संस्मरणों की इस श्रृंखला के माध्यम से डॉ. सी. पी. राय ने अपने राजनैतिक जीवन के कुछ महत्वपूर्ण क्षणों को याद किया है, पाठक के लिए भी, अपने लिए भी। इन यादों में कुछ अच्छा कर
पाने का संतोष झलकता है तो अपना प्राप्य न पा सकने का स्वाभाविक दुख भी।
इस प्राप्य की व्याप्ति केवल व्यक्तिगत नहीं, विचारगत भी है। इन संस्मरणों में व्यक्तिगत जीवन के संकेत तो हैं, लेकिन बल समाज और राजनीति में लेखक की हिस्सेदारी पर ही है। उन्हें दुख भी इसी
बात का अधिक है कि भारतीय समाज के उत्तरोत्तर लोकतांत्रिकीकरण के लिए जिस राजनैतिक धारा से जुड़े रहे, वह कमजोर, कई बार तो विपथगा भी होती चली गयी। मार्के की बात यह है कि इसके बावजूद श्री राय की बुनियादी प्रतिबद्धता नहीं बदली, हिन्दुस्तान का हम हिन्दू और मुसलमान ( तथा अन्य समुदायों ) के मिलाप से ही बनता है, बहुसंख्यकवाद से नहीं—यह बुनियादी धारणा श्री राय के
कामों को तब भी निर्धारित करती थी, जब वे समाजवादी पार्टी में थे, अब भी करती है जब वे कांग्रेस में हैं।
राजनैतिक प्रतिबद्धता की निरंतरता की इस यात्रा में आने वाले व्यक्तिगत उतार चढ़ावों का विवरण तो यह पुस्तक देती ही है, अनेक महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाक्रमों को एक गंभीर राजनैतिक कार्यकर्ता
के दृष्टिकोण से देखने का अवसर भी देती है।
20 फरवरी 2025
प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल , जाने माने लेखक , पूर्व सदस्य केंद्रीय लोक सेवा आयोग, पूर्व प्रोफेसर जवाहर लाल नेहरू विविश्वविद्यालय ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें