शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

धरतीपुत्र

मुलायम सिंह यादव के बारे मे कहा से बात शुरु करे ? उनकी जिन्दगी के इतने छोर है और सब उलझे हुये ।एक नितांत गरीब घर मे और अभाव मे पैदा होकर 1967 मे विधायक बन जाना और 1977 की सरकार मे सहकारिता मंत्री से चला सफर 1989 मे मुख्यमंत्री बनकर रुकता नही है बल्कि बार बार सरकार बनाता है और एक समय ऐसा आता है जब 39 सांसद होते है पार्टी के तथा बंगाल बिहार महाराष्ट्र उत्तराखंड और मध्यप्रदेश मे भी विधायक हो जाते है और लगता था की पार्टी राश्ट्रीय स्तर पर पहुच जायेगी ।फिर एक समय आता है जब पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जी ,मुख्यमंत्री नितीश कुमार ,लालू यादव और अजीत सिंह सहित कई लोग उन्हे नेता मान लेते है और समाजवादी पार्टी के नाम और झंडे की भी स्वीकार कर लेते है ।ऐसा हो गया होता तो देश मे एक नया विकल्प बन गया होता पर कुछ लोगो ने साज़िशन फ़ेल कर दिया ।
वो गरीबी और परेशानी से निकले तो गरीब का दर्द नही भूले ।पहली सरकार मे किसानो को तकलीफ दे रही चुंगी माफ कर दिया तो डा लोहिया का अनुसरण करते हुये गरीब और गाव की महिलाओ के शौचालय का मुद्दा प्रमुखता से उठाया ।दवा पढाई मुफ्ती होगी रोटी कपडा सस्ती होगी का डा लोहिया का मन्त्र उन्हे याद रहा ।समाजवादियो की मांग थी की रोजगार दो या बेरोजगारी भत्ता दो तो उन्होने वक्त आने पर 12 हजार भत्ता ही नही दिया बल्कि गरीब कन्याओ को 30 हजार कन्याधन भी दिया ।उन्होने ग्रामिण क्षेत्रो को स्कूल कालेज बनाने को सरकारी प्रोत्साहन दिया तो किसान की फसल सुरक्षित रहे इसके लिये कोल्ड स्टोरेज को भी प्रोत्साहित किया ।चिकत्सा के क्षेत्र मे बडा काम किया तो अपने समय मे नौकरिया भी खूब निकाला ।
जितने अदर से मुलायम थे निर्णय लेने मे उतने ही कठोर थे ।वो अयोध्या मे कानून व्यव्स्था का सवाल हो या सीमा पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही वो विचलित नही हुये । उन्होने ने वैचारिक विरोध को दुश्मनी नही माना और विरोधियो का भी सम्मान किया था उनके भी सभी जायज काम किया ।
मुलायम सिंह मे अहंकार रंच मात्र नही था और सभी से जुडे रहना , अपनो को सहेज कर रखना तथा गैरो को अपना बना लेना उनकी विशेषता थी इसीलिये उन्होने गरीब से निकल कर उस उंचाई को छुवा ।
राजनीतिक तौर पर वो किसी के साथ जो भी व्यव्हार करते थे पर सामजिक सम्मान का ध्यान रखते थे ।
जब उनका पद छीन लिया गया उसके बाद वो अदर से टूट गये थे पर फिर सम्हल कर अपने बेटे और अपनी बनायी पार्टी का साथ दिया पर कही न कही पार्टी और परिवार मे टूटन से वो दुखी थे और क्यो न होते जब एक समय सभी ने उनका साथ छोड दिया था ।
धरतीपुत्र बिरले ही होते है और दिल से जुड़ कर रिश्ते निभाने वालो का राजनीति मे अभाव है ऐसे मे मुलायम सिंह यादव का चले जाना उनके बिना स्वार्थ जुडे हुये लोगो के लिये एक सदमे के समान है ।

रविवार, 28 सितंबर 2025

जिंदगी के झरोखे से वो बच्चा

#जिंदगी_के_झरोखे_से

आज कुछ झलकियाँ जानी, देखी या भोगी हुई   -  वो बच्चा 

1-वो भी बच्चा था , तब गाँव मे रहता था और गाँव मे आप किसी भी जाती मे और किसी भी स्तर के परिवार मे पैदा हुये हो गाय भैस को अन्य बच्चो के साथ चराने या तालाब मे नहलाने ले जाना एक काम होता ही था जैसे खेत के काम मे हाथ बताना, अगर घूरा उठ रहा है तो ,अगर गन्ना पेरा जा रहा हो या पानी के लिए रहट चल रही हो तो बैलो के पीछे पीछे घंटो चलना ,गुड बनते वक्त आग मे ईधन झोंकना , दवाई के समय खलिहान मे बैलो को हाँकना , कटाई पर चाहे छोटा बोझा ही लेकर आना ,मक्के की बाल छीलना , चारा काटना, खेत की रखवाली के लिए कुछ देर मचान पर बैठना , गाय बैल भैस को दाना पानी देना इत्यादि सब मे लगना ही होता था ।शायद फिल्मो वाले गाँव के जमीन वाले किसानो के परिवार भी कही होते होंगे ही । ये बच्चा भी सब करता था ।  उसको भी खेलना अच्छा लगता था और खेलते वक्त गाँव मे बच्चो मे जाति की रेखा नही थी । लाखन पाती , पेड पर चढ़ दूसरे को छू लेना , गिट्टी फोड ,गिल्ली डंडा ,कुश्ती और कबड्डी ही खेल थे गाँव के ।
उस दिन शाम को दो टीम बन कर कबड्डी हो रही थी खलिहान मे और खेल खत्म होते होते सूरज डूबने लगा था । सब बच्चे साथ साथ लौटे और वह बच्चा भी लौटा । और बच्चो के पिता किसान थे पर उस बच्चे के पिता अध्यापक थे । उन्होने जोर से चीक कर पूछा कहा थे ? बच्चे ने जवाब दिया -खलिहान मे सब फला फला थे और आज कबड्डी थी ,अभी खत्म हुई ।उसके पिता ने कहा की अब तो अन्धेरा होने को है पहले क्यो नही लौटे ? इस पर वह बच्चा चुप हो गया क्योकी इसका कोई जवाब उसके पास नही था । फिर सवाल आया कि बोलते क्यो नही ? फिर भी जवाब नही था ।
बस पास मे रखी लाठी पिता के हाथ मे थी और उस बच्चे के शरीर पर अनगिनत निशान छोड कर ही लाठी वापस अपने स्थान पर गई । निशान भी ऐसे की रात को सोते वक्त चारपाई भी सजा दे रही थी ।
बाकी किसी भी बच्चे के घर से कोई चीख सुनाई नही पड़ी ।  हो सकता है उन बच्चो को घर के अंदर ले जाकर सजा मिली हो ।
2-वो बच्चा शहर आ गया था अपने पिता के साथ । गाँव से आया था और गाँव मे सर पर चुटिया रखना शायद कोई धार्मिक मजबूरी थी या परम्परा थी या पंडीत जी द्वारा पैदा किसी अन्धविश्वास की उपज थी ।
शहर मे स्कूल के बच्चे उस बच्चे पर हंसते और उसका मजाक ही नही उडाते बल्की जब तक पीछे से चुटिया खींच देते थे ।
बाल कटवाने का दिन आया ।घर के पास ही नाई था । पिता वहाँ बैठा कर और काटने का पैसा देकर घर चले गए ।बाल काटने का नम्बर आया तो काटते हुये नाई ने पूछा की चुटिया छोड़ना है या काटना है ? वो बच्चा मौन रहा और मौन को सहमती मांन नाई ने चुटिया भी काट दिया ।बच्चा अंदर से खुश कि अब स्कूल मे कोई तंग नही करेगा । 
घर पहुचा और मासूमियत से बता दिया की चुटिया नाई ने काट दिया लेकिन अच्छा ही हुआ क्योकी स्कूल मे उसके साथ ये सब होता है ।
बात पूरी हुई भी नही की पिता के हाथ मे डंडा था और उस बच्चे शरीर पर निशान ही निशान और उसकी चीखे ।
