गुरुवार, 9 अगस्त 2012

क्या कभी आगरा करवट लेगा ?

                            न जाने कितने करोडो खर्च होने के बाद भी आगरा में जब बरसात होती है तो तमाम प्रमुख चौराहे औए अच्छी कालोनी से लेकर बस्तियों तक बाढ़ जैसा दृश्य उपस्थित हो जाता है । जीवन नरक हो जाता है । इससे पहले गर्मी तेज होने पर पीने का पानी या तो नहीं मिलना या बहुत गन्दा बीमार करने वाला मिलता है । रोजमर्रा सड़क पर जाम की स्थिति है । जब बच्चो की छुट्टी होती है तो वे भी घंटों फंसे होते है ,दिल्ली की तरह उस समय कही भी ट्रैफिक पुलिस वाला व्यवस्था करता नहीं दीखता है । सडकों पर खड़े ट्रैफिक पुलिस वाले सड़क पर निर्बाध लोग चलते रहे इसके बजाय  थोड़े से रुपये के लिए खुद जाम लगवा देते है ।उनकी रूचि ट्रैफिक को चंलने से ज्यादा किसी गाड़ी को पकड़ने में होती है जाम लगी सड़क पर । दुनिया में अन्य स्थानों पर टूरिस्ट प्लेस पर बाहर से आये लोगो से अच्छा व्यव्हार करना उन्हें मदद करना व्यवस्था का कर्त्तव्य होता है पर आगरा के पुलिस वाले से लेकर तरह तरह के दलाल टूरिस्ट को रुला देते है । बच्चे औरते परेशान  हो या किसी को उसी दिन घूम कर कही और जाना हो पर जब तक वसूली पूरी नहीं हो जाती यहाँ का पुलिस वाला गाड़ी रोके रहता है ।बिजली करोडो रूपया लेकर प्राइवेट कंपनी को दे दी गयी पर वो पहले से ज्यादा रुला रही है बिल से भी और अनुपस्थिति से भी ।आप अगल बगल किसी बड़े शहर में चले जाइये चीजें सस्ती है पर आगरा का व्यापारी सभी को और उनके पैसे को अपना मानते हुए प्यार से खूब मुनाफा कमाता है और आगरा की जनता बड़े दिल से मानते हुए की आखिर ये मुनाफा हमारे ही किसी भाई के घर में जा रहा है ,कोई बहस नहीं करता । सहर्ष स्वीकार कर लेता है सब कुछ ।
                             नेता बयान देकर या एकाध दिन प्रदर्शन कर सौदा पट जाने पर मस्त है । एम् पी ,एम् एल ए ,किसी के पास आगरा के लिए न तो दूरगामी सोच है न योजना है और न सपने है और जब ये सब नहीं है तो संकल्प की तो कल्पना ही नहीं की सकती है ।मेरे एक मित्र कहते है की आगरा की जनता बत--द है और उसका नेता बनाना है तो गंभीर न तो बाते करो और न प्रयास बल्कि विशुद्ध बत --दे बनो । अब ऐसा लगता है इतने सालो में की यही सच है । बड़ी बात ये है आगरा कभी गुस्सा नहीं होता है अपने जरूरी मसलों पर, हाँ होता है गुस्सा किसी धार्मिक मामले पर ,जातिगत मामले पर ,कुछ खास नाम वालों की मूर्तियों या तस्वीरों को कुछ हो जाये तो देखिये गुस्सा । थोड़ी ज्यादा हो जाये फिर देखिये गुस्सा ,सड़क पर कोई छू जाये फिर देखिये गुस्सा । बस इंसानी जरूरतों पर ,विकास के अधिकार पर अपने पैसे के हिसाब पर ,नेताओं ,अधिकारीयों ,कर्मचारियों के दुर्व्यवहार और बेईमानी पर उसे गुस्सा नहीं आता । आगरा बड़ी ख़ुशी से इन सबको झेलता ही नहीं है बल्कि इन सबका रोज स्वागत करता है ,माला पहनाता है ,दावते देता है और फोटो खिंचवा कर गौरवान्वित होता है ।
                              बिजली नहीं आती कोई बात नहीं अपनी व्यवस्था के अनुसार ,हाथ का पंखा ,जेनरेटर ,इन्वेर्टर इत्यादि लगाव लेता है ,पानी नहीं या गन्दा आत्ता है तो हैण्ड पम्प ,जेट ,आर ओ लगवा लेता है या पानी के बोतल लेने लगता है ।अपनी सुरक्षा के लिए या तो गार्ड रख लेता है नहीं तो कट्टा खरीद लेता है और ये भी नहीं तो घर की छत पर बोतले और इंटें इकट्ठी कर लेता है । कितनी सहनशक्ति है आगरा में ।जी हाँ आगरा में जो अधिकारी गलती से भी आ जाता है वो इस शहर से इतना प्यार कर बैठता है की फिर जाना ही नहीं चाहता ।आगरा के लोग भी उसके प्यार में अभिभूत हो जाते है और उसका गुणगान करते है । नेता कुछ न करे बस मन की बात करता रहे वो सर पर बिठा लेते है उसको । है न मेरा आगरा महान ?
                               क्या मेरा आगरा कभी सचमुच अंतरास्ट्रीय शहर बन पायेगा ? क्या कभी यहाँ के एम् पी ,एम् एल ए ,जिला परिषद के अध्यक्ष ,मेयर ,अन्य ऐसे लोग जो विभिन्न समाजों और वर्गों या संस्थानों  के ठेकेदार है अपनी पार्टी ,जाती धर्म ,अहंकार सब छोड़ कर इकट्ठे होकर आगरा के लिए खड़े हो पाएंगे ? क्या कभी आगरा सर उठा कर कह सकेगा ;मै आगरा हूँ जो सम्पूर्ण भारत की राजधानी रहा हूँ ,मै आगरा हूँ जहा दुनिया का एक आश्चर्य ताजमहल है ,मै आगरा हूँ बड़े बड़े शायरों ,लेखको,कवियों को पैदा करने वाला ,मै आगरा हूँ दुनिया में भारत की एक मजबूत पहचान ,जी हाँ मै आगरा हूँ और मुझे अपने होने पर गर्व है । मेरे शहर के नेता और अफसर और हम भी केवल बत --दी नहीं करते है बल्कि देखो हमने कर के दिखा दिया ,आगरा के अधिकारों को छीन  कर दिखा दिया ,हमने आगरा को अंतररास्ट्रीय शहर बना कर दिखा दिया । देखो इसके चारो  ओर हरियाली से घिरा हुआ चौड़ा रिंग रोड ,देखो स्वच्छ पानी की व्यवस्था ,देखो अनुशासन से बिना रुके चलता हुआ ट्रैफिक ,चारो ओर सफाई खूब सारी हरियाली । कोई लूट नहीं बस सबमे सुरक्षा का अहसास ।बाजार में लूट के बजाय  सही दामो पर बिकता सामान ,शहर के बाहर बड़ी बड़ी बिल्डिंगे जिनमे तमाम अंतररास्ट्रीय कम्पनियाँ है और उनसे मिला  हुआ लाखो को रोजगार । अब आगरा के लोग पढ़ने और नौकरी के लिए बाहर नहीं जाते बल्कि प्रतिभाएं आगरा आ रही है । जी हाँ ये देखो सर उठा कर बोलता हुआ मै हूँ आगरा ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें