रहा है |~   डॉ सी पी राय
                                      मैंने अपने प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री को मेल किया जिसमे उन्हें बताने की कोशिश किया की [१] देश की सारी मंहगाई अंतररास्ट्रीय कारणों से नहीं है और [२] १२० करोड़ से ज्यादा जनसँख्या वाला ये देश सेंसेक्स यानि कुछ लाख लोगों का कारोबार और ५० लाख या एक करोड़ लोगों को समृद्ध करने वाली नीतियों से नहीं चल सकता | कुछ तो है की आप के तथाकथित अर्थशास्त्री नहीं समझ पा रहे है या नहीं समझने का नाटक कर रहे है या सचमुच केवल तयशुदा फार्मूले जानते है और केवल किताबी ज्ञान तक सीमित है | तभी तो एक तरफ कुछ ही समय में कुछ लोगो के पास देश के बजट से ज्यादा टर्नओवर हो गया और अरबपतियों और करोड़पतियों की संख्या तो बढ़ गयी पर गरीबों की संख्या भी बढ़ गयी ,मंहगाई से परेशान लोगो की संख्या भी बढ़ गयी और आप के द्वारा अजमाए गए सारे दाव उलटे ही पड़ते जा रहे है | आज तक ये देश नहीं समझ पाया की ब्याज दर बढ़ा देने से मंहगाई कैसे कम होगी ?
                                                 मेरे प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री ने मेरी पूरी बातों को पता नहीं पढ़ा या नहीं या उनके अज्ञानी नौकरों ने कूड़ेदान में दाल दिया पर अभी मेरे मेल भेजे चन्द दिन भी नहीं हुए की अमरीका सहित उन तमाम यूरोपीय देशों में जिसके हम पिछलग्गू बनने में लगे हुए है आग लगने लगी ,वहा की सदैव शांत रहने वाली जनता अपनी सरकार के खिलाफ नहीं बल्कि बहुरास्ट्रीय व्यवस्था के भ्रस्ताचार ,वायदा कारोबार सहित वाल स्ट्रीट मतलब इस सेंसेक्स या यूँ कहे की कुछ बड़ों के लिए लागू होने वाली आर्थिक नीतियों के खिलाफ सड़क पर आ गयी | पता नहीं हमारी सरकार यह  देख और समझ रही है या नहीं | क्या हमारी सरकार यह समझ पायेगी की वहा की थोड़ी जनसंख्या सड़क पर आई है तो ये हाल है | अगर भारत के १० या २० करोड़ केवल सड़क पर आ गए तो क्या होगा ? जिन्हें इन नीतियों से आप अमीर बना रहे है उनका क्या होगा ? 
                                            अभी भी वक्त है जमीनी सच्चाई समझ लेने की और गरीब ,मजदूर ,किसान तथा सभी तरह के बेरोजगार को ध्यान में रख कर नीतियां बनाने की और उन्ही नीतियों में पूँजी के लिए भी आवश्यकतानुसार  जगह ढूढने की | ये तो निश्चित है की कोई देश अपनी बड़ी जनसंख्या को छोडकर कोई नीतियां बना कर सफलता की सीढियां नहीं चढ़ सकता ,कुछ कदम तो चल सकता है ,कुछ देर तक अपनी जनता को रंगीनियाँ दिखाकर भ्रम में रख सकता है ,लेकिन ज्यो ही खुमारी टूटती है ,नशा हिरन हो जाता है और वो देश यथार्थ के धरातल पर गिर पड़ता है | कुछ ऐसे ही और तेज दौड़ने वाले देशों के साथ हो रहा है और हमारे  देश के साथ होने वाला है | कभी होता है सभी के जीवन में की आसमान देखते देखते हम कब खाई के किनारे पहुँच जाते है ,गिरने ही वाले होते है या फिर भी नीचे नहीं देखा तो गिर भी पड़ते है गहरी खाई में | ऐसा देशों के साथ भी होता है | ये सच है की राजनीतिक लोग विशेषज्ञ नहीं होते पर यही तो राजनीती शास्त्र ने तय किया है की वे सचमुच जनता के प्रतिनिधि होंगे ,विशेषज्ञों से राय लेंगे और फिर अपनी बुद्धि और जमीनी हकीकत के ज्ञान से जनहित में निर्णय लेंगे | लगता है की  इस सिद्धांत में कोई छोर छूट गया है | वर्ना जब जनाधार वाले जमीनी नेता शीर्ष पद पर बैठे होते है तो न तो इतनी अफरा तफरी दिखाती है और न इतनी लाचारी | वो हर बात का कोई न कोई मजबूत हल निकाल ही लेते है |
                                                                      दुर्भाग्य से आज बात अंतररास्ट्रीय परिस्थितियों की हर वक्त होती रहती है पर खाने पीने की चीजें जो भारत के किसान ने भरपूर पैदा किया है और वो भारत में भरपूर मात्र में है तो उसपर दुनिया का असर कैसा | क्या ये बात कर हम आँखों पर पर्दा नहीं डाल रहे है ? पेट्रोल पर भी असर इसलिए है क्योकि हम देशभक्त नहीं है और अपराधिक स्तर तक पेट्रोल का दुरूपयोग करते है |कम से कम एवरेज देने वाली गाड़ियों में अकेले घूमते रहते है | यदि ऐसे इस्तेमाल का कोई नीयम बन जाये और वो नियम टूटने पर प्रतिदिन एक निश्चित राशी देनी पड़े सभी को, केवल ऐसी जिम्मेदारियों पर बैठे लोगो को छोड़ कर तो शायद पेट्रोल का उपयोग कम हो जायेगा और हम उसका रोना भी बंद कर देंगे | इसी तरह सोना अंतररास्ट्रीय मामला हो सकता है पर भारत में ही इतना गडा हुआ है की वो निकल आये तो देश कर्जमुक्त हो जाये ,ऐसा केवल कुछ मंदिरों के तहखाने खुलने और जिन लोगो पर आयकर का छापा पड़ जाता है उसी से पता चल जाता है |
