बुधवार, 24 नवंबर 2010

बिहार के चुनाव का सन्देश

 बिहार के चुनाव का सन्देश                                                                  डॉ सी पी राय
                                                                                                                   [शिक्षक एवं राजनैतिक चिन्तक ]

क्या होगा बिहार में ,एक बड़ा सवाल था राजनीति में रूचि रखने वालो के जेहन में | फैसला तों बंद हुआ इ वि एम् मशीनों में और आ भी गया ||बिहार वो प्रदेश है जिसने आन्दोलनों कि अगुवाई किया,परन्तु कुछ  सरकारों ने उसे इतना पीछे पंहुचा दिया कि वो भारत का सबसे ख़राब प्रदेश बन गया |एक ऐसा प्रदेश बन गया जिससे सबसे ज्यादा पलायन हुआ |कोई  सरकार बहुत ख़राब रही हो और उसके बाद उसके मुकाबले थोड़ी भी अच्छी सरकार आ जाये ,थोडा भी ईमानदार मुखिया आ जाये ,थोडा भी काम होता दिखलाई पड़े तों निश्चित ही वो भयानक गरमी में ठंडी हवा का झोंका महसूस होता है |कुछ ऐसा बिहार कि नितीश सरकार को लेकर भी लोग महसूस कर रहे थे  |वहा के लोग तों बताते ही है कि कुछ  विकास होता दिख रहा है ,लेकिन बाहर या दूर बैठा आदमी भी कुछ बाते तों देख ही रहा है कि ,जहा पहली सरकार में आये दिन बच्चे किसी ना किसी अपहरण के खिलाफ सड़क पर दीखते थे और तमाम भ्रस्टाचार कि कहानी सुनने को मिलती थी ,अब वो दिखाई नही पड़ती ,अब टी वी कि सुर्खियों में बिहार के वे  समाचार नही होता है |
लेकिन सवाल ये था कि जबरदस्त जातिवाद कि जकडन का शिकार बिहार क्या करवट लेगा ?पूरे देश में  लोकतंत्र  कि परिपक्वता दिख रही है |जिस तरह देश ने अयोध्या के मामले में परिपक्वता का परिचय दिया और जिस तरह कुछ प्रदेशो में काम करने वालो को  जनता ने कई बार मौका दिया है और देते जा रहे है वह चाहे किसी स्तर कि सरकार हो ,उसी तरह  बिहार कि जनता ने भी  विकास के सवाल पर निर्णय दिया  है ?खबरों से ऐसा लगता था  कि बिहार भी जातिवाद कि जकडन को छोड़ने को बेचैन था ,वो भी देश के साथ दौड़ना चाहता था  ,बिहार भी २१वी सदी कि दौड़ में शामिल होने को आतुर हो रहा था  | हवा जो दिख रही थी उसकी  सच्चाई सामने आ गयी कि बिहार का १८ साल तक का नौजवान जिसकी संख्या ५५% हो गयी है और वो महिलाएं जो गरीबी और ख़राब कानून व्यवस्था का सबसे बड़ा शिकार होती है ,इन सबने मिल कर बिहार का चेहरा बदलने ,बिहार का एजेंडा बदलने का फैसला कर लिया था और मजबूत फैसला कर लिया था  |
  इस चुनाव में फिर एक बड़ा और नया सन्देश दिया है जो देश भर के नेताओ और संगठनो कि आँख खोलने वाला है |कोई इस सन्देश को समझ पाये तों बदल जाये और अपने खास चश्मे पर ही भरोसा करे तों मिट जाये |जब ६ राज्यों का चुनाव हुआ था तब मेरा लेख छपा था कि: अब केवल विकास कि राजनीति चलेगी ,जातिवाद टूट रहा है | देश बदल रहा है तों देश का ,देश कि नयी पीढी का एजेंडा भी पैदा हुआ है | इस नयी पीढ़ी को किसी कि शक्ल ,किसी के कोरे नारे ,किसी कि जाति का नारा ,किसी का धर्म का नारा नही चाहिए ,बल्कि उसे पहले चाहिए शांति व्यवस्था ,कानून का शासन कि लोग निशचिंत होकर घर से काम पर निकले तों घर आ सके ,वे कमाए तों घर ला सके |अब कि पीढी और जागरूक महिलाएं जिन पर घर का बोझ होता है वे चाहते है विकास और रोजगार | नितीश कुमार ने बिहार कि जनता को इस तरफ कदम बढ़ा कर ये विश्वास दिलाया  कि वे बिहार कि शक्ल बदलना चाहते है |नितीश ये विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि वे इमानदार है ,उनके पास दृष्टि ,सपना है और उन सपनों को जमीन पर लाने का संकल्प भी है |वे यह विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि उनके कुछ सिधांत है और सकारात्मक दिशा में चलने वाले सिद्धांत है |उसका परिणाम है बिहार में तीन चौथाई बहुमत का मिलना.और मोदी को बिहार में नही आने देकर तथा अति पिछडो और अति  दलितों में जो भूख जगाने का काम नीतीश ने किया वो भी उनका कारगर हथियार साबित हुआ |लालू ने तों अपने कर्मो से अपनी विश्वसनीयता और पकड़ खो ही दिया है पासवान भी पूरी तरह किसी डूबते हुए आदमी का हाथ पकड़ने कि गलती का पहली बार शिकार हुए है |
           जनता ने यह सन्देश दे दिया है कि वह केवल विकास चाहती  है ,उसका एजेंडा और वादा चाहती  है | देश और प्रदेश में शांति चाहती  | मजबूत और साफ छवि का नेता चाहती  है लेकिन साथ ही नेता को एक विनम्र नेता के रूप में देखना चाहती  है और यह भी चाहती  है कि नेता कि व्यक्तिगत छवि साफ सुथरी  दिखाई पड़े |कई प्रदेशो में ये जनता पहले भी दिखा चुकी है जहा भी नेता काम करते हुए दिखे और छवि भी ठीक हो जनता उसे बार बार मौका देना चाहती है | लालू ने रेल मंत्री के रूप में कुछ छवि बनाने कि कोशिश किया लेकिन चुनाव के मौके पर कांग्रेस को धोखा देकर फिर ये सिद्ध कर दिया कि वो क्या है और बिलकुल भी बिना किसी शिक्षा ,ज्ञान और अनुभव के जिस तरह रबड़ी देवी को नेता बना दिया और पिछले १५ सालो का उनका किया भी उनका पीछा नही छोड़ पाया |उनके सभी समझदार और संघर्ष के साथी उनका साथ छोड़ गए जिसको लालू ने गंभीरता से नही लिया | कांग्रेस ने भी केवल दिल्ली के नेताओ पर भरोसा किया |स्थानीय संगठन और नेतृत्व को ना पैदा करना उसे भारी पड़ा और ये रास्ता सभी प्रदेशो में भारी पड़ता रहेगा |यदि कांग्रेस ने प्रदेश का नेतृत्व संगठन और विधान सभा में मजबूत लोगो को दिया होता और मीरा कुमार को भावी मुख्य मंत्री घोषित कर चुनाव लड़ा होता तों यह तों नही कहा जा सकता कि सरकार बन गयी होती लेकिन परिणाम कही बहुत ज्यादा अलग होता |लेकिन कांग्रेस का जहा अनिर्णय उसके पतन का कारण होता है ,वही दूसरे दलों के बजाय कालिदास बन कर अपनों को ही काटने में समय बर्बाद करना भी उसको पतन कि तरफ ले जाता है | दूसरे प्रदेशो के नेता जो इस प्रदेश कि भाषा ,भूषा और भोजन नही जानते ,यहाँ कि संस्कृति नही जानते यहाँ कि जमीनी हकीकत नही जानते वे कभी प्रभारी होकर और कभी टिकेट बांटने वाला बन कर बंटाधार करते रहते है |इसी तरह के नेताओ के गलत आकलन के कारण उच्च नेतृत्व पर सवाल उठने लगे है |एक और बड़ी दिक्कत है कि इस दल में ५ साल सतत काम नही होता रणनीति नही बनती सब चुनाव के समय शुरू होता है |जबकि जनता त्याग करने वालो कि तरफ आकर्षित होती है पर रणनीति कि कमी और हवाई नेताओ कि भाषा बोली और चालें  सब बर्बाद कर देती है |ऐसा भी लगता है कि कांग्रेस में भी उच्च स्तर पर कुछ ऐसे लोग है जो नही चाहते कि बिहार और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस मजबूत हो और राहुल या सोनिया इतने मजबूत हो जाये कि उन पर निर्भरता ख़त्म हो जाये |दूसरी दिक्कत ये है कि जो जमीनी नेता होते है उन्हें आसमानी नेता किनारे रख कर अपमानित करते रहते है और सम्मान देने के बजाय उन्हें चपरासियों से मिलने और अपनी बात कहने का सन्देश दे देते है ,वही नेता जब अलग दल बना कर मजबूत हो जाते है तों सबसे बड़े लोग उनको सम्मान देने लगते है | खैर कांग्रेस को भारी झटका लगा है और इसकी धमक उत्तर प्रदेश में भी दिखाई पड़ेगी |
        इस चुनाव परिणाम का असर उत्तर प्रदेश कि राजनीति पर भी जरूर पड़ेगा क्योकि अगर बिहार ने करवट लिया है तों उत्तर प्रदेश उससे और ज्यादा ही करवट लेगा |ऐसे स्थिति में ये देखना दिलचस्प होगा कि बहुत फूहड़ परिवारवाद ही नही बल्कि सम्पूर्ण परिवारवाद का शिकार लोगो को ,जंगल राज चलाने वाले लोगो को ,अपहरण को दल का मुख्य व्यवसाय बनाए वाले लोगो को ,हर जगह हस समय केवल लूट करने वाले लोगो को ,विकास का पैसा व्यक्तिगत सनक पर खर्च करने वाले लोगो ,खुद भ्रस्टाचार कि प्रतिमूर्ति बन गए लोगो ,कोई सपना नही ,कोई सिद्धांत नही ,कोई संकल्प नही केवल जाति और धर्म के नाम पर वर्षो से राजनीति कि फसल काटते और भूखी नंगी स्थिति से खरबपति  बनते लोगो को उत्तर प्रदेश कि जनता क्या जवाब देती है ? और जनता के सामने विकल्प क्या आता है ?क्या कोई विकल्प ,कोई विकास का नया मॉडल नया एजेंडा ,सरकार चलाने का नया फार्मूला यहाँ कि जनता को दे पायेगा या जो दे सकते है वे आपस में लड़ने ,गणेश परिक्रमा करने और एक दूसरे का गिरेबान पकड़ने में ही खर्च हो जायेंगे |केवल चापलूसी और किसी चमत्कार का इंतजार करते रह जायेंगे या रोज मर्रा कि जिन्दगी में संघर्ष को हथियार बना कर लड़ेंगे और उत्तर प्रदेश को भी नए सूरज का दर्शन करवाएंगे |यह सवाल खड़ा है मुह बाये हुए और नितीश के रूप में उत्तर भारत में एक बड़े लेकिन विनम्र और संकल्प तथा स्वीकार्यता वाले नेता का जन्म हो चुका है ,इस पर गहराई से निगाह रख कर भी रणनीति बनानी होगी जो बढाना चाहता है ,जो लड़ना चाहता ,और जो आगे आना चाहता है | नही तों क्या कुए और खाई में से एक को चुनने कि मजबूरी फिर से केवल भ्रस्टाचार कि प्रतिमूर्ति को जनता इसलिए मौका दे देगी कि उसके राज में अपराध उद्द्योग नही है और काम से काम एक खिड़की खुली है हर गली कूचा  तथा परिवार तथा रिश्तेदार का हर चमचा तक मुख्यमंत्री बन कर लूट  तों नही रहा है |ये तों आने वाला समय बताएगा कि देश कि जिम्मेदारी लेने वाले और देश के नेता कहलाने वाले अपने घर के पूरे नेता है कि नही |पर बिहार ने राजनीति का नया एजेंडा भी तय कर दिया ,नयी शक्ल भी दिखा दी है और नया स्वरुप भी दिखा दिया है  | भारत का लोकतंत्र नयी करवट ले रहा है इसमें अब किसी को कोई शक नही होना चाहिए और इसमे भी कोई शक नही होना चाहिए कि झोपड़ी से निकल कर और बिना किसी पूर्वज के नाम के भी नेता बना जा सकता है संघर्ष से संकल्पों से और कितना भी आगे बढ़ा जा सकता है और कितनी भी बार आगे आया जा सकता है | इशारो को अगर समझो --------------|       डॉ सी पी राय
                                                                                           राजनैतिक चिन्तक और समीक्षक
                                                                                            शिक्षक, डॉ बी आर ए वि वि आगरा
                                                                                         १३/१ एच आई जी संजय प्लेस आगरा
                                                                                         cprai१९५५@ याहू.co .in



                                                               

सोमवार, 15 नवंबर 2010

क्या सचमुच संघ आतंकवादी और समाजद्रोही लोगो से भरा है ? 2

दोस्तों आप में से कोई भी मेरे उठाये पश्नो का जवाब नहीं दे रहा है | केवल अपनी शाखा में सुना ही बोले जा रहे है | आँखे खोलिए ,दुनिया बहुत आगे जा रही है |१.क्या संघ का और हिटलर का सोच एक ही नहीं है की हम सर्वश्रेष्ठ है और सब पर हमारा राज होना चाहिए ? 2 क्या संघ का निशान और हिटलर का निशान स्वस्तिक नहीं है ? ३ क्या हिटलर और संघ दोनों की टोपी काली नहीं है जबकि भारत का शुभ निशान ॐ है और सर पर काला कपडा रखना अच्छा नहीं माना जाता | ४ क्या संघ के लोग गाय के चमड़े की बेल्ट और जूते नहीं पहनते ? कैसे पता लगता है की ओ गाय के चमड़े की नहीं है | इसके आलावा ५ क्या संघ ने १९४२ क्व आन्दोलन में मुखबिरी नहीं किया था ? ६ क्या आपातकाल में सारे संघियों ने सरकार का समर्थन कर माफ़ी नहीं माँगा था ? ७ क्या देश में प्रतिबंधित गोडसे की पुस्तक केवल संघ नहीं बेचता और केवल उसी के द्वारा नहीं छापी जाती है ? ८ क्या भा जा पा की सरकार बनने के बाद शाखाये १०% नहीं रह गयी है ? ९ क्या जब तक भा जा पा सरकार रही तब तक संघ और उसके सारे चेलो ने राम मंदिर पर मौन धारण नहीं कर लिया था ? १० क्या उस सरकार में संघ के सारे प्रचारक दलाली और जमीनों पर कब्ज़ा कर बड़े आदमी नहीं हो गए है ११ क्या संघ का एक संगठन मंत्री औरत के साथ सी डी में भारत ने नहीं देखा १२ क्या सबसे बड़े आतंकवादी को संघ के मंत्री काबुल छोड़ कर नहीं आये ? क्या भा जा पा का अध्यक्ष घूस लेते टी वी पर नहीं देखा गया १३ .क्या उस सरकार में सभी विभागों में जबदस्त घोटाले नहीं पाए गए ? १४ क्या ये सच नहीं की जो अपने राम का ही नहीं हुआ उसी को धोखा दे दिया और किसका होगा ? १५ क्या ये सच नहीं है की संघ पर केवल एक खास मराठा जाति का ही वर्चस्व है [कृपया बाकि लोग इस बात पर ध्यान से मनन कर ले ,यदि मै गलत कह रहा हूँ ] १६ क्या संघ से जुड़े ८०% से जायदा लोग व्यापारी नहीं है १७ क्या वे जमाखोरी ,मुनाफाखोरी और मिलावट का काम नहीं कर रहे है ? १९ क्या उनमे से किसी ने भी दो तरह का माल रखा है हिन्दू को असली और बाकि को मिलावटी २० क्या आगरा के गजट में एक पूर्व नेता की मुखबिरी पर स्वतंत्रता सेनानियों को जेल भेजे जाने की बात लिखी है ? २१ क्या मारीशस ,फिजी ,गुयाना ,टोबैको त्रिनिदाद ,न्यूजीलेंड सहित कई देशो में भारतीय लोग राष्ट्रपति या पधानमंत्री नहीं है ,क्या सिंगापूर जैसे तमाम देशी में भारतीय रास्रपति. मंत्री सहित बड़े पदों पर नहीं है ?के १९५० और ६० के बाद गए लोग भी अमरीका जैसे बड़े देश में गवर्नर और संसद तथा और महत्वपूर्ण पद पर नहीं है .क्या लन्दन में भी बाद के गए लोग मेयर और संसद सहित बड़े पदों पर नहीं है ? क्या आस्ट्रेलिया में भारत से पढ़ने गयी एक लड़की मेयर नहीं बनी ? क्या क्या पूछू ? कुंए से बाहर निकल कर भी दुनिया है और संघ के आदिमकालीन सोच वाली बातो से आगे भी बाते है ,इतिहास के तथ्य है | अगर पुरानी दुनिया और लड़ाइयो में ही रहना है तो १- राम ठाकुर थे और उनकी बीबी को ब्राहम्ण रावण उठा ले गया था ,फिर राम ने उसकी लंका जला दिया ,आप लोगो की सोच के हिसाब से पहले इन दोनों जातियों को पुराना हिसाब चुकता करना चाहिए २- उसके बाद महाभारत में कौन किसकी लड़की को ले भगा ,किसने किसको धोखा दिया ,किसने किसको मारा ये जाति और धर्म तथा गोत्र के हिसाब से याद रख कर लड़ाई जरी रहनी चाहिए | ३- उसके बाद भी इन्द्र ने अहिल्या से बलात्कार किया पता लगाना चाहिए की दोनों की जाति क्या थी और धर्म क्या था ? ४ उसके बाद का इतिहास भी इन्ही हिसाब से देखना चाहिए की गाली देने और गोली मारने की गुंजाईश कहा कहा है ? ५ कौरव पांडव ,कृष्ण और कर्ण जैसो का मामला भी छान बीन का है ? कट्टर पर तथा कथित नकली हिन्दुओ { क्योकि असली हिन्दू कट्टर नहीं होता और केवल अपनी नहीं बोलता है बल्कि आदिकाल से शास्त्रार्थ करता रहा है और नागपुर के ताले में दिमाग रख कर जो वहा रटा दिया केवल वाही नहीं बल्कि उसके बजाय खुली आँखों से दुनिया देखता है और आगे बढ़ता है अगर ऐसा नहीं होता तो आज दुनिया में भारत का डंका नहीं बज रहा होता |और मजदूर बन कर गए लोग राज नहीं कर रहे होते ] .इसलिए कृपया पहले दिमाग को खोले दुनिया को देखे खुले दिमाग से ये पढ़े और फिर थोडा ठन्डे मन से सोचे और तब जरूर कुछ कहे | आप भी भारत के नागरिक है ,आप सोच से पीछे रह जायेंगे तो भारत का ही १०० करोडवा हिसा पीछे रह जायेगा ,इसका मुझे दुःख होगा |कुछ लोगो ने बड़ी कड़वी टिपणी किया है ,पर मै भारत के किसी नागरिक को व्यक्तिगत दुशमन नहीं मानता कट्टर संघियों की तरह इसलिए व्यक्तिगत नाम लेकर कुछ नहीं लिख रहा हूँ ,और हां मेरे दोस्त मै ज्यादा नहीं जनता बस लिखने की कोशिश ही कर रहा हूँ और आभारी हूँ प्रवक्ता की वह मुझ जैसे साधारण लोगो को भी जगह देता है | विश्वास है की आप में से जो कट्टर संघी है वो गाँधी और दीनदयाल उपाध्याय की तरह की मेरी हत्या की साजिश नहीं करेंगे ,और मेरे उठाये सवालो का लाभ उठा कर कुए के मेढक के स्थान पर पढ़ा लिखा और दुनिया में प्रथम स्थान पर जाने वाले भारत का नागरिक और सही मायने में सच्चा हिन्दू और उससे भी बढ़ कर इन्सान बनेंगे | फिर भी कुछ समझ में नहीं आ पाए तो अज्ञानता के कारण,और आप को कोई मेरी बातो से दुःख पहुंचे तो मै केवल खेद व्यक्त कर सकता हूँ | क्योकि नए बन रहे अतंकवादियो के घृणित हाथो से मरना मुझे अच्छा नहीं लगेगा | मेरा अभियान जरी रहेगा | जय हिंद ,जय हिंद ,जय हिंद

शनिवार, 13 नवंबर 2010

पूर्व संघचालक के सी सुदर्शन ने सोनिया गाँधी को देश का गद्दार और इंदिरा गाँधी तथा राजीव गाँधी कि हत्याओ का षड्यंत्रकारी कहा है | क्या भारत कि जनता ये मानने को तैयार है | फेस बुक के जागरूक लोगो और देश भक्त लोगो तथा उन लोगो से जो  कोई गन्दा चश्मा नही लगाये है को मै इस बहस के लिए आमंत्रित करता हूँ | इनके बारे में ज्यादा जानने के लिए मेरा लेख पढ़े कि ये संघ को क्या हो गया है | मै जनता हूँ कि यहाँ बहुत से लोग मेरी दोस्ती तोड़ देंगे ,मै ये भी जनता हूँ इससे मेरे जीवन को भी खतरा हो सकता है पर भारत कि लड़ाई जारी रहेगी |कृपया जागने का अहसास कराये |

ये रास्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को क्या हो गया है

ये रास्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को क्या हो गया है | ये ज्ञान ,शील ,संस्कार और शुचिता कि बात करता था | एक  बार इसके लोगो कि सरकार क्या बनी ,सब धुल गया | कोई ऐसी बुराई नही थी जिसमे इसके प्रमुख लोग लिप्त नही पाये गए हो | देश को सब याद है | अपने आदर्शो कि वो  हालत देख कर जो कार्यकर्ता मचल कर उस पाले में गिर सकता था वो भी जा गिरा और जो नही गिर पाया उसने शाखाओ से किनारा कर लिया | पहले बहुत जगहों पर शाखाये दिखती थी चाहे सुबह घूमने के शौकीन लोग ही क्यों ना उसमे भी खड़े हो जाते हो ,लेकिन उन्होंने भी जब असलियत देखा कि सत्ता से दूर बैठ कर आलोचना करना और तरह के नारे देना एक बात होती है ,सत्ता से दूर बैठ कर चेहरा साफ रखना एक बात होती है पर ये लोग उन लोगो से लाख गुना बुरे साबित हुए जो ५० साल से सत्ता में है और ओ भी सत्ता चंद दिन देखते ही ,तों उन लोगो ने भी किनारा कर लिया और आज शाखाओ कि कि संख्या १/१० भी नही रह गयी है | शायद  जो तिलस्मी था संघ का ओ कही दरक रहा है | बहुत कोशिश कर के भी पुनः जोड़ नही पा रहे है लोगो को | उधर अयोध्या के फैसले ने दंगा फ़ैलाने और उस बहाने खुद को पुनः फ़ैलाने का एक अवसर भी हाथ से छीन लिया |
 दो बयान दोनों संघ का नया चेहरा दिखाते हुए | जैसे संघ अन्य संगठनो कि तरह जगह जगह धरने पर बैठा ,ये अलग बात है कि भा ज पा ,बजरंग दल इत्यादि सारे संगठनो के शामिल होने के बावजूद धरना पूरी तरह फ्लॉप रहा ,कही भी सैकड़ो से आगे संख्या नही बढ़ पाई | बंद मुट्ठी थी संघ कि खुल गयी | कही ना कही विश्वास ,विश्वसनीयता ,लक्ष्य के प्रति भ्रम ,रास्ते के प्रति भ्रम ,जैसे तमाम कारणों ने संघ को गिरफ्त में ले लिया है | बहुत से लोगो कि तरह एक बार बनी सरकार ने जो भटकाव पैदा किया ,जो चेहरे पर रंग पोता उसे छुड़ाने का कोई रास्ता नही दिख रहा है | एक खास मराठा कौम को सर्व्श्रेस्थ मान कर और हिटलर को आदर्श मान कर उसी के लक्ष्य और रास्ते को स्वीकार कर बना संगठन कुछ ही वर्षो में नीति ,नीयत और नेतृत्व सभी दृष्टीयो से भटकाव का शिकार दिख रहा है | वहा चूँकि बहस और तर्क कि कोई गुंजाईश ही नही है इसीलिए कभी किसी और ने ये पूछा ही नही कि संघ का सारा असली नेतृत्व केवल एक खास मराठा जाती के पास क्यों ? रज्जू भैया का चेहरा कुछ दिन सामने रखा गया कि कोई ये सवाल ना कर दे परन्तु ताकत उनके पास नही थी |
मै दो बयानों का जिक्र कर रहा था | एक बयान सर संघचालक का कि संघ तों आतंकवादी नही है कुछ संघ से जुड़े लोग हो सकते है पर अब ओ संघ के साथ नही है | इसमें उन आरोपों को अपने आप स्वीकार कर लिया है संघचालक ने  कि सघ आतंकवाद के रास्ते पर चल पड़ा है | इस बयान को किसी खास चश्मे से नही बल्कि स्वतंत्र तरीके से जो भी देखेगा और चिंतन करेगा ओ समझ जायेगा कि शुचिता कि बात करने वाले ,बार बार दंगे कराने वाले और एक बार भारत का दिल तोड़ने वाले ,आजादी कि लड़ाई में मुखबिरी करने वाले और जिस आपातकाल कि सबसे ज्यादा चर्चा करते है ,उसमे अपनों को दगा देकर एक लाख से ज्यादा कि संख्या में माफ़ी मांग कर और सत्ता का समर्थन कर जेल से निकाल आने वाले ,और जिस महात्मा गाँधी को दुनिया दरश मान रही है ,उस आजादी के नायक कि हत्या करने वाले अब भारत को उन देशो में शुमार कर देने का प्रयास कर रहे है जो हर वक्त मौत ,दंगे और अनिश्चितता के मुहाने पर खड़े रहते है | ये अलग बात है कि यह बात खुल जाने के बाद  इनका शक्ल दिखाना भी मुश्किल हो जायेगा | अभी आये अदालती फैसले के समय इनके देश को दंगे कि आग में झोकने  तमाम प्रयासों को जिस तरह भारत ने ठुकराया और ये बता दिया कि भारत बदल रहा है |इसका लोकतंत्र मजबूत होकर उभर रहा है | भारत कि नयी पीढ़ी ने लक्ष्य तय कर लिया है और उस लक्ष्य में किसी भी भटकाव और दंगे कि कोई गुंजाईश नही है | अगर उसके बाद भी ये संगठन अभी अपने तरीको से ही चलना चाहता है तों भारत में उन लक्ष्यों और तरीको के लिए कोई जगह नही है |
दूसरा बयान दिया पूर्व संघचालक ने कि सोनिया गाँधी जिन्होंने अपने परिवार और सिन्दूर कि क़ुरबानी देखी ओ गद्दार है ,उन्होंने हत्याओ कि साजिश कि और ओ सोनिया गाँधी जिन्होंने भारत जैसे बड़े देश को का प्रधानमंत्री का पद दो बार ठुकरा दिया ओ और पता नही क्या क्या है  | भारत कि जनता सब जानती है ,सब देखती है | उसने देखा है कि जिसे भगवान कहा उसी राम को सत्ता के लिए धोखा किसने दिया | भारत कि जनता ने सुना है ओ बयान कि एक मंदिर के लिए सत्ता को नही गवा सकते | भारत कि जनता ने देखा है कि जब तक सरकार थी संघ से लेकर तथा कथित साधू संत और सभी हिंदूवादी संगठन कही खो गए थे या मिट्टी के मोल अपने तथा कथित आश्रम के लिए जमीने कब्ज़ा रहे थे या वो  सब कर रहे थे जो भारत कि जनता ने सी डी में देखा | संघ पहले सत्ता में घुसा और अब बहुत ही फूहड़ तरीके से सड़क के किनारे ही नही आ गया बल्कि फूहड़ भाषा और विचार के साथ आ गया | संघ कि सदस्यता कि सूची अगर जारी कर दी जाये तों भारत में सामने कुछ और सत्य अ जायेंगे | एक अभियान चला कर देखना चाहिए कि इस देश में जमा खोरी कौन  लोग करते है जिससे समान कम पड़ जाता है ,और फिर मुनाफाखोरी कौन लोग करते है | मिलावट कर जनता के जीवन से खिलवाड़ कौन करते है | जरा गौर से देखिये और फिर पहचानिए कि ये किस संगठन से जुड़े है | वह रे ज्ञान ,शील ,शुचिता ,संस्कार और पता नही क्या क्या | आप धन्य भी है और धान्य भी है पर दुनिया के साथ दौड़ाने वाले भारत को आप मंजूर नही है ,आप के षड़यंत्र मंजूर नही है ,किसी और गाँधी या आप के ही दीन दयाल उपाध्याय कि हत्या मंजूर नही है ,दंगे मंजूर नही है ,ये शुचिता मंजूर नही हैऊ ये भाषा मंजूर नही है ,ये अनर्गल आरोप मंजूर नही है ,हिटलर के सिद्धांत मंजूर नही है | बौखालने के बजाय चिंतन करने और भारत कि मुख्य धारा में रहने के बारे में सोचे तों शायद ....और प्रारंभ सोनिया गाँधी से माफ़ी मांग कर और इतना घिनौना आरोप लगाने के लिए भारत से माफ़ी मांग कर करना चाहिए |

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

चेहरे नही इंसान पढ़े जाते है ,मजहब नही ईमान पढ़े जाते है |भारत ही ऐसा देश है जहा एक साथ ,गीता और कुरान पढ़े जाते है |इन्होने हमारी एकता को नही तोडा है .अतः हमें एक साथ खड़ा रहना होगा ,ना मस्जिद ना मंदिर ,बस एक देश भारत और हम भारतीय |

रविवार, 19 सितंबर 2010

मुशर्रफ के बयान के बाद भी क्या कुछ होगा

                                                                                                                                                                              पाकिस्तान के पूर्व सेनापति और राष्ट्रपति मुशर्रफ ने अमरीका में यह बयान देकर की अतंकवादियो को पाकिस्तान लगातार प्रशिक्षण दे रहा है ,भारत के आरोपों को तों स्वीकार ही है ,चोरी और सीनाजोरी वाला काम भी किया है |एक तरह देखे तों इस तरह उसने  भारत की सत्ता को, साहस को,और सहन शक्ति को चुनौती दी है | अब तों  भारत को कुछ कड़े कदम उठाने ही होंगे | इसमे तों कोई शक ही नही था  कि ये सारी वारदातें कहा से होती है ,कहा से षड़यंत्र होता है और कहा से हथियार और चंद सिक्को के बदले मरने और मारने के लिए ये लडके भेजे जाते है | अमरीका एक तरफ आतंकवाद से लड़ने कि बात करता है इसी नाम पर कभी इराक तों कभी अफगानिस्तान में फ़ौज उतार देता है  और दूसरी तरफ आतंकवाद कि खेती को उगाने  और उसके लिए खाद पानी का इंतजाम करने के लिए आतंकवाद के जनक और सबसे बड़े सप्लायर देश पाकिस्तान को अरबो डालर हर साल देता है |क्या अमरीका को मुशर्रफ के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में कार्यवाही नही करनी चाहिये ,क्या मुशर्रफ़ के इस बयान के बाद अमरीका को पाकिस्तान को दी जाने वाली खरबो डालर  वाली सहायता सिर्फ बंद ही नही कर देनी चाहिए  बल्कि दिया हुआ धन वापस नही मांग लेना चाहिए ,क्या इंग्लॅण्ड को मुशर्रफ़ का उनके देश में निवास रद्द नही कर देना चाहिए |यह सवाल कम से कम आतंकवाद का सबसे बड़ा दंश झेल रहे भारतियो के दिमाग में तों कौंध ही रहा है पर अमरीका शायद दोअहरी नीति ही अपनाये रखे |
अमरीका कि यह दोगली नीति उसे भी खोखला कर रही है ,वह भी एक बड़ा आतंकवादी हमला झेल चुका है ,जिसमे उसकी सारी व्यवस्थाएं धरी कि धरी रह गयी |आतंकवादियों ने उन्ही का जहाज इस्तेमाल किया और उनका गरूर भी तोडा तथा उनकी सत्ता को चुनौती भी दिया |इनकी खुद कि रपट बताती है कि उस वक्त किस तरह सारे हुक्मरान जमीन के नीचे बनी खंदको में छुप गए थे |पाकिस्तान हर बार हर युद्ध में मुह कि खा चुका है ,यह अमरीका अच्छी तरह जानता है |लेकिन भारत बड़ी शक्ति ना बन जाये ,उसके सामने खड़ा ना हो जाये और अमरीकी व्यापारियों का हथियार बिकता रहे ,इसके लिए वह जरूरी समझाता है कि भारत को उलझाये रखो |पड़ोसियों को लड़ाते  रहो ,.ठीक वैसे जैसे आजादी के पहले हिन्दू मुसलमानों को लड़ाया करते थे |पाकिस्तान कि हालात इतनी ख़राब है कि वह अमरीका कि भीख पर जीने को मजबूर है ,वरना वहा भूखो मरने कि नौबत आ जाएगी |कभी कुछ नही करने के कारण ,कभी कट्टर कठ मुल्लाओ के दबाव में होने के कारण और ज्यादातर फ़ौज का शासन होने के कारण वहा विकास कि बात ही नही ,और जनता भी अपना दबाव नही बना पाई | पाकिस्तान से मिली खैरात का इस्तेमाल केवल भारत के खिलाफ करता है ,यहाँ कि तरक्की के खिलाफ करता है ,विकास के खिलाफ करता है | क्योकि उसका तों विकास से कुछ लेना देना नही है | वहा तों फ़ौज के बूटो के नीचे लोकतंत्र कुचला जा चुका है और फ़ौज को ताकतवर रहना है तों भारत का हौवा दिखा कर छद्म युद्ध छेड़े ही रखना होगा | वहा के राजनीतिको को भी कुछ काम करने के बजाय यही विकल्प ठीक लगता है कि इस कायराना युद्ध से फायदे ही फायदे है | बिना कुछ किये फ़ौज के साये में सत्ता का लुत्फ़ भी उठाते है और इसके खर्चो का कोई हिसाब किताब नही होता है | जिसके कारण वहा के सारे नेता भारी दौलत और संपत्ति विदेश में बना कर रखते है कि पता नही कब फ़ौज भागा दे और देश छोड़ कर कही शरण लेनी पड़े | कई साल पहले पाकिस्तान के एक बड़े अधिकारी से मिलने का मौका मिला | वे आजादी के बाद अलीगढ से पढ़ कर वहा गए थे | देश के एक विभाग के सबसे बड़े पद पर थे | उन्होंने कहा कि मै यहाँ होता तों क्या होता ? वहा हम सभी भाइयो कि अलग अलग कई एकड़ में कोठियां है ,कई एकड़ का चिलगोजे का फार्म है और बाहर भी बहुत कुछ है ,क्या उतना यहाँ होता ?वे रिटायर होने के बाद सब बेंच कर उसी पच्छिमी देश चले गए जहा सम्पति होने का उन्होंने जिक्र किया था | उस वक्त जिया राष्ट्रपति थे तथा जुनेजो प्रधान मंत्री थे | कट्टर इस्लाम कानून लागू था | उनके बच्चे कि शादी हुई जिसमे मै नही जा पाया था | लेकिन एक हमारे साथी गए थे ,जिनके कारण मेरा परिचय हुआ था | उस साथी ने लौट कर जो फोटो दिखाए तथा जो वर्णन किया वह पाकिस्तान का असली चेहरा जानने के लिए काफी था  | जहा भारत के खिलाफ केवल कायराना युद्ध लड़ कर इतना सब हासिल हो और जनता कोई सवाल नही करती हो ,आतंकवाद वहा का सबसे बड़ा रोजगार बन गया है तों क्या बड़ी बात है |
   जब दुनिया यह सब जानती है ,अमरीका सहित दुनिया के सभी देश यह सब जानते है और भारत कि सरकार यह सब जानती है तों फिर यह सहा क्यों जा रहा है ?अमरीका, इंग्लॅण्ड,सहित वे सभी देश जो सामूहिक रूप से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने कि बात करते है यहाँ उन्होंने चुप्पी क्यों ओढ़ राखी है |सिर्फ इसलिए कि उनके लिए आतकवाद नही ,मानवता नही बल्कि उनके हित और उनका व्यापार ज्यादा महत्वपूर्ण है |लेकिन भारत क्यों सह रहा है ?क्या भारत कमजोर हो गया है ?क्या भारत किसी दबाव में है ?क्या भारत में इच्छाशक्ति कि कमी हो गयी है या भारत के वर्तमान नेता कमजोर साबित हो रहे है |क्या यहाँ अब कोई इंदिरा गाँधी जैसा नही है ,लाल बहादुर शास्त्री जैसा नही है |या मन का विश्वास और खून कि गरमी कही कमजोर पड़ गयी है |19७१ में एक सबक दिया तों अगले २० साल से अधिक तक या कारगिल तक देश काफी चैन से रहा |सवाल है कि  युद्ध में हथियार खर्च होता है ,वह हो रहा है ,पैसा खर्च होता है ,वह और ज्यादा हो रहा है ,लोग प्राण गवांते है ,वह भी युद्ध के मुकाबले ज्यादा लोग मर रहे है | युद्ध में तों सिपाही लड़ कर कुछ लोगो को मार कर मरता है और जनता पूरी तरह सुरक्षित रहती है | पर इस युद्ध में तों सिपाही बिना लड़े ही मर रहा है और जनता भी मारी जा रही है ,बेगुनाह जनता  | जब सब कुछ युद्ध से ज्यादा हो रहा है और इन परिस्थितियों से विकास भी प्रभावित होता है और जीवन भी प्रभासित हो रहा है  तों फिर एक बार अंतिम लड़ाई क्यों नही |समझाने  कि कोशिश बहुत हो चुकी ,वार्ताएं बहुत हो चुकी ,बस और ट्रेन चल चुकी ,भारत पाक एकता कि बाते हो चुकी ,विभिन्न वर्गों का आदान प्रदान हो चुका लेकिन कुत्ते कि पूंछ इतने वर्षो बाद भी टेढ़ी कि टेढ़ी है तों अब रास्ता क्या है ,सरकार को बताना तों पड़ेगा कि सब्र का पैमाना कब भरा हुआ माना  जायेगा और सरकार कब फैसलाकुन फैसला लेगी | सौ करोड़ से बड़ा यह देश जवाब का इंतजार कर रहा है |
चार छोकरों कि हरकतें ,उनके धमाके और गोली भारत का रास्ता नही रोक सकती ,सरकार हार जाये पर भारत कि जनता बहुत बहादुर है |अमरीका कि तरह यहाँ कायरता पूर्ण हरकते भी नही होंगी | पूरी कोशिश थी रास्त्रमंडल खेल ख़राब करने की और देश की फिजा ख़राब करने की पर खेल भी हुआ  और  अयोध्या पर अदालत का फैसला भी हुआ और इस देश ने दिखा दिया की यह देश और इसका लोकतंत्र परिपक्व हो चुका है .सब अच्छे माहौल में हुआ और हो रहा है और रहेगा भी लेकिन पडोसी की और उसके पूर्व रास्त्रध्यक्ष की  यह चिकोटी अब बहुत बुरी लगने लगी है|जब कुछ लगातार बुरा लगत है  तों थप्पड़ तों बिना सोचे समझे अपने आप भी चल जाता है |क्या भारत कि सरकार का  स्वस्फूर्त थप्पड़ अब चलेगा ?नही तों कब चलेगा ?जनता रोज रोज के बजाय अब एक अंतिम इलाज चाहती है |जनता कह रही है ;रे रोक युधिस्ठिर को ना अब ,लौटा दे अर्जुन वीर हमें |                                                                                                     
                                                                                                   
                                                                                       
                                                                                                                                                                                                                                                               
बच्चा बोला देख कर एक मस्जिद आलीशान | अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान | मंदिर में घी पूड़ी और चढ़े मिस्ठान | बाहर बैठा दीन देवता मांग रहा है दान | मंदिर मस्जिद के लिए नही ,भारत के नवनिर्माण के लिए संघर्स करे |

शनिवार, 11 सितंबर 2010

 मन बहुत अशांत है ,समाज विरोधी ,मानवता विरोधी , देश विरोधी लोग फिर दंगे कि साजिश कर रहे है | एक फैसला आना है ,अदालत का फैसला |ऐसे मामले में जिसमे एक बार देश दंगो कि आग में झुलस चुका है |चारो तरफ बस चीख पुकार ,हत्याएं ,बलात्कार ,लूट पाट ,बस मौत का तांडव ,आग ही आग |लेकिन एक बार कुछ लोग कामयाब हो गए |दंगे ,बलात्कार ,खून और आग ने उनकी सरकार बनवा दी |फिर मुद्दा भूल गए ,जहा जो मिला टूट पड़े जर ,जोरू या जमीन |एक समय तों ऐसा आ गया था कि सभी शहरो में कहावत चल पड़ी थी कि जमीन ख़ाली मत छोडो ताला लगा दो वरना जन्मभूमि भक्त कब्ज़ा कर लेंगे |जो संगठन अपने को आदर्श कहता था उसके लोग सीडी में नारी या मातृशक्ति का उद्धार करते दिखलाई दिए | संगठन के अध्यक्ष पद पर बैठा व्यक्ति टी वी पर घूस लेता दिखलाई दिया | मंदिर का सबसे बड़ा अलमबरदार गृहमंत्री के पद बैठा तों टी वी पर यह कहता दिखलाई दिया कि एक मंदिर के लिए हम सरकार नही गवा सकते | कश्मीर में झंडा फहराने निकलने वाला पूर्व अध्यक्ष मंत्री पद पाते ही कश्मीर ,धारा ३७० ,समान कानून सब भूल गया | विदेश मंत्री पद पर बैठा सूरमा सेना के जहाज से हजारो के कातिल को और सबसे बड़े आतंकवादी को सैकड़ो करोड़ रूपये के साथ, आदर के साथ उसके घर पहुँचने चला गया | आदर्श हिन्दू नेताओ को झींगा मछली का स्वाद लेते हुए भी हिन्दू समाज ने देखा ,तथाकथित साधू संतो को हजारो एकड़ जमीने हथियाते हुए भी देश ने देखा | दुशमन देश कि छाती पर चढ़ आया और इन देश भक्तो कि सरकार को सोते हुए देश ने देखा ,जिसमे बड़े पैमाने पर देश के जवानो को क़ुरबानी देनी पड़ी तब वह हमारी जमीन आजाद हो पाई ,जवानो ने कहा कि यदि नीचे से ऊपर बैठे हुओ से युद्ध में बोफोर्स तोप नही होती तों लड़ाई मुश्किल थी और यह कह कर इन देश भक्तो कि सरकार में जिस राजीव गाँधी पर इन सबने तोहमते लगे थी उसकी जिंदाबाद करते देखा | इन सूर्माओ कि सरकार में की सरकार में कफ़न से लेकर ताबूत तक के घोटालो को देश ने देखा | जिनका दावा है की उनका संगठन गली गली में फैला है ,वे देश की रक्षा के लिए कटिबद्ध है उनकी सरकार में चार छोकरे तमन्च्चे लेकर देश की अस्मिता और सत्ता तथा सार्वभौमिकता के प्रतीक संसद में घुस आये और इन्हें मेजो के नीचे छुपते हए देखा तब भी गरीबो के घर के नौजवानों ने प्राण की आहुति देकर उसकी रक्षा किया जिन गरीबो से ये नफ़रत करते है क्योकि इनके समर्थक और आधार ही जमाखोर और मुनाफाखोर जमात के लोग है| क्या क्या बताये पूरी सरकार गंध मारने लगी थी | मौका लगते ही देश ने ,जनता ने सबक सिखाया और औकात पर पहुंचा दिया | देश ने अभी यह भी देखा की जिस शिबू सोरेन के कारण इन लोगो ने हफ्तों संसद नही चलाने दिया था ,अब उसी से हाथ मिला कर सरकार बना लिया | सरकार जाने के बाद इनकी पोल फिर खुली बम्बई के हमले के समय ,वहा भी ये और इनका सूरमा संगठन कही दिखलाई नही पड़ा |१९७७ की पहली सरकार में जब ये शामिल थे तों उस समय के लोगो को याद होगा की पहली शपथ में इनके आदमी को उद्द्योग मंत्री बनाया गया था ,तब भी उस माहौल की बनी सरकार में भी इनके उस आदमी ने भ्रस्टाचार कर दिया ,जिसके कारण उसका विभाग बदल कर वह विभाग जोर्ज को दिया गया था |उस घटना का जिक्र मै करना नही चाहता था ,क्योकि पता नही वह व्यक्ति सफाई देने को जिन्दा है या नही ,और समाज की व्यवस्था है की दिवंगतो के बारे में कुछ नही कहा जाता है ,पर मुझे देश को इनका असली चेहरा दिखाने के लिए यह सब याद दिलाना पद रहा है | दीनदयाल उपाध्याय की हत्या को खोलने की ये कभी मांग नही करते है और ना चाहते है ,क्योकि ये इनके कट्टर विचारो का विरोध करने का मन बना चुके थे और अगली जगह पहुँच कर वह शायद ऐसा करने वाले थे | सुबहा होता है की उनकी मौत कुछ उन्ही के कट्टर लोगो ने तों नही कर दिया था क्योकि जो लोग गाँधी जी की हत्या कर सकते है ये कायराना तरीके से किसी की भी हत्या कर सकते है | ये सब इतिहास की बाते है और इतिहास के गर्भ में है ,लेकिन इतिहास लिखा ही इसीलिए जाता है की पीढ़िया पढ़े ,याद रखे और सबक ले की अब वह सब नही होने देंगे | आपातकाल जिसको लेकर ये बहुत गाना गाते है और छाती चौड़ी करने की कोशिश करते है ,देश भूला नही है की चार दिन में ही एक लाख से अधिक ये सूरमा माफ़ी मांग कर और सरकार की नीतियों में आस्था प्रकट कर जेलों से घर पहुँच गए थे तथा ज्योही आपातकाल ख़त्म हुआ दाढ़ी बढ़ा कर आ गए कहते हुए की हम तों फरार थे ,देश ने ये सब देखा है | मंदिर के मामले में जब चंद्रशेखर जी की सरकार में वार्तालाप एक निष्कर्ष पर पहुँच गया था और फैसला होने वाला था समझौते का तों आपस में राय करने की बात कर ये लोग बाहर गए फिर लौट कर ही नही आये ,क्योकि बाहर राय हुई की मुद्दा ही समाप्त  हो जायेगा तों फिर राजनीति करने के लिए क्या रह जायेगा | अपनी सरकार में देश से वादा करने के बावजूद ,सर्वोच्च न्यायलय में हलफनामा देने के बावजूद इन्होने कानून व्यवस्था के लिए और देश की साझा विरासत को बचाने के लिए कुछ नही किया | इन्होने देश देश का कानून भी तोडा ,संविधान को नाकारा और देश का दिल भी तोडा |खैर जब कोई बात नही बनी तों पूरे देश ने कहा की या तों बात से मामला सुलझ जाये या फिर अदालत निर्णय कर दे | देश की उसी भावना के अंतर्गत इतनी लम्बी सुनवाई के बाद अब फैसला आने की घडी आ गयी है तों ये सूरमा फिर कुलबुलाने लगे है ,तरह के ढोंग और व्यूहरचना शुरू कर दिया है की दंगा कैसे भड़काया जाये |इसी देश की कहावत है की काठ हांड़ी केवल एक बार चढ़ती है ,शायद इन्हें याद नही है |
यह देश दंगा नही केवल विकास कहता है ,देश को ताकतवर चाहता है और चाहता है की अमन चैन कायम रहे |इसलिए वह अब इनके साथ नही है| देश इनको समझने लगा है पर फिर भी इनसे सावधान रहने की आवश्यकता है |आइये मिलजुल कर ऐसा माहौल बनाये कि ये घिनौने इरादों में  कामयाब ना हो पाये |१-कण, कण में बसे है अपने आदर्श राम ,हो सके तों उन्हें छोटे वृत्त में ना डालिए ,अपनी जन्म भूमि राम जी सम्हाल लेंगे ,हो सके तों आप मातृभूमि को सम्हालिए |2-धर्म को अगर राजनीति से जोड़ा जायेगा ,बस्ती बस्ती अश्वमेघ का घोडा जायेगा ,राम राज्य स्थापित करने वालो से पूछो ,सीता को क्या फिर से वन में छोड़ा जायेगा |३-साधू जो सचमुच साधू है उन्हें समझाना चाहिए की ---बादशाहों से फकीरों का बड़ा था मर्तबा ,लेकिन जब तक उनका सियासत से कोई मतलब ना था |  जय हिंद

बुधवार, 8 सितंबर 2010

कांग्रेस के लोग राहुल के मिशन को पलीता लगाने में लगे है ,पूरे नौ माह हो गए संगठन कि चुनाव प्रक्रिया में  लगता है कि जो कांग्रेस पहले नंबर पर दिख रही थी वो कोमा में चली गयी है ,पूरी फर्जी सदस्यता ,कोरा और फर्जी कागजी काम ,तमाम भाग दौड़ ,और अंत में वही ढ़ाक के तीन पात ,वही चेहरे ,जिन्हें लोग पसंद नही करते ,वही लोग जिनके कर्मो के कारण पार्टी कमजोर हुई वही सब फिर स्थापित हो गए ,कुछ नही बदला .तमाम जगह चुनाव के नाम पर फर्जी खाना  पूरी हुई .सवाल ये है कि इस सारे फर्जी कामो से पार्टी कैसे खड़ी होगी .पूरी पार्टी सत्ता से या दूसरी पार्टियों से लड़ने के स्थान पर आपसी लड़ाई में लगी है .जनता के सामने तमाम मुसीबते है लेकिन जब तमाम कार्यकर्ता खुद मुसीबत में हो अपना फर्जी अस्तित्व बचाने के तों जनता कि लड़ाई कोंन लड़े .ऐसे कैसे २०१२ का मिशन पूरा होगा .
कार्यकर्ताओ का इस बात पर बिलकुल विश्वाश नही है कि पहले बंजर खेत को उपजाऊ बनाये मेहनत करके और फसल पैदा करने कि कोशिश करे ,जब फसल हो जाये तब तय कर ले कि किसकी कितनी रोटी है .सूत ना कपास औए लट्ठम लट्ठा वाली कहावत सही में देखनी हो तों उत्तर प्रदेश और बिहार कि कांग्रेस कि राजनीत देख ले ,उसका अर्थ पता लग जायेगा . उत्तर प्रदेश और  बिहार कि जनता तमाम दलों से ऊब गयी है और परिवर्तन के लिए कांग्रेस कि तरफ देख रही है ,देश के पैमाने पर राहुल ने एक विश्वाश और उम्मीद भी जगाया है ,लेकिन जनता जाग चुकी है वह फिर से कूए से निकल कर खाई में नही गिरना चाहती है ,वह चाहती है कि उसके सामने कांग्रेस अपना भविष्य का एजेंडा रखे ,संभावित नेता का नाम रखे ,विकास का एक रोड मैप सामने रखे ,जिससे जनता विश्वाश कर सके कि आने वाले लोग इससे पहले वाली सरकारों कि तरह लुटेरे नही होंगे ,विकास के  दुश्मन नही होगे ,कानून व्यवस्था के मामले में नपुंसक नही साबित होंगे .लगता ये है कि राहुल को और ज्यादा समय देकर इन प्रदेशो कि नकेल अपने हाथ में लेनी होगी ,वरना इन कार्यकर्ताओ कि हरकतों से कुछ बनने के स्थान पर बिगड़ ज्यादा रहा है .राहुल जितना माहौल बनाते है सबको ये पुराने बिगडैल बर्बाद कर देते है .जबकि पिछले बीस से अधिक सालो में ये प्रदेश इतने पिछड़ गए है कि इन्हें पटरी पर लाने के लिए कांग्रेस की एक मजबूत  इरादे के साथ ,मजबूत औए ईमानदार नेता के साथ ,विकास कि रणनीति के साथ ,सोचे समझे कार्यक्रम और एजेंडे के साथ बहुत जरूरत है .सभी कि दिलचस्पी इस बात में है कि कांग्रेसियों कि हरकते और आदते दल को बर्बाद करने में कामयाब होती है या राहुल के मजबूत इरादे कामयाब होते है ,जनता तों यही चाहेगी कि राहुल कामयाब हो .

रविवार, 5 सितंबर 2010

महात्मा गाँधी को जवाब चाहिये

                                    महत्मा गाँधी को जवाब चाहिए

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                                                                                                                                                                                                                                                                                       बहुत आश्चर्यचकित है हिंदुस्तान आज उन ताकतों के द्वारा महत्मा गाँधी की माला जपने से जिनके आदर्शो ने आज से 65 वर्ष पूर्व महात्मा गाँधी की महज शारीरिक हत्या कर दी थी ,लेकिन बापू मरे नही | अपने विचारो और आदर्शो के साथ वो आज भी जिन्दा है | 65 वर्ष बीत गए | इतनी  लम्बी अवधि में एक पूरी पीढ़ी गुजर जाती है ,रास्ट्र के जीवन में अनगिनत संघर्षो ,संकल्पों और समीक्षाओ का दौर आता और जाता रहा | इतने उतार और चढाव के बावजूद अगर आज भी किसी का वजूद कायम है तों निश्चय ही उनमे कुछ तों चमत्कार होगा | बापू को इसी नजरिये से देखने की जरूरत है |
मुल्क को आजादी दिलाने के बाद भी वे संतुस्ट नही थे | सत्ता से अलग रहकर वह एक और कठिन कम में लगे थे | वे देश की आर्थिक ,सामाजिक और नैतिक आजादी के लिए एक नए संघर्ष की उधेड़बुन में थे | रामधुन ,चरखा ,चिंतन तथा प्रवचन उनकी दिनचर्या थी | एक दिन पहले ही उनकी प्रार्थना सभा के पास धमाका हुआ था लेकिन दुनिया का महानतम सत्याग्रही विचलित नही हुआ | वह स्वावलंबी भारत का स्वप्न देखते थे |वह गाँवो को अधिकार संपन्न ,जागरूक तथा अंतिम व्यक्ति को भी देश का मजबूत आधार बनाना चाहते थे |जब दिल्ली में उनके कारण आई सरकार स्वरुप ले रही थी ,स्वतंत्रता का जश्न मन रहा था ,तब बापू दूर बंगाल में खून खराबा रोकने के लिए आमरण कर रहे थे | बापू की दिनचर्या में परिवर्तन नही ,विचारो में लेशमात्र भटकाव नही ,लम्बी लड़ाई के बाद भी थकान नही और लक्ष्य के प्रति तनिक भी उदारता नही | अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार मानने वाले बापू निर्विकार भाव से अपनी यात्रा पर चले जा रहे थे की तभी एक अनजान हाथ प्रकट हुआ जो आजादी की लड़ाई में कही नही दिखा था ,ना बापू के साथ ,ना सुभाष के साथ और ना भगत सिंह के साथ | उस हाथ में थी अंग्रेजो की बनाई पिस्तोल, उससे निकाली अंग्रेजो की बनाई गोली ,वह भी अंग्रेजो के दम दबा कर भाग जाने के बाद ,तथाकथित हिन्दोस्तानी हाथ से | वह महापुरुष जिसके कारण इतनी बड़ी साम्राज्यवादी ताकत का सब कुछ छीन रहा था ,फिर भी उनके शरीर पर एक खरोंच लगाने की हिम्मत नही कर पाई ,जिस अफ्रीका की रंगभेदी सरकार भी बल प्रयोग नही कर सकी थी, उनके सीने में अंग्रेजो की गोली उतार दी एक सिरफिरे कायर ने वह महापुरुष चला गया हे राम कहता हुआ |गाँधी जी के राम सत्ता और राजनीति के लिए इस्तेमाल होने वाले राम नही थे बल्कि व्यक्तिगत जीवन में आस्था तथा आदर्श के प्रेरणाश्रोत इश्वर थे |
तब आर एस एस पर उगली उठी थी ,उसपर पाबन्दी भी लगी और संघ क कट्टर सदस्य होने के बावजूद अज्ञात कारनो से हत्यारे ने अपने संघ से रिश्ते नकार दिये | सवाल उठा की बापू की हत्या क्यों की गयी |आज भी यह सवाल अनुत्तरित है | इस सवाल की प्रेतछाया से बचाने के लिए ही शायद भाजपा ने कुछ वर्षो पहले गांधीवाद शब्द का प्रयोग किया था संघ से बहुत विरोध हुवा था और फिर कभी नाम नही लिया । यह गिरगिट के रंग बदलने के समान ही था | गाँधी जी फासीवाद के रास्ते की बड़ी बाधा थे | गाँधी जी 'ईश्वर- अल्ला तेरो नाम 'तथा 'वैष्णवजन तों तेने कहिये प्रीत पराई जाने रे 'की तरफ सबको ले जाना चाहते थे | बापू के आदर्श राम ,बुद्ध ,महावीर ,विवेकानंद तथा अरविन्द थे | हिटलर को आदर्श मानने वाले हिटलर कि तारीफ करते हुए किताब लिखने वाले और हिटलर को आदर्श बताने वाले और गान्धी जी हत्यारे को महान बताने कि किताब छाप कर बाटने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते ? गाँधी सत्य को जीवन का आदर्श मानते थे ,झूठ को सौ बार सौ जगह बोल कर सच बनाने वाले उन्हें कैसे स्वीकार करते ? शायद इसीलिए महात्मा के शरीर को मार दिया  गया | 
क्या इससे गाँधी सचमुच ख़त्म हो गए ? बापू यदि ख़त्म हो गए तों मार्टिन लूथर किंग को प्रेरणा किसने दी ? नेल्सन मंडेला ने किस की रोशनी के सहारे सारा जीवन जेल में बिता दिया ,परन्तु अहिंसक आन्दोलन चलते रहे और अंत में विजयी हुए ? दलाई लामा किस विश्वास पर लड़ रहे है इतने सालो से ? खान अब्दुल गफ्फार खान अंतिम समय तक सीमान्त गाँधी कहलाने में क्यों गर्व महसूस करते रहे ? अमरीका के राष्ट्रपति आज भी किसको आदर्श मानते है और दुनिया में बाकी लोगो को भी मानने की शिक्षा देते रहते है ?अभी हाल मे कुछ देशो मे अहिंसक क्रान्ति किसके रस्ते पर चल कर हुई । संयुक्त रास्ट्र संघ के सभा कक्ष से लेकर १२२ देशो की राजधानियों ने महात्मा गाँधी को जिन्दा रखा है |कही उनके नाम पर सड़क बनी ,तों कही शोध या शिक्षा संस्थान और कुछ नही तों प्रतिमा तों जरूर लगी है |जिसको भारत में मिटाने का प्रयास किया गया ,वह पूरी दुनिया में जिन्दा है | महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने कहा की आने वाली पीढियां शायद ही इस बात पर यकीन कर सकेंगी की कभी पृथ्वी पर ऐसा हाड़ मांस का पुतला भी चला था | जिस नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को गाँधी के विरुद्ध बताया गया ,उन्होंने जापान से महात्मा गाँधी को रास्ट्रपिता कह कर पुकारा तथा कहा की यदि आजादी मिलती है तों वे चाहेंगे की देश की बागडोर रास्ट्रपिता सम्हालें ,वह स्वयं एक सिपाही की भूमिका में ही रहना चाहेंगे | परन्तु बापू को सत्ता नही ,जनता की चिंता थी ,उसकी तकलीफों की चिंता थी |
उन्होंने कहा की भूखे आदमी के सामने ईश्वर को रोटी के रूप में आना चाहिए | यह वाक्य मार्क्सवाद के आगे का है | उन्होंने कहा की आदतन खादी पहने ,जिससे देश स्वदेशी तथा स्वावलंबन की दिशा में चल सके ,लोगो को रोजगार मिल सके | नई तालीम के आधार पर लोगो को मुफ्त शिक्षा दी जाये | लोगो को लोकतंत्र और मताधिकार का महत्व समझाया जाये और उसके लिए प्रेरित किया जाये | उन्होंने सत्ता के विकेन्द्रीकरण ,धर्म ,मानवता ,समाज और रास्ट्र सहित उन तमाम मुद्दों की तरफ लोगो का ध्यान खींचा जो आज भी ज्वलंत प्रश्न है|
वे और उनके विचार आज भी जिन्दा है और प्रासंगिक है | अमरीका में कुछ वर्ष पूर्व जब हिलेरी क्लिंटन ने बापू पर कोई हलकी बात कर दिया तों अमरीका के लोगो ने ही इतना विरोध किया की चार दिन के अन्दर ही हिलेरी को खेद व्यक्त करना पड़ा | गुजरात की घटनाओं के समय जब हैदराबाद में दो समुदाय के हजारों लोग आमने -सामने आँखों में खून तथा दिल में नफरत लेकर एकत्र हो गए ,तों वहा दोनों समुदाय की मुट्ठी भर औरते मानव श्रंखला बना कर दोनों के बीच खड़ी हो गयी | यह गाँधी का बताया रास्ता ही तों था ,वहा विचार के रूप में गाँधी ही तों खड़े थे | कुछ साल पहले अहिंसा के पुँजारी बापू के घर गुजरात में राम ,रहीम और गाँधी तीनो को पराजित करने की चेष्टा हुई ,लेकिन हत्यारे ना गाँधी के हो सकते है ,ना राम के ना रहीम के | और गुजरात काण्ड के हीरो पता नही कैसे महात्मा गान्धी का नाम लेने और लगातार लेने कि हिम्मत जुटा रहे है । समय बतायेगा कि बापू और सरदार का नाम लेने के पीछे असली मंशा क्या है । 
महत्मा गाँधी तों नही मरे ,फिर हत्यारे ने मारा किसे था ?ऐसे सिरफिरे लोग और उनके संगठन कितनी हत्याएं करेंगे ?पिछले 65 वर्षो में भी वे गाँधी को नही मार पाये है | वह कौन सा दिन होगा जब फासीवादी लोग गाँधी की पूर्ण हत्या करने में कामयाब हो पाएंगे ? सचेत रहना पड़ेगा की फासीवादी ताकतें अचानक बापू का इस्तेमाल करने लगी ? इसके पीछे देश को हिटलर की तरह भ्रमित कर सत्ता हथियाने और फासीवाद थोप कर बापू की अंतिम हत्या करने का उद्देश्य तो नहीं है ?  जिम्मेदारी और जवाबदेही बापू को मानने वालो की है की सत्ता की ताकत से महात्मा गाँधी को बौना करने ,उन्हें गाली देने और गोली मरने वालो से मानवता को बचाएं और देश को बचाएं  |रास्ता वही होगा जो गाँधीजी  ने दिखाया था | पैसठवा वर्ष जवाब चाहता है दोनों से की फासीवादियो तुमने गाँधी को मारा क्यों था ?उद्देश्य क्या था ? तुम कहा तक पहुंचे ?उनके मानने  वालो से भी कि आर्थिक गैर बराबरी ,सामाजिक गैर बराबरी के खिलाफ ,नफ़रत और शोषण के खिलाफ बापू द्वारा छेड़ा गया युद्ध फैसलाकुन कब तक होगा ? उनके सपनो का भारत कब तक बनेगा ? इन सवालो के साथ महात्मा गाँधी तथा उनके विचार आज भी जिन्दा है और कल भी हमारे बीच मौजूद रहेंगे |
                                                                                                                     
                                                                          

                                                                                                    
                                                                                                  
                                                                                               
                                                                                                               

 

                                                                      

                                              
                                                                                                                                                                                          


मंगलवार, 31 अगस्त 2010

देश को फिर से दंगे कि आग में झोकने कि साजिश शुरू हो गयी है .राम के नाम पर एक बार सत्ता का मजा चख चुके भाजपाई ,हिंदूवादी संगठन ,आर एस एस और तथाकथित साधू संतो ने फिर उस मजे को पाने के लिए कमर कस लिया है .कैसे दंगा करवाया जाये ,शांति के साथ तरक्की करते हुए मुल्क को कैसे फिर से मंदिर के नाम पर उकसाया जाये इसके लिए ये सारे संगठन मिल कर रणनीति बनाने में दिन रट एक किये हुए है .इनका भारत के संविधान और न्याय व्यवस्था पर अब विश्वाश नही रहा ,विश्वाश तों पहले भी नही था वरना पहले ही सर्वोच्च न्यायालय में शपथ देकर उसे नही तोड़ते और ना ही कानून अपने हाथ में लेकर इतना बड़ा दंगा करवाते जिसके कारण देश का दिल टूटा और देश आतंकवाद का शिकार हुआ ,पूरी दुनिया के सामने वसुधैव कुटुम्ब्कुम का नारा लगाने वाले भारत का सर दुनिया के सामने इन ताकतों के कारण झुक गया .बड़ी मुश्किल से फिर से देश प्रतिस्ठा के साथ एकता के साथ आगे बढ़ रहा है कि इन लीगो ने फिर से उसे दंगे कि आग में झोकने कि व्यवस्था करने के बारे में चिंतन करना और उस दिशा में तेजी से कम करना शुरू कर दिया है .इनके संगठनो में तैयारी होने लगी है कि अदालत का फैसला आने के बाद क्या क्या और किस किस तरह कि अफवाह उड़ानी है और पहले कैसेट थें अब बड़े पैमाने पर सीडी बन रही है जिसमे मारों काटो कि आवाजें और आ गए बचाओ कि आवाजें किसी कट्टर कि छत से बजाई जाएँगी .तमाम एस एम् एस भेजे जा रहे है इस आग्रह के साथ कि इसी लोग आगे तमाम लोगो को भेजें ,कोई ये ना कह दे कि छ साल तक भा जा पा कि सरकार थी मंदिर क्यों नही बनाया इसीलिए कट्टर ताकतों द्वारा उसकी बुराई कि जा रही है ठीक उसी तरह जैसे एक रणनीति के तहत उस वक्त भी अटल बिहारी वाजपेयी को अयोध्या से दिल्ली भेज दिया गया था कि एक चेहरा छोड़ दो कि अगर पूर्ण बहुमत ना आये तों उसके नाम पर लोगो कि मदद ली जा सके .

भारत को ,भारत के धर्मनिरपेक्ष लोगो को जागरूक लोगो को इस  मौके पर बड़ी भूमिका निभाने कि जरूरत है और समय से पहले ही यदि इनका पुराना चेहरा लोगो को फिर से याद दिला दिया जाये ,इनकी बाते और वादे तथा इनकी सरकार के कर्म याद दिला दिए जाये तथा लोगो को इनकी दंगे कि साजिश के बारे बता दिया जाये तों देश को झुलसने से बचाया जा सकता है और ये सबका रास्ट्रीय धर्म भी है .आइये देश को दंगाईयो  से बचाए .

