बुधवार, 9 अप्रैल 2025

जिंदगी के झरोखे से

एक राजनीतिक 'कैपसूल'

यह एक ऐसे योद्धा की कथा है, जिसने जीवन में बस लड़ना सीखा। नहीं कहूंगा कि निष्काम होकर क्योंकि यह संभव नहीं है। जो भी आदमी लड़ता है, वह निष्काम नहीं हो सकता। लड़ाई निरुद्देश्य नहीं होती, उसके पीछे कोई न कोई मंतव्य होता ही है। डा. सीपी राय ने भी अगर संघर्ष किया तो वह अकारण नहीं था। उन्हें कुछ बदलना था, कुछ नया बनाना था। जब कोई आदमी कुछ नया बनाता है तो उसके साथ- साथ उसके स्वयं के बनने की प्रक्रिया भी चलती है। कोई लाख कहे कि वह कुछ नहीं चाहता लेकिन भीतर कुछ आकांक्षाएँ होती हैं। कुछ समाज के लिए, कुछ अपने लिए।
डा. राय एक राजनीतिक शख्सियत हैं । छात्र जीवन से ही उन्होंने यह रास्ता पकड़ लिया था और आज भी उसी रास्ते पर चल रहे हैं। उन्होंने अपने संघर्ष से कई ऐसे काम संभव किये, जो लगभग अकल्पनीय थे। लाटरी को खत्म किया जाना या जनरल मुशर्रफ को इस बात के लिए राजी करना कि वे भारतीय कैदियों से उनके परिजनों को मिलने दें, ऐसी अनेक उपलब्धियाँ डा. राय के खाते में हैं। उन्होंने हमेशा मूल्यों की राजनीति की। यह उनके पक्ष में एक खराब बात साबित हुई। राजनीति जी हुजूरी का खेल है। यहां सच के लिए कोई गुंजाइश नहीं । कोई अपने नेता के झूठ और भ्रम से असहमति जताये, यह बात स्वीकार नहीं की जाती। चापलूसी के खेल में डा. राय कभी माहिर नहीं रहे। इसका खामियाजा उन्हें लगातार भुगतना पड़ा। दरबारी छुटभैये तो आगे चले गये लेकिन डा. राय अपने तमाम राजनीतिक कौशल और बौद्धिक सामर्थ्य के बावजूद वहीं के वहीं रह गये। इस कमी के बावजूद उन्हें सम्मान हासिल हुआ। इसका कारण यह रहा कि उनकी बातें जो तात्कालिक रूप से नेताओं को नागवार लगती थीं, वे बाद में सही साबित होती थीं।
यह किताब उनके राजनीतिक जीवन के खट्टे- मीठे अनुभवों का दस्तावेज तो है ही, इसमें लगभग चार दशक से भी ज्यादे समय का राजनीतिक इतिहास भी है। यह कुछ लोगों को चौंकायेगा तो कुछ के चेहरों से नकाब भी उतारेगा, कुछ की कलई भी खोलेगा। साथ ही नयी पीढ़ी को राजनीतिक हठधर्मिता, छल-प्रपंच और धोखाधड़ी से भी परिचित करायेगा। यहां बहुत सारी जानकारियां ऐसी हैं, जो पहली बार लोगों के सामने आ रही हैं । ऐसे में यह किताब एक ऐसे राजनीतिक कैपसूल की तरह है, जो बेआवाज धमाका करने वाला है।
डा. राय कविमना हैं, सहृदय और ईमानदार हैं । यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है। राजनीति में ऐसे और लोग भी हुए हैं लेकिन उनका समय इतना बुरा नहीं था कि उन्हें स्वीकार न किया जाये। अटल बिहारी वाजपेयी और वी पी सिंह भी कविताएं लिखते थे। राजनीतिक होने के बावजूद उन लोगों को कवि होने का अतिरिक्त सम्मान मिला। उनकी सहृदयता को आदर मिला।लेकिन बाद के समय में राजनीति इतनी निष्ठुर हो गयी कि वहां निश्छलता और भावुकता के लिए कोई सम्मान नहीं रह गया। डा. राय को इसी तरह के समय का सामना करना पड़ा। उनके बहुत करीबी नेताओं ने उनकी कविता को तो सम्मान दिया, उस पर भाषण भी किया लेकिन एक कवि राजनेता के रूप में उनकी उपस्थिति को लगातार ठुकराया। इसके बावजूद डा. सीपी राय अपने रास्ते से डिगे नहीं, राजनीति में भी रहे और कविताएं भी लिखीं। उन्हें अपनी इस यात्रा पर कोई पछतावा नहीं हैं। उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। हाल में उनके नये संग्रह 'मुनादी' की खासी चर्चा भी हुई। नरेश सक्सेना जैसे बड़े कवि ने मुक्त कंठ से उनकी अनेक कविताओं की प्रशंसा की। डा. राय की राजनीतिक टिप्पणियां लगातार प्रतिष्ठित अखबारों में प्रकाशित होती रही हैं। 
डा. राय अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में राजनारायण जी, मधु लिमये जी के साथ ही मुलायम सिंह यादव के भी घनिष्ठ संपर्क में रहे। छात्र जीवन में उन्होंने सानाजिक न्याय और समानता के लिए डटकर संघर्ष किया। पार्टी लाइन से हटकर हर राजनीतिक दल में उनकी प्रशंसा करने वाले लोग रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक सहधर्मियों से बेहतर रिश्ता बनाये रखा। इस किताब में उनकी इसी संघर्ष यात्रा के सजीव अनुभव हैं। आशा है कि यह किताब कोई बड़ी हलचल न भी मचा सकी तो भी राजनीति के प्रति लोगों के नजरिये में कुछ नया जरूर जोड़ेगी, राजनेताओं को आत्मावलोकन के लिए विवश जरूर करेगी। डा. सी पी राय को इस नयी कोशिश के लिए बहुत बधाई। भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएँ ।
सुभाष राय
संपादक, जनसंदेश टाइम्स, लखनऊ