                                                     जनता परेशान है रोजमर्रा की वस्तुओं की मंहगाई  से वो तो इस देश में संभव ही नहीं है एक निश्चित सीमा से ज्यादा जो समय के साथ होना चाहिए |देश परेशान है मिलावट से ,नकली दवा,नकली ढूध,और रोजमर्रा की तमाम जरूरी लेकिन नकली चीजों से | जब किसान ने खून पसीना बहा कर सभी चीजें पर्याप्त मात्रा में पैदा किया है और उसे कीमत भी बहुत कम मिली है तो फिर वो महँगी क्यों ? आगरा के खंदोली में पैदा होने वाला आलू किसान के घर से १ रूपया से ३ रूपया तक चलता है और केवल १० किलोमीटर आकर आगरा शहर में ३० रूपया किलो क्यों हो जाता है ? मै आज तक नही समझ पाया | केवल शहर तक लाने या स्टोक रख सकने के लिए व्यापारी कितना मुनाफा कमाएगा ?मेहनत किसान की ,खेत {पूँजी ] किसान की ,बीज किसान का ,खाद किसान का ,पानी किसान का ,यूरिया किसान का ,रखवाली किसान की ,अगर कोई रोग  लग जाये ,पाला पड़ जाये या किसी भी तरह फसल नष्ट  हो जाये तो रिस्क किसान का ,फिर इतने गुना मुनाफा बिचौलियों  का क्यों ? और उसके मुनाफे के लिए भारत की जनता ये मंहगाई क्यों झेले ?यही बात किसान द्वारा पैदा सभी चीजों पर लागू होती है | किसान ने तो सहज भाव से देश को भूखा नहीं रखने का वादा देश से किया था और उसने पूरा कर के दिखा दिया फिर देश में रोज करोडो लोग भूखे  क्यों सोते है या आधे पेट क्यों सोते है ?किसान खेत में खड़ा भरपूर पैदा कर देश को आत्मनिर्भर बना रहा है और उसका बेटा जवान बन कर सीमा पर खड़ा देश की रक्षा का व्रत निभा रहा है तो ये कौन लोग है जिनकी संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है और ये ऐसा क्या काम करते है जो किसान और जवान नहीं करता है ? क्या ये जरूरी नहीं है की किसान और जवान को भी इनका गुर सरकार सिखा दे की वे भी अरबपति और कम से कम करोडपति हो जाये | इसी किसान की वोट से बनी सरकार और इन्ही जवानों के कारण सुरक्षा महसूस करने वाले सरकार में बैठे लोग इन्हें  कैसे भूल सकते है ? इनकी अनदेखी कैसे कर सकते है ? जनता को मंहगाई ,मिलावटखोरी,जमाखोरी और मुनाफाखोरी की आग में कैसे झोंक सकते है ? कैसे इस देश को जहर खाने  और सारी नकली चीजों को स्वीकार करने और मिलावट का खाना ,मिलावट की सब्जी ,मिलावट के मसाले ,नकली दूध और नकली दवा के भरोसे छोड़ सकते है ?क्या ये जरूरी नहीं की वो सामान चाहे किसान के द्वारा पैदा किया गया हो जिसका मूल्य सरकार उससे खरीदने के लिए तय करती है उसी तरह व्यापारी और उद्योगपति के द्वारा पैदा की गयी चीजों सहित सभी चीजों की अधिकतम कीमत तय करे ,यानि डॉ लोहिया द्वारा सुझाई गयी दाम बंधो नीति और मिलावट तथा नकली सामान का बनाना देशद्रोह की श्रेणी में आये | जैसे सिंगापूर में हथियार या ड्रुग रखने पर फांसी की सजा होती है |
                                                                   सरकार या तो आज नीचे झांक कर देख ले और फैसला कर ले या फिर बाद में पछताए और फिर गिर कर सुधरे पर सुधारना पड़ेगा जरूर ,बदलना पड़ेगा जरूर | नीतियां तो बदलनी पड़ेंगी और जनता के लिए बदलनी पड़ेंगी |पता नहीं ये लेख भी मेरे प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री पढेंगे या नहीं या उनके नौकर उन्हें पढ़ाएंगे या नहीं या  हमेशा की तरह सारी नीचे के आवाजें कूड़ेदान में ही दबा देंगे |
      
                                                                                                                       डॉ ० सी ० पी ० राय
                                                                                                स्वतंत्र  राजनैतिक चिन्तक और स्तम्भकार  
                                                                                                  
                                                                                                     
                                                                                



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