रविवार, 10 दिसंबर 2017

राज नारायण

संघर्ष को समर्पित एक राजनीतिक कबीर की फकीरी जिंदगी का नाम था ; राजनारायण 

[ राजनारायण जी के जन्म शताब्दी वर्ष पूर्ण होते ही आ गया ठीक ३८ दिन बाद ३१ दिसम्बर उनकी पुण्यतिथि का दिन , मुझे याद है १ जनवरी १९८७ का बनारस ,ऐसा लगता था की पूरा बनारस या तो सड़क पर है या छतो पर और घाट पर भी वही नज़ारा पूरी नदी में नावो में भरे हुए लोग और पूरा घाट भरा हुआ  इतनी भीड़ मैंने नहीं देखा था अपनी जिंदगी में , लोगो का कहना था की मालवीय जी के लिए भी निकला था ऐसे ही बनारस और
तब मैंने लिखा था
= मिटटी ,मिटटी से यूँ मिली की सारा जहा रो पड़ा =]

 हमें  नफरत नहीं थी अंग्रेजो की कौम औ सूरत से ,

हमें  नफरत  थी  तो  उनके   अन्दाजे   हुकूमत से

 गर अपनों की हुकूमत  अपनी खातिर हो नहीं सकती 

तो अपनों की भी सूरत से मोहब्बत हो नहीं सकती | 

लोकबन्धु राजनारायण के लिए ये चार पंक्तियां दिशा निर्देशक का काम करती थी | तभी तो जहा देश की स्वतंत्रता के लिए नेता जी कुल चार बार जेल गए वही आज़ादी के बाद अपनों के शासन में कुल करीब १५ वर्ष जेल में बिताए | जब भी जहा भी उनको जनता का कष्ट दिखलाई पड़ता या आज़ादी के सपनो का खून होता दिखलाई पड़ता वही वो आन्दोलन का शंख बजा देते थे | इसी लिए आज के माहौल में में उनकी चर्चा और उनके संघर्षो की चर्चा और भी समीचीन हो जाती है जब लगता है की सत्ता निरंकुश हो रही है और विपक्ष नदारद दीखता है या किंकर्त्व्यवमूढ़ दीखता है या सी बी आई एयर इ डी नमक चीजों से डरा हुआ सहमा सा नजर आता है , तब सोचना पड़ता है की राजनारायण जी के पास कौन सी फ़ौज थी या ताकत थी जो लगातार सत्ता से सीधे टकराते रहे  ,हारे भी और जीते भी पर परवाह नहीं किया बस कर्तव्य पथ पर चलते रहे लगातार तभी तो आज़ादी की लड़ाई से लेकर आपातकाल उनके संघर्ष की कहनियाँ ही पसरी हुयी है भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में |अगर हर आन्दोलन का तारीखवार वर्णन करूँगा और विस्तार में जाऊँगा तो किताब बन जाएगी इसलिए बस इशारतन ही जिक्र करूँगा यहाँ | वो मजदूरों का आन्दोलन हो उत्तर प्रदेश से लेकर आसनसोल तक जहा उन्होंने नक्सलवादियो का किला तोड़ते हुए समाजवादी संगठन खड़ा कर दिया था मजदूरों का | वो किसानो का आन्दोलन हो अदलपुरा से लेकर अरदाया तक या लखनऊ की धरती पर विशाल प्रदर्शन जिसमे ; किसान जागा पन्त भागा ; के नारे लगे थे ,वह किसान आन्दोलन रहा हो जिसमे राजनारायण जी को बुरी तरह पीट कर बंद कर दिया गया और आचार्य नरेन्द्र देव की मध्यस्थता से समझौता हुआ | १९५३ में गोरखपुर में रेल मजदूरों पर गोली चलने के खिलाफ आन्दोलन हो ,१९५४ में नहर के पानी का रेट बढ़ने पर आन्दोलन हो ,मिर्जापुर में मजदूर आन्दोलन हो ,५५ में गोरखपुर हो या या लखनऊ का छात्र आन्दोलन ,;;और बहुत महत्वपूर्ण १९५६ में जब वो हजारो हरिजनों को लेकर कशी विश्वनाथ मंदिर में घुस गए थे और तब संघियों ने तथा फासिस्ट ताकतों ने न सिर्फ हरिजनो के मदिर प्रवेश का विरोध किया बल्कि राजनारायण जी पर घातक हमला भी कर दिया था | १९५७ के सिबिल नाफ़रमानी आन्दोलन के संचालक बने ,बिक्रीकर के खिलाफ आन्दोलन ,बिहार में सोशलिस्ट पार्टी के आन्दोलन का सञ्चालन ,;;; स्वतंत्र भारत में जगह जगह लगी अंग्रेजो की मूर्ती के विरोध में बनारस में मूर्ती तोड़ने पर गिरफ्तार हुए और स्वतंत्र भारत की सरकार में इसके लिए १९ महीने की सजा और ४०० रूपये का जुरमाना हुआ वही से मूर्ती भंजन प्रथा शुरू हुयी तथा सरकार को बाध्य होकर सभी अंग्रेजो की मूर्तियाँ हटानी पड़ी और काशी में किंग एडवर्ड अस्पताल का नाम बदल कर शिवप्रसाद गुप्त अस्पताल हुआ ,१९५८ में खाद्य आन्दोलन ,और सम्पूनानन्द की सरकार में समितियों का बहिष्कार का फैसला ,१९६० में राष्ट्रव्यापी आन्दोलन के संचालक बनाये गए ..देश भर में घूम घूम कर आन्दोलन ,लाल बहदुर शास्त्री के निवास पर पर्दर्शन जैसे हजारो आन्दोलन और उसमे सिद्धांत के साथ साथ अपने शरीर को विरोध का इस कदर हथियार बना देना की तमाम बार की पिटाई से पैर टूटे ,सर टूटा ,और जेलों में रहते रहते तमाम बीमारियों ने पकड़ लिया |
पहले लखनऊ रेलवे स्टेशन पर रिक्शा नहीं जा सकता था तो एक दिन राजनारायण जी वही विरोध पर अड़ गए ,,धीरे धीरे बड़ी संख्या में जनता एकत्र हो गयी तो मजबूर होकर रिक्शा जाने की इजाजत देनी पड़ी | ऐसा ही एक दिन उन्होंने राजभवन पर भी किया और उनका रिक्शा अन्दर गया |
वो चाहते तो जातिगत आधार पर सुरक्षित स्थान पर चुनाव लड़ कर हमेशा सासद रह सकते थे पर जैसे डॉ लोहिया ने कहा था नेहरु जी के खिलाफ चुनाव लड़ते हुए की मैं जनता हूँ की मैं पहाड़ से टकरा रहा हूँ और उसे गिरा नहीं सकता पर उसमे दरार पैदा कर कमजोर तो कर ही सकता हूँ ,,उन्ही के रास्ते पर चल कर अजेय ताकत बन गयी कांग्रेस और बलशाली नेता इंदिरा गाँधी के खिलाफ वो चुनाव लडे और ये भी इतिहास है की उनको कोर्ट में भी हराया और फिर वोट में भी हराया | उनका संघर्ष ही था की बहुत बड़ी संख्या में गर्रीब परिवारों के लोग जिन्होंने अपने शहर नहीं देखे थे वो प्रदेश और देश की राजधानियों में पहुंचे और स्थापित हुए | तो १९५२ से ६२ तक उत्तर प्रदेश विधासभा में विपक्ष के नेता के तौर पर भी उन्होंने विपक्ष को मायने दिया और काम संख्या होने पर भी कैसे लड़ा जा सकता है बहुमत से ये सिखलाया।
