एक राजनीतिक 'कैपसूल'
यह एक ऐसे योद्धा की कथा है, जिसने जीवन में बस लड़ना सीखा। नहीं कहूंगा कि निष्काम होकर क्योंकि यह संभव नहीं है। जो भी आदमी लड़ता है, वह निष्काम नहीं हो सकता। लड़ाई निरुद्देश्य नहीं होती, उसके पीछे कोई न कोई मंतव्य होता ही है। डा. सीपी राय ने भी अगर संघर्ष किया तो वह अकारण नहीं था। उन्हें कुछ बदलना था, कुछ नया बनाना था। जब कोई आदमी कुछ नया बनाता है तो उसके साथ- साथ उसके स्वयं के बनने की प्रक्रिया भी चलती है। कोई लाख कहे कि वह कुछ नहीं चाहता लेकिन भीतर कुछ आकांक्षाएँ होती हैं। कुछ समाज के लिए, कुछ अपने लिए।
डा. राय एक राजनीतिक शख्सियत हैं । छात्र जीवन से ही उन्होंने यह रास्ता पकड़ लिया था और आज भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं। उन्होंने अपने संघर्ष से कई ऐसे काम संभव किये, जो लगभग अकल्पनीय थे। लाटरी को खत्म किया जाना या जनरल मुशर्रफ को इस बात के लिए राजी करना कि वे भारतीय कैदियों से उनके परिजनों को मिलने दें, ऐसी अनेक उपलब्धियाँ डा. राय के खाते में हैं। उन्होंने हमेशा मूल्यों की राजनीति की। यह उनके पक्ष में एक खराब बात साबित हुई। राजनीति जी हुजूरी का खेल है। यहां सच के लिए कोई गुंजाइश नहीं । कोई अपने नेता के झूठ और भ्रम से असहमति जताये, यह बात स्वीकार नहीं की जाती। चापलूसी के खेल में डा. राय कभी माहिर नहीं रहे। इसका खामियाजा उन्हें लगातार भुगतना पड़ा। दरबारी छुटभैये तो आगे चले गये लेकिन डा. राय अपने तमाम राजनीतिक कौशल और बौद्धिक सामर्थ्य के बावजूद वहीं के वहीं रह गये। इस कमी के बावजूद उन्हें सम्मान हासिल हुआ। इसका कारण यह रहा कि उनकी बातें जो तात्कालिक रूप से नेताओं को नागवार लगती थीं, वे बाद में सही साबित होती थीं।
यह किताब उनके राजनीतिक जीवन के खट्टे- मीठे अनुभवों का दस्तावेज तो है ही, इसमें लगभग चार दशक से भी ज्यादे समय का राजनीतिक इतिहास भी है। यह कुछ लोगों को चौंकायेगा तो कुछ के चेहरों से नकाब भी उतारेगा, कुछ की कलई भी खोलेगा। साथ ही नयी पीढ़ी को राजनीतिक हठधर्मिता, छल-प्रपंच और धोखाधड़ी से भी परिचित करायेगा। यहां बहुत सारी जानकारियां ऐसी हैं, जो पहली बार लोगों के सामने आ रही हैं । ऐसे में यह किताब एक ऐसे राजनीतिक कैपसूल की तरह है, जो बेआवाज धमाका करने वाला है।
डा. राय कविमना हैं, सहृदय और ईमानदार हैं । यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। राजनीति में ऐसे और लोग भी हुए हैं लेकिन उनका समय इतना बुरा नहीं था कि उन्हें स्वीकार न किया जाये। अटल बिहारी वाजपेयी और वी पी सिंह भी कविताएं लिखते थे। राजनीतिक होने के बावजूद उन लोगों को कवि होने का अतिरिक्त सम्मान मिला। उनकी सहृदयता को आदर मिला।लेकिन बाद के समय में राजनीति इतनी निष्ठुर हो गयी कि वहां निश्छलता और भावुकता के लिए कोई सम्मान नहीं रह गया। डा. राय को इसी तरह के समय का सामना करना पड़ा। उनके बहुत करीबी नेताओं ने उनकी कविता को तो सम्मान दिया, उस पर भाषण भी किया लेकिन एक कवि राजनेता के रूप में उनकी उपस्थिति को लगातार ठुकराया। इसके बावजूद डा. सीपी राय अपने रास्ते से डिगे नहीं, राजनीति में भी रहे और कविताएं भी लिखीं। उन्हें अपनी इस यात्रा पर कोई पछतावा नहीं हैं। उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। हाल में उनके नये संग्रह 'मुनादी' की खासी चर्चा भी हुई। नरेश सक्सेना जैसे बड़े कवि ने मुक्त कंठ से उनकी अनेक कविताओं की प्रशंसा की। डा. राय की राजनीतिक टिप्पणियां लगातार प्रतिष्ठित अखबारों में प्रकाशित होती रही हैं।
डा. राय अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में राजनारायण जी, मधु लिमये जी के साथ ही मुलायम सिंह यादव के भी घनिष्ठ संपर्क में रहे। छात्र जीवन में उन्होंने सानाजिक न्याय और समानता के लिए डटकर संघर्ष किया। पार्टी लाइन से हटकर हर राजनीतिक दल में उनकी प्रशंसा करने वाले लोग रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक सहधर्मियों से बेहतर रिश्ता बनाये रखा। इस किताब में उनकी इसी संघर्ष यात्रा के सजीव अनुभव हैं। आशा है कि यह किताब कोई बड़ी हलचल न भी मचा सकी तो भी राजनीति के प्रति लोगों के नजरिये में कुछ नया जरूर जोड़ेगी, राजनेताओं को आत्मावलोकन के लिए विवश जरूर करेगी। डा. सी पी राय को इस नयी कोशिश के लिए बहुत बधाई। भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएँ ।
सुभाष राय
संपादक, जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