3-वो बच्चा अपने छोटे भाई को बहुत प्यार करता था और हर उसको लेकर खेलना और गोद मे लेकर घुमाना उसे अच्छा लगता था । पिता के पास साइकिल थी जिसमे उस जमाने मे आगे हैंडिल मे कंडीया लगी होती थी ।छोटा भाई इतना छोटा था की उस कंडीया मे बैठ जाता था और वो बच्चा मुहल्ले मे छोटे भाई को उस कन्डिया मे बैठा कर घूमाता था ।एक दिन शाम को भी घर पास उसे घुमा रहा था कि कन्डिया किसी तरह हैंडिल से गिर गई और छोटे भाई को चोट लग गई ।वो बच्चा घबरा गया और साईकिल घर के बाहर खड़ा कर छोटे भाई को लेकर परेशान हाल इधर उधर दौडने लगा उसके घाव को हाथ से दबा कर की खून रुक जाये पर कब तक ? घर तो जाना ही था ।
घर मे जब पिता को पता लगा ये तो फिर पिता की मार और बच्चे के शरीर पर निशान लेकिन इस बार एक निशान शरींर पर नही बल्की मन पर भी लगा और  बहुत गहरा लगा जो कभी खत्म ही नही हुआ जब पिता ने उस छोटे से बच्चे से कहा की हाँ तुम मार देना चाहते हो छोटे को ताकी गाँव की जमीन जायदाद सब तुम्हारी हो जाये ।
वो बच्चा एक कोने मे रोता रहा लगातार और बार बार ।
4-उस बच्चे को उसके पिता शायद बहुत चाहते थे और चाहते थे कि जो वो नही बन पाये वो बच्चा बन जाये और खुद की इच्छा उसपर थोपने के चक्कर मे शायद कुछ ज्यादा कर जाते थे -
जैसे उस बच्चे को सिखाया की राम की स्पेलिंग आर ए एम होती है और साथ ही की आर ए एम ए रामा होता है पर क्यो होता है और कैसे बनता है शब्द बस यह ही नही बता पाये पिता ।अक्सर पूछ लेते राम की स्पेलिंग बताओ तो वो बच्चा बता देता आर ए एम तो उसे पक्का करने को तुरंत घुडक देते थे वो पिता की आर ए एम होता है ? और बच्चा घबरा जाता और आर ए एम ए बोल देता और फिर बच्चे के शरीर को मजबूत करने का अवसर नही गंवाते वो पिता और इस राम और रामा ने उस पिता को 50 से ज्यादा ही मौके दिये बच्चे के शरीर को मजबूत बनाने के ।
इसी तरह यदि वो बच्चा गडित कर रहा होता तो सवाल होता की अंग्रेजी कब पढ़ोगे और अंग्रेजी पढता तो गडित कौन पढेगा जैसे सवाल सभी विषयो पर होता और बच्चा लगातार शारीरिक रूप से मजबूत होता रहा  ।
5-ऐसा नही की हमेशा पिता ने उस बच्चे के शरीर को मजबूत करने का ही काम किया बल्की एक बार थोडा बडा हुआ था वो बच्चा और बच्चो के साथ साथ देखा देखी मे एक गलती कर बैठा ।इस बार पिता ने डंडा नही उठाया बल्की अपनी आंखे गीली कर लिया कुछ कह कर और इस बार उस बच्चे को ये सजा कही ज्यादा भारी पड़ी और फिर दुबारा इस बच्चे ने वो गलती कभी नही किया ।
6-एक बार बच्चे को कुछ पैसे की जरूरत पड़ गई और पिता से ही मांगना था । पिता अब डंडे से नही शब्दो से मारने लगे थे । बोले की जब जरूरत हो तो पिताजी ? 
बस उस दिन से उस बच्चे ने कभी ना मुह खोला और ना हाथ फैलाया ,यहाँ तक की जूता टूट जाने पर कुछ दिनो तक नंगे पैर गया स्कूल ।
फिर वो बच्चा बडा हो गया और जब भी उसके पिता देख रहे होते तो वो उपन्यास पढने लगता और जब वो नही देखते तो कोर्स पढने लगता क्योकी अब उस बच्चे के शरीर को मजबूती की जरूरत नही थी और पिता भी अब थक चुके थे ।