एक बार जब संसद में नेहरु मंत्रिमंडल की मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा ने डॉ लोहिया से कहा की क्या आप पागलो को साथ लेकर घुमते है तो डॉ लोहिया नाराज हो गए और कहा की तारकेश्वरी अगर मुझे कुछ और राजनारायण मिल जाये तो मैं देश को बदल दूंगा और तुम लोगो को भी बेदखल कर दूंगा | इसी प्रकार एक मौके पर आचार्य नरेन्द्र देव विदेश जा रहे थे तो उस वक्त के आन्दोलन के बारे में पुछा गया की कैसे चलेगा तो आचार्य जी ने कहा की उसे नेता जी चलाएंगे और उनके नामकरण के बाद से राजनारायण जी को नेताजी कहा जाने लगा |
जब राजनारायण जी केंद्र में स्वस्थ्य मंत्री बने तो उन्होंने परिभाषा ही बदल दिया और जमीन पर बैठना तथा बिना ए० सी ० के रहना और उस समय रूस के अखबार प्रावदा ने लिखा की हिंदुस्तान में एक ही मंत्री है जो जनता का मंत्री है और समाजवादी फैसले कर रहा है | राजारायण जी ने चलित अस्पताल चलाये थे की वो गाँवो में जाकर गरीबो का इलाज करेंगे और बेयर फुट डाक्टर के नाम पर उस समय १५ लाख लोगो को नौकरी दे दिया था | पर आर एस एस की कुटिल चालो को देख कर वो विचलित हो गए तथा जिस तरह किसानो और गरीबो के मुख्यमन्त्रियो के खिलाफ साजिश हो रही थी उस पर वो मुखर हो गये तथा तत्कालीन जनसंघ के लोगो की दोहरी सदस्यता के सवाल पर सरकार टूट गयी |
उन्होंने किसानो की लडाई लड़ने वाले किसान नेता चौ चरण सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देखा तो फिर उसे पूरा कर के ही रहे | एक दौर था जब देश का प्रधानमंत्री ,प्रदेशो के मुख्यमंत्री उन्होंने बनाये बिगाड़े पर खुद उनका परिवार कहा है | मनीराम बागड़ी ने एक दिन जब ज्यादातर लोग साथ छोड़ गए थे तथा पार्टी ख़त्म जैसी हो गयी थी राजनारायण जी का नगर निगम में क्लर्क बेटा आया हुआ था ,कहा की पार्टी का काम तो अब कुछ रहा नहीं इसलिए टाइप राईटर और फोटोस्टेट मशीन इसे दे दे ये अपने बच्चो के लिए कुछ कमा लेगा इन मशीनों से तो उन्होंने जवाब दिया की पार्टी का है पार्टी कोष में पैसा जमा कर दे और ले जाये जबकि दूसरी तरफ एक प्रमुख कार्यकर्ता नेत्री ने बताया की आज ही अचानक उनकी बेटी के लिए एक लड़का मिल गया है जो दो दिन बाद ही विदेश चला जायेगा तो उसी राजनारायण जी ने उनकी शादी की पूरी व्यवस्था कर दिया |
उनके साथ रहने पर न तो किसी पद की जरूरत महसूस हुयी और न कही किसी से डर लगा | ८० में एक दिन मैं छात्र आन्दोलन में लाठीचार्ज के बाद गिरफ्तार हो गया पता नहीं उन्हें कहा से पता चला दूसरे ही दिन सुबह दिल्ली से चल कर और पूरे प्रशासन के साथ वो आगरा की जेल थे | जब मेरी शादी की पार्टी थी उसी दिन उनके परिवार में भी और उन्हें १०० से ज्यादा बुखार था पर वो मेरी शादी में हाजिर थे ..उससे भी ज्यादा तो तब हुआ जब मेरी बेटी पैदा हुयी और कुछ कार्यक्रम था उसी दिन उन्होंने बिहार के दो पूर्व मुख्यमन्त्रियो कर्पूरी ठाकुर और सत्येन्द्र नारायण सिन्हा को दिल्ली बुलाया था उनका विवाद निपटाने को और मुझे मना कर दिया था आने को पर अचानक सभी को साथ लिए हुए घर पर आ खड़े हुए | जब केंद्र में मंत्री भी थे तो अचानक जब घर आ जाते थे तब पता लगता था | ये थी इतनी बड़े नेता की खासियत |
मानवीय पक्ष और राजनीती की ऊँचाइयाँ तथा रिश्ते निभाना भी उनसे सीखे जा सकते है ,एक दिन थोडी से परेशानी पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा जी पैदल तीन मूर्ती लेन वाले घर आ गयी तो इंदिरा जी और संजय गाँधी के निधन पर मैंने उन्हें बिलखते देखा | ऐसा क्या कहा था उन्होंने संजय गाँधी से की उसी दिन से वो सड़क पर संघर्ष करने वाला हो गया | लोगो की चुगली और कान भरने से चरण सिंह से दूरी हो गयी थी पर मैंने उन्हें उनके लिये परेशांन  रहते हुए देखा | जनेश्वर जी और ब्रजभूषण तिवारी साथ छोड़ गए थे पर लोकसभा चुनाव में मैंने उनकी सहायता करते और जीत की कामना करते हुए देखा था |
वो चाहे कितने भी कमजोर हो गए हो पर जीतनी भीड़ उनके आसपास रहती थी वो मंत्रियो के यहाँ भी नहीं होती थी | देश के सभी बड़े नेता दलों की सीमाए तोड़ कर उनसे मिलने आते थे तथा सलाह करते थे | ये बताना भी समीचीन होगा की जब चंद्रशेखर जी भारत यात्रा कर रहे थे तो उन्होंने ये रहस्य खोला की यदि राजनारायण जी उनकी जिंदगी में नहीं आये होते काशी तो वो तो नौकरी करना चाहते थे पर राजनारायण जी उन्हें राजनीती में ले आये |एक दिन जब नेताजी बहुत कमजोर हो गए थे लोगो के साथ छोड़ देने के कारण ,देश के सात ७ बड़े नेता बैठे थे नेता जी के यहाँ और खिचड़ी तथा लिट्टी चोखा खा रहे थे उस दिन नेता जी ने बड़ी वेदना से कहा की यह दिन देखने को मैं क्यों जीवित हूँ ? जब सत्ता मदांध है और विपक्ष रश्म अदायगी कर रहा है और वही हालत कुछ आज भी दिख रही है। क्या कानून की पढाई राजनारायण को पढ़े बिना पूरी हो सकती है ?क्या लोकतंत्र में विपक्ष को मायने देने वाले योद्धा को याद किया बिना लोकतंत्र को जिन्दा रखा जा सकता है |
आज जब सत्ता तथा उससे जुड़े लोगो की भाव भंगिमा ,बोल और कदमो से लोकतंत्र की हत्या होने और फासीवाद स्थापित करने के इरादे की बू आ रही है तो आज जरूरत है एक राजनारायण की और आज के दौर में कोई राजनारायण नज़ए नहीं आता है। समाजवादी आन्दोलन अगर गाँधी के विचार ,लोहिया की हुंकार ,जयप्रकाश की सम्पूर्ण क्रांति और राजनारायण के सतत और निरपेक्ष संघर्ष कर्पूरी ठाकुर जैसे लोगो की सादगी को अपना हथियार बनाएगा तभी देश के लिए सपने देखे गए वो पूरे होंगे और राजनारायण जी को सच्ची श्रधान्जली होगी | 