अहमदाबाद सम्मेलन

कांग्रेस का अहमदाबाद सम्मेलन: एक नई दिशा की ओर कदम
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारत की सबसे पुरानी और ऐतिहासिक राजनीतिक पार्टी, ने 8 और 9 अप्रैल, 2025 को गुजरात के अहमदाबाद में अपने दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया। यह सम्मेलन न केवल पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था, बल्कि यह भारतीय राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत का भी प्रतीक बना। साबरमती नदी के किनारे आयोजित इस अधिवेशन ने न सिर्फ कांग्रेस की नीतियों और रणनीतियों को पुनर्जनन करने का प्रयास किया, बल्कि गुजरात जैसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में अपनी उपस्थिति को और मजबूत करने की दिशा में भी कदम उठाए। इस लेख में, हम इस सम्मेलन के उद्देश्यों, चर्चाओं, परिणामों और इसके व्यापक प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।
सम्मेलन का ऐतिहासिक संदर्भ
कांग्रेस का गुजरात के साथ गहरा और ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। यह वही भूमि है, जहां महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम से स्वतंत्रता संग्राम को गति दी थी। सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे दिग्गज नेताओं की कर्मभूमि होने के कारण, गुजरात हमेशा से कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण रहा है। अहमदाबाद में इससे पहले 1902, 1921 और 1938 में भी कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन हो चुके हैं। 2025 का यह सम्मेलन उसी ऐतिहासिक धरोहर को आगे बढ़ाने का प्रयास था।
इस बार अधिवेशन की टैगलाइन थी—‘न्यायपथ: संकल्प, समर्पण, संघर्ष’। यह नारा न केवल पार्टी के मूल्यों को दर्शाता है, बल्कि सामाजिक न्याय, समावेशिता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के प्रति कांग्रेस की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है। यह सम्मेलन ऐसे समय में आयोजित हुआ, जब गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दबदबा रहा है, और कांग्रेस विपक्ष के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
सम्मेलन के उद्देश्य
इस दो दिवसीय अधिवेशन का मुख्य उद्देश्य पार्टी को संगठनात्मक और वैचारिक रूप से सशक्त करना था। इसके प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित थे:
  1. विदेश नीति पर रणनीति: वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति और क्षेत्रीय चुनौतियों को देखते हुए, कांग्रेस ने विदेश नीति पर व्यापक मंथन किया। विशेष रूप से, पड़ोसी देशों के साथ संबंध, वैश्विक व्यापार, और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर पार्टी की स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया।
  2. शिक्षा और निजी क्षेत्र में आरक्षण: शिक्षा में समानता और निजी क्षेत्र में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण लागू करने की नीतियों पर चर्चा हुई। यह मुद्दा सामाजिक न्याय के प्रति कांग्रेस की प्रतिबद्धता का हिस्सा है।
  3. संगठनात्मक पुनर्गठन: गुजरात में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए बूथ स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक संगठन को पुनर्जनन करने की रणनीति बनाई गई। इसमें युवा और महिला नेताओं को अधिक जिम्मेदारी देने पर जोर दिया गया।
  4. आर्थिक और सामाजिक मुद्दों पर रुख: महंगाई, बेरोजगारी, और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों पर जनता के बीच अपनी आवाज को और प्रभावी बनाने के लिए नीतिगत प्रस्ताव पारित किए गए।
  5. विचारधारा की मजबूती: कांग्रेस ने अपनी धर्मनिरपेक्ष और समावेशी विचारधारा को पुनर्जनन करने का प्रयास किया, ताकि यह जनता के बीच अधिक प्रभावी ढंग से पहुंच सके।
पहले दिन की कार्यवाही: नीति और संगठन पर मंथन
सम्मेलन का पहला दिन 8 अप्रैल को सरदार वल्लभभाई पटेल मेमोरियल में कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की विस्तारित बैठक के साथ शुरू हुआ। इस बैठक में सीडब्ल्यूसी के स्थायी सदस्यों, विशेष आमंत्रित सदस्यों, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों, उपमुख्यमंत्रियों, प्रदेश अध्यक्षों, और पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित लगभग 169 नेताओं ने हिस्सा लिया।
पहले दिन की चर्चा का केंद्र बिंदु था—‘कांग्रेस का भविष्य और गुजरात में पुनर्जनन’। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने उद्घाटन भाषण में पार्टी की ऐतिहासिक भूमिका और वर्तमान चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “गुजरात गांधी और पटेल की भूमि है। यह वह जगह है जहां से हमने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी, और अब यहीं से हम सामाजिक न्याय और समावेशिता की नई लड़ाई शुरू करेंगे।”