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

जब मुलायम सिंह रक्षामंत्री थे

मुलायम सिंह जी जब रक्षामंत्री थे तो दो बाते हुयी थी -१- वो सीमा पर गए थे ,गोली चली उन्होंने सेनाध्यक्ष से पूछा क्या हो रहा है ? बताया गया की पडोसी ऐसे ही चाहे जब गोली चलाते रहते है | मुलायम सिंह जी ने तुरंत जवाब देने को कहा तो कहा गया की आप यहाँ से जाये तब देंगे तो मुलायम सिंह ने कहा की एक सैनिक और रक्षामंत्री की जान की कीमत एक है इसलिए अभी जवाब दो और ये सन्देश दुश्मन को भी मिला | 
--२ - मुलायम सिंह ने आतंकवादी कैम्पों पर हमले का आदेश दे दिया था पर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति तैयार नहीं हुयी इसलिए नहीं हो पाया क्योकि उस समिति के बिना हमला नहीं हो सकता है | 
ये भी तथ्य है की जब तक मुलायम सिंह रक्षामंत्री रहे देश में कोई आतंकवादी हमला नहीं हुआ | 
बिना ये सब जाने कुछ लोग मुलायम सिंह की अलोचना करते है | 
करने वाले कहते नहीं वक्त आने पर करते है | बाकि फैसला आप सभी का की केवल जुबानदराजी करने से देश मजबूत होगा |

मंगलवार, 16 सितंबर 2025

ज़िंदगी_के_झरोखे_से, मुनादी का लोकार्पण

#ज़िंदगी_के_झरोखे_से 

जब लखनऊ में कैफ़ी आज़मी एकेडमी मेरी दूसरी काव्य पुस्तक " मुनादी " का लोकार्पण हुआ और लोकार्पण किया किया देश के दो बड़े साहित्यकार और कवि उदय प्रताप सिंह जी और नरेश सक्सेना जी ने ****

'मुनादी' के बहाने राजनीति और समाज के अंतर्संबंधों पर मंथन

*उदयप्रताप सिंह और नरेश सक्सेना की मौजूदगी में डा. सीपी राय के नये कविता संगचरह मुनादी का लोकार्पण
*समाज के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे, सीपी राय ने अपने अनुभव साझा किये, कविताएं सुनायी
 