उनका एक और मूल वाक्य  था --- सभी का गर भला हो मेरी जान सस्ती है 

गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

जातिगत जेहाद

आज बहुत मजबूर होकर ये उन लोगो के लिए लिख रहा हूँ और उन बड़ी संख्या में अति उत्साही लोगो के लिए लिख रहा हूँ जिन्होंने कोई संघर्ष और तकलीफ देखा ही नहीं ।समाज के उंच नीच को झेला ही नहीं और इस तरक्की तथा वैज्ञानिक युग में पैदा होने के नाते जिनसे अपेक्षा होती है की वो जातियो को तोड़ेंगे तथा जातियो की बात करने से भी घृणा करेंगे पर जो पिछली शताब्दियों से भी ज्यादा जहरीले जातिवादी होते दिख रहे है । ऐसा लग रहा है कि कट्टरवादी आतंकवादी मुसलमानो की तरह कोई कट्टरवादी जातिवादी जेहाद छेड़ा जा रहा हो ।
हम तो बचपन से लड़ रहे थे की वंचितो को न्याय मिले पर किसी के साथ अन्याय न हो । वंचित में सभी जाति और धर्म की महिलाओ को भी शामिल किया डॉ लोहिया ने और हम लोगो से नारा लगवाया : संसोपा ने बांधी गांठ ,पिछड़े मांगे सौ में साठ : और इस साठ में सम्पूर्ण स्त्री समाज को शामिल किया गया ।
हमने सीखा की घृणा नहीं करना है किसी से पर जो आगे बढ़ गए है उनसे कहा जाय की थोडा धीरे चलो, पर पूरी तरह रुक जाने और मृतप्राय हो जाने को नहीं कहा और जो पीछे छूट गए है उन्हें रफ़्तार दिया जाये और सम्भव समानता लायी जाए ,पर समानता उन समाजो और जातियो तथा धर्मो के अंदर भी लायी जाये ।
पड़ी खड़ी लकीर को पड़ी लकीर बनाना केवल अगड़ी और वंचित जातियो के लिए नहीं सोचा गया था बल्कि वंचितो में भी सभी को और वंचित जातियो में भी सभी को सामान भाव से अवसर मिले ये चिंतन था ।ऊच नीच की खायी को कम किया जाए ये चिंतन था ।
पर घृणा किया जाए और अन्य को खत्म किया जाए या बिलकुल पीछे कर दिया जाए ये चिंतन की बुनियाद नहीं थी ।
पर अब तो दिख रहा है की सबको खत्म कर दिया जाए और हम कुछ लोग सब पा जाये ,सब कुछ पर कब्ज़ा कर ले । ये चर्चा बंद कमरो में होती रणनीति बनाने को तो भी अलग था ,खुले आम एलान देकर चट्टी चौराहे और हर सार्वजानिक फोरम पर डुगडुगी पीट कर हो रही है ।
ये तब है जब आज जो पहले दबंग थे अब डरे रहते है ,जो पहले शासक थे अब शोषण के शिकार और याचक बने है और समाज की प्रकृति पूरी तरह उलट चुकी है ।
क्या हम जैसे लोग छले गए ? क्या हमने अपने पैरो पर खुद कुल्हाड़ी दे मारी ?क्या हम सिद्धांतो की आड़ में लोगो का हथियार बन गए सिद्धांतो के ही खिलाफ नहीं बल्कि मानव जाती और सम्पूर्ण समाज के खिलाफ ? बहुत से प्रश्न यक्षप्रश्न बन कर खड़े है ।
और इस सच्चाई से भी नकारने और सिर्फ जाती के नाम पर बाकि सबसे घृणा करने की आत्मघाती कोशिश नहीं करनी चाहिए की समानता और वंचितो के लिए लड़ने वाले सभी महापुरुष अगड़े और सुविधा सम्पन्न लोग थे ,पुराने इतिहास में देखे या नए में महात्मा गांधी से लेकर डॉ लोहिया,जयप्रकाश ,आचार्य नरेन्द्र देव राजनारायण मधु लिमये सहित सैकड़ो लोग ।इन लोगों ने समाज में चेतना फ़ैलाने के लिए और वंचितो को जगाने के लिए अपने को दाव पर लगा दिया ।
इस देश में राजनारायण जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने जोतने वालो को खुद अपने खेत दे दिया और वही पहले थे जो हजारो दलितों को लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर में घुसे और उसके से संघियो ,पंडो और पुलिस ने उन्हें मिल कर पीटा था पर वो रुके नहीं और जिंदगी के अंतिम दिन तक लड़ते रहे सिद्धान्तों के लिए । पर आज उनको साल में एक माला और उनके लोगो को गाली तथा उपेक्षा ।उनके लोगो को ठोकर मारी जा रही है और उनसे घृणा करते हुए खत्म किया जा रहां है तो मानव स्वाभाव का चिंतन का भाव और आत्मरक्षा तथा स्वाभिमान की रक्षा के प्रति चैतन्य हो जाना स्वभाविक ही है और आत्मरक्षा तथा आत्मसम्मान की रक्षा का अधिकार तो सनातन काल से दिया गया है ।
खैर भारतीय समाज की बड़ी विशेषता है की जब भी किसी ने भी समाज का संतुलन बिगाड़ा और अपनी मर्यादाये पार किया या तानाशाही और अहंकार पूर्ण व्यवहार शुरू किया इस सम्पूर्ण समाज ने उसे सबक देने और किनारे लगाने का काम किया ।ये कल भी हुआ था ,ये आज भी होगा और कल भी होता रहेगा ।
शायद कुछ लोग खुले आम गालिया देना और घृणा करना बंद करे ,शायद कुछ लोग सार्वजानिक तौर पर जातिगत जेहाद छेड़ना बंद करे इस उम्मीद के साथ ।
या फिर मुझे भी खुलेआम गाली दें जो वो कर ही रहे है सबके साथ ।
(आज के दर्द और चिंता तथा चिंतन से )

