तब मैंने लिखा था
= मिटटी ,मिटटी से यूँ मिली की सारा जहा रो पड़ा =]
समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
आज की राजनीती में खासकर सत्ता को महाभारत का केवल शिखंडी आदर्श भा गया है
जब चाहते है किसी भी चीज को शिखंडी बना आगे कर देते हैं
भाषा कितनी ताकतवर होती है और कैसे कोई एक शब्द अर्थ का अनर्थ कर देता है ।
ये समझने के लिए एक बहुत छोटी सी कहानी -
एक आदमी कही जा रहा था और रात देर हो गयी और रास्ता भी भटक गया तो सोचा को रास्ते मे पड़ने वाले गाँव मे किसी के यहाँ शरण ले लेगा और सुबह रास्ता पूछ कर निकाल जाएगा ।
एक गांव आया । उसने कुंडी खटखटाया । दरवाजा खुला तो अजनबी को देख हैरान घर वाले ने उसकी तरफ उत्सुकता से देखा और कुंडी खटखटाने का कारण पूछा
यात्री बोला कि देर हो गयी है और वो रास्ता भटक गया है । रात में शरण मिल जाये तो वो आभारी होगा और रात गुजार कर सुबह होने पर निकल जाएगा ।
घर के मालिक ने जवाब दिया कि
ये बहू बेटियो का घर है इसलिए आगे कोई घर देख ले ।
वो यात्री जो भी दरवाज़ा खटखटाता यही जवाब मिलता कि बहु बेटियो का घर है आगे देखो लो ।
गांव के अंतिम घर पर पहुच , दरवाज़ा खुला और घर का मालिक बाहर आया तो उसने दरवाज़ा खुलते ही घर के मालिक से पूछा -
आप के घर मे बहू बेटियां है क्या ?
घर के मालिक ने घूर कर उसे देखा और कहा , हा है क्यो पूछ रहे हो ।
यात्री बोला - रात गुजारनी है ।
अब समझ सकते है कि यात्री के साथ क्या हुआ होगा ।
शब्द इधर के उधर होते ही कितना अर्थ का अनर्थ कर देते है ।
इसलिए शब्दो से खेलना आता हो तभी खेलना चाहिए ।
एक लघु कथा --
माँ ऐसी इसको कहते है ।---
वो पुराना घर
कहते थे की किसी राजा के कारिंदों कथा
कुछ लोग बताते थे की राजा के घोड़े बांधते थे
पर अब तो कुछ लोग रह रहे थे वहां
और
ऐसा घर पाना भी कितनी बडी सुविधा थी ।
बारिश कितनी बड़ी सजा था उस माँ के लिए और बच्चो के लिए
पिता तो सो जाता था
पर माँ कैसे भीग जाने देती अपने छोटे छोटे बच्चो को ।
पहले मच्छरदानी लगाया
फिर उस पर कुछ प्लास्टिक बिछाया
फिर भी बात नही बनी तो बच्चो को उस कोने में लिटाया जहा पानी नही आ रहा था और
पानी वाली जगह कही बाल्टी रखा और कही टब ।
पूरी रात जी पूरी पूरी रात
वो बैठी रहती थी बर्तन बदल बदल कर पानी फेंकने को कि एकमात्र बिस्तर भीग न जाये ।
कितनी राते नहीं सोती थी वो माँ अपने बच्चो के लिए औरअपने परिवार के लिए
पूरे दिन काम भी पूरा करती थी बिना चेहरे पर शिकन लिए
अभी कल की ही तो बात है
बेटी पैदा होने वाली थी । पैसे नहीं थी तो सरकारी अस्पताल के जर्नल वार्ड में कुछ अपनों के कारण इंतजाम हो गया था
और डॉ चार दिन कम से कम रोकते है और कुछ दिन आराम करने तथा शरीर के सामान्य हो जाने को समय देने को बोलते है पर गरीबी और घर की मजबूरी के कारण वो एक दिन में ही घर आ गयी थी और लग गई थी घर के हर काम में ।
मैं उस माँ को जानता था ।
हां मेरे आसपास ही थी वो माँ लेकिन कोई मदद नहीं कर पाता था मैं
और
आज भी वो उसके हालात को न बदल पाने और उसकी मदद न कर पाने का गुनाह मुझे डराता है और शर्मिंदा करता हूं ।
पर उसके बारे में ये लघु कथा लिख कर उसे श्रधांजलि तो दे ही सकता हूँ और लोगो को बता ही सकता हूँ कि
माँ ऐसी होती है ।