इस दिन विदेश नीति पर एक विशेष सत्र आयोजित हुआ, जिसमें भारत-अमेरिका संबंधों, चीन के साथ सीमा विवाद, और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस सत्र में जोर दिया कि भारत की विदेश नीति को समावेशी और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांतों पर आधारित होना चाहिए।
शिक्षा और आरक्षण पर भी गहन चर्चा हुई। पार्टी ने निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने के लिए एक ठोस रोडमैप तैयार करने का प्रस्ताव रखा। यह कदम खास तौर पर युवाओं और हाशिए पर मौजूद समुदायों को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा था।
दूसरे दिन की कार्यवाही: जनता तक पहुंचने की रणनीति
9 अप्रैल को दूसरा दिन पूर्ण अधिवेशन के रूप में आयोजित हुआ, जिसमें कांग्रेस के सभी पदाधिकारी, फ्रंटल संगठनों के प्रमुख, और 1727 एआईसीसी सदस्य शामिल हुए। यह सत्र साबरमती रिवरफ्रंट पर आयोजित किया गया, जो न केवल प्रतीकात्मक महत्व रखता था, बल्कि जनता के बीच पार्टी की उपस्थिति को मजबूत करने का भी अवसर प्रदान करता था।
दूसरे दिन की थीम थी—‘जनता के बीच, जनता के लिए’। इस सत्र में राजनीतिक और आर्थिक प्रस्ताव पारित किए गए। एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव में पार्टी ने अनुसूचित जाति, जनजाति, और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए मौजूदा आरक्षण की रक्षा और विस्तार पर जोर दिया। इसके साथ ही, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को जनता तक ले जाने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने का फैसला लिया गया।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने इस अवसर पर कहा, “हमारी लड़ाई सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि संविधान और सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए है। यह अधिवेशन हमें नई ऊर्जा देगा।” इस दिन युवा और महिला नेताओं को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया गया। सचिन पायलट और प्रियंका गांधी जैसे नेताओं ने युवाओं को संगठन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया।
संगठनात्मक बदलाव और भविष्य की रणनीति
इस सम्मेलन में संगठनात्मक पुनर्गठन पर विशेष ध्यान दिया गया। गुजरात में बीजेपी के मजबूत गढ़ को चुनौती देने के लिए, कांग्रेस ने बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने और डिजिटल माध्यमों का उपयोग बढ़ाने का फैसला लिया। इसके लिए एक विशेष समिति गठित की गई, जिसमें सचिन पायलट, भूपेश बघेल, और रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे।
पार्टी ने यह भी निर्णय लिया कि वह स्थानीय मुद्दों, जैसे किसानों की समस्याएं, छोटे व्यापारियों की कठिनाइयां, और युवाओं में बेरोजगारी, को अपने अभियान का केंद्र बनाएगी। इसके साथ ही, सोशल मीडिया और डिजिटल अभियानों के माध्यम से पार्टी अपनी पहुंच को और व्यापक करने की योजना बना रही है।
सम्मेलन का प्रभाव और आलोचनाएं
इस अधिवेशन ने कांग्रेस को कई मायनों में नई दिशा दी। सबसे पहले, यह गुजरात में पार्टी की उपस्थिति को मजबूत करने का एक मजबूत संदेश देता है। दूसरा, विदेश नीति और आरक्षण जैसे जटिल मुद्दों पर पार्टी की स्पष्ट स्थिति ने इसे वैचारिक रूप से और मजबूत किया। तीसरा, युवा और महिला नेताओं को बढ़ावा देने से पार्टी में नई ऊर्जा का संचार हुआ। यह अधिवेशन पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने में सफल रहा।
निष्कर्ष
कांग्रेस का अहमदाबाद सम्मेलन न केवल एक राजनीतिक आयोजन था, बल्कि यह पार्टी के लिए आत्ममंथन और पुनर्जनन का अवसर भी था। साबरमती के किनारे आयोजित इस अधिवेशन ने गांधीवादी मूल्यों और सामाजिक न्याय की बात को फिर से जीवंत किया। यह सम्मेलन कांग्रेस को गुजरात में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने और राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरने का अवसर प्रदान करता है। आने वाले समय में, इस अधिवेशन के प्रस्तावों और रणनीतियों का कार्यान्वयन यह तय करेगा कि क्या कांग्रेस वाकई में ‘न्यायपथ’ पर आगे बढ़ पाएगी।
यह अधिवेशन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में देखा जा रहा है, और इसके दीर्घकालिक प्रभाव भविष्य में ही स्पष्ट होंगे। लेकिन एक बात निश्चित है—कांग्रेस ने इस सम्मेलन के माध्यम से अपनी आवाज को और बुलंद करने का संकल्प लिया है