आसपास के धर्म स्थल

देश में बहुत से धर्मस्थल अगल बगल बने है है |
दुनिया का किसी भी धर्म का कोई सिद्ध या हिन्दुओ का कोई ठेकेदार मुझे कभी दिखा दे की किसी एक धर्मस्थल की किसी आवाज ,अजान ,कीर्तन ,गुरुवाणी ,या घंटे घड़ियाल से दूसरे धर्मस्थल की अगर कोई ईंट जरा भी हिलती हो तो मैं उसका गुलाम हो जाऊंगा |
अगर इन अलग अलग नाम से पुकारे जाने वाले भगवानो को आपस में कोई दिक्कत नहीं है तो फिर तुच्छ इंसानों को क्या दिक्कत है ??
सवाल अपने अपने धंधे का है केवल |

सच्चा इन्सांन ही सच्चा हिन्दू मुसलमान

सच्चा इंसान ही सच्चा हिन्दू ,सच्चा मुसलमान ,सच्चा ईसाई ,जैन ,बौद्ध या सिख हो सकता है और इनमे से कोई भी कभी भी आपस में धर्म के नाम पर दुश्मन नहीं हो सकता और न एक दूसरे पर हमला कर सकता है | सारी लडाई नकली लोगो के बीच है जो धर्म को न तो जानते है और न ही असलियत में मानते है |

अहंकार और अन्त

आपने बहुत से अहंकारियो को आसमानों में उड़ते और धूल में मिटते और खत्म होते देखा होगा ।
और 
आप जमीन पर अपने पैरों पर संघर्ष करते हुए मुस्कराते खड़े है या चल रहे है धीरे धीरे ।
पर 
अगर बडी महत्वकांक्षा नहीं है तो चैन से होंगे ।
बहुतो को दरवाजे की तरफ देखते हुए डींग मारते देखा होगा ,बहुतो को फ़टे कालीन पर शेर मारने की डींग हांकते और इतिहास में अहंकार को संतुष्ट करते देखा होगा ।
कुछ ऐसे ही और सही ।
आप खुश रहो और जमीन से आसमान को चुनौती देने की तैयारी करो अपनों जैसो के साथ ।
आज के चिन्तन से ।

वफादारी मे भी भेद

वैसे आपके लिए वफ़ादारी की परिभाषा क्या है हुजूर ? 
क्या सिर्फ खून के रिश्ते वाले वफादार होते है और बाकि सब गद्दार और शक के दायरे में ।
आप अपनों से कितने धोखे करते है ,कितने असत्य बोलते है और कितनो की जिंदगियां बर्बाद कर देते है पर वो सिर्फ हलकी फुलकी शिकायत कर आप के साथ खड़े रहते है ।
न गद्दारी करते है ,न विद्रोह और न आप का अपमान ।
आप उनकी शिकायत या सच को अपने अहंकार के खिलाफ मान उनसे किनारा कर ले ये अलग बात ।
पर जरा तथाकथित बिलकुल अपनों की ऐसी परीक्षा लेकर तो देखिये , अपनों में बटवारे के समय किसी तरफ झुक कर तो दिखाइए ,अपनों से अपने कमाये और दिए में से जरा सा वापस मांग कर तो दिखाइए या ऐसे ही थोड़ा सा अजमा कर तो देखिये दिन में ही तारे नज़र आ जायेंगे ।
आप ने उतना अपमान और उपेक्षा दुश्मनों से भी नहीं उम्मीद की होगी जितने आपके तथकथित अपने आप को दिखा देंगे ।
अब आप की मर्जी की अपने ऊपर पुनर्विचार करे और अपनी गलतियों पर या आप की मर्जी ।
अमेरिका में एक भाषण सुना की जितना प्यार आप को तथकथित खून वाले अपनों से होता हूं उतना ही तो जो आपने बनाया है उससे भी होता है और जिन लोगो ने इस यात्रा में मदद किया है उनसे भी ।
तो निर्णय करते हुए विचार इतने संकुचित क्यों ?
बस यूँ ही । आज के चिंतन से ।
राजनीती से इसका कोई सम्बन्ध नहीं ।

वादो का क्या

गुजरात के लोगो
क्या आप लोगो को याद है कि भगवान #राम के #मंदिर बनाने के नाम पर कितना #चंदा,कितना #धंधा ,कितने #दंगे ,कितनी #मौते ,कितनी आग क्या क्या हुआ था ।
क्या हुआ राम जी का ?
#भक्तो को भी याद नहीं ।
क्या याद है सामान #सिविल #कोड
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है धारा #370
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है हरे पत्ते और कूड़ा फैला कर ???
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #घर #वापसी
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #लव #जेहाद
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #पिंक #रेवल्युशन
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #बीफ जैसा शब्द
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #एक पर #सौ सर
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #15 #लाख
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #2 #करोड़ #रोजगार
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #विदेशी #काला #धन
भक्तो को भी याद नहीं
क्या याद है #आयकर की #5 #लाख सीमा
भक्तो को भी याद नहीं।
और
गुजरात मॉडल आप ने कही देखा क्या
और
अच्छे दिन ?
यार क्या क्या याद दिलाऊं
फिलहाल तो आप रेजगारी याद करो
कि
कहा कहा छुपाई है
और
सस्ता सामान कहा कहा मिलता है
और उधार भी
हां
आप वोट डाल कर फैसला करते हो
ये याद रखना
जुमलो में नहीं आवोगे
ये याद रखना
भावनाओ में बह कर वोट नहीं दोगे
ये याद रखना
#आरएसएस #विहिप और #बीजेपी की बातों में कभी नहीं आवोगे
ये हमेशा याद रखना ।
जय हिंद ।

सामाजिक क्रांति बनाम परिवर्तन

क्रांति ,सामाजिक क्रांति ,सामाजिक परिवर्तन ,व्यवस्था परिवर्तन 
इस देश की राजनीतिक व्यवस्था और राजनीती में 
उस बच्चे की तरह है 
जो भूखा किसी मिठाई की दुकान 
या 
रेस्टोरेन्ट के सामने खड़ा होता है
या
उस बच्चे के समान है
जो नंगा
किसी भव्य कपडे की दुकान के सामने खड़ा उसके शोकेस में सजे पुतलों को निहार रहा होता है ।
वैसे
जनता
या
राजनीतिक कार्यकर्ता
जाने दीजिए ये बात ।

6 दिसंबर

कल ६ दिसंबर था  | कल ही बीजेपी ने संविधान को रौंदा था ,कल ही संविधान की शपथ को पैरो तले कुचला था ,कल ही देश के सर्वोच्च नयायालय को दिए गए हलफनामे को पैरो के नीचे कुचला था कल्याण सिंह ने जो आज राज्यपाल है | 
जी हाँ कल ही किया था ये सब बीजेपी ,आर एस एस और विश्व हिन्दू परिसद ने जो सभी मिल कर आज देश को उपदेश देकर उस दिन तक के लिए भ्रमित कर रहे है जब तक ये संविधान की किताब को फाड़ने लायक न हो जाए और गुरु गोलवलकर के सपने यानी हिटलर की राज्य व्यवस्था को कायम न कर सके | 
बस याद दिला रहा हूँ क्योकि जो समाज और देश कल को भूल जाता है या याद नहीं रखता उसे उसी कल के साथ बहुत बुरे समय से गुजरना होता है | 
बाकि जो है वो तो है ही |

गुरुवार, 2 नवंबर 2017

जातिवाद का दोगला चारित्र

जातिवाद को लेकर दोगले चरित्र होते कैसे खत्म होगा जातिवाद ?
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तमाम लोगो सहित मैं भी जातिवाद के आतंक से पीड़ित हूँ और उसके ख़त्म होने की कामना करता हूँ पर कैसे ख़त्म होगा जातिवाद ?  मैं ५५ के दशक  में गँव में पैदा हुआ और गाँव से जुडा हूँ और वो भी पूर्वांचल के पर मैंने अपने बचपन में भी जातिवाद का इतना उफान और इतनी घृणा नहीं  देखा था जब लोग पढ़े लिखे नहीं थे ,जितना अब पढ़े लिखो में देश रहा हूँ और वो भी जो तब पैदा हुए जब जातिवाद ख़त्म हो जाना  चाहिए था और कम से कम कही जातिवाद का जहर था भी तो स्कूलों कालेजो में सामान ड्रेस ,समान शिक्षा { उस स्कूल और कालेज में } के कारन ख़त्म हो जाना चाहिए था ,,उस वक्त जातियां थी पर एक दूसरे की पूरक थी और पूरा गाँव एक परिवार था ,किसी का कोई कम नही  रुकता था ,सब सब पर आश्रित थे और सब सबका ध्यान रखते थे और सम्मान करते थे
किसी भी जाति के व्यक्ति के साथ अकेले बैठ जाइये और उसकी जाती का इतिहास भूगोल पूछ लीजिये फिर देखिये उसकी गौरव गाथा  और साथ उसकी जाती में कौन कौन आता है देश भर में उनमे कौन उच्च है और कौन नीच ,उसकी कितनी धाराये होती है और किनकी किससे शादी नहीं होती ,कौन किसके यहाँ उसी जाती में भी खाना क्या पानी भी नहीं पीता इत्यादि सब सुनने को मिलेगा
इस पर पूरा लेख बाद में लिखूंगा अभी केवल अपने आसपास के चेहरों का बिना नाम लिखे चरित्र उजागर कर आहा हूँ बड़ा सन्देश देने को काफी लोगो को जिनमे इतनी घृणा भरी है की लगता है कोई बड़ा युद्ध छेड़ने की तैयारी में है जाती के नाम पर समाज में और वो भी आरपार की मार काट वालीं
मेरे साथ सभी वर्गों के लोग जुड़े है और खुद को समाजवादी भी कहते है पर जैसे मैं उन्हें समाजवाद नहीं पढ़ा पाया सचमुच में इतने सालो में वैसे ही उनमे संस्कार भी नहीं डाल पाया समाजवाद का ,कह सकते है की मेरी असफलता है पर वो सभी मेरे साथ तो कभी कभी कुछ घंटे रहते है बाकि सारा समय तो अपने परिवार और अपनी जाती के साथ रहते है सारी शिक्षा उर संस्कार तो वहा का भरा पड़ा है खून के कतरे कतरे में
जो साथी प्रमुख पिछड़े वर्ग के है वो बताते है की की हमारा फला धारा से तो शादी ब्याह का रिश्ता ही नहीं पर कुछ लोग महत्वपूर्ण हो गए तो कुछ लोग करने लगे पर हम तो अभी भी नहीं करते है
जब कभी मैं किसी दलित या मुसलमान के यहाँ किसी अवसर पर जाता हूँ तो ये कन्नी काटने की कोशिश करते है और चले गए तो तबियत कुछ खराब  होती है और वहा खाना पानी कुछ नहीं
जो साथी बघेल जाती के है क्या मजाल की उनकी आप दलित या मुसलमान के घर पानी भी पिला दे ,जो दलित जाती के है उनको बाल्मीकी के घर आप खला पिला नहीं सकते है ;बेचारे देखते रहते है मन मसोस कर और हम खाते पीते रहते है
कौन बड़ा जातिवादी है और जाती के नाम पर भीतर तक घृणा रखता है ?
कुछ ऐसा ही चरित्र है समाज का सम्पुर्ण ,ब्राह्मण सरयूपारी ,कान्यकुब्ज इत्यादि में फंसा है तो क्षत्रिय भी अपने अलग अलग धाराओं में ,बनिया  हो या अन्य सभी का यही हाल है ,पिछड़े और दलित भी इसी चरित्र के साथ जी रहे है तो मुसलमानो से भी सुनता हूँ की फला तो फला है और ऐसा होता है
कौन ख़त्म करेगा जातिवाद ?
और ऐसे चरित्र वाले जब उपदेश देते है और घृणा का हद दर्जे का प्रदर्शन करते है तो आइना दिखाना ही पड़ता है

