रविवार, 28 सितंबर 2025

जिंदगी के झरोखे से वो बच्चा

#जिंदगी_के_झरोखे_से

आज कुछ झलकियाँ जानी, देखी या भोगी हुई   -  वो बच्चा 

1-वो भी बच्चा था , तब गाँव मे रहता था और गाँव मे आप किसी भी जाती मे और किसी भी स्तर के परिवार मे पैदा हुये हो गाय भैस को अन्य बच्चो के साथ चराने या तालाब मे नहलाने ले जाना एक काम होता ही था जैसे खेत के काम मे हाथ बताना, अगर घूरा उठ रहा है तो ,अगर गन्ना पेरा जा रहा हो या पानी के लिए रहट चल रही हो तो बैलो के पीछे पीछे घंटो चलना ,गुड बनते वक्त आग मे ईधन झोंकना , दवाई के समय खलिहान मे बैलो को हाँकना , कटाई पर चाहे छोटा बोझा ही लेकर आना ,मक्के की बाल छीलना , चारा काटना, खेत की रखवाली के लिए कुछ देर मचान पर बैठना , गाय बैल भैस को दाना पानी देना इत्यादि सब मे लगना ही होता था ।शायद फिल्मो वाले गाँव के जमीन वाले किसानो के परिवार भी कही होते होंगे ही । ये बच्चा भी सब करता था ।  उसको भी खेलना अच्छा लगता था और खेलते वक्त गाँव मे बच्चो मे जाति की रेखा नही थी । लाखन पाती , पेड पर चढ़ दूसरे को छू लेना , गिट्टी फोड ,गिल्ली डंडा ,कुश्ती और कबड्डी ही खेल थे गाँव के ।
उस दिन शाम को दो टीम बन कर कबड्डी हो रही थी खलिहान मे और खेल खत्म होते होते सूरज डूबने लगा था । सब बच्चे साथ साथ लौटे और वह बच्चा भी लौटा । और बच्चो के पिता किसान थे पर उस बच्चे के पिता अध्यापक थे । उन्होने जोर से चीक कर पूछा कहा थे ? बच्चे ने जवाब दिया -खलिहान मे सब फला फला थे और आज कबड्डी थी ,अभी खत्म हुई ।उसके पिता ने कहा की अब तो अन्धेरा होने को है पहले क्यो नही लौटे ? इस पर वह बच्चा चुप हो गया क्योकी इसका कोई जवाब उसके पास नही था । फिर सवाल आया कि बोलते क्यो नही ? फिर भी जवाब नही था ।
बस पास मे रखी लाठी पिता के हाथ मे थी और उस बच्चे के शरीर पर अनगिनत निशान छोड कर ही लाठी वापस अपने स्थान पर गई । निशान भी ऐसे की रात को सोते वक्त चारपाई भी सजा दे रही थी ।
बाकी किसी भी बच्चे के घर से कोई चीख सुनाई नही पड़ी ।  हो सकता है उन बच्चो को घर के अंदर ले जाकर सजा मिली हो ।
2-वो बच्चा शहर आ गया था अपने पिता के साथ । गाँव से आया था और गाँव मे सर पर चुटिया रखना शायद कोई धार्मिक मजबूरी थी या परम्परा थी या पंडीत जी द्वारा पैदा किसी अन्धविश्वास की उपज थी ।
शहर मे स्कूल के बच्चे उस बच्चे पर हंसते और उसका मजाक ही नही उडाते बल्की जब तक पीछे से चुटिया खींच देते थे ।
बाल कटवाने का दिन आया ।घर के पास ही नाई था । पिता वहाँ बैठा कर और काटने का पैसा देकर घर चले गए ।बाल काटने का नम्बर आया तो काटते हुये नाई ने पूछा की चुटिया छोड़ना है या काटना है ? वो बच्चा मौन रहा और मौन को सहमती मांन नाई ने चुटिया भी काट दिया ।बच्चा अंदर से खुश कि अब स्कूल मे कोई तंग नही करेगा । 
घर पहुचा और मासूमियत से बता दिया की चुटिया नाई ने काट दिया लेकिन अच्छा ही हुआ क्योकी स्कूल मे उसके साथ ये सब होता है ।
बात पूरी हुई भी नही की पिता के हाथ मे डंडा था और उस बच्चे शरीर पर निशान ही निशान और उसकी चीखे ।