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

जब सिंगापुर से अमर सिंह का फोन आया

उस दिन बैठा कुछ  पढ़ रहा था तभी मोबाइल की घंटी बजी । देखा तो प्राइवेट नंबर लिखा आ रहा था पर फोन उठा लिया । मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उधर से बीमार सी आवाज में कहा गया "राय साहब ,अमर सिंह बोल रहा हूं सिंगापुर से "।
मैने पहले उनका हाल पूछा कि अब सब ठीक है न और ठीक होकर कब वापस भारत आ रहे है तो हल्की से उनके स्टाइल की हंसी की आवाज आई और बोले कि शायद अब जिंदा वापसी न हो इसीलिए फोन किया है । आप से पहले अमिताभ बच्चन और अनिल अंबानी ,सुब्रत राय सहित कई लोगों को फोन कर चुका हूं और कई लोगों को याद से फोन करना है ।राय साहब मैं अपने दिल पर कोई बोझ लेकर दुनिया से नहीं जाना चाहता हूं इसलिए मेरी वजह से जिन लोगों को भी कोई तकलीफ पहुंची है या जो लोग नाराज है उन्हें सफाई भी दे रहा हूं और माफी भी मांग ले रहा हूं ।
पार्टी के बड़े से बड़े नेता कभी न कभी मेरे घर मदद मांगने जरूर आए पर आप तो कभी मिलने भी नहीं आए लेकिन पता नहीं कैसे आप को नाराजगी है कि मैने आप का नुकसान किया और राज्यसभा में आप को नहीं आने दिया । जबकि सच ये है कि आप का हर वक्त नुकसान रामगोपाल यादव ने किया और नेता जी उनका नाम लेने के बजाय मेरे कंधे पर रख कर बंदूक चलाते रहे ।मैं मानता हूं कि आप के साथ ज्यादती हुई और न्याय नहीं हुआ । बस मुझे अपनी सफाई में इतना की कहना था और मैं चाहता हूं कि आप मेरे लिए अपने दिल से नाराजगी और नफरत निकाल कर मेरे लिए ईश्वर से दुवा करिए ।
मैं हतप्रभ था पर अपने को सम्हाल कर बोला कि आप वापस आयेंगे स्वस्थ होकर निश्चिंत रहिए और मैं पहले कभी नहीं आया पर जब आप वापस दिल्ली आ जाएंगे तो आप के स्वस्थ होने पर आप के लिए आगरा से मिठाई लेकर आऊंगा । यद्यपि आप खा तो नहीं सकते है क्योंकि जब आप मेरे घर आए थे तब भी आप ने केवल जूस पिया था पर आप के यहां आने जाने वाले खायेंगे । इसपर वो फिर फीकी से हंसी हंसे और बोले बस मैं इतना ही चाहता था कि आप के मन से मेरे प्रति गुस्सा निकल जाए । 
और चंद दिन बाद अमर सिंह नहीं रहे । 

शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

जिंदगी के झरोखे से

डॉक्टर चंद्र प्रकाश राय जिनको मित्रमंडली में प्यार से सीपी राय कहकर जाना जाता है ,एक बहुत अच्छे इंसान, लोकप्रिय राज नायक संघर्षशील राजनेता, एक अच्छे लेखक कुशल सलाहकार और बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। मैं उनसे और उनके पूरे परिवार से अगली और पिछड़े पीढ़ी से भली बात परिचित रहा हूं बल्कि उनके परिवार का एक सदस्य रहा हूं। उनके परिवार की मेहमान नवाजी का साक्षी भी हूं।
वह एक अच्छे कवि और अच्छे गद्य लेखक भी है सोशल मीडिया पर अक्सर उनके राजनीतिक सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर विद्युत का पूर्ण लेख अक्सर पढ़ने को मिलते हैं ।
इधर उन्होंने अपनी रोचक जीवनी लिखी है जिसका नाम है "जिंदगी के झरोखों से"।
