बुधवार, 9 दिसंबर 2015

राजनीतिक याददाश्त

राजनीती में कभी भी कुछ भी कह देना और फिर भूल जाना और रोज नयी बाते कहते रहना शायद इस सोच का परिणाम है की जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है |

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