युध्द बंद हो इंसानो की हत्या बन्द हो
दुनिया में जगह-जगह, चाहे यूक्रेन की सरहद हो या गाजा की गलियां, मौत का तांडव मचा हुआ है। इंसान इंसान को बिना पलक झपकाए मार रहा है, न मशीनों की बेरहम गोलियां रुक रही हैं, न बारूद की आग ठंडी पड़ रही है। इन हथियारों में न आंखें हैं जो मासूमों की सिसकियां देख सकें, न कान हैं जो चीखों को सुन सकें, न दिल है जो पिघल जाए, और न ही दिमाग है जो इस खून-खराबे से विचलित हो। ये नरसंहार क्यों? ये लहू की प्यास क्यों? आखिर इंसान, जो सुख, शांति और तरक्की के लिए पैदा हुआ, बुलबुले की तरह क्यों फट रहा है? उसकी जिंदगी का वजूद ओस की बूंद सा क्यों बनकर रह गया है? उसकी चीखें, उसका दर्द, उसका बिखरा हुआ शरीर एक-दूसरे को क्यों नहीं झकझोर रहा? मासूम बच्चों की क्या गलती, और बड़ों की भी क्या गलती? सिर्फ इतनी कि वे किसी खास सीमा-रेखा के भीतर पैदा हो गए? यह सवाल हर उस इंसान के दिल में उठता है जो इस दुनिया को लहू से लाल होते देख रहा है।यह सवाल कोई नया नहीं है। इतिहास के पन्ने लहू से रंगे पड़े हैं। युद्धों ने न सिर्फ इंसानों की जान ली, बल्कि इंसानियत को भी बार-बार कुचला है। फिर भी, यह प्यास, यह लालच, यह सत्ता की भूख बुझती क्यों नहीं? आइए, इतिहास के कुछ बड़े युद्धों और वर्तमान के युद्धों के आंकड़ों पर नजर डालें, और यह समझने की कोशिश करें कि यह तांडव कब तक चलेगा और इसे रोकने का रास्ता क्या है।
इतिहास गवाह है कि युद्धों ने करोड़ों जिंदगियों को लील लिया। इनमें से कुछ युद्धों ने मानवता को इस कदर हिलाया कि उनके जख्म आज भी हरे हैं। क्या मिला युद्धों से इसपर विचार क्यो नही होता जैसे प्रथम विश्व युद्ध, ने दुनिया को विनाश की ऐसी तस्वीर दिखाई जो पहले कभी नहीं देखी गई थी। यह युद्ध 1914 से 1918 तक चला। इसमें 7 करोड़ से अधिक सैनिक शामिल थे, और अनुमानित तौर पर 90 लाख सैनिकों की मौत हुई, जबकि 1.3 करोड़ नागरिक युद्ध से जुड़े कारणों से मारे गए। यह युद्ध सिर्फ हथियारों का खेल नहीं था, बल्कि रासायनिक हथियारों और मशीनगनों ने इसे और भी भयावह बना दिया। क्या थी इस युद्ध की वजह? सत्ता का खेल, साम्राज्यवादी लालच और आपसी गठबंधनों की जटिल जाल। लेकिन इसने सिखाया क्या? सिर्फ तबाही और मातम।
ऐसे ही द्वितीय विश्व युद्ध मानव इतिहास का सबसे घातक युद्ध था। 1939 से 1945 तक चले इस युद्ध में करीब 70 देशों की सेनाएं शामिल थीं। मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्रों के बीच यह जंग इतनी भयानक थी कि इसमें अनुमानित 7-8 करोड़ लोग मारे गए, जिनमें सैनिकों के साथ-साथ असंख्य नागरिक भी थे। नाजियों के नरसंहार, परमाणु बमों का इस्तेमाल और युद्ध से जुड़े अकाल और बीमारियों ने इस आंकड़े को और बढ़ाया। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों ने लाखों जिंदगियों को पलभर में खत्म कर दिया। यह युद्ध सत्ता, नस्लीय श्रेष्ठता और क्षेत्रीय वर्चस्व की भूख का नतीजा था। लेकिन क्या इसने इंसान को शांति की राह दिखाई? नही न , यह सिर्फ और बड़े हथियारों की दौड़ का कारण बना।
फिर नेपोलियन के युद्धों ने यूरोप के नक्शे को ही बदल दिया। नेपोलियन बोनापार्ट की महत्वाकांक्षा और फ्रांसीसी साम्राज्य के खिलाफ यूरोपीय गठबंधनों की जंग में 60 लाख से अधिक लोग मारे गए। यह युद्ध साम्राज्यवादी लालच और सत्ता की भूख का प्रतीक था। वाटरलू की लड़ाई में नेपोलियन की हार ने यूरोप में शक्ति संतुलन को फिर से स्थापित किया, लेकिन इसकी कीमत थी लाखों जिंदगियां। धार्मिक और क्षेत्रीय विवादों से शुरू हुए युद्ध ने यूरोप को खून से लथपथ कर दिया। इसमें 30 लाख से 1 करोड़ लोग मारे गए। यह युद्ध सिर्फ सैनिकों की मौत तक सीमित नहीं था, बल्कि अकाल, महामारी और नरसंहार ने आम नागरिकों को भी नहीं बख्शा। यह युद्ध मानवता के लिए एक सबक था, लेकिन क्या इंसान ने कुछ सीखा? नहीं, लहू की प्यास आज भी बरकरार है।
आज के दौर में भी युद्धों का सिलसिला थमा नहीं है। यूक्रेन और गाजा जैसे क्षेत्रों में लहू बह रहा है, और दुनिया खामोश तमाशाई बनी देख रही है।पता नही संयुक्त राष्ट्र संघ की क्या भूमिका बची है ।
फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर 'विशेष सैन्य अभियान' के नाम से हमला शुरू किया। यह युद्ध अब तक अपने 1300 से अधिक दिन पूरे कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) के अनुसार, सितंबर 2023 तक इस युद्ध में 9,614 नागरिकों की मौत हुई, लेकिन वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है और लाखो लोग बेघर हो गए तथा शहर का शहर खंडहर में तब्दील हो चुका है । दोनों पक्षों के सैनिकों और नागरिकों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। यह युद्ध भू-राजनीतिक वर्चस्व और संसाधनों की लूट का नतीजा है। लेकिन क्या इसकी कीमत मासूमों की जान से चुकानी चाहिए?
हमास के हमले के बाद इजराइल और गाजा के बीच युद्ध छिड़ गया। इजराइल के अनुसार, हमास के हमले में 300 से अधिक इजराइली मारे गए और 1,000 घायल हुए। जवाबी कार्रवाई में इजराइली हवाई हमलों ने गाजा में हजारो लोगों की जान ले ली और और घायलों की गिनती भयावह है । गाजा में बमबारी ने स्कूलों, अस्पतालों और घरों को तबाह कर दिया। बच्चे, औरतें, बूढ़े—कोई नहीं बचा इस तांडव से। यह युद्ध धार्मिक, क्षेत्रीय और ऐतिहासिक विवादों का नतीजा है। लेकिन सवाल वही है कि क्या मासूमों की चीखें किसी को सुनाई नहीं देतीं?
क्यों नहीं थमता यह तांडव?इतिहास से लेकर आज तक, युद्धों की जड़ में सत्ता, संसाधन, और वैचारिक वर्चस्व की भूख रही है। इंसान ने मशीनें बनाईं, बारूद बनाया, हथियार बनाए, लेकिन उसका दिल पत्थर का क्यों हो गया? क्यों नहीं सुनाई देती उसे अपने ही भाइयों की चीखें? क्यों नहीं दिखता उसे बिखरा हुआ शरीर और लहू से लाल धरती? बच्चे जो अभी दुनिया को समझ भी नहीं पाए, उनकी क्या गलती? और बड़े, जो सिर्फ अपने परिवार के लिए जी रहे हैं, उनकी क्या गलती? सिर्फ इतनी कि वे किसी खास सीमा-रेखा में पैदा हुए?यह तांडव तब तक नहीं थमेगा, जब तक इंसान अपनी लालच की भूख को नहीं छोड़ेगा। जब तक वह यह नहीं समझेगा कि जिंदगी एक बुलबुले की तरह नहीं, बल्कि एक अनमोल तोहफा है। जब तक वह यह नहीं मानेगा कि हर इंसान, चाहे वह किसी भी देश, धर्म या जाति का हो, उतना ही कीमती है जितना वह खुद।
यह समय है कि हम एक मुहिम शुरू करें इंसान और इंसानियत को बचाने की। बारूद की खेती को खत्म करने की। यह मुहिम न सिर्फ सरकारों या नेताओं की जिम्मेदारी है, बल्कि हर उस इंसान की, जो इस धरती पर सांस ले रहा है। हमें चाहिए कि हम शांति की शिक्षा दें, बच्चों को स्कूलों में युद्ध का गौरव गान सिखाने के बजाय, शांति और सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ाएं। उन्हें बताएं कि हर जिंदगी अनमोल है।देशों, समुदायों और धर्मों के बीच संवाद की कमी युद्धों को जन्म देती है। हमें हर स्तर पर बातचीत को बढ़ावा देना होगा।
दुनिया भर में हथियारों का व्यापार और उत्पादन युद्धों को हवा देता है। इसे नियंत्रित करने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास होने चाहिए।हर नीति, हर फैसला मानवता को केंद्र में रखकर लिया जाए। संसाधनों की लूट और सत्ता की भूख को नियंत्रित करना होगा।एक आम आदमी के रूप में हम सोशल मीडिया, लेखन, और कला के जरिए दुनिया को यह यह संदेश दे ही सकते है कि युद्ध का कोई विजेता नहीं होता। हर युद्ध में सिर्फ हार होती है—इंसानियत की हार।
जब तक इंसान का लहू बहता रहेगा, धरती की प्यास नहीं बुझेगी। यह लहू की प्यास, यह सत्ता का लालच, यह दूसरे का सब छीन लेने की चाह एक दिन पूरी दुनिया से इंसान का वजूद ही मिटा देगी। हमें यह समझना होगा कि इंसान पैदा हुआ है सुख से जीने के लिए, तरक्की करने के लिए, प्यार और भाईचारे के साथ रहने के लिए। आइए, हम सब मिलकर इस मौत के तांडव को रोकें। आइए, इंसान को इंसान बनाये । आइए, बारूद की खेती को खत्म करें और शांति की फसल बोएं। यह मुहिम हमारी, आपकी, और हर उस इंसान की है जो इस धरती को लहू से नहीं, बल्कि प्यार से रंगना चाहता है । चारो तरफ सिर्फ एक गाना होना चाहिए
इंसान का इंसान से हो भाई चारा ,यही पैगाम हमारा ,यही पैगाम हमारा ।
डॉ सी पी राय