इस पुस्तक में उन्होंने अपने पचास साल के सामाजिक और राजनीतिक जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों का रोचक ढंग से विस्तार से वर्णन किया है।उनके जीवन की  धूप छांव का बदलता हुआ क्रम बड़ा हृदय ग्राही है । राय साहब बड़े स्वाभिमानी व्यक्ति हैं ,उन्होने जीवन में कोई चीज झुक कर नहीं उठाई चाहे वह कितने भी बड़ी ,कीमती और महत्वपूर्ण हो ।जाहिर है की उनके इस जीवनी में यह भी छिपी हुई शिकायत होनी है कि उन्हें समाज से वह नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। और यह शिकायत उचित भी है ।मैं इस बात का चश्मा दीद गवाह हूं की क राय साहब नेताजी मुलायम सिंह के बहुत करीब रहे और उनके प्रति हर तरह समर्पित रहे ,नेताजी ने भी उनको सदा अपना माना और अत्यधिक स्नेह और प्यार दिया राय साहब ने समाजवादी पार्टी के  हितेषी चिंतक के रूप में दिन और रात एक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन उन्हें कोई कोई बड़ा पद या सम्मान नहीं मिला जिसके वे अधिकारी रहे। केवल नेता मुलायम सिंह ही नहीं जितने बड़े राजनीतिज्ञ हुए हैं चाहे वह बीपी सिंह हो जाए प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी हो , चौ देवी लाल जी हो या रामकृष्ण हेगड़े जो हो या और भी बहुत से बड़े नेता जो 70 के दशक 2020 के दशक  तक हुए है राय साहब की घनिष्ठता लगभग सभी से बराबर रही है राजनीति में उनका दर्जा अजातशत्रु राजनेता का रहा है। वर्तमान में वह कांग्रेस के एक बड़े नेता के रूप में उभर के आए हैं । 
राय साहब द्वारा कारगिल के शहीदों की पत्नियों को मिले आयकर कटौती के नोटिस के खिलाफ किए गए प्रयास जिसे अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को वापस लेना पड़ा तथा बाकी वादे भी पूरे करने पड़े , अटल बिहारी वाजपेयी और जरनल मुशर्रफ की वार्ता के दिन इनके विरोध प्रदर्शन और गिरफ्तारी जो 1965 और 1971 के पाकिस्तान के जेलों में बंद युद्ध बंदियों की रिहाई की मांग के लिए हुआ था जरनल मुशर्रफ को इनकी बात माननी पड़ी और उन्होंने युद्ध बंदियों के परिवारों को अपने अतिथि के रूप में आमंत्रित किया कि वे लोग आकर जेलों में अपने परिजन को पहचान ले तो वो तुरंत ही छोड़ देंगे और जब लॉटरी से देश के लाखों लोग बर्बाद हो रहे थे तब राय साहब का पहले लॉटरी फाड़ो आंदोलन और फिर अपनी सरकार बन जाने पर मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी से उत्तर प्रदेश में लॉटरी बैन करवा देने जिसके दबाव में बाकी प्रदेशों की लॉटरी भी बैन हो गई इनकी राजनीति से इतर बड़ी उपलब्धियां है ।
राजनीति में चाहे समाजवादी पार्टी की स्थापना करवाना हो या तमाम और तमाम तरह के संघर्ष समाजवादी पार्टी इनके योगदान को भुला नहीं सकती है ।
राय साहब की लोकप्रियता का दायरा इतना बड़ा है कि उसमें राजनीतिज्ञ भी हैं ,साहित्यकार भी हैं, समाजसेवक भी है ,और भारत और विश्व की हर भाषा और हर राज्य के जाने-माने लोग उनके प्रिय हैं और वह लोग उनका नाम आदर से लेते हैं
 उनकी पुस्तक जिंदगी के झरोखों से की भाषा बहुत सरल और बोधगम्य है वह एक अच्छे गद्य लेखक  तो हैं ही उसके साथ उनकी सरल बोधगम्य भाषा की विशेषता भी अपना एक महत्व रखती है। मैं उनकी पुस्तक की सफलता और लोकप्रिय होने की कामना करता हूं उनकी दीर्घायु की कामना करता हूं जिससे वह अपने सामाजिक और राजनीतिक विचारों से देश और समाज का निरंतर हित करते रहें ।
जय हिंद

उदय प्रताप सिंह 
देश के जाने माने कवि और शायर 
पूर्व सांसद लोकसभा , पूर्व सांसद राज्यसभा , पूर्व सदस्य पिछड़ा वर्ग आयोग भारत सरकार , पूर्व अध्यक्ष हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश

जिंदगी के झरोखे से



संस्मरणों की इस श्रृंखला के माध्यम से डॉ. सी. पी. राय ने अपने राजनैतिक जीवन के कुछ महत्वपूर्ण क्षणों को याद किया है, पाठक के लिए भी, अपने लिए भी। इन यादों में कुछ अच्छा कर
पाने का संतोष झलकता है तो अपना प्राप्य न पा सकने का स्वाभाविक दुख भी।
इस प्राप्य की व्याप्ति केवल व्यक्तिगत नहीं, विचारगत भी है। इन संस्मरणों में व्यक्तिगत जीवन के संकेत तो हैं, लेकिन बल समाज और राजनीति में लेखक की हिस्सेदारी पर ही है। उन्हें दुख भी इसी
बात का अधिक है कि भारतीय समाज के उत्तरोत्तर लोकतांत्रिकीकरण के लिए जिस राजनैतिक धारा से जुड़े रहे, वह कमजोर, कई बार तो विपथगा भी होती चली गयी। मार्के की बात यह है कि इसके बावजूद श्री राय की बुनियादी प्रतिबद्धता नहीं बदली, हिन्दुस्तान का हम हिन्दू और मुसलमान ( तथा अन्य समुदायों ) के मिलाप से ही बनता है, बहुसंख्यकवाद से नहीं—यह बुनियादी धारणा श्री राय के
कामों को तब भी निर्धारित करती थी, जब वे समाजवादी पार्टी में थे, अब भी करती है जब वे कांग्रेस में हैं।
राजनैतिक प्रतिबद्धता की निरंतरता की इस यात्रा में आने वाले व्यक्तिगत उतार चढ़ावों का विवरण तो यह पुस्तक देती ही है, अनेक महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाक्रमों को एक गंभीर राजनैतिक कार्यकर्ता
के दृष्टिकोण से देखने का अवसर भी देती है।

20 फरवरी 2025           

प्रोफेसर पुरुषोत्तम अग्रवाल , जाने माने लेखक , पूर्व सदस्य केंद्रीय लोक सेवा आयोग, पूर्व प्रोफेसर जवाहर लाल नेहरू विविश्वविद्यालय ।

शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

उदय प्रताप जी

मुझे जैसे बहुत साधारण व्यक्ति द्वारा आदरणीय उदय प्रताप जी के बारे में कुछ लिखना अपनी सीमा का उल्लंघन करना है और सूरज को दिया दिखाने के समान है ।उदय प्रताप जी जो आदर्श शिक्षक रहे तो देश के जानेआने नेता पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व रक्षामंत्री ,पद्मविभूषण से सम्मानित आदरणीय मुलायम सिंह यादव जी के गुरु रहे , शिक्षक के रूप में एन सी सी के अधिकारी रहे , आदर्श प्रधानाचार्य रहे । उदय प्रताप जी जो देश के नहीं बल्कि जहां जहां हिंदी की कविता और गजल सुनी जाती है उन सभी देशों तक लोकप्रिय कवि है । उदय प्रताप जी ने जब राजनीति में पदार्पण किया तो मैनपुरी से लोकसभा 1989  का पहला चुनाव ही जीत लिया और फिर 1991 में चुनाव जीता । उदय प्रताप जी जो भारत सरकार में पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य रहे । उदय प्रताप जी जो राज्यसभा के भी सदस्य रहे । उदय प्रताप जी जो संसद में भी अपनी कविताओं के कारण लोकप्रिय रहे और कविताओं से ही संसद की कार्यवाही में जान ही नहीं फूक दिया करते थे बल्कि कविता की चंद पंक्तियों से इतनी बड़ी और गंभीर बात कर दिया करते थे कि सब लोग देखते रह जाते थे ।उदय प्रताप जी जो देश के बड़े से बड़े कवि जैसे राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर के समतुल्य कवियों के साथ कविता पाठ करते रहे ।उदय प्रताप जी जो अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर देश के तमाम नेताओं में अपनी कविता और खरी तथा सच्ची बात कहने के कारण लोकप्रिय रहे ।उदय प्रताप जी जो उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के तीन बार बहुत सम्मानित अध्यक्ष रहे और हिन्दी की सेवा करते रहे ।।उदय प्रताप जी जो 83 साल के जवान है और जिंदादिल है ,जो दोस्तों के दोस्त है और किसी के बारे में बुरा नहीं बोलते ,सबका हित चाहते है तथा सब उनकी सिर्फ तारीफ ही करते है ।उदय प्रताप जी जो इस उम्र में भी एक अनुशासित जिंदगी जीते है और रोज लिखते है ।उदय प्रताप जी जो चेस के खेल में कंप्यूटर को भी हरा देते है तथा सुडोकू हल करना जिनका शौक है ।उदय प्रताप जी जो 83 साल की उम्र में भी कभी मद्रास तो कभी दुबई में कवि सम्मेलन और मुशायरे की अध्यक्षता करने जाते है । उस उदय प्रताप जी के बारे में मैं कैसे कुछ लिख सकता है और किस हैसियत से लिख सकता हूं ।
उदय प्रताप जी जिनसे करीब 50 साल का मेरा रिश्ता है जो बड़े भाई भी है , सच्चे दोस्त भी है और शुभचिंतक भी है । 
हा उदय प्रताप जी का शिकोहाबाद का घर हो या सांसद के रूप में मिला हुआ दिल्ली का घर हो वो मेरा दूसरा घर रहा हमेशा । उदय प्रताप जी अगर आगरा आते थे तो मेरे घर पर जरूर आना होता था और फिर मेरे पूरे परिवार के साथ बैठ कर बाते करना और कविताएं सुनाना ये हर बार तय था । हम लोगो के बीच बिना रिश्ते के ऐसा रिश्ता बन गया था कि वो अगर आगरा आ रहे हो तो मैं गाड़ी लेकर स्टेशन चला जाता था । अगर उनको आगरा में रुकना होता था तो किसी होटल मालिक दोस्त को कह देता था और वो भी फख्र महसूस करता था कि उसके यह उदय प्रताप जी रुके है तथा कविता सुनने का लाभ भी कैसे कोई छोड़ सकता था ।अक्सर ऐसा होता था कि मैं उन्हें लेकर अपने घर आता और फिर देश के जाने माने कवि सोम ठाकुर के यहां तथा उनकी इच्छानुसार अन्य कवियों के यहां लेकर जाता था और फिर उनको छोड़ने शिकोहाबाद तक चला जाता था । 
अब भी यह नियमित। होता है कि मैं लखनऊ के उनके घर पहुंचता हूं और वो कुछ मेरी कविताएं सुनते है फिर उनकी कविताओं का दौर शुरू हो जाता है जिसको मैं लाइव भी करता हूं ताकि उनके चाहने वाले लोग भी उन रचनाओं से महरूम न हो जाए ।
मैने कुछ टूटी फूटी कविताएं लिखा जो प्रकाशित हो गई तो मेरी उस पुस्तक को आशीर्वाद देकर और उसपर लिख कर  उदय प्रताप जी ने उस पुस्तक को मायने दे दिया तथा उसके लोकार्पण की अध्यक्षता कर मेरे कार्यक्रम को भव्यता प्रदान कर दिया । कैसे कोई भूल सकता है अपनी जिंदगी में उनका ये सब आशीर्वाद ।
अच्छा किया उदय प्रताप जी ने की राजधानी लखनऊ के वासी हो गए ।अब लखनऊ को साहित्यिक कार्यक्रमों की अध्यक्षता के और उन कार्यक्रमों की शोभा बढ़ाने के लिए एक सचमुच का साहित्यकार मिल गया है ।
उनसे एक रिश्ता और रहा है कि जिस पार्टी से वो 1989 में सांसद हुए मैं उस समाजवादी विचारधारा से बचपन से जुड़ा रहा हूं तथा समाजवादी पार्टी का संस्थापक सदस्य और महामंत्री तथा प्रवक्ता रहा हूं।मुलायम सिंह यादव जी को उन्होंने पढ़ाया था और 1989 से उनके राजदार और गंभीर मुद्दों पर राय बात व्यक्ति रहे तो मुलायम सिंह यादव की का मुझे भी स्नेह प्राप्त रहा और उस कारण बहुत ज्यादा ऐसा मौका रहा जब हम तीन लोगों ने साथ सफर किया तथा साथ में फैसले भी किए ।मुलायम सिंह यादव उदय प्रताप जी का बहुत समान तो करते ही थे इनपर बहुत ज्यादा भरोसा भी करते थे और अब अखिलेश यादव भी उसी परम्परा का निर्वाह कर रहे है ।
ऐसे महान व्यक्ति उदय प्रताप जी के बारे में कुछ भी लिखने की जुर्रत भी मै कैसे कर सकता हूं।
हा ईश्वर से प्रार्थना जरूर कर सकता हूं कि उनका साथ और उनकी सरपरस्ती मुझे जैसे साधारण व्यक्ति को अभी उनकी उम्र के शतक के बाद भी हासिल रहे ।
जिन साथियों ने आदरणीय उदय प्रताप जी का अभिनंदन ग्रन्थ प्रकाशित करने का फैसला किया है वो लोग बधाई के पात्र है क्योंकि उन्होंने समाज और देश की एक बहुमूल्य धरोहर को भविष्य के लिए सहेजने का वीणा उठाया है । उन साथियों को भी शुभकामनाएं और आदरणीय उदय प्रताप जी को भी हार्दिक शुभकामनाएं।

डा सी पी राय 
पूर्व मंत्री 
चेयरमैन 
मीडिया विभाग 
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ,लखनऊ 
9412254400