कांग्रेस का अहमदाबाद सम्मेलन: एक नई दिशा की ओर कदम
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारत की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक राजनीतिक पार्टी, ने 8 और 9 अप्रैल, 2025 को गुजरात के अहमदाबाद में अपने दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया। यह सम्मेलन न केवल पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था, बल्कि यह भारतीय राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का भी प्रतीक बना। साबरमती नदी के किनारे आयोजित इस अधिवेशन ने न सिर्फ कांग्रेस की नीतियों और रणनीतियों को पुनर्जनन करने का प्रयास किया, बल्कि गुजरात जैसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में अपनी उपस्थिति को और मजबूत करने की दिशा में भी कदम उठाए। इस लेख में, हम इस सम्मेलन के उद्देश्यों, चर्चाओं, परिणामों और इसके व्यापक प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।
सम्मेलन का ऐतिहासिक संदर्भ
कांग्रेस का गुजरात के साथ गहरा और ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। यह वही भूमि है, जहां महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम से स्वतंत्रता संग्राम को गति दी थी। सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे दिग्गज नेताओं की कर्मभूमि होने के कारण, गुजरात हमेशा से कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण रहा है। अहमदाबाद में इससे पहले 1902, 1921 और 1938 में भी कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन हो चुके हैं। 2025 का यह सम्मेलन उसी ऐतिहासिक धरोहर को आगे बढ़ाने का प्रयास था।
इस बार अधिवेशन की टैगलाइन थी—‘न्यायपथ: संकल्प, समर्पण, संघर्ष’। यह नारा न केवल पार्टी के मूल्यों को दर्शाता है, बल्कि सामाजिक न्याय, समावेशिता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के प्रति कांग्रेस की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है। यह सम्मेलन ऐसे समय में आयोजित हुआ, जब गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दबदबा रहा है, और कांग्रेस विपक्ष के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
सम्मेलन के उद्देश्य
इस दो दिवसीय अधिवेशन का मुख्य उद्देश्य पार्टी को संगठनात्मक और वैचारिक रूप से सशक्त करना था। इसके प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित थे:
- विदेश नीति पर रणनीति: वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति और क्षेत्रीय चुनौतियों को देखते हुए, कांग्रेस ने विदेश नीति पर व्यापक मंथन किया। विशेष रूप से, पड़ोसी देशों के साथ संबंध, वैश्विक व्यापार, और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर पार्टी की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया।
- शिक्षा और निजी क्षेत्र में आरक्षण: शिक्षा में समानता और निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लागू करने की नीतियों पर चर्चा हुई। यह मुद्दा सामाजिक न्याय के प्रति कांग्रेस की प्रतिबद्धता का हिस्सा है।
- संगठनात्मक पुनर्गठन: गुजरात में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए बूथ स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक संगठन को पुनर्जनन करने की रणनीति बनाई गई। इसमें युवा और महिला नेताओं को अधिक जिम्मेदारी देने पर जोर दिया गया।
- आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर रुख: महंगाई, बेरोजगारी, और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों पर जनता के बीच अपनी आवाज को और प्रभावी बनाने के लिए नीतिगत प्रस्ताव पारित किए गए।
- विचारधारा की मजबूती: कांग्रेस ने अपनी धर्मनिरपेक्ष और समावेशी विचारधारा को पुनर्जनन करने का प्रयास किया, ताकि यह जनता के बीच अधिक प्रभावी ढंग से पहुंच सके।
पहले दिन की कार्यवाही: नीति और संगठन पर मंथन
सम्मेलन का पहला दिन 8 अप्रैल को सरदार वल्लभभाई पटेल मेमोरियल में कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की विस्तारित बैठक के साथ शुरू हुआ। इस बैठक में सीडब्ल्यूसी के स्थायी सदस्यों, विशेष आमंत्रित सदस्यों, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, उपमुख्यमंत्रियों, प्रदेश अध्यक्षों, और पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित लगभग 169 नेताओं ने हिस्सा लिया।
