सोमवार, 27 मई 2024

#जिंदगी_के_झरोखे_से ग्रेटर आगरा पर मेरा प्रस्ताव

#जिंदगी_के_झरोखे_से
और 
कुछ आज की चर्चा भी ---
आज अखबार मे ग्रेटर आगरा के संदर्भ मे समाचार पढा और ये कवायद आगरा विकास प्राधिकरण ने शुरू किया है ।
दर असल इस पर मैने काफी काम किया था और तत्कालीन कमिश्नर आगरा प्रदीप भटनागर जी के साथ सभी विभागो के प्रमुखो की ये बैठक कर विस्तार से चर्चा किया था ,शंकावो का समाधान किया था और फिर बैठक से प्रस्ताव पास करवा कर शासन को भेजा था । इससे पहले अपने प्रस्ताव पर डा पारीख सहित आगरा के कई प्रबुद्ध जनो से भी चर्चा कर लिया था ।
उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मेरे बहुत अच्छे मित्र और आगरा के पूर्व जिलाधिकारी अलोक रंजन जी थे ।प्रस्ताव उनके पास पहुचने पर मैने उनको भी इसके बारे मे विस्तार से बताया था तथा इसके प्रभाव और परिणाम के बारे मे अपनी सोच से अवगत करवा दिया था ।आलोक रंजन जी मेरे प्रस्ताव से पूर्ण सहमत थे और तय हुआ कि जल्दी ही मुख्यमंत्री से समय तय कर मीटिंग रख लिया जाये जिसमे संबंधित विभागो के अधिकारी , आगरा के अधिकारी तथा   कुछ प्रमुख लोगो को बुला लिया जाये और उसमे मैं वही प्रसेन्टेशन दूँगा और मुख्यमंत्री की सहमती के बाद ये काम रफ्तार पकड लगा ।
इस पूरी योजना से एक नये नॉएडा का निर्माण होता ,आगरा के साथ साथ आसपास के जिले प्रभावित होते ,बड़े पैमाने पर कई सालो के लिये रोजगार पैदा होता और आगरा तथा पास के जिलो की अर्थव्यवस्था पर भी असर पडता ।
पर इतने लम्बे समय मे मुख्यमंत्री समय नही दे पाये और एक ऐतिहासिक फैसला जिससे आगरा के साथ पहली बार न्याय होता होने से रह गया ।
इसी बैठक मे मैने आगरा एयर फोर्स मे मौजूद सिविल एयरपोर्ट को खुले रूप से सचमुच एयरपोर्ट मे तब्दील करने और तरीके का भी सुझाव दिया था ।
आगरा की यमुना नदी के साथ प्रदेश और देश की सभी नदियो की कम से जहा तक वो शहरो को छूती है डीसिल्टींग के कारण,परिणाम सहित रचनात्मक सुझाव दिया था जिससे नदी का स्वरूप वापस आता , पानी की कमी दूर होती , पानी की गुणवत्ता अच्छी होती और शहरो वाटर लेबल बढता ।
आगरा का ताज महोतसव भी मेरे ही दिमाग की उपज थी जब मैं हैंडीक्राफ्ट बोर्ड औफ़ इंडिया का सदस्य मनोनीत हुआ था शरद यादव जी द्वारा । उस वक्त ग्वालियर और सूरजकुंड के मिले जुले स्वरूप का तज महोतसव शुरू करने का सुझाव मैने तत्कालीन जिलाधिकारी अमल कुमार वर्मा जी को दिया ।फिर मेरे साथ डी एम की मौजूदगी मे बैठको का सिलसिला चला ।पी सी एस अधिकारी सक्सेना जी जो बाद मे आई ए एस होकर तमाम पदो पर रहे उस वक्त वो जी एम उद्योग थे को नोडल अधिकारी और विकास प्राधिकरण , सेल्स टैक्स , सूचना , प्रशासन सभी को मिला कर कमेटी बनी और महोत्सव की बुनियाद पड गई । मैं जहा मंडी समिति है वहा स्थायी रूप से इस महोत्सव , बाजार,संस्कृतिक स्थल , और विदेशियो के रुकने के लिये हट जैसा कुछ बनवाना चाहता था और साल भर चलने वाले कार्यक्रमो की रूपरेखा मैने रखा था जिसमे ये विशेष महोत्सव भी था और एक महीने का ग्वालियर की तर्ज पर मेला भी जिसमे सेल्स टैक्स से कुछ छूट पर हर चीज की बिक्री भी थी ।
पर तब तक मेरी सरकार चली गई और वर्मा जी भी ट्रांसफर हो गये और फिर स्वरूप ही बदल गया जो अब लोगो के सामने है ।
इसिलिए एक सोच होती है की जो किसी चीज का सपना देखने वाला और उत्प्रेरक होता है उस चीज के संपन्न होने तक उसकी भुमिका जरूर बनी रहनी चाहिए वर्ना कुछ का कुछ हो जाता है ।जैसा राजनीति मे भी होता है की आन्दोलन का नायक अगर बागडोर मे नही रहा तो उसके सपने दूसरो के द्वारा उस परिणाम तक नही पहुच पाते है ।
कहा लोगो को याद होगा की जब आगरा मे पुराने जमाने का टेलिफोन एक्सचेंज होता था तो जनेश्वर मिश्रा जी के संचार मंत्री बनने पर पहला एलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज मैं लेकर आया था । इसी तरह जब जनेश्वर जी रेल मंत्री बने तो कई ट्रेन जो आगरा और टुडला नही रुकती थी उनका स्टापेज करवाया तथा रिजर्वेशन का कोटा बढवाया था ।
एम एल ए और एम पी ना होते हुये भी 2000 से ज्यादा हैंडपंप मुख्यमंत्री से सीधे आगरा की जल समस्या को दूर करने को पास करवाये थे ।
पर ये सब अपना कर्तव्य सोच कर किया था ।ये तो पता था की जाति के कारण मुझे कभी टिकेट नही मिलेगा और मिल गया तो जनता वोट नही देगी ।

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