बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के आगे पीछे

24 साल के बाद अन्ततः राहुल गाँधी की जिद की वजह से इंडियन नेशनल कांग्रेस का नेहरू गांधी  परिवार के बाहर का अध्यक्ष बनने जा रहा है ।राहुल गांधी ने पिछला चुनाव हार जाने पर अचानक कांग्रेस अध्यक्ष पद से स्तीफा दे दिया था और साथ ही ये भी घोसित कर दिया था कि अब वो अध्यक्ष नही बनेगे और ना ही परिवार का कोई भी अध्यक्ष बनेगा ।तब से अंतरिम व्यवस्था मे सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष के रूप मे काम देख रही थी ।नये अध्यक्ष के चुनाव की चर्चा शुरु हुयी तो फिर तमाम प्रदेश से कांग्रेस से राहुल के अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव पास कर दिया और उन्हे तैयार करने को बहुत दबाव भी बनाया पर राहुल अपनी बात पर अडिग रहे और अन्ततः सोनिया जी और जितेन्द्र प्रसाद के चुनाव के बाद पहली बार विधवत चुनाव हो रहा है । इस बार भी गहलौत से लेकर दिग्विजय सिंह तक का एपिसोड हुआ तो मुकुल वासनिक से लेकर मीरा कुमार तक का नाम चला पर अन्ततः दक्षिण के ही दो नेता राज्यसभा मे विपक्ष के नेता मलिकार्जुन खड़गे और संयुक्त राष्ट्र संघ मे रहे शशि थरूर के बीच चुनाव हो रहा है ।यद्द्पि प्रकट तौर पर चुनाव को स्वतंत्र बताया जा रही है पर कही न कही नेतृत्व का पलड़ा खड़गे जी की तरफ झुका लग रहा है ।
खड़गे जी कर्नाटक के दलित नेता है और बहुत अनुभवी है तो थरूर विद्वान और युवा वर्ग मे लोकप्रिय है ।फैसला जो होना है वो सबको पता है पर ये राजनीतिक पण्डितो को समझ मे नही आ रहा है की पंजाब की भांति राजस्थान की अच्छी भली चलती सरकार और राजनीति को क्यो छेडा गया जबकि गहलौत पहले ही दिन से दिल्ली आने के इच्छुक नही थे और खड़गे जी राज्यसभा मे नेता प्रतिपक्ष थे ही जिसके कारण उनका कैबिनेट मंत्री का स्तर था तो उनको बिना हटाये देश भर मे दलित नेता के रूप मे दौडाया जा सकता था प्रोटोकोल के साथ और पार्टी उनका इच्छित राजनीतिक उपयोग कर सकती थी ।
जबकि राजनीति पर पैनी निगाह रखने वालो का मानना है की इस माहौल मे मीरा कुमार सबसे अच्छी कांग्रेस अध्यक्ष साबित हो सकती थी क्योकि वो बाबा साहेब के बाद सबसे बड़े दलित नेता बाबू जगजीवन राम की बेटी है ,महिला है , दलित है , पूर्व आई एफ एस अधिकारी है , लोकप्रिय रही पूर्व लोकसभा अध्यक्ष है जिनकी तारीफ तब भाजपा के नेता भी करते थे और राष्ट्रपति के चुनाव मे विपक्ष की प्रत्याशी रही थी ,उनका पिछड़े वर्ग के कुशवाहा बिरादरी मे विवाह हुआ है । कांग्रेस का अध्यक्ष होते ही उनके प्रधानमंत्री होने की सम्भावना का प्रचार होते हो देश भर के दलितो मे सदेश जाता कि पहली बार दलित प्रधानमंत्री हो सकता है ,बिहार गौरव का सवाल आता तो उत्तर प्रदेश मे मायावती के भाजपा के पक्ष मे खडे दिखने के कारण चौराहे पर खड़ा भ्रमित दलित वर्ग अपनी पुरानी पार्टी की तरफ मुड़ जाता और ऐसा ही असर पूरे देश मे दिखता यदि कांग्रेस उनकी ठीक से ब्रांडिंग करती । देश की आधी आबादी भी प्रधानमंत्री के सपने से जुड़ती ।इसके अलावा जब भी कांग्रेस या मीरा कुमार पर हमला होता वो एक स्त्री पर , एक दलित पर और एक शिक्षित पर हमला बता कर जो आरोप पहले से संघ पर है इन लोगो के विरोध का वो और मजबूती से वर्तमान सत्ता को कटघरे मे खड़ा करता । चूक तो हुयी है और तीन चूक एक साथ हुयी है ।
परंतु फिर भी यदि खडगे जी को जीत के बाद कांग्रेस सर पर उठा लेती है तो राहुल गाँधी की दक्षिण मे बहुत सफल यात्रा के परिणाम स्वरूप और अगर खडगे जी भी अति सक्रीय तथा आक्रमक रहे तो उसका फायदा कांग्रेस पहले दक्षिणी राज्यो मे तो उसी तरह उठा सकती है जैसे 1977 मे पूरे उत्तर भारत मे हार के बावजूद केवल दक्षिण भारत से 154 सीट जीत गयी थी ।
देखना ये होगा की उत्तर भारत मे अगले चुनाव मे कांग्रेस के इस दलित कार्ड से क्या फर्क पडता है ।महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड जहा गठबंधन की नाव पर पार करना चाहेगी कांग्रेस ,वही उत्तर प्रदेश जो सबसे ज्यादा सीट वाला प्रदेश है और कांग्रेस का मुख्य आधार रहा है वहा हताशा और आत्म समर्पण वाली स्थिति रहेगी और कोई नई कूटनीतिक तथा आक्रमक नीति बनेगी । गुजरात के विधान सभा चुनाव वहा के बारे मे संकेत देगे तो बंगाल और उड़ीसा पर अभी कांग्रेस का रवैया देखना होगा,  जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान ,दिल्ली , हरियाणा , पंजाब , हिमाचल , उत्तराखंड और कश्मीर इत्यादि मे कांग्रेस स्वाभाविक तौर पर कुछ बढता हासिल कर सकती है पर इसके लिये इन प्रदेशो की कांग्रेस की राजनीति और राहुल गान्धी के इधर की यात्रा पर निगाह रखनी होगी और तब तक इन्तजार करना होगा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें