शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

जिंदगी के झरोखे से

डॉक्टर चंद्र प्रकाश राय जिनको मित्रमंडली में प्यार से सीपी राय कहकर जाना जाता है ,एक बहुत अच्छे इंसान, लोकप्रिय राज नायक संघर्षशील राजनेता, एक अच्छे लेखक कुशल सलाहकार और बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। मैं उनसे और उनके पूरे परिवार से अगली और पिछड़े पीढ़ी से भली बात परिचित रहा हूं बल्कि उनके परिवार का एक सदस्य रहा हूं। उनके परिवार की मेहमान नवाजी का साक्षी भी हूं।
वह एक अच्छे कवि और अच्छे गद्य लेखक भी है सोशल मीडिया पर अक्सर उनके राजनीतिक सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर विद्युत का पूर्ण लेख अक्सर पढ़ने को मिलते हैं ।
इधर उन्होंने अपनी रोचक जीवनी लिखी है जिसका नाम है "जिंदगी के झरोखों से"।
इस पुस्तक में उन्होंने अपने पचास साल के सामाजिक और राजनीतिक जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों का रोचक ढंग से विस्तार से वर्णन किया है।उनके जीवन की  धूप छांव का बदलता हुआ क्रम बड़ा हृदय ग्राही है । राय साहब बड़े स्वाभिमानी व्यक्ति हैं ,उन्होने जीवन में कोई चीज झुक कर नहीं उठाई चाहे वह कितने भी बड़ी ,कीमती और महत्वपूर्ण हो ।जाहिर है की उनके इस जीवनी में यह भी छिपी हुई शिकायत होनी है कि उन्हें समाज से वह नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। और यह शिकायत उचित भी है ।मैं इस बात का चश्मा दीद गवाह हूं की क राय साहब नेताजी मुलायम सिंह के बहुत करीब रहे और उनके प्रति हर तरह समर्पित रहे ,नेताजी ने भी उनको सदा अपना माना और अत्यधिक स्नेह और प्यार दिया राय साहब ने समाजवादी पार्टी के  हितेषी चिंतक के रूप में दिन और रात एक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन उन्हें कोई कोई बड़ा पद या सम्मान नहीं मिला जिसके वे अधिकारी रहे। केवल नेता मुलायम सिंह ही नहीं जितने बड़े राजनीतिज्ञ हुए हैं चाहे वह बीपी सिंह हो जाए प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी हो , चौ देवी लाल जी हो या रामकृष्ण हेगड़े जो हो या और भी बहुत से बड़े नेता जो 70 के दशक 2020 के दशक  तक हुए है राय साहब की घनिष्ठता लगभग सभी से बराबर रही है राजनीति में उनका दर्जा अजातशत्रु राजनेता का रहा है। वर्तमान में वह कांग्रेस के एक बड़े नेता के रूप में उभर के आए हैं । 
राय साहब द्वारा कारगिल के शहीदों की पत्नियों को मिले आयकर कटौती के नोटिस के खिलाफ किए गए प्रयास जिसे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को वापस लेना पड़ा तथा बाकी वादे भी पूरे करने पड़े , अटल बिहारी वाजपेयी और जरनल मुशर्रफ की वार्ता के दिन इनके विरोध प्रदर्शन और गिरफ्तारी जो 1965 और 1971 के पाकिस्तान के जेलों में बंद युद्ध बंदियों की रिहाई की मांग के लिए हुआ था जरनल मुशर्रफ को इनकी बात माननी पड़ी और उन्होंने युद्ध बंदियों के परिवारों को अपने अतिथि के रूप में आमंत्रित किया कि वे लोग आकर जेलों में अपने परिजन को पहचान ले तो वो तुरंत ही छोड़ देंगे और जब लॉटरी से देश के लाखों लोग बर्बाद हो रहे थे तब राय साहब का पहले लॉटरी फाड़ो आंदोलन और फिर अपनी सरकार बन जाने पर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी से उत्तर प्रदेश में लॉटरी बैन करवा देने जिसके दबाव में बाकी प्रदेशों की लॉटरी भी बैन हो गई इनकी राजनीति से इतर बड़ी उपलब्धियां है ।
राजनीति में चाहे समाजवादी पार्टी की स्थापना करवाना हो या तमाम और तमाम तरह के संघर्ष समाजवादी पार्टी इनके योगदान को भुला नहीं सकती है ।
राय साहब की लोकप्रियता का दायरा इतना बड़ा है कि उसमें राजनीतिज्ञ भी हैं ,साहित्यकार भी हैं, समाजसेवक भी है ,और भारत और विश्व की हर भाषा और हर राज्य के जाने-माने लोग उनके प्रिय हैं और वह लोग उनका नाम आदर से लेते हैं
 उनकी पुस्तक जिंदगी के झरोखों से की भाषा बहुत सरल और बोधगम्य है वह एक अच्छे गद्य लेखक  तो हैं ही उसके साथ उनकी सरल बोधगम्य भाषा की विशेषता भी अपना एक महत्व रखती है। मैं उनकी पुस्तक की सफलता और लोकप्रिय होने की कामना करता हूं उनकी दीर्घायु की कामना करता हूं जिससे वह अपने सामाजिक और राजनीतिक विचारों से देश और समाज का निरंतर हित करते रहें ।
जय हिंद

उदय प्रताप सिंह 
देश के जाने माने कवि और शायर 
पूर्व सांसद लोकसभा , पूर्व सांसद राज्यसभा , पूर्व सदस्य पिछड़ा वर्ग आयोग भारत सरकार , पूर्व अध्यक्ष हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश

जिंदगी के झरोखे से



संस्मरणों की इस श्रृंखला के माध्यम से डॉ. सी. पी. राय ने अपने राजनैतिक जीवन के कुछ महत्वपूर्ण क्षणों को याद किया है, पाठक के लिए भी, अपने लिए भी। इन यादों में कुछ अच्छा कर
पाने का संतोष झलकता है तो अपना प्राप्य न पा सकने का स्वाभाविक दुख भी।
इस प्राप्य की व्याप्ति केवल व्यक्तिगत नहीं, विचारगत भी है। इन संस्मरणों में व्यक्तिगत जीवन के संकेत तो हैं, लेकिन बल समाज और राजनीति में लेखक की हिस्सेदारी पर ही है। उन्हें दुख भी इसी
बात का अधिक है कि भारतीय समाज के उत्तरोत्तर लोकतांत्रिकीकरण के लिए जिस राजनैतिक धारा से जुड़े रहे, वह कमजोर, कई बार तो विपथगा भी होती चली गयी। मार्के की बात यह है कि इसके बावजूद श्री राय की बुनियादी प्रतिबद्धता नहीं बदली, हिन्दुस्तान का हम हिन्दू और मुसलमान ( तथा अन्य समुदायों ) के मिलाप से ही बनता है, बहुसंख्यकवाद से नहीं—यह बुनियादी धारणा श्री राय के
कामों को तब भी निर्धारित करती थी, जब वे समाजवादी पार्टी में थे, अब भी करती है जब वे कांग्रेस में हैं।
राजनैतिक प्रतिबद्धता की निरंतरता की इस यात्रा में आने वाले व्यक्तिगत उतार चढ़ावों का विवरण तो यह पुस्तक देती ही है, अनेक महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाक्रमों को एक गंभीर राजनैतिक कार्यकर्ता
के दृष्टिकोण से देखने का अवसर भी देती है।

20 फरवरी 2025           

प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल , जाने माने लेखक , पूर्व सदस्य केंद्रीय लोक सेवा आयोग, पूर्व प्रोफेसर जवाहर लाल नेहरू विविश्वविद्यालय ।