रविवार, 22 अगस्त 2010

आजकल नेता और पार्टियाँ किसान किसान खेल रही है

आजकल नेता और पार्टियाँ किसान किसान खेल रही है .किसान तबाह होता जा रहा है .सभी प्रदेशो में हर साल तमाम किसान आत्महत्या कर लेते है क्यों की वे सबकी मर झेल रहे है .पहले उन्हें प्रकृति मारती है कभी सूखे के रूप में कभी बढ़ के रूप में और उसे मिलता है किसी नेता के हवाई सर्वेषण का चित्र या अफसरों के हवाई दावे और हवाई घोसणाये या फिर हिस्से का एक बटा दस जो दो दिन भी खाना नही खिला पता है.[आजकल तों और बड़ा मजाख चर्चा में है कि अनाज सडा कर औने पौने में बीयर बनने वालो को दे दो लेकिन भूख से मरते गरीब किसान और मजदूर को मत दो .]फिर इन्हें बिचौलिया व्यापारी मारता है जो इनसे कौड़ी के भाव इनका माल लेटा है और अपना बनाया माल इन्हें भरी मुनाफा लेकर तों देता ही है ,बाद में जब इन्हें अपने ही उगाये समान कि जरूरत पड़ती है तों कई गुना कीमत देकर खरीदना पड़ता है .सबसे बच गया तों अब बड़े बड़े पूंजीपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए या अपने बिना किसी जरूरत के भरे हुए महकमे को पलने के लिए इनकी जमीन उन धाराओ में अधिकृत कर लेती है सरकारे जो देश हित में जरूरी होने पार जमीन लेने के लिए बनाये गए थे .किसान कि जमीन जितने रुपये बीघे में सरकार और विकास प्राधिकरण खरीद रहे है वे और जिन पूंजीपतियों को जमीन दी जाति है उससे कई सौ गुना पैसे लेकर उसे बेंचते है ,.सरकारों में बैठे हुए लोगो में प्रतियोगिता शुरू हो गयी है कि कौन कितना बड़ा लुटेरा साबित हो सकता है और अपने प्यादे पूंजीपति को कौन कितना ज्यादा फायदा पहुंचा सकता है .खास तौर पर जो षेत्रीय ताकते सरकारों में आ रही है उन्होंने तों लूट कि सासरी सीमाए तोड़ दी है .भा जा पा जो और जिसके मूल समर्थक सदा ही किसानो के दुश्मन रहे है और जामाखोरो और मुनाफाखोरो के पोषक रहे है ,वे भी किसानो के लिए घडियाली आंसू बहा रहे है .तथाकथित समाजवादी भी चिल्लपों मचाये हुए है .जब इनकी सरकार थी तों पूरी सरकार को  और उत्तर प्रदेश के गरीबो को पूंजीपतियों के के पैर कि जुटी बना दुया था इन लोगो ने .अब सरकार है तों इन्हें भी किसानो कि याद आ गयी .दिन रात केवल भ्रस्टाचार में सराबोर रहने वाले ये लोग जब भ्रस्टाचार कि बात करते है तों पता नही कटने बेशर्म है कि मुह से इनके शब्द कैसे निकलते है .सूप तों सूप बोले अब चलनी भी बोलने लगी जिसमे सैकड़ो छेद है .
आज मायावती कि तरफ से किसानो के लिए बयान जारी हुआ है  .पूरी सरकार के पास ना तों कोई दृष्टि है ना कोई सपना है ना कोई कार्यक्रम है ना कोई देश या समाज शब्द से प्रतिबद्धता है ,है तों केवल एक सपना दुनिया में सबसे ज्यादा अमीर बनने  का ,दृष्टि है तों केवल एक दृष्टि समाज को तोड़ने कि और लोगो के घरो से बैंको तक जमा पैसो को पाने कि ,कार्यक्रम है तों केवल एक उगाही उगाही और उगाही .पिछली सरकार में जो कम लाख में हो जाता था वह अब दस लाख में होने लगा है .अपराध जितने पहले थे उससे कम अब भी नही है रोज हर शहर से बच्चे उठ रहे है और अपहरण कि जगह गुमशुदा दिखा दिए जा रहे है .किसान ने अगर अपनी बेटी कि शादी या अच्छे बुरे वक्त के लिए पेट काट कर कुछ पैसा बचाया भी है तों वह अपने बच्चे को छुड़ाने के लिए फिरौती में दे देता है या विभिन्न मामलों में फसा कर सरकार का तंत्र घूस के रूप में खा जाता है .किसानो पर ये सारी जुल्म ज्यादती और पूंजीपतियों को फायदा पहुँचाने का काम मायवती जी पूरी शिद्दत से कर रही थी ,लेकिन ज्यो ही देखा कि किसान उठ खड़ा हुआ है और अब वह अपनी धरती माँ के लिए बीबी बच्चो सहित मरने मारने पर उतारू है ,चुनाव भी अगले साल तक होने है ,और पार्टियाँ भी पहुँचने लगी तों मायावती जी को भी किसान दिखने लगा ,जे पी से जो होना था ओ तों हो ही गया होगा .यह भी देश के इतिहास में पहली बार हुआ है कि कोई नौकरशाह मुख्यमंत्री कि तरफ से राजनैतिक बयान जारी करे और वह अपने मुह से दलों को और केंद्र सरकार को भला बुरा कहे .केंद्र सरकार में यदि जरा  भी इच्छाशक्ति है तों तत्काल प्रभाव से उत्तर प्रदेश के कैबिनेट सेक्रेटरी के खिलाफ सख्त कारवाही करनी चाहिए .आज कल किसान किसान खेलो का मौसम है जैसे सावन में चाहे थोड़ी देर को ही सही लोग कोई जगह तलाश कर झूला डाल लेते है और झूलने कि औपचारिकता पूरी कर लेते है उसी तरह फ़िलहाल  किसान नाम का झूला मिल गया है .देखते है कि राजनीति शतरंज कि बिसात पर कौन जीतता है, कौन हारता है और बेचारे किसान का क्या होता है .वह केवल मोहरा ही बन कर रह जाता है या शह- मात के खेल कि मजबूरी में कोई जगह पा जाता है .

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

पेरुम्बुतूर की शहादत  
आज भी समूचे देश को याद है ,लगता है कल की ही तों बात है
यू तों सत्ता के बहुत से नायको ने जिन्होंने देश की खातिर नाखून भी नही कटवाया
उन पर तथा गाँधी परिवार पर लगातार कीचड डालने की कोशिश की
कौन भूल पायेगा ,वह पल जब देश के गद्दारों के एक धमाके से
टुकड़े टुकड़े हो गए रास्त्रनायक राजीव गांघी के
जिसे कहा गया था दुनिया का सबसे खूबसूरत राजनेता 
उसी को बदसूरती से दुनिया से विदा कर दिया गद्दारों ने
आंसुओ में नहा उठा समूचा देश ,रो पड़ी माताएं ,
विह्वाल चीख में डूब गयी पूरी पीढ़ी, जो भविष्य की आस्था भरी निगाहों से  
राजीव के एक एक सपने का जन्म होते देख रही थी ......
अवाक् पूरा देश था ,परिवार स्तब्ध और मूक
दौड़ पड़े सभी पेरुम्बुतुर की तरफ
उस दिन पेरुम्बुतूर में ............
कातर  प्रियंका ने झुलस गयी एक उंगली को देखा
बोली देखो ना माँ उसी को पकड़ कर मै चलना सीखी
उसी को पकड़ कर मेरे पांव जमीन पर टिक सके
विह्वल राहुल ने दिखाया एक हाथ
बोला माँ यही है वो हाथ जो मुझे गोद में उठाते थे ,झुलाते थे
पापा ने इसी से आसमान की तरफ उछाल कर कहा था
बेटे उतने बड़े हो जाओ पर देश को उसे भी ज्यादा ऊंचाई पर ले जाओ
सोनिया ने देखा एक तरफ पड़ा हुआ सीने का हिस्सा
देखती रही अलपक इस उम्मीद में की शायद अभी दिल धड़क उठेगा
जो धड़कता था मेरे लिए ,बच्चो के लिए और उससे ज्यादा देश के लिए
मन में एक पल के भीतर गुजर गए याद के कई दशक ....
"इस शरीर में देश के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी "
तभी दिखा चेहरा और खुली हुई आँख जो शायद पूछ रही थी
मैंने तुम्हे पास आने दिया नलिनी अपना समझ कर और तुमने ...
मैंने तों किसी का कुछ नही बिगाड़ा था बस की थी कोशिश
देश को दुनिया के साथ या और आगे दौड़ाने की ,उसमे सब आगे होते
उस आँख में इकीसवी सदी के भारत का सपना थरथरा रहा था
व्याकुलता में समेट रहे थे राहुल ,प्रियंका और सोनिया शरीर का एक एक टुकड़ा
ताकि हिन्दुस्तानी परम्परा से एक शहीद का ,पति और पिता का अंतिम संस्कार हो सके .
और वह भविष्य के सपने देखने वाला  खूबसूरत राज नेता विलीन हो गया .


२;जिस इंदिरा गाँधी ने बिना एक भी गोली चलाये इतिहास बनाया भूगोल बदला  
और एक लाख सैनिको से हथियार डलवा दिया
उसी को को इतनी गोलिया लगी इस देश के दुश्मनों की कि गिनी नही जा सकी
और इस बार राजीव
देश के गद्दारों ने इन्ही को मारा क्योकि यही उनसे लड़ रहे थे
प्रधानमंत्री ,गृहमंत्री ,रक्षामंत्री तों और भी हुए लेकिन
क्यों नही उनपर एक पत्थर भी फेकता है कोई
यह सवाल पूरे देश के मन में है
सवाल यह भी है मन में कि फिर देश के लिए नाखून भी नही कटवाने वाले
किस तरह इन सभी पर कीचड उछालने में शरमाते भी  नही है
देश को याद है सभी शहीदों के साथ इनकी कुरबानिया
देश तमाम राज नेताओ से जवाब चाहता है
किसी और कि शहादत क्यों नही ?

सोमवार, 16 अगस्त 2010

आजादी दिवस कि किसानो को सौगात ;गोली और मौते

                                           एक तरफ आजादी का जश्न मनाया जा रहा था ,देश की शान ,अस्मिता का प्रतीक ,आजादी का प्रतीक ,सार्वभौमिकता का प्रतीक तिरंगा फहराया जा रहा था .देश के लिए हुई कुर्बानियों पर भाषण दिए जा रहे थे ,भाषणों में बताया जा रहा था कि भारत गावो में बसता है .यह भी कहा जा रहा था कि देश में किसान हर मौसम में बिना दिन या रात देखे बिना जाड़ा गरमी बरसात देखे खेत में खड़ा रहता है और देश को आश्वस्त करता रहता है कि जब तक मै खड़ा हूँ देश के लोगो निश्चिन्त रहो किसी को भूखा नही रहने दूंगा और उसी किसान का बेटा गला देने वाली हो या जला देने वाली सीमा वहा खड़ा होकर हमें निश्चिन्त रखता है कि जब तक मै खड़ा हूँ देश कि लोगो किसी तरह का खतरा नही है .जैसे चाहो जिंदगी जियो .इन सारे बखानो के उलट दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश कि सरकार कुछ पूंजीपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए या यू कहे कहे कि कुछ खास लोगो कि जेब भरने के लिए उन्ही किसानो कि जमीन औने पौने दामो पर कब्ज़ा कर रही थी और जब अन्नदाता किसान न्याय मांगने निकला तों सरकारी बन्दूको से निकाली गोलियों ने दो किसानो और एक उसके अबोध बच्चे कि जान ले ली उत्तर प्रदेश के अलीगढ में  .
पता नही ये सरकारे क्यों भूल जाती है  किसान कि शक्ति को ,उसकी ताकत को उसके योगदान को और ये भी भूल जाती है कि किसानो से टकरा कर तथा किसानो को बर्बाद कर कोई भी मुल्क नही चल सकता है, कोई भी सरकार नही चल सकती है .ये किसान है कोई अपराधी नही है कि इन्हें बन्दूको से डराया जा सके .धरती किसान कि माँ है और जब किसी से भी किसी कि माँ को छीना जायेगा तों वह बागी तों होगा ही .जब भाषणों में हम कहते है कि किसान अस्सी प्रतिशत है तों कितनो पर गोली चलाओगे,कितनो को मारोगे .शायद सरकार में बैठे हुए लोगो कि याददाश्त कमजोर हो जाती है और वे अपना भाषण भूल जाते है और किसानो के आन्दोलन का तथा उनकी बहादुरी का इतिहास भूल जाते है .
यह भी समझ में नही आता कि सत्ता में बैठे हुए लोगो को होश कुछ लोगो के मरने के बाद ही क्यों आता है ,समस्याओ का निदान खून देखने के बाद ही क्यों खोजने लगते है सत्ते बैठे हुए लोग भी और नौकरशाही भी .यही अब भी हो रहा है .किसान तों लगातार अपनी फरियाद कर रहा है लेकिन किसी के कान पर जू नही रेंग रही थी .ज्यो ही गोली चली ,लोग मरे,वोट का सवाल पैदा हुआ या वोट कि लड़ाई शुरू हुई तुरंत आनन फानन में मरने वालो को मुवावजा ,घटना कि उच्चस्तरीय जांच ,अधिकारियो का तबादला और समस्या जाने का नाटक करने वाले बयान और कमेटी जो समस्या जानेगी और सरकार को निदान बताएगी .ये पहला मौका तों है नही यह किसान कि समस्या लगातार उठ रही है ,लगातार कही ना कही गोलिया भी चल रही है .पर शर्मनाक ये है कि इस बार किसान पर गोली ठीक आजादी के दिन चली है .ऐसा कारनामा केवल उत्तर प्रदेश कि सरकार ही कर सकती थी क्यों कि उसमे बैठे हुए लोगो का आजादी कि लड़ाई से भी कोई मतलब नही था और उसके मूल्यों से कोई मतलब कभी भी कभी नही रहा  .इनका सम्बन्ध किसानो से भी केवल इतना है कि उसी कि जाती के किसी को टिकट देकर जातिवाद के नाम पर वोट हासिल कर लो .
क्या होगा मुआवजे में मिले पाँच लाख रुपयों से क्या उस महिला का सुहाग वापस आ जायेगा ,रक्षाबंधन आने वाला है क्या उस बहन का भाई वापस मिल जायेगा ,क्या उस अनाथ बच्चे को बाप मिल जायेगा ,क्या उस बूढी माँ का सहारा उसे मिल जायगा ?लेकिन ये दर्द तों तब महसूस होते है जब अपना कोई जाता है .सरकार में बैठे हुए लोगो ने इन सब रिश्तो और जिम्मेदारियों का मूल्य लगाया है पाँच लाख रूपया .बाद में फिर यही कहानी दोहराई जाती रहेगी .क्या कोई है जो किसान के दर्द को सुने और उसके स्थाई इलाज का इंतजाम करे ,कोई सुने उसके उस जवान बेटे कि आवाज जो हर समय देश के लिया गोली खाने के लिए सीमा पर सीना तने खड़ा है और वह अपने पिता या भाई को ही नही  बचा पाया ,क्या बीतती होगी उसपर क्या कोई इन दर्दो को मसूस करने को तैयार है .कम से कम इस सरकार में बैठे हुए लोगो से तों कोई उम्मीद ही नही कि जा सकती है .
देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक दावपेंच में कौन किसकी पतंग कितनी डोरे के साथ काट पता है और राजनीति कि पिच पर कौन कौन सी गेंदे फेंकी जाति है और कौन से ढंग से उसे खेला जाता है .किसी भी तरह कि गेंद हो या शोट हो पीटना तों किसान को ही है .लगता है अभी किसान कि फैसलाकुन लड़ाई दूर है .पर फिर या तों वे भाषण ना हो या कम से कम उसकी लाज रखते हुए आजादी या ऐसे किसी दिवस पर अपनी ही जनता कि हत्या तों नही ही हो ,ऐसी उम्मीद तों कि ही जा सकती है .