पहले दिन की चर्चा का केंद्र बिंदु था—‘कांग्रेस का भविष्य और गुजरात में पुनर्जनन’। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने उद्घाटन भाषण में पार्टी की ऐतिहासिक भूमिका और वर्तमान चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “गुजरात गांधी और पटेल की भूमि है। यह वह जगह है जहां से हमने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी, और अब यहीं से हम सामाजिक न्याय और समावेशिता की नई लड़ाई शुरू करेंगे।”
इस दिन विदेश नीति पर एक विशेष सत्र आयोजित हुआ, जिसमें भारत-अमेरिका संबंधों, चीन के साथ सीमा विवाद, और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस सत्र में जोर दिया कि भारत की विदेश नीति को समावेशी और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।
शिक्षा और आरक्षण पर भी गहन चर्चा हुई। पार्टी ने निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने के लिए एक ठोस रोडमैप तैयार करने का प्रस्ताव रखा। यह कदम खास तौर पर युवाओं और हाशिए पर मौजूद समुदायों को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा था।
दूसरे दिन की कार्यवाही: जनता तक पहुंचने की रणनीति
9 अप्रैल को दूसरा दिन पूर्ण अधिवेशन के रूप में आयोजित हुआ, जिसमें कांग्रेस के सभी पदाधिकारी, फ्रंटल संगठनों के प्रमुख, और 1727 एआईसीसी सदस्य शामिल हुए। यह सत्र साबरमती रिवरफ्रंट पर आयोजित किया गया, जो न केवल प्रतीकात्मक महत्व रखता था, बल्कि जनता के बीच पार्टी की उपस्थिति को मजबूत करने का भी अवसर प्रदान करता था।
दूसरे दिन की थीम थी—‘जनता के बीच, जनता के लिए’। इस सत्र में राजनीतिक और आर्थिक प्रस्ताव पारित किए गए। एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव में पार्टी ने अनुसूचित जाति, जनजाति, और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए मौजूदा आरक्षण की रक्षा और विस्तार पर जोर दिया। इसके साथ ही, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को जनता तक ले जाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस अवसर पर कहा, “हमारी लड़ाई सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि संविधान और सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए है। यह अधिवेशन हमें नई ऊर्जा देगा।” इस दिन युवा और महिला नेताओं को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। सचिन पायलट और प्रियंका गांधी जैसे नेताओं ने युवाओं को संगठन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।
संगठनात्मक बदलाव और भविष्य की रणनीति
इस सम्मेलन में संगठनात्मक पुनर्गठन पर विशेष ध्यान दिया गया। गुजरात में बीजेपी के मजबूत गढ़ को चुनौती देने के लिए, कांग्रेस ने बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने और डिजिटल माध्यमों का उपयोग बढ़ाने का फैसला लिया। इसके लिए एक विशेष समिति गठित की गई, जिसमें सचिन पायलट, भूपेश बघेल, और रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे।
पार्टी ने यह भी निर्णय लिया कि वह स्थानीय मुद्दों, जैसे किसानों की समस्याएं, छोटे व्यापारियों की कठिनाइयां, और युवाओं में बेरोजगारी, को अपने अभियान का केंद्र बनाएगी। इसके साथ ही, सोशल मीडिया और डिजिटल अभियानों के माध्यम से पार्टी अपनी पहुंच को और व्यापक करने की योजना बना रही है।
सम्मेलन का प्रभाव और आलोचनाएं
इस अधिवेशन ने कांग्रेस को कई मायनों में नई दिशा दी। सबसे पहले, यह गुजरात में पार्टी की उपस्थिति को मजबूत करने का एक मजबूत संदेश देता है। दूसरा, विदेश नीति और आरक्षण जैसे जटिल मुद्दों पर पार्टी की स्पष्ट स्थिति ने इसे वैचारिक रूप से और मजबूत किया। तीसरा, युवा और महिला नेताओं को बढ़ावा देने से पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हुआ। यह अधिवेशन पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने में सफल रहा।
निष्कर्ष
कांग्रेस का अहमदाबाद सम्मेलन न केवल एक राजनीतिक आयोजन था, बल्कि यह पार्टी के लिए आत्ममंथन और पुनर्जनन का अवसर भी था। साबरमती के किनारे आयोजित इस अधिवेशन ने गांधीवादी मूल्यों और सामाजिक न्याय की बात को फिर से जीवंत किया। यह सम्मेलन कांग्रेस को गुजरात में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने और राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरने का अवसर प्रदान करता है। आने वाले समय में, इस अधिवेशन के प्रस्तावों और रणनीतियों का कार्यान्वयन यह तय करेगा कि क्या कांग्रेस वाकई में ‘न्यायपथ’ पर आगे बढ़ पाएगी।
यह अधिवेशन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में देखा जा रहा है, और इसके दीर्घकालिक प्रभाव भविष्य में ही स्पष्ट होंगे। लेकिन एक बात निश्चित है—कांग्रेस ने इस सम्मेलन के माध्यम से अपनी आवाज को और बुलंद करने का संकल्प लिया है
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