सोमवार, 24 जुलाई 2017

शिख्ंडी

आज की राजनीती में खासकर सत्ता को महाभारत का केवल शिखंडी आदर्श भा गया है 

जब चाहते है किसी भी चीज को शिखंडी बना आगे कर देते हैं 

रविवार, 23 जुलाई 2017

इंतजार करता हूँ किसी समापन का संघर्ष या जीवन में


काफी दिनों से कुछ नहीं लिखा न विचार और न  कविता | लगता है विचार ही सूखा गए है या कलम की स्याही सूख गयी है या उँगलियाँ ही नहीं चलती अब की बोर्ड पर| कभी लिखा था की मन होता है की किताबे जला दूँ ,डिग्रियां और पुरष्कार जला दूँ ,कही उसी का असर तो नहीं ? या हालत ने बना दिया है मुझे ऐसा | संघर्ष तो किया है पूरी जिंदगी पर अब शायद जिदगी ही संघर्ष हो गयी है इसलिए जब तक संघर्ष करता रहा तब तक तो कलम दौड़ती रही पन्नो पर लेकिन जिन्दगी ही जब संघर्ष बन जाये तो क्या और कैसे दौड़े ,न दिमाग ही चलता हिया और न दिल ही हिलोरे लेता है न दुःख की ,न सुख की ,न चाहत की ,न संकल्प की न संबल की न संभावनाओ की और जब दिल ही मौन हो गया हो इस कदर तो भाव आये भी तो कहा से और कलम हो या कीबोर्ड चले भी तो कैसे |
पता नहीं कब जिन्दगी भवर से निकलेगी और संघर्ष अंतिम विराम लगाएगा जिंदगी में या जिन्दगी को | राजनीती तो मेरे खून के कतरे कतरे में थी पर वो भी सन्यास ले गयी है लगता है |
तो अभी वरम ही देता हूँ
और इंतजार करता हूँ किसी समापन का संघर्ष या जीवन में | 

मंगलवार, 4 जुलाई 2017

असंम में फिर बढ़ से तबाही

असंम में फिर बढ़ और लाखो लोग परेशानी में | हर वर्ष ही करेब करीब देश का बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में आता है वो चाहे बंगला देश की नदियों के कारन हो या अपने देश की नदियों के कारन ,वो भरी बारिश के कारन हो या बांधो के पानी छोड़ने के कारन पर तबाह तो हर साल vaइ लोग होते हैं |
कितने करोड़ लोग कुछ फिन बेघर हो जाते है तो कितने बंधो ,ऊचैयियो और सड़को पर प्लास्टिक के टेंट लगाकर कर तब तक की जिंदगी गिअरते है जब तक बाढ़ ख़त्म नहीं हो जाती है | बढ़ के बाढ़ यही लोग महामारियो और बीमारियों के शिकस होते है |
कभी कोइं जाकर तो देखे की कितनी मुश्किल और तबाह जिंदगी जीती है देश की ही बड़ी आबादी और इसमें बड़ी संख्या हिन्दू की ही होती है | ये अलग बात है की बाढ ही,आगजनी हो या कोई और आपदा मरता तो देश का गरीब ही है और ये आपदाए जाति और धर्म देख कर भी नही आती पर जाती और धर्म के गौरव का एहसास कर जबी वोट मिल जाता हो और पांच साल की सरकार बन जाती हो तो उनकी समस्याओ और जिंदगी के लिये कुछ करने की जरूरत भी क्या है |
आज़ादी के इतने साल बाद भी हम इन आपदाओ से अपनी जा नता को बचाने का रास्ता नहीं तलाश कर सके है | हमें फुर्सत ही नहीं है बड़े शहरो को और संवारने से और बड़ो को बनाने तथा बचने और बढाने से |
वक्त बहुत ध्यान से देख रहा है की ये उंच नीच की खाई ,उनसे ये दोहरा व्यवहार ,सत्तावो का ये दोहरा चरित्र ,कब तक चलेगा और देश सम्पूर्ण रूप से करवट कब लेगा जब उंच नीच की खाई कुछ कम हो सके और न्याय तथा सत्ता और सम्पत्ति तथा संसधानो बटवारा समानता से होगा |
फिलहाल तो मैं उन करोडो के प्रति संवेदना उअर दुःख ही व्यक्त कर सकता हूँ |
जय हिन्द |

गुरुवार, 11 मई 2017

अर्थ का अनर्थ

भाषा कितनी ताकतवर होती है और कैसे कोई एक शब्द अर्थ का अनर्थ कर देता है ।
ये समझने के लिए एक बहुत छोटी सी कहानी -
एक आदमी कही जा रहा था और रात देर हो गयी और रास्ता भी भटक गया तो सोचा को रास्ते मे पड़ने वाले गाँव मे किसी के यहाँ शरण ले लेगा और सुबह रास्ता पूछ कर निकाल जाएगा ।
एक गांव आया । उसने कुंडी खटखटाया । दरवाजा खुला तो अजनबी को देख हैरान घर वाले ने उसकी तरफ उत्सुकता से देखा और कुंडी खटखटाने का कारण पूछा
यात्री बोला कि देर हो गयी है और वो रास्ता भटक गया है । रात में शरण मिल जाये तो वो आभारी होगा और रात गुजार कर सुबह होने पर निकल जाएगा ।
घर के मालिक ने जवाब दिया कि
ये बहू बेटियो का घर है इसलिए आगे कोई घर देख ले ।
वो यात्री जो भी दरवाज़ा खटखटाता यही जवाब मिलता कि बहु बेटियो का घर है आगे देखो लो ।
गांव के अंतिम घर पर पहुच , दरवाज़ा खुला और घर का मालिक बाहर आया तो उसने दरवाज़ा खुलते ही घर के मालिक से पूछा -
आप के घर मे बहू बेटियां है क्या ?
घर के मालिक ने घूर कर उसे देखा और कहा , हा है क्यो पूछ रहे हो ।
यात्री बोला - रात गुजारनी है ।
अब समझ सकते है कि यात्री के साथ क्या हुआ होगा ।
शब्द इधर के उधर होते ही कितना अर्थ का अनर्थ कर देते है ।
इसलिए शब्दो से खेलना आता हो तभी खेलना चाहिए ।

मंगलवार, 9 मई 2017

विकास का रास्ता

क्या #विकास और उससे जुड़े #सभी #विभाग और #मन्त्रालय एक नही हो जाने चाहिए अगर फाइल घूमने से बचाना है और जवाबदेही तय करनी है ।
और ऐसे ही अन्य विभाग भी ।
नाम हो #इंफ्रास्ट्रक्चर #डेवलपमेंट #विभाग और मंत्रालय जिसमें जुड़े हुए सभी विभाग हो ।
चाहे विभाग के अंदर अलग अलग चीज का इंचार्ज अलग अलग हो एक मंत्री और एक विभागाध्यक्ष के अंदर ।
मेरी बात मान कर चमत्कार देखिये ।
@मोदीजी @योगीजी ।

