शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

काशी को शिव ही बचाएँगे

काशी यानी बनारस की पहचान क्या है ?
मैं नक़ली क्योटो की बात नही कर रहा हूँ बल्कि शिव की नगरी की बात कर रहा हूँ 
मोक्ष की आशा में जीवन के अंतिम समय लोग निवास करते रहे है काशी में 
दुनिया से सबसे ज़्यादा विदेशी आते रहे है काशी यहाँ की पुरानी गलियों के लिए , यहाँ की पुरानी संस्कृति और रहन सहन के लिए ,यहाँ के पंडा पुजारी के तौर तारीको के लिए , यहाँ की आस्था और विश्वास के लिए 
यहाँ के पुरातन घाट और पतली पतली गलियाँ और उसमें बिखरा हुआ आस्था का सामान और साम्राज्य बुलाता रहा है विदेशियों को भी और भारत के लोगों को भी 
गली गली ने फैले मंदिर और शिवलिंग उसके आकर्षण का केंद्र रहे है 
बनारस का स्वाभाविक अल्लहड़पन और मस्ती इसकी पहचान रही है 
बनारस की पुरातन संस्कृति उसकी पहचान रही है 
होली पर गालियाँ बनारस की पहचान रही है 
तो नदी में मंच बना कर या घाट पर होने बाल सांस्कृतिक कार्यक्रम इसकी पहचान रही है 
बिस्मिल्ला खा की शहनाई तो गिरिजा देवी की ठुमरी ,कबीर , बल्लभाचार्य, रविदास ,मुंशी प्रेमचंद , जयशंकर प्रसाद , रामचंद्र शुक्ल , पंडित रविशंकर , हरिप्रसाद चौरसिया , मिश्रा बंधु इत्यादि बनारस की पहचान रहे है 
हर हर महादेव बनारस का अभिवादन भी नारा भी और उदघोष भी ।
काशी नरेश की रामलीला और उनका आज भी हाथी पर निकलना और फिर हर हर महादेव का उद्दघोस , 
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और बसंत कालेज बनारस की पहचान रही है 
पर नज़र लग गयी बनारस को कि जैसे अंग्रेज बनने के चक्कर में लोग अंग्रेज बन नही पाते है और देशी भी रह नही पाते है । जो चाहते हैं वो पूरा मिलता नही और उसके लिए अपना मूल मिटा देते है और फिर अधकचरे बन जाते है वही बनारस का हो रहा है 
धर्म को आर्थिक चंगुल में फ़साने के लिए मूल स्वरूप नष्ट कर दिया ,आस्था की क़ीमत लगा दिया और अब गंगा को रुलाने की तैयारी है । सबके पाप से गंगा पहले ही बहुत दुखी थी अब उसकी छाती पर गाड़ दिए है कुछ अस्थाई घर जिसके रुकने वालो का मल मूत्र आसमान पर तो जाएगा नही गंगा को भी गंदा करेगा ।
गंगा माँ जार जार रो रही है और महादेव हतप्रभ है की उनका अस्तित्व बचा भी या आधुनिक व्यापारियों ने उनका भी सौदा कर दिया है । 
बनारस को , गंगा को अब शिव ही बचाएँगे । 

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