रविवार को कैफ़ी आज़मी एकेडमी,  निशातगंज, लखनऊ में पूर्व मंत्री, कांग्रेस मीडिया सेल के चेयरमैन, कवि एवं समाजवादी चिंतक डॉ. सी.पी. राय के नये कविता संग्रह 'मुनादी' का लोकार्पण हुआ। इस बहाने कविता, समाज और राजनीति के अंतर्संबंधों पर गंभीर चर्चा हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि उदय प्रताप सिंह ने कहा कि कविता केवल जनता की बात कह सकती है लेकिन राजनीति उसे साकार भी कर सकती है। इसलिए कवि अगर राजनेता भी हो तो वह जनता के बहुत काम का होगा। उन्होंने डा. सीपी राय को बधाई देते हुए कहा कि मैं  50 वर्षों से देख रहा हूँ, डा. राय ने कभी समझौता नहीं किया। उनकी कविताओं का तेवर बरकरार है और वे कविताएं समय से सवाल करती हैं। 
उन्होंने कहा कि सर्वहारा के जीवन की विसंगतियों को अपनी सूक्ष्म नजरों से वही देख सकता है, जिसने या तो वह जीवन जिया हो या उसने जीवन को नजदीक से देखा हो। सच्ची कविता वह है ,जो हृदय से निकले और लोगों के हृदय में तत्काल प्रवेश कर जाए। इस कसौटी पर चंद प्रकाश राय का कविता संग्रह पूरी तरह खरा उतरता है। कवि के लिए निर्भीकता बहुत जरूरी है और यह निर्भीकता डा. सीपी राय में दिखायी पड़ती है।
कार्यक्रम का सुरुचिपूर्ण संचालन कवि ज्ञान प्रकाश चौबे ने किया‌। इस अवसर पर समाज के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में कवि, लेखक, सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता मौजूद तते। 'मुनादी' डा. सीपी राय का दूसरा कविता संग्रह है। उनका पहला कविता संग्रह 'यथार्थ के आस-पास' कुछ वर्षों पूर्व प्रकाशित हुआ था। चर्चा शुरू होने से पहले डा. सीपी राय ने अपने कवि बनने की कहानी साझा की और शुरुआती दिनों की उन कविताओं के कई अंश सुनाये, जिनके कारण युवाकाल में उन्हें लोक में प्रशंसा और सम्मान मिला। उन दिनों ही उनकी मुलाकात उदयप्रताप जी से हुई। उन्हीं दिनों राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर से भी उनको आशीर्वाद मिला। डा. राय उन दिनों को याद करते हुए भावुक भी हो गये। उन्होंने कहा कि मुझसे कोई अन्याय बर्दाश्त नहीं होता और जब भी किसी की पीड़ा देखता हूँ, उसे कहने से खुद को रोक नहीं पाता हूँ। यह कविता है या नहीं, मुझे नहीं मालूम लेकिन कहने का मेरा यह तरीका लोगों को पसंद आता है। 
 वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने डा. सीपी राय की कई कविताओं का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए कविता और इल्म के संबंध पर बात की। उन्होंने कहा कि यह सही है कि कविता करने  के लिए किसी इल्म की जरूरत नहीं है लेकिन कवि को कविता की इल्म तो आनी चाहिए। नरेश जी ने इस बात पर खुशी जाहिर की कि यह इल्म डा. राय में है। उन्होंने कहा कि मै समझता हूं कि 'मुनादी' कविता संग्रह सीपी राय की भाषाई निर्भीकता, आधी आबादी की सुरक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी को लेकर उनके भावनात्मक पक्ष को स्पष्ट बात करता है। श्री सक्सेना ने उनकी कविता पढ़ी, 'क्या औरत हिमालय है जिस पर चढ़ाई करना चाहते हो/क्या औरत कोई गंगा है, जिसमें नहा लेना चाहते हो/ हर पुरुष कैसे भी जीत लेने को आतुर है/ जैसे दुश्मन का किला हो औरत।'
कवि-पत्रकार सुभाष राय ने सी.पी. राय से आगरा के समय के अपने संबंधों को याद किया और सी.पी. राय के सच के साथ खड़े होने की ताकत का उल्लेख किया। उन्होंने कहा की श्री राय 40 वर्षो से सामाजिक अन्याय, विषमताओं के खिलाफ बेखौफ लड़ाई लड़ने वाले नेता और कवि की मजबूत पहचान रखते हैं।समाज में जो भी अशोभनीय, असहनीय है, श्री राय ने हमेशा अपनी कविताओं के माध्यम से उसे आईना दिखाया है।
कवि-आलोचक नलिन रंजन सिंह ने सी.पी. राय के संग्रह पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने सी.पी. राय को समय की संवेदना की नब्ज पकड़ने वाले कवि के रूप में रेखांकित किया। उन्होंने राजनीतिक कविताओं के साथ-साथ व्यक्तिगत संदर्भों से उपजी मार्मिक कविताओं की भी चर्चा की। नलिन रंजन सिंह ने कहा कि 'मुनादी' काव्य संग्रह की कविताओं में श्री राय की संवेदनशीलता के साथ अपने युग की धड़कन कायदे से सुनी जा सकती है।
कवयित्री सुधा मिश्रा ने कहा कि आज हम सब हिस्सा बन रहे हैं उस मुनादी का जो सामाजिक सरोकारों को तय करती है कविताई के कठिन मार्ग को चुनकर उसे पुस्तक के रूप में निभाना बड़ा और श्रेष्ठ काम है । उसी कविताई के कठिन और रोचक कार्य को डॉ. सीपी राय जी ने चुना और और ईश्वर से प्रार्थना है कि यह यात्रा आगे भी जारी रहेंगी। सुधा मिश्रा जी ने मां शीर्षक कविता की पंक्तियां पढ़ी, बड़े होने पर बच्चों को कहां पता होता है/ कि सारी माएँ अपने बच्चों के लिए/ एक जैसी होती हैं।
कार्यक्रम में देश के राष्ट्रीय लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीस राय, पूर्व कुलपति लखनऊ विश्वविद्यालय ड़ा रूप रेखा वर्मा, पूर्व आइ ए एस अधिकारी लालजी राय, पूर्व आइ पी एस अधिकारी अजय शकर राय, पूर्व विशेष सचिव ट्रांसपोर्ट वी के सोनकिया, पूर्व एडिशननल कमिश्नर लेबर वी के राय, कर्नल वाई एस यादव, प्रसिद्ध उपन्यासकार शिवमूर्ति, दयानंद पांडेय, पूर्व एडिशनल डायरेक्टर अभियोजन उत्तर प्रदेश सत्य प्रकाश राय, वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस, व्यंग्यकार राजीव ध्यानी, पत्रकार प्रदीप कपूर, दीपक कबीर, उषा राय सहित बड़ी संख्या में समाज के साहित्य प्रेमी मौजूद थे ।

सोमवार, 25 अगस्त 2025

युद्ध बंद हो इंसानो की हत्या बंद हो

युध्द बंद हो इंसानो की हत्या बन्द हो 


दुनिया में जगह-जगह, चाहे यूक्रेन की सरहद हो या गाजा की गलियां, मौत का तांडव मचा हुआ है। इंसान इंसान को बिना पलक झपकाए मार रहा है, न मशीनों की बेरहम गोलियां रुक रही हैं, न बारूद की आग ठंडी पड़ रही है। इन हथियारों में न आंखें हैं जो मासूमों की सिसकियां देख सकें, न कान हैं जो चीखों को सुन सकें, न दिल है जो पिघल जाए, और न ही दिमाग है जो इस खून-खराबे से विचलित हो। ये नरसंहार क्यों? ये लहू की प्यास क्यों? आखिर इंसान, जो सुख, शांति और तरक्की के लिए पैदा हुआ, बुलबुले की तरह क्यों फट रहा है? उसकी जिंदगी का वजूद ओस की बूंद सा क्यों बनकर रह गया है? उसकी चीखें, उसका दर्द, उसका बिखरा हुआ शरीर एक-दूसरे को क्यों नहीं झकझोर रहा? मासूम बच्चों की क्या गलती, और बड़ों की भी क्या गलती? सिर्फ इतनी कि वे किसी खास सीमा-रेखा के भीतर पैदा हो गए? यह सवाल हर उस इंसान के दिल में उठता है जो इस दुनिया को लहू से लाल होते देख रहा है।यह सवाल कोई नया नहीं है। इतिहास के पन्ने लहू से रंगे पड़े हैं। युद्धों ने न सिर्फ इंसानों की जान ली, बल्कि इंसानियत को भी बार-बार कुचला है। फिर भी, यह प्यास, यह लालच, यह सत्ता की भूख बुझती क्यों नहीं? आइए, इतिहास के कुछ बड़े युद्धों और वर्तमान के युद्धों के आंकड़ों पर नजर डालें, और यह समझने की कोशिश करें कि यह तांडव कब तक चलेगा और इसे रोकने का रास्ता क्या है।
इतिहास गवाह है कि युद्धों ने करोड़ों जिंदगियों को लील लिया। इनमें से कुछ युद्धों ने मानवता को इस कदर हिलाया कि उनके जख्म आज भी हरे हैं। क्या मिला युद्धों से इसपर विचार क्यो नही होता जैसे प्रथम विश्व युद्ध,  ने दुनिया को विनाश की ऐसी तस्वीर दिखाई जो पहले कभी नहीं देखी गई थी। यह युद्ध 1914 से  1918 तक चला। इसमें 7 करोड़ से अधिक सैनिक शामिल थे, और अनुमानित तौर पर 90 लाख सैनिकों की मौत हुई, जबकि 1.3 करोड़ नागरिक युद्ध से जुड़े कारणों  से मारे गए। यह युद्ध सिर्फ हथियारों का खेल नहीं था, बल्कि रासायनिक हथियारों और मशीनगनों ने इसे और भी भयावह बना दिया। क्या थी इस युद्ध की वजह? सत्ता का खेल, साम्राज्यवादी लालच और आपसी गठबंधनों की जटिल जाल। लेकिन इसने सिखाया क्या? सिर्फ तबाही और मातम।
ऐसे ही द्वितीय विश्व युद्ध मानव इतिहास का सबसे घातक युद्ध था। 1939 से 1945 तक चले इस युद्ध में करीब 70 देशों की सेनाएं शामिल थीं। मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्रों के बीच यह जंग इतनी भयानक थी कि इसमें अनुमानित 7-8 करोड़ लोग मारे गए, जिनमें सैनिकों के साथ-साथ असंख्य नागरिक भी थे। नाजियों के नरसंहार, परमाणु बमों का इस्तेमाल और युद्ध से जुड़े अकाल और बीमारियों ने इस आंकड़े को और बढ़ाया। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों ने लाखों जिंदगियों को पलभर में खत्म कर दिया। यह युद्ध सत्ता, नस्लीय श्रेष्ठता और क्षेत्रीय वर्चस्व की भूख का नतीजा था। लेकिन क्या इसने इंसान को शांति की राह दिखाई? नही न , यह सिर्फ और बड़े हथियारों की दौड़ का कारण बना।
फिर नेपोलियन के युद्धों ने यूरोप के नक्शे को ही बदल दिया। नेपोलियन बोनापार्ट की महत्वाकांक्षा और फ्रांसीसी साम्राज्य के खिलाफ यूरोपीय गठबंधनों की जंग में 60 लाख से अधिक लोग मारे गए। यह युद्ध साम्राज्यवादी लालच और सत्ता की भूख का प्रतीक था। वाटरलू की लड़ाई में नेपोलियन की हार ने यूरोप में शक्ति संतुलन को फिर से स्थापित किया, लेकिन इसकी कीमत थी लाखों जिंदगियां। धार्मिक और क्षेत्रीय विवादों से शुरू हुए युद्ध  ने यूरोप को खून से लथपथ कर दिया। इसमें 30 लाख से 1 करोड़ लोग मारे गए। यह युद्ध सिर्फ सैनिकों की मौत तक सीमित नहीं था, बल्कि अकाल, महामारी और नरसंहार ने आम नागरिकों को भी नहीं बख्शा। यह युद्ध मानवता के लिए एक सबक था, लेकिन क्या इंसान ने कुछ सीखा? नहीं, लहू की प्यास आज भी बरकरार है।
आज के दौर में भी युद्धों का सिलसिला थमा नहीं है। यूक्रेन और गाजा जैसे क्षेत्रों में लहू बह रहा है, और दुनिया खामोश तमाशाई बनी देख रही है।पता नही संयुक्त राष्ट्र संघ की क्या भूमिका बची है ।
फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर 'विशेष सैन्य अभियान' के नाम से हमला शुरू किया। यह युद्ध अब तक अपने 1300 से अधिक दिन पूरे कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) के अनुसार, सितंबर 2023 तक इस युद्ध में 9,614 नागरिकों की मौत हुई, लेकिन वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं अधिक हो सकता है और लाखो लोग बेघर हो गए तथा शहर का शहर खंडहर में तब्दील हो चुका है । दोनों पक्षों के सैनिकों और नागरिकों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।  यह युद्ध भू-राजनीतिक वर्चस्व और संसाधनों की लूट का नतीजा है। लेकिन क्या इसकी कीमत मासूमों की जान से चुकानी चाहिए?

हमास के हमले के बाद इजराइल और गाजा के बीच युद्ध छिड़ गया। इजराइल के अनुसार, हमास के हमले में 300 से अधिक इजराइली मारे गए और 1,000 घायल हुए। जवाबी कार्रवाई में इजराइली हवाई हमलों ने गाजा में हजारो लोगों की जान ले ली और और घायलों की गिनती भयावह है । गाजा में बमबारी ने स्कूलों, अस्पतालों और घरों को तबाह कर दिया। बच्चे, औरतें, बूढ़े—कोई नहीं बचा इस तांडव से। यह युद्ध धार्मिक, क्षेत्रीय और ऐतिहासिक विवादों का नतीजा है। लेकिन सवाल वही है कि क्या मासूमों की चीखें किसी को सुनाई नहीं देतीं?

क्यों नहीं थमता यह तांडव?इतिहास से लेकर आज तक, युद्धों की जड़ में सत्ता, संसाधन, और वैचारिक वर्चस्व की भूख रही है। इंसान ने मशीनें बनाईं, बारूद बनाया, हथियार बनाए, लेकिन उसका दिल पत्थर का क्यों हो गया? क्यों नहीं सुनाई देती उसे अपने ही भाइयों की चीखें? क्यों नहीं दिखता उसे बिखरा हुआ शरीर और लहू से लाल धरती? बच्चे जो अभी दुनिया को समझ भी नहीं पाए, उनकी क्या गलती? और बड़े, जो सिर्फ अपने परिवार के लिए जी रहे हैं, उनकी क्या गलती? सिर्फ इतनी कि वे किसी खास सीमा-रेखा में पैदा हुए?यह तांडव तब तक नहीं थमेगा, जब तक इंसान अपनी लालच की भूख को नहीं छोड़ेगा। जब तक वह यह नहीं समझेगा कि जिंदगी एक बुलबुले की तरह नहीं, बल्कि एक अनमोल तोहफा है। जब तक वह यह नहीं मानेगा कि हर इंसान, चाहे वह किसी भी देश, धर्म या जाति का हो, उतना ही कीमती है जितना वह खुद।

यह समय है कि हम एक मुहिम शुरू करें इंसान और इंसानियत को बचाने की। बारूद की खेती को खत्म करने की। यह मुहिम न सिर्फ सरकारों या नेताओं की जिम्मेदारी है, बल्कि हर उस इंसान की, जो इस धरती पर सांस ले रहा है। हमें चाहिए कि हम शांति की शिक्षा दें, बच्चों को स्कूलों में युद्ध का गौरव गान सिखाने के बजाय, शांति और सह-अस्तित्व का पाठ पढ़ाएं। उन्हें बताएं कि हर जिंदगी अनमोल है।देशों, समुदायों और धर्मों के बीच संवाद की कमी युद्धों को जन्म देती है। हमें हर स्तर पर बातचीत को बढ़ावा देना होगा।
दुनिया भर में हथियारों का व्यापार और उत्पादन युद्धों को हवा देता है। इसे नियंत्रित करने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रयास होने चाहिए।हर नीति, हर फैसला मानवता को केंद्र में रखकर लिया जाए। संसाधनों की लूट और सत्ता की भूख को नियंत्रित करना होगा।एक आम आदमी के रूप में हम सोशल मीडिया, लेखन, और कला के जरिए दुनिया को यह यह संदेश दे ही सकते है  कि युद्ध का कोई विजेता नहीं होता। हर युद्ध में सिर्फ हार होती है—इंसानियत की हार।
जब तक इंसान का लहू बहता रहेगा, धरती की प्यास नहीं बुझेगी। यह लहू की प्यास, यह सत्ता का लालच, यह दूसरे का सब छीन लेने की चाह एक दिन पूरी दुनिया से इंसान का वजूद ही मिटा देगी। हमें यह समझना होगा कि इंसान पैदा हुआ है सुख से जीने के लिए, तरक्की करने के लिए, प्यार और भाईचारे के साथ रहने के लिए। आइए, हम सब मिलकर इस मौत के तांडव को रोकें। आइए, इंसान को इंसान बनाये । आइए, बारूद की खेती को खत्म करें और शांति की फसल बोएं। यह मुहिम हमारी, आपकी, और हर उस इंसान की है जो इस धरती को लहू से नहीं, बल्कि प्यार से रंगना चाहता है । चारो तरफ सिर्फ एक गाना होना चाहिए 
इंसान का इंसान से हो भाई चारा ,यही पैगाम हमारा ,यही पैगाम हमारा ।

डॉ सी पी राय