                                                                                                        डॉ सी पी राय
                                                                                             पूर्व राज्य मंत्री एवं राजनैतिक स्तंभकार

शनिवार, 14 अगस्त 2010

कल १५ अगस्त है ,हमारा स्वतंत्रता दिवस है .लोग बहुत दुखी है खास तौर पर समझदार और पढ़े लिखे कहे जाने वाले लोग .उन पर पहाड़ टूट पड़ा है .उनके साथ कितना बुरा हो गया है की यह १५ अगस्त रविवार के दिन पड़ा है ,वैसे भी वे इस दिन कुछ नही करेंगे छुट्टी ही मनायेंगे लेकिन १५ अगस्त किसी और दिन पड़ा होता तों छुट्टी मनाने  को एक दिन और मिलता .इससे बड़ा उनके जीवन का बड़ा संकट क्या हो सकता था .स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाये, यह भी कोई मानने की चीज है .मनाना  है तों जातियों का दिवस या केवल अपनी जाती या धर्म में पैदा हुए महापुरुष का दिवस मना कर उसमे अपना गौरव तलाश लेने की कोशिश कर ही लेते है .धर्म के मामलों में भी हम लाखो से करोडो तक एकत्र हो ही जाते है और अगर कुछ धार्मिक विवाद का मामला हो तब तों हम कुछ भी करने को तैयार रहते है .आखिर यह सब भी तों इसी देश में करते है .अब अगर भूल गए की भगत सिंह २३ साल की उम्र में फासी चढ़े थे ,न जाने कितनो ने हँसते हँसते बलिदान दिया था तों क्या मुसीबत आ गयी अब वे लौट के तों आयेंगे नही ,उनके घर का कोई राज काज में भी नही है हम कुछ करे तों  वो ही खुश हो जायेगा और  देश में गौरव तलाश करने का क्या फ़ायदा .देश के लिए मरने वाले ये सब  हमारे तों कुछ थे नही .देश की सब जिम्मेदारी भी नेताओ की है ,.अधिकारियो की है, कर्मचारियों  की है .हमारा काम तों केवल देश को चरना,उसके सारे कानून तोड़ना ,अव्यवस्था फ़ैलाने में पूरा योगदान करना और बैठ कर देश को तथा नेताओ को कोसना है .वोट देने में भी इसी लिए परेशान होते है की छुट्टी कौन ख़राब करे .तों १५ अगस्त रविवार को पड़ गया कितना गलत हो गया .सरकार भी ठीक से सोचती नही है इसके बदले में अगले दिन तों छुट्टी कर ही देना चाहिए था .जन गण मन गाने के लिए खड़े हो जाओ कितना बुरा लगता है .ए आर रहमान और लता मंगेशकर  ने बहुत अच्छा गा दिया है देश के बारे में ,बहुत जरूरी हो तों उसी के कैसेट लगा दो .झंडा भी क्या फहराना समय होगा तों घर में टी वी के सामने बैठ कर दिल्ली वाला कार्यक्रम देख लेंगे साथ साथं चैनेल बदल बदल कर कुछ और कार्यक्रम भी देखते रहेंगे  .उनकी मजबूरी है वे लोग मनाये .हम तों दुखी है हमारी एक छुट्टी मारी गयी .देश ने और कलेंडर हमारे साथ बहुत ज्यादती कर दी है .हम सरकार से मांग करेंगे की कलेंडर इस तरह छपा जाये की कोई छुट्टी नही मारी जाये .हमारी जाति की जय ,हमारे शेत्र की जय ,हमारे राज्य की जय ,हमारे धर्म की जय ,और हमारे धंधो की जय .हमारी छुट्टी की जय .

बुधवार, 30 जून 2010

एक विदेशी भारत आया .वापस जाते हुए मुझे मिला |.मैंने पूछा मेरा हिंदुस्तान कैसा लगा ?वो  बोला बहुत अच्छा; बहुत पुराना तथा गौरवशाली इतिहास है, हिंदुस्तान का, लेकिन कोई हिन्दुस्तानी नहीं मिल पाया |.मै नाराज हुआ ऐसा कैसे हो सकता है ,कौन मिला ? ओ बोला कश्मीर में कश्मीरी ,महारास्ट्र में मराठी ,बंगाल में बंगाली ,बिहार में बिहारी और इसके बाद सिख ,बौध ,जैन और फिर पंडित ठाकुर ,पिछड़े ,दलित और फिर उसमे भी पता नहीं क्या क्या और उसके आगे भी पता नहीं क्या क्या ;;बस कोई हिन्दुस्तानी नहीं मिला |;ये मजाक हो सकता है, लेकिन है बड़ा दर्दनाक मजाक और इसके लिए जिम्मेदार  हम सब है  उसके बाद , हमारी शह पाकर इन चीजो की राजनीति करने वाले नेता है |.हम हिदुस्तानी कब बनेगे ? जाति धर्म की सस्ती  लड़ाइया छोड़ कर हम केवल हिन्दुस्तानी कहलाने तथा इसी रूप में पह्चाने जाने  की लड़ाई कब शुरू करेंगे ?आइये उस विदेशी को कल नहीं आज ही जवाब दे और आज और अभी  ये लड़ाई शुरू करे .हम सब एक सौ बीस करोड़ साथी आ रहे है ना इस लड़ाई में एक साथ .जो रोके उसे सामने से हटा दो ,अब इन बुराइयों का नामों निशान मिटा दो .जय हिंद .

शनिवार, 26 जून 2010

जनता और नेता दोनों क्यों भूल जाते है कि दूसरी सरकारों में भी पेट्रोलियम का दाम दस दस बार बढ़ा था .दारू महँगी हल्ला नहीं,कपड़ा महंगा हल्ला नहीं ,गाड़िया  ,होटल ,सोना ,हवाई सफ़र कुछ भी महंगा हो हल्ला नहीं होता,गेहू ,दाल .चावल .सरसों का तेल किसी  भी जीवन के लिए जरूरी चीज का दाम सरकार नहीं बढाती ,इनका मूल्य  पैदा करने वाला किसान भी नहीं बढाता,इन सारी  चीजो का दाम व्यापारी और जमाखोरी करने मुनाफाखोरी करने वाले बढ़ाते है ,ये कुछ खास दलों में बैठे है ,इसलिए इनसे चंदा लेने वाले इनके खिलाफ कोई आन्दोलन नहीं करते ,इनकी चर्चा भी नहीं करना चाहते .दूसरी तरफ    सरकार सुरक्षा ,सड़क ,विकास ,कल्याण ,गाव  का विकास ,चिकित्सा ,शिक्छा इत्यादि सब पर खर्च करे  और विदेश से खरीद कर पेट्रोल सस्ता दे ..जब किसान से खरीद कर यही हल्ला करने वाली ताकते जमाखोरी करती है ,मिलावट करती है तथा किसान से खरीदे एक [१]रूपये किलो के आलू को २० रूपये किलो  में बेचती है ,इसी तरह जब ३० रुपये मीटर का कपड़ा ३०० रूपये मीटर में बिकता है .जब सरकार स्कूटर तथा गाडियों पर से हजारो  रूपया टैक्स घटा देती है तथा चार दिन बाद ही कंपनिया उतना ही  बढ़ा देती है तब कोई हड़ताल नहीं ,हल्ला नहीं ,धरना नहीं .लेकिन जो हमारे देश में नहीं होता तथा बाहर से महंगा आता है उसपर सब्सिडी क्यों दी जाये इसपर बहस होनी चाहिए ,सब्सिडी तों केवल जीवन रक्छक  दवाओ पर हो खाद पर हो गरीबो द्वारा खरीदे जाने वाले समान पर हो ये तों ठीक है .लेकिन लाखो रुपये कि गाड़ी वाले को क्यों मिले ?अगर बहुत दर्द है तों दूसरे देशो कि तरह यहाँ भी लोग सामान्य आवागमन पैदल और साईकिल से क्यों नहीं करते ?देश भक्त है तों पेट्रोल और डीजल बचाए देश का काम अपने उत्पादन से ही चल जाये और मजबूरी में ही बाहर से आयात करना पड़े .फिर दाम नहीं बढ़ना पड़ेगा .देश का कर्जा भी घटेगा .नेता रैलियों में लोगो  का समय और देश का डीजल ,पेट्रोल बर्बाद करने के स्थान पर अपने असली संगठन के माध्यम से सन्देश पहुचाये या टी वी और रडियो पर अपनी बात कह कर काम चलाये .नेता गाडियों का काफिला लेकर ना चले ,जिम्मेदार पदों जैसे राष्ट्रपति प्रधानमंत्री इत्यादि के अलावा सभी नेता बिजी विदाउट बिजनेस होते है अतः हेलिकोप्टर और जहाज का इस्तेमाल ना करे .कार्यक्रताओ को भी दिल्ली और प्रदेश कि राजधानियों में अपने पीछे चक्कर ना कटवाए .अधिकारियो का परिवार गाड़ी का इस्तेमाल सब्जी और पान ,खरीदने के लिए तथा सरकारी काम के अलावा ना करे .व्यापारी भी अकेले अकेले गाडियों का इस्तेमाल न करे .एक स्थान पर जाने के लिए एक गाड़ी का इस्तमाल करे .ज्यादा पेट्रोल खाने वाली गाड़िया चलना बंद करे ,उनके उत्पादन परभी रोक लगे .घने बाजारों में पेट्रोल से चलने वाले वाहन ले जाने पर रोक लगे .पंजाब कि तर्ज पर मुहल्लों में साझा चूल्हों को प्रोत्साहन दिया जाये जहा सभी लोग अपनी रोटी बनवा सके .ऐसे तमाम सुझाव हो सकते है यदि इस देश के लोगो में भी थोड़ी सी राष्ट्रीयता  कि भवना आ जाये तों यह देश कर्ज मुक्त भी हो जायेगा तथा बलशाली भी ,पर करे कौन जब वैसे ही काम चल जा रहा है .जब केवल धरना प्रदर्शन से काम चल जाये तों विरोध के साथ वैकल्पिक सुझाव या कार्यक्रम देने कि क्या आवश्यकता है .सरकारे बदलती है पर विपक्छ के नारे और सत्ता पक्छ का जवाब वही रहता है .जनता कि याददाश्त भी सचमुच कमजोर है या वो याद रखना नहीं चाहती .खैर मजा आ रहा है उन लोगो के बयान देखकर जिनपर कितनी भी महंगाई का कोई असर नहीं हो सकता है और उन लोगो को प्रदर्शन कि अगुवाई करते देख कर जो करोडो रूपया हर महीने पानी कि तरह बहाते रहते है .हो सके तों उन  धन्ना  सेठो के खिलाफ आन्दोलन करना चाहिए जो महंगाई कि जड़ है ,जो एक रूपये  का मॉल सौ रूपये  में बेचते है या जमा खोरी कर चीजो का आभाव बना देते है .इस बात पर भी आन्दोलन होना चाहिए कि फैक्ट्रियो से जो मॉल बने उसकी कीमत उसपर दर्ज हो तथा निति के अनुसार मुनाफा मिला कर बिक्री का दाम भी दर्ज हो .जनता का हक होना चाहिए कि वह जाने कि  किस कीमत के उत्पादन का क्या मूल्य दे रही है .यदि इन सब बातो पर आन्दोलन होने लगे तथा किसान को उसकी उपज में उसकी मेहनत ,जमीन कि कीमत का ब्याज और इसपर लाभ मिलने लगे तों किसान आत्महत्या नहीं करेगा .सवाल तों यह भी बहस में आना चाहिए कि किसान कि पूँजी होती है उसका खेत ,वह भी मेहनत करता है लेकिन उसका परिवार बढ़ने के साथ उसके घर छोटे होने लगते है बेटो कि संख्या के साथ खेत कम होने लगता है लेकिन उससे बहुत कम पूँजी लगा कर व्यापारी केवल दुकान या फैक्ट्री से बड़ी बड़ी कोठिया खड़ी कर लेता है बेटो के साथ कोठियो कि संख्या भी बढ़ने लगती है और दुकनो तथा कारखानों   कि भी .इस दोहरे चरित्र के अर्थशास्त्र पर बहस भी होनी चाहिए तथा निर्णायक आन्दोलन भी होना चाहिए .लेकिन कोई नेता करेगा नहीं क्योकि जनता नारों से ही सत्ता दे दे रही है और गरीबी कि बात करने से ही कम चल जा रहा है तों फिर इस पर बात करने कि क्या आवश्यकता है .जब जातिवाद और धर्म का उन्माद ही राम बाण हो और व्यक्तियों को मीडिया महान बता कर काम चला देता हो तों फिर मौलिक परिवर्तन के बारे में क्या सोचना और गरीब .मजदूर ,किसान ,बेरोजगार तथा साधारण नौकरी पेशा के बारे में क्यों सोचना ?बात पेट्रोल से शुरू हुई पेट्रोल बचाने से  लेकर दोहरे नारे और दोहरी नीतिया ,जनता कि दोहरी जिंदगी ,दोहरे मापदंड और परिणाम तथा भविष्य तक पहुच गयी .बात कही का ईंट कही का रोड़ा लग रही हो लेकिन बात जुडी हुई भी है और इस पर एक ना एक दिन बहस भी करना पड़ेगा तथा फैसला भी लेना पड़ेगा .मै भारत कि राजनीतिक व्यवस्था के भविष्य कि दीवार पर यह सन्देश  लिखा हुआ पढ़ रहा हूँ .