3-वो बच्चा अपने छोटे भाई को बहुत प्यार करता था और हर उसको लेकर खेलना और गोद मे लेकर घुमाना उसे अच्छा लगता था । पिता के पास साइकिल थी जिसमे उस जमाने मे आगे हैंडिल मे कंडीया लगी होती थी ।छोटा भाई इतना छोटा था की उस कंडीया मे बैठ जाता था और वो बच्चा मुहल्ले मे छोटे भाई को उस कन्डिया मे बैठा कर घूमाता था ।एक दिन शाम को भी घर पास उसे घुमा रहा था कि कन्डिया किसी तरह हैंडिल से गिर गई और छोटे भाई को चोट लग गई ।वो बच्चा घबरा गया और साईकिल घर के बाहर खड़ा कर छोटे भाई को लेकर परेशान हाल इधर उधर दौडने लगा उसके घाव को हाथ से दबा कर की खून रुक जाये पर कब तक ? घर तो जाना ही था ।
घर मे जब पिता को पता लगा ये तो फिर पिता की मार और बच्चे के शरीर पर निशान लेकिन इस बार एक निशान शरींर पर नही बल्की मन पर भी लगा और  बहुत गहरा लगा जो कभी खत्म ही नही हुआ जब पिता ने उस छोटे से बच्चे से कहा की हाँ तुम मार देना चाहते हो छोटे को ताकी गाँव की जमीन जायदाद सब तुम्हारी हो जाये ।
वो बच्चा एक कोने मे रोता रहा लगातार और बार बार ।
4-उस बच्चे को उसके पिता शायद बहुत चाहते थे और चाहते थे कि जो वो नही बन पाये वो बच्चा बन जाये और खुद की इच्छा उसपर थोपने के चक्कर मे शायद कुछ ज्यादा कर जाते थे -
जैसे उस बच्चे को सिखाया की राम की स्पेलिंग आर ए एम होती है और साथ ही की आर ए एम ए रामा होता है पर क्यो होता है और कैसे बनता है शब्द बस यह ही नही बता पाये पिता ।अक्सर पूछ लेते राम की स्पेलिंग बताओ तो वो बच्चा बता देता आर ए एम तो उसे पक्का करने को तुरंत घुडक देते थे वो पिता की आर ए एम होता है ? और बच्चा घबरा जाता और आर ए एम ए बोल देता और फिर बच्चे के शरीर को मजबूत करने का अवसर नही गंवाते वो पिता और इस राम और रामा ने उस पिता को 50 से ज्यादा ही मौके दिये बच्चे के शरीर को मजबूत बनाने के ।
इसी तरह यदि वो बच्चा गडित कर रहा होता तो सवाल होता की अंग्रेजी कब पढ़ोगे और अंग्रेजी पढता तो गडित कौन पढेगा जैसे सवाल सभी विषयो पर होता और बच्चा लगातार शारीरिक रूप से मजबूत होता रहा  ।
5-ऐसा नही की हमेशा पिता ने उस बच्चे के शरीर को मजबूत करने का ही काम किया बल्की एक बार थोडा बडा हुआ था वो बच्चा और बच्चो के साथ साथ देखा देखी मे एक गलती कर बैठा ।इस बार पिता ने डंडा नही उठाया बल्की अपनी आंखे गीली कर लिया कुछ कह कर और इस बार उस बच्चे को ये सजा कही ज्यादा भारी पड़ी और फिर दुबारा इस बच्चे ने वो गलती कभी नही किया ।
6-एक बार बच्चे को कुछ पैसे की जरूरत पड़ गई और पिता से ही मांगना था । पिता अब डंडे से नही शब्दो से मारने लगे थे । बोले की जब जरूरत हो तो पिताजी ? 
बस उस दिन से उस बच्चे ने कभी ना मुह खोला और ना हाथ फैलाया ,यहाँ तक की जूता टूट जाने पर कुछ दिनो तक नंगे पैर गया स्कूल ।
फिर वो बच्चा बडा हो गया और जब भी उसके पिता देख रहे होते तो वो उपन्यास पढने लगता और जब वो नही देखते तो कोर्स पढने लगता क्योकी अब उस बच्चे के शरीर को मजबूती की जरूरत नही थी और पिता भी अब थक चुके थे ।

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

जब मुलायम सिंह रक्षामंत्री थे

मुलायम सिंह जी जब रक्षामंत्री थे तो दो बाते हुयी थी -१- वो सीमा पर गए थे ,गोली चली उन्होंने सेनाध्यक्ष से पूछा क्या हो रहा है ? बताया गया की पडोसी ऐसे ही चाहे जब गोली चलाते रहते है | मुलायम सिंह जी ने तुरंत जवाब देने को कहा तो कहा गया की आप यहाँ से जाये तब देंगे तो मुलायम सिंह ने कहा की एक सैनिक और रक्षामंत्री की जान की कीमत एक है इसलिए अभी जवाब दो और ये सन्देश दुश्मन को भी मिला | 
--२ - मुलायम सिंह ने आतंकवादी कैम्पों पर हमले का आदेश दे दिया था पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति तैयार नहीं हुयी इसलिए नहीं हो पाया क्योकि उस समिति के बिना हमला नहीं हो सकता है | 
ये भी तथ्य है की जब तक मुलायम सिंह रक्षामंत्री रहे देश में कोई आतंकवादी हमला नहीं हुआ | 
बिना ये सब जाने कुछ लोग मुलायम सिंह की अलोचना करते है | 
करने वाले कहते नहीं वक्त आने पर करते है | बाकि फैसला आप सभी का की केवल जुबानदराजी करने से देश मजबूत होगा |

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

ज़िंदगी_के_झरोखे_से, मुनादी का लोकार्पण

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से 

जब लखनऊ में कैफ़ी आज़मी एकेडमी मेरी दूसरी काव्य पुस्तक " मुनादी " का लोकार्पण हुआ और लोकार्पण किया किया देश के दो बड़े साहित्यकार और कवि उदय प्रताप सिंह जी और नरेश सक्सेना जी ने ****

'मुनादी' के बहाने राजनीति और समाज के अंतर्संबंधों पर मंथन

*उदयप्रताप सिंह और नरेश सक्सेना की मौजूदगी में डा. सीपी राय के नये कविता संगचरह मुनादी का लोकार्पण
*समाज के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे, सीपी राय ने अपने अनुभव साझा किये, कविताएं सुनायी
 
रविवार को कैफ़ी आज़मी एकेडमी,  निशातगंज, लखनऊ में पूर्व मंत्री, कांग्रेस मीडिया सेल के चेयरमैन, कवि एवं समाजवादी चिंतक डॉ. सी.पी. राय के नये कविता संग्रह 'मुनादी' का लोकार्पण हुआ। इस बहाने कविता, समाज और राजनीति के अंतर्संबंधों पर गंभीर चर्चा हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि उदय प्रताप सिंह ने कहा कि कविता केवल जनता की बात कह सकती है लेकिन राजनीति उसे साकार भी कर सकती है। इसलिए कवि अगर राजनेता भी हो तो वह जनता के बहुत काम का होगा। उन्होंने डा. सीपी राय को बधाई देते हुए कहा कि मैं  50 वर्षों से देख रहा हूँ, डा. राय ने कभी समझौता नहीं किया। उनकी कविताओं का तेवर बरकरार है और वे कविताएं समय से सवाल करती हैं। 
उन्होंने कहा कि सर्वहारा के जीवन की विसंगतियों को अपनी सूक्ष्म नजरों से वही देख सकता है, जिसने या तो वह जीवन जिया हो या उसने जीवन को नजदीक से देखा हो। सच्ची कविता वह है ,जो हृदय से निकले और लोगों के हृदय में तत्काल प्रवेश कर जाए। इस कसौटी पर चंद प्रकाश राय का कविता संग्रह पूरी तरह खरा उतरता है। कवि के लिए निर्भीकता बहुत जरूरी है और यह निर्भीकता डा. सीपी राय में दिखायी पड़ती है।
कार्यक्रम का सुरुचिपूर्ण संचालन कवि ज्ञान प्रकाश चौबे ने किया‌। इस अवसर पर समाज के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में कवि, लेखक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता मौजूद तते। 'मुनादी' डा. सीपी राय का दूसरा कविता संग्रह है। उनका पहला कविता संग्रह 'यथार्थ के आस-पास' कुछ वर्षों पूर्व प्रकाशित हुआ था। चर्चा शुरू होने से पहले डा. सीपी राय ने अपने कवि बनने की कहानी साझा की और शुरुआती दिनों की उन कविताओं के कई अंश सुनाये, जिनके कारण युवाकाल में उन्हें लोक में प्रशंसा और सम्मान मिला। उन दिनों ही उनकी मुलाकात उदयप्रताप जी से हुई। उन्हीं दिनों राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर से भी उनको आशीर्वाद मिला। डा. राय उन दिनों को याद करते हुए भावुक भी हो गये। उन्होंने कहा कि मुझसे कोई अन्याय बर्दाश्त नहीं होता और जब भी किसी की पीड़ा देखता हूँ, उसे कहने से खुद को रोक नहीं पाता हूँ। यह कविता है या नहीं, मुझे नहीं मालूम लेकिन कहने का मेरा यह तरीका लोगों को पसंद आता है। 
 वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने डा. सीपी राय की कई कविताओं का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कविता और इल्म के संबंध पर बात की। उन्होंने कहा कि यह सही है कि कविता करने  के लिए किसी इल्म की जरूरत नहीं है लेकिन कवि को कविता की इल्म तो आनी चाहिए। नरेश जी ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि यह इल्म डा. राय में है। उन्होंने कहा कि मै समझता हूं कि 'मुनादी' कविता संग्रह सीपी राय की भाषाई निर्भीकता, आधी आबादी की सुरक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी को लेकर उनके भावनात्मक पक्ष को स्पष्ट बात करता है। श्री सक्सेना ने उनकी कविता पढ़ी, 'क्या औरत हिमालय है जिस पर चढ़ाई करना चाहते हो/क्या औरत कोई गंगा है, जिसमें नहा लेना चाहते हो/ हर पुरुष कैसे भी जीत लेने को आतुर है/ जैसे दुश्मन का किला हो औरत।'
कवि-पत्रकार सुभाष राय ने सी.पी. राय से आगरा के समय के अपने संबंधों को याद किया और सी.पी. राय के सच के साथ खड़े होने की ताकत का उल्लेख किया। उन्होंने कहा की श्री राय 40 वर्षो से सामाजिक अन्याय, विषमताओं के खिलाफ बेखौफ लड़ाई लड़ने वाले नेता और कवि की मजबूत पहचान रखते हैं।समाज में जो भी अशोभनीय, असहनीय है, श्री राय ने हमेशा अपनी कविताओं के माध्यम से उसे आईना दिखाया है।
कवि-आलोचक नलिन रंजन सिंह ने सी.पी. राय के संग्रह पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने सी.पी. राय को समय की संवेदना की नब्ज पकड़ने वाले कवि के रूप में रेखांकित किया। उन्होंने राजनीतिक कविताओं के साथ-साथ व्यक्तिगत संदर्भों से उपजी मार्मिक कविताओं की भी चर्चा की। नलिन रंजन सिंह ने कहा कि 'मुनादी' काव्य संग्रह की कविताओं में श्री राय की संवेदनशीलता के साथ अपने युग की धड़कन कायदे से सुनी जा सकती है।
कवयित्री सुधा मिश्रा ने कहा कि आज हम सब हिस्सा बन रहे हैं उस मुनादी का जो सामाजिक सरोकारों को तय करती है कविताई के कठिन मार्ग को चुनकर उसे पुस्तक के रूप में निभाना बड़ा और श्रेष्ठ काम है । उसी कविताई के कठिन और रोचक कार्य को डॉ. सीपी राय जी ने चुना और और ईश्वर से प्रार्थना है कि यह यात्रा आगे भी जारी रहेंगी। सुधा मिश्रा जी ने मां शीर्षक कविता की पंक्तियां पढ़ी, बड़े होने पर बच्चों को कहां पता होता है/ कि सारी माएँ अपने बच्चों के लिए/ एक जैसी होती हैं।
कार्यक्रम में देश के राष्ट्रीय लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीस राय, पूर्व कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय ड़ा रूप रेखा वर्मा, पूर्व आइ ए एस अधिकारी लालजी राय, पूर्व आइ पी एस अधिकारी अजय शकर राय, पूर्व विशेष सचिव ट्रांसपोर्ट वी के सोनकिया, पूर्व एडिशननल कमिश्नर लेबर वी के राय, कर्नल वाई एस यादव, प्रसिद्ध उपन्यासकार शिवमूर्ति, दयानंद पांडेय, पूर्व एडिशनल डायरेक्टर अभियोजन उत्तर प्रदेश सत्य प्रकाश राय, वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस, व्यंग्यकार राजीव ध्यानी, पत्रकार प्रदीप कपूर, दीपक कबीर, उषा राय सहित बड़ी संख्या में समाज के साहित्य प्रेमी मौजूद थे ।