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

भारत का लोकतंत्र

बहुत चिंतित हूँ कि क्या होगा भारत के लोकतंत्र का । जिस विचारधारा का भारत की आज़ादी की लड़ाई से कोई सम्बंध नहीं , जिनकी लोकतंत्र ,इंसान की आज़ादी और संविधान में आस्था नहीं वो जुमलों और अफ़वाह के दम पर लगातार मज़बूत होते जा रहे है और दूसरी तरफ़ अन्य राजनीतिक ताकते या तो व्यक्तिगत का शिकार हो या परिवार वाद का शिकार हो और नितांत निजी स्वार्थों में लिप्त हो सीमित दायरों  में क़ैद होती जा रही है या सीमित सोच में क़ैद है या अपने इन्हीं कारणों से अयोग्यता ,अदूरदर्शिता और अल्पज्ञानता  के बोझ तले दम तोड़ रही है और भविष्य का न तो चिंतन है उनके पास न ही वैकल्पिक संघर्ष का माद्दा ही ।
राष्ट्रीय आंदोलन से निकली कांग्रेस भी पहले ही अहंकार तले छिननभिन्न होती दिख रही  है और लगातार उसके स्तम्भ गिरते जा रहे है । जबरन अयोग्य नेतृत्व को थोपने की कोशिश और नितांत असुरक्षित लोगों का उसी को सुरक्षा कवच की तरह प्रयोग आत्मघाती बनता जा रहा है । दशकों से कांग्रेसी रहे लोग उसे छोड़ते जा रहे है और उन्हें सत्ता में बैठे  लोग लोग तो लपक ले रहे है पर कांग्रेस को कोई चिंता नहीं । कश्मीर से कन्यकुमारी तक , बंगाल से लेकर पंजाब तक और सुदूर पूर्व से लेकर गुजरात तक मजबूर मजबूर कांग्रेसियों को भगाया गया है कंफ्यूसिया कांग्रेसियों द्वारा ।
ऐसा लगता है की शतरंज के खिलाड़ी की कहानी दोहरायी जा रही है कांग्रेस में भी और बाक़ी कुछ अन्य वैसे ही नेताओं के यहाँ जिनकी आत्मप्रशंसा और सनक देश के प्रति कर्तव्यों पर भारी पड़ रही है ।
कुछ दिन पहले ही कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ने कांग्रेस छोड़ और आज पता चला की गिरधर गोमांग भी सत्ता दल में है तो मैं हिल गया । कुछ और नामो के बारे में सुन रहा हूँ ।
पूर्व में ममता बनर्जी हो या मुफ़्ती मोहम्मद सईद या शरद पवार पूरे देश में अनगिनत लोगों को कांग्रेस ने खोया जो ख़ुद को साबित कर बड़े नेता सिद्ध हुए और उनके प्रदेश में उन्हें भगाने वाले बौने साबित हुए ।
पर लगता है की किसी आत्मचिंतन की ज़रूरत हीं नहीं समझती है कांग्रेस और आज़ादी के लिए तथा उसके बाद देश के लिए क़ुरबानी देने वाले अब देश ,लोकतंत्र , संविधान और आज़ादी की क़ुरबानी करने पर उतारू है ।
यही हालत अन्य नौजवान नेताओं की भी दिख रही है जो देश के पैमाने पर खड़े हो सकते थे ख़ुद भी और खड़ा कर सकते थे विकल्प भी लेकिन अयोग्यता या हीन भावना और प्रारम्भ में ही बुराइयों का शिकार होकर एक अंधेरे रास्ते पर चल पड़े है ।
समझ नहीं आता क्या होगा मेरे देश का ? क्या इसी सब को देखने के लिए लाखों लोगों ने क़ुरबानी दिया था ?
मन बेचैन है । क्या कोई बदलाव आएगा ? क्या कोई रास्ता निकलेगा ? क्या कोई विकल्प बनेगा ? 

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

कुलभूषण जधव

आज फिर पाकिस्तान ने एक भारतीय नौजवान की जान लेने की तैयारी कर ली ।
कुलभूषण जाधव नेवी का पूर्व अधिकारी था । पाकिस्तान ने सीमा से उसे पकड़ लिया ।
भारत के दूतावास को न उससे मिलने दिया और न उसे वक़ील करने दिया और फाँसी की सज़ा सुना दिया जिसपर आज वहाँ के सेनाध्यक्ष ने हस्ताक्षर कर दिया ।
इसकी कोई अपील वहाँ के किसी कोर्ट में नहीं है ।
एक जवान को पाकिस्तान फाँसी पर चढ़ा देगा और हमारी सरकार मौन है ।
प्रधानमंत्री और सभी कूटनीति के लोगों को कुछ भी कर के जाधव को वापस लाना चाहिए ।

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

आखिर आतंकवादी कब हो गया मुसलमान

मुसलमान हमारा कवी और शायर था , मुसलमान भक्तिकाल का गायक था ,मुसलमान कबीर भी और नजीर भी , मुसलमान सेनापति और जर्नल था , मुसलमान आज़ादी की लड़ाई का सिपाही और सेनापति था , मुसलमान कभी बहादुर शाह जफर , कभी जर्नल शाहनवाज था , मुसलमान अशफाक तो  ब्रिगेडियर उस्मान था तो अब्दुल हमीद और हनीफ था , मुसलमान मुहम्मद रफ़ी तो दिलीप कुमार ,सलमान तो आमिर , मुसलमान गांव में एक होकर भी गांव की जरूरत था , मुसलमान हमारे लिए बनारस में साड़ी तो फ़िरोज़ाबाद में चूड़ी बनाता था , मुसलमान कभी जाकिर हुसैन और अबुल कलाम आज़ाद था तो डॉ कलाम भी , मुसलमान हमारी गाड़ी बनाता भी है और चलाता भी । दिन भर मेहनत से जूझता और मुल्क की तरक्की और अपनी जरूरत के लिए लड़ता मुसलमान , पंचर जोड़ता तो मिस्त्री और फिटर मुसलमान , कही बिरयानी कही कवाब तो कही मुगलाई बना कर खिलाता मुसलमान । गलत काम करने वाले बेटे की लाश ठुकराता मुसलमान ।
आखिर आतंकवादी कब हो गया ? और
सारे 15 करोड़ हो गए क्या ?

बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

माँ ऐसी होती है ।

एक लघु कथा --
माँ ऐसी इसको कहते है ।---

वो पुराना घर
कहते थे की किसी राजा के कारिंदों कथा
कुछ लोग बताते थे की राजा के घोड़े बांधते थे
पर अब तो कुछ लोग रह रहे थे वहां
और
ऐसा घर पाना भी कितनी बडी सुविधा थी ।
बारिश कितनी बड़ी सजा था उस माँ के लिए और बच्चो के लिए
पिता तो सो जाता था
पर माँ कैसे भीग जाने देती अपने छोटे छोटे बच्चो को ।
पहले मच्छरदानी लगाया
फिर उस पर कुछ प्लास्टिक बिछाया
फिर भी बात नही बनी तो बच्चो को उस कोने में लिटाया जहा पानी नही आ रहा था और
पानी वाली जगह कही बाल्टी रखा और कही टब ।
पूरी रात जी पूरी पूरी रात
वो बैठी रहती थी बर्तन बदल बदल कर पानी फेंकने को कि एकमात्र बिस्तर भीग न जाये ।
कितनी राते नहीं सोती थी वो माँ अपने बच्चो के लिए औरअपने परिवार के लिए
पूरे दिन काम भी पूरा करती थी बिना चेहरे पर शिकन लिए
अभी कल की ही तो बात है
बेटी पैदा होने वाली थी । पैसे नहीं थी तो सरकारी अस्पताल के जर्नल वार्ड में कुछ अपनों के कारण इंतजाम हो गया था
और डॉ चार दिन कम से कम रोकते है और कुछ दिन आराम करने तथा शरीर के सामान्य हो जाने को समय देने को बोलते है पर गरीबी और घर की मजबूरी के कारण वो एक दिन में ही घर आ गयी थी और लग गई थी घर के हर काम में ।
मैं उस माँ को जानता था ।
हां मेरे आसपास ही थी वो माँ लेकिन कोई मदद नहीं कर पाता था मैं
और
आज भी वो उसके हालात को न बदल पाने और उसकी मदद न कर पाने का गुनाह मुझे डराता है और शर्मिंदा करता हूं ।
पर उसके बारे में ये लघु कथा लिख कर उसे श्रधांजलि तो दे ही सकता हूँ और लोगो को बता ही सकता हूँ कि
माँ ऐसी होती है ।

छोटे बड़े भाई राजनीती के

बड़े भाई
हां छोटे भाई
ये क्या कर रहे हो ? काम की बाते और विकास की बाते ?
क्या छोटे क्या ये ठीक नहीं
अरे क्या गजब कर रहे हो लोग गाँव घर के बाहर और अन्दर झांक कर देख रहे है और पिचले चुनाव के वादों को भी याद कर रहे है | हम दोनों कही के नहीं रहेंगे | क्या जवाब देंगे ?
तब क्या करें भाई ?
ये फालतू की बातें छोड़ो और कुछ और सोचो जिससे लोग गाँव और पड़ोस की सड़क ,नाली ,पानी ,सफाई ,नौकरी ,महंगाई ,देश के जवानों की हत्या १५ लाख ,काला  धन , नोट्बंदी सब भूल जाये | न आप का कुछ याद रहे और न मेरा |
बही तुमने तो चिंता में डाल दिया | ये तो जनता हम दोनों को सबक सिखा देगी और कोई विकल्प ढूढ़ लेगी |
कही ऐसा न हो की बिना पैसा खर्च करने वाले निर्दलीय इम्नादार लोगो को वोट देना सीखा जाये और हम लोगो की राजशाही ख़त्म हो जाये |
हां भाई बहुत बुरा हो जायेगा |
फिर
फिर क्या
वही पुँराना शुरू करते है | जातियों में जाती और गोत्र के गौरव का भाव जगाते है |
धर्म को धर्म का डर दिखाते है | धर्मस्थलो का सवाल उठाते है | धर्म की घृणा बांटते है |
हो गया काम
लेकिन ये हथकंडे तो जनता जानती है ,कही नहीं फंसी जाल में तो फेल हो जायेगा फार्मूला
तो नया शुरू करते है
कुछ नए शब्दों निकालते है की मजबूरी हो जाये लोग उसी के इर्द गिर्द चर्चा करने को |
अच्छा क्या ?
गदहा
आतंकवादी
चोर
गुंडा
जितनी गन्दी से गन्दी बात हो सके नहीं तो भद्दी भद्दी गलिया देने लगेंगे हम दोनों जोर जोर से दोनों एक दूसरे को
और इतना शोर करेंगे और करते ही रहेंगे की जनता बस तमाशबीन हो जाये
बस
इसी में वोट का टाइम निकल जायेगा
अच्छे लोग भी इस शोर में खो जायेंगे
और हम लोगो को गलियों की पसंद और नापसंद में एक बार और जनता को लामबंद करने में कामयाब हो जायेंगे ,
हम दोनों में से ही कोई जीतेगा |
हाथ मिलाओ
हां हां हां हां हां हां हां
जनता क्या हमसे ज्यादा दिमाग रखती है
जनता कही की
अरे पूरा पांच साल बचा है ,अपराध ,नाली ,पानी सड़क ,बिजली रोजगार विकास की चर्चा के लिए ,देश की सुरक्षा ,जवानों की हत्या ,आतंकवाद ,काला धन ,नोट ,रोजगार इत्यादि
कम से कम चुनाव में तो ये बाते जनता को भूल ही जाना चाहिए
बड़े बतमीज है ये जनता के लोग की एक डेढ़ महीना ये सब भूल कर केवल हम लोगो के जुमलो और झटको को सुनना चाहिए
चुनाव ख़त्म हो जाये तो फिर अपनी बैठक और चाय की दुकान और काफी हाउस में बैठ कर ,चौपाल पर खूब चर्चा करना इन  मुद्दों की और हमें खूब गालियाँ दे देना ,
वहा सुन ही कौन रहा है | तुम ही बोल रहे हो और तुम ही सुन रहे हो
सा ;;; चुनाव में याद करने लगते है | ये भी कोई तरीका है
जहा सी तमीज नहीं है इन कीड़ो मकोडो में
जाने दो भाई नाराज मत हो | अभी तो गधो को बाप बनाने का वक्त है \
एक महीना बना लो फिर इन गधो पर राज करो
अच्छा पैग बनाओ
इस नए झकास आइडिया पर ; चियर्स .
किसी ने हमें मिलते देखा तो नहीं
या बात करते सुना तो नहीं
तो तय रहा
यहाँ से निकलते ही एक दूसरे को गन्दी से गन्दी गलिया देनी है ,बिना संकोच ,बिना लिहाज
हां हां हां हां हां हा
लोकतंत्र की जय .भीडतंत्र जिंदाबाद |
इति कथा सम्पन्नम |