बुधवार, 23 जून 2010

आज कश्मीर में फिर एक कर्नल शहीद हो गए .ये वीरो कि भेट हम कब तक चढाते रहेंगे .जब जब सीधा युद्ध हुआ है हमने १९६२ के अलावा  जो हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगाने वाले के धोखा देने के कारण हुआ था ,हम सभी युद्ध जीते ,शान से जीते .लेकिन ये कायराना युद्ध हमें भारी पड़ रहा है .युद्ध में शहीद होने वालो से कई गुना ज्यादा हमारे सिपाही जान गवा चुके है .जब सीधा युद्ध भी होता है तों १: अंतररास्ट्रीय दबाव और हस्तक्छेप होता है २:युद्ध में हमारे सिपाही तथा अफसर शहीद होते है ,इस शिखंडी युद्ध के मुकाबले नगण्य ३:युद्ध में हथियार खर्च होता है ४:युद्ध में पैसा खर्च होता है ५:युद्ध में देश आपातकाल से गुजरने के कारण अनिश्चितता में जी रहा होता है .
इस दुश्मन के शिखंडी युद्ध में पैसा खर्च हो  रहा है युद्ध से ज्यादा ,सिपाही और अफसर शहीद हो रहे है युद्ध से ज्यादा ,हथियार खर्च हो रहा है युद्ध से ज्यादा ,स्थाई आपातकाल लगा है पूरे देश में ,पता नहीं कब कहाँ  आतंकवादी हमला हो जाये ,या बम फट जाये और कश्मीर जो जन्नत कहा गया है उसे तों स्थाई युद्ध भूमि में बदल दिया है कुछ कायर लोगो ने .अनिश्चतता इतनी के कही भीड़ भरे इलाके में जाने में लोग घबराते है और उसपर भी दुनिया के देश शांति तथा दोस्ती का सन्देश देने के नाम पर अघोषित हस्तक्छेप ही कर रहे है .
और  जब सारी स्थितिया युद्ध कि ही है ,देश को युद्ध से ज्यादा देना और भुगतना पड़ रहा है ,संबंधो के बीच कि दीवारे गिरने के स्थान पर छल कपट कि इंटो और अविश्वास के गारे से और ज्यादा मजबूत होती जा रही है तथा इसमे घाटे में केवल हमारा देश है ,पडोसी दुश्मन तों दुनिया के दादाओ  से आतंकवाद से लड़ने के नाम पर खूब पैसा तथा हथियार पा रहा है तथा उसे इस कायराना लड़ाई में हमारे खिलाफ ही इस्तेमाल कर रहा है .ये भी हो सकता है कि दुनिया को अपनी मुट्ठी में रखने कि इच्छा
रखने वाले देशो कि निति ही यही हो कि भारत तेजी से बढ़ रहा है ,एक बड़ी ताकत बनता जा रहा है ,इसे रोकने के लिए दुश्मन को मजबूत करो और कितना भी मजबूत होकर ओ भारत से सीधी लड़ाई जीत नहीं सकता है इसलिए ऐसी लड़ाई करवाते रहो जिससे भारत का विकास रोका जा सके ,उसका स्वतंत्र आवागमन बाधित हो ,जनता में अविश्वास पैदा हो .ये अलग बात है कि ये सब उनकी गलतफहमी ही साबित हो रहा है .
वे शायद भूल गए है कि ये वही देश है जिससे उन्हें एक लंगोटी पहने हुए शख्स ने बिना एक बूँद खून बहाए भागा दिया था .जिस देश के सुभाष नमक एक व्यक्ति ने उनकी पूरी सत्ता जिसपर उन्हें गुमान था को धोखा देकर ना केवल देश से निकल गया बल्कि बिना किसी साधन के फ़ौज खड़ी कर ली और सिंगापुर से जीतता हुआ भारत के अन्दर तक घुस आया .ये वही देश है जिसके नौजवानों ने उनकी संसद में घुस कर बम फेका था .ये वही देश है जिसमे बिना संचार साधनों के पूरे देश में सन्देश फैला कर  मंगल पाण्डेय ने एक युद्ध ही छेड़ दिया था ,और ये वही देश है जिसके जवानो ने अकेले रह जाने पर भी कई पेटन टंक तोड़े है
तथा चौकिया जीती है .पता नहीं इस देश को अपने जैसा कायर देश समझने कि भूल कैसे कर बैठे है कुछ देश .
लेकिन युद्ध तों चल रहा है ,हम मर भी रहे है ,बहुत कुछ खो भी रहे है .तब सवाल ये उठता है कि ये युद्ध उसी तरह क्यों लड़ा जाये जैसा दुश्मन चाहते है ,क्यों ऐसे लड़ा जाए जिसमे पता ही नहीं होता है कि दुश्मन कहा है और बिना हथियार उठाये ही हमारे जवान मर जाते .क्या हमारे बहादुर जवानो को शोभा देता है कि वे बिना दस बीस को मारे शहीद हो जाये .देश को तय तों करना ही पड़ेगा कभी ना कभी कि जवान शहीद हो तों सर उठा कर और जीत का नारा लगा कर शहीद हो .दुश्मनों को एक बार फिर १९७१ का सबक तों देना पड़ेगा या उससे भी ज्यादा कि फिर सौ सालो तक वो ऐसा या वैसा कोई भी युद्ध लड़ने कि सोच भी ना सके .तब इंडिया गेट पर खड़े हो कर ए आर रहमान गायेंगे :माँ तुझे सलाम :तथा लता दी गायेंगी :ये मेरे वतन के लोगो जरा आँख में भर लो पानी जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो क़ुरबानी :और हम सब मिल कर गायेंगे :जवानो की  माएं कितनी  रातो से  सोई  ही नहीं है ,माँ का तिलक किया  जवानो ने  अपने खून से ,सरहदो  की लकीर खींची है अपने नाखून से ,लजा ना जाये बेटो कि शहादत और उनका दूध  इसलिए शहीदों की माताएं  कभी रोई ही  नहीं है .आओ तिरंगा उतना ऊँचा उठा दे  ,कितनी भी दूर दुश्मन सबको दिखाई दे .इस झंडे को छूने कि सोच हांफ  जाये ओ ,इक कदम बढे तों  डर से कांप जाये ओ .

सोमवार, 17 मई 2010

amar singh ab baukhala kyu rahe ho

अमर सिंह को अब बहुत दर्द हो रहा है .अब उन्हें लग रहा है की उनका अपमान हुआ है .जब ओ बढ़ चढ़ कर लोगो को गालिया दे रहे थे तो बहुत मजा आ रहा था .वो सोनिया गाँधी जिसने महात्मा गाँधी के बाद सबसे बड़ा बलिदान दिया ,अपने सुहाग का भी और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री पद का भी ,जब उनको गरूर में आकर कभी रीडर तो कभी कपडे उतर गए जैसी भाषा बोली थी ,जिनके पाव की धूल आज मंगाते घूम रहे है तब कैसा लग रहा था यह जरूर बताना चाहिए .क्या उन्होंने मान लिया था की मुलायम सिंह जो लोगो को इस्तेमाल करने के सबसे बड़े हुनरमंद है वे उनके स्थाई गुलाम हो गए है .बिना कुछ किये बस थोड़ी सी सुख सुविधाए जुटाना और बिचौलिए की भूमिका में बड़ा भाग अपने घर और थोडा सा नेताजी को देकर क्या आपने अपना स्थाई राज काज समझ लिया था ?जब चुन चुन कर आपने समाजवादी पार्टी की स्थापना करने वालो को बाहर करवाया था ,उन्हें अपमानित करवाया था ,यधपि इस गुनाह में खुद नेताजी और उनके परिवार के वे लोग जो यदि नेता जी के घर में पैदा नहीं हुए होते तो कोई प्राइमरी स्कूल में मास्टर होता तो कोई छोटी मोती दुकान चला रहा होता वे भी बढ़ चढ़ कर जिम्मेदार है .इन सभी लोगो ने बिना कुछ किये ,बिना कुछ खोये सब कुछ पाया है .इन लोगो को पता ही नहीं है की तमाम योग्यताओ के बावजूद कुछ लोगो ने सद्धान्तिक भावनाओ में बह कर बहुत कुछ गवाया है .बहुत लोग नेता और नारे के प्रति आस्था के कारन बर्बाद हो गए .उनके घर बिक गए ,उन्होंने बच्चो को साधारण स्कूलों में इसलिए पढाया क्योकि उनका तमाम पैसा पार्टी को मजबूत करने में लग गया .जब जब सत्ता आई तो सबके दरवाजे बंद हो गए ,पूरा परिवार और उनके निचे तक फैले तमाम दलाल केवल लूट पाट में लगे रहे ,कही से भी पैसा आये ,किसी भी तरह पैसा आये चाहे गैर कानूनी कार्यो से ही सही .अमर सिंह जी आप भी तमाम उन चीजो में शामिल थे जो राजनीती तथा समाज में स्वीकार नहीं है .इसीलिए जनता ने आप सब को उचित रास्ता दिखा दिया.इससे बुरा  दिन क्या आयेगा की नेताजी जो विधानसभा सीट केवल ६००० वोट से जीते थे उसे १५००० वोट से हारे .सभी यादव बहुल सीटे हर गए ,घर की सीटे हर गए .अब लोग आपको नेता क्यों माने .जन आपके साथ रहा नहीं .सपने आपने तोड़ दिए ,सिद्धांत आपने छोड़ दिए और संकल्प की शक्ति कमजोर हो गयी क्योकि आपने सबको केवल धोखा दिया है .नेताजी हो या अमर कभी तो आप की आत्मा धिक्कारती होगी की आप लोगो ने बहुतो को बर्बाद किया है .यदि परिवार हर च्रीज का जवाब होता तो लोग बड़ी बड़ी सुविधाए देकर ज्ञानी लोगो की भर्ती नहीं करते .बहुत से कर्मो की सजा यही मिल जाती है और मिलती रहती है .हम जैसे धोखा खाए और सताए लोग भी मिटते नहीं है फिर खड़े होने रास्ता तलाश ही लेते है बिना बिके बिना डिगे .समझे नेताजी  ,समझे अमरजी .हो सके तो प्रायश्चित करिए .नेताजी आपके परिवार के   अयोग्य लोग बहुत पा चुके है उन्हें अब अपना अपना मूल काम करने भेज दीजिये और अमरजी (में यही भाषा लिखूंगा क्योकि मेरे माँ बाप ने यही सिखाया है अपनी आप जाने )आप राज्यसभा से इस्तीफ़ा देकर जो काफी हो गया है अब वही सम्हालिए .बिन मांगे सलाह दे रहा हूँ .माफ़ कीजियेगा आप सबने बहुत चोट दी है ,जख्म मन को क्या ,आत्मा को क्या, खून के कतरे कतरे को घायल किये हुए है समझे अमरजी समझे नेताजी और समझाने की कोशिश करो आज के तथकथित राजकुमारों तथा नकली प्रोफेसरों .यह तो जानते ही होगे की प्रोफ़ेसर केवल विश्व विद्दालयो में होते है .बुरा  लगेगा लेकिन झेल लेना क्योकि लाखो ने बहुत कुछ झेला है ,एक मे भी हूँ .सच तो यह है की यह मेरी तथा मेरे जैसो की कहानी है.हजारो लोगो की क़ुरबानी और बर्बादी पर आप सब कुछ बने हो.दिल दुखाना नहीं जगाना मेरा उद्देश्य है. भूल गए होगे पुराना संबोधन ;क्रन्तिकारी अभिवादन के साथ आपका बहुत पुराना साथी .सी पी राय.