मंगलवार, 5 नवंबर 2024

दो घटनाएँ मेरा गुण या अवगुण

दो_घटनाए_जो_मेरा_अवगुण_बताती_है_और_नेता_से_दूर_करती_है

1--मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे और एक सेठ के बुलावे पर आगरा आये जो मेरी निगाह मे निरर्थक और गैर राजनीतिक फैसला था ।उससे तुरंत पहले पार्टी के महानगर अध्यक्ष की मा का देहांत हो गया । अध्यक्ष मुलायम सिंह द्वारा सीधे बनाये हुये थे जिनका राजनीति से कोई सम्बंध नही था पर वो आयकर के वकील थे और है ।ना मेरा तब सम्बंध था और ना फिर कभी मुलाकात हुयी आजतक उस वकील साहब से पर मै पागल आदमी हूँ ।
मुलायम सिंह यादव उस सेठ के घर दूर गाँव के इलाके मे गये और जब किसी के घर मुख्यमंत्री आ रहा हो और वो भी सेठ तथा व्यापारी के घर तो भव्य कार्यक्रम तो होना ही था और फिर भव्य दोहन भी होना होता ही है ।
उनके कार्यक्रम मे महानगर अध्यक्ष के घर जाने का कोई कार्यक्रम नही था और उस वक्त पार्टी मे मुह लगे लोग भी इस विचार के नही थे की वो किसी के घर जाये चाहे कोई भी मर गया हो ।
पर मुझे ये बात पार्टी के सिद्धांतो और मुलायम सिंह यादव के बारे मे जो वर्षो मे हम लोगो ने इमेज बनायी थी उसके खिलाफ लग रही थी ।
लखनऊ वापस जाने के लिए मुलायम सिंह एयरपोर्ट आये उसके पहले ही मैने डी एम संजय प्रसाद से कह कर रूट साफ करवा लिया । ज्योही मुलायम सिंह जहाज की सीढ़ी की तरफ बढे मैने रोक कर अपने उद्गार व्यक्त कर दिये कि ये आप की पहचान के खिलाफ है कि आप किसी सेठ के घर आकर वापस चले जाये और पार्टी अध्यक्ष की मा का निधन हुआ है और वहा दो मिनट भी न जाये ।
तो वो थोडा झुझलाये पर विचलित भी हुये और बोले की अब देर हो गई है और जाना भी चाहे तो 2 घन्टा समय चाहिये । मैने कहा नही मुश्किल से 30 मिनट जाना आना और 5 मिनट रुकना तो बोले पूरी सड़क भरी होगी और वो आप के घर के पास ही तो रहते है कैसे पहुच जायेंगे ? तो मैने कहा की मैने पहले ही रूट लगवा दिया है ।फिर नाराज हुये की हमसे पूछे बिना कैसे करवा दिया और डी एम की तरफ देखने लगे ।संजय प्रसाद ने आंखे झुका लिया और बोले की हा सर इन्होने कहा की चल सकते है तो इन्तजाम कर दिया गया ।
और फिर वही हुआ और 40 से 45 मिनट मे अध्यक्ष की इज्जत और मन भी रह गया और मुख्यमंत्री की  इज्जत भी  रह गई ।पर मुलायम सिंह ने मुझसे कोप तो पाल ही लिया ।
2--मुलायम सिंह यादव इटावा से दिल्ली जाते हुये मेरे घर पर प्रेस से मिल कर जाने वाले थे जो अकसर होता था । एक हमारा कार्यकर्ता था शकील जो खन्दारी बूथ का मजबूत कार्यकर्ता था उसके घर मे मौत हो गई थी । वो स्कूटर मकेनिक था और पास के चौराहे पर जमीन पर ही बैठता और काम करता था । मैने उसको खबर करवा दिया कि वो अपने घर पहुच जाये और दो और उसी मुहल्ले के कार्यकर्त्ताओ को भी भेज दिया ।
जब मेरे घर से चाले तो मै गाडी मे था और मैने मुलायम सिंह जी से कहा की एक मजबूत कार्यकर्ता है उसके साथ ऐसा हो गया है और उसका घर रास्ते ने पड़ेगा । तो वो बोले की गाडी वहा तक जायेगी ।मैने कहा की थोडा सा पैदल चलना होगा पर जरूरी है ।
वहा पहुच कर हम लोग उतरे और करीब 5/ 600 मीटर पतली सी गली मे पैदल चले ।ये बस्ती बघेल मुस्लमान जिनको मैने पार्टी से जोड़ लिया था और दलितो की बस्ती है । ब्लैल कैट कमांडो और हम लोगो को देख कर पूरी बस्ती मे मिंनटों मे बात फैल गई । उस कार्यकर्ता के घर मे मुलायम सिंह को बैठाने के लिए कुछ नही था ।5 मिनट खड़े खड़े हाल चाल हुआ और जब हम लोग उसके घर से निकले तो सारी छते और पूरी गली भरी हुयी थी और अगले दिन ये किस्सा शहर भर मे चर्चा का विषय बन गया था कि मुलायम सिंह तो छोटे से छोटे कार्यकर्ता का भी ध्यान रखते है ।
समाज मे किसी को नेता बनाना और उसकी छवि बनाना आसान काम नही होता है और उसके लिए बडी सोच और बडा दिल रखना पडता है और कोपभाजन का शिकार भी होना पडता है ।
शायद इन्ही अवगुणौ के कारण बड़े नेता मुझसे नाराज ही रहते थे और कार्यकर्ता भी आप का वजन देखकर ही आप के साथ रहता है ।
पर मैं जैसा हूँ ठीक हूँ

देवी लाल और तब की राजनीति

#जिन्दगी_के_झरोखे_से

पहले #हरियाणा के #मुख्यमंत्री और फिर #देश के #उप_प्रधानमंत्री चौ #देवीलाल का भी मुझे बहुत स्नेह प्राप्त था ,उनके हरियाणा भवन या राष्ट्रपति भवन के गेट नम्बर ३६ के अंदर उनके घर जाना होता था तो घर के पीछे के लॉन में मिलते थे बातें पूछते और कुछ खिला कर ही जाने देते ।
उप प्रधान-मंत्री के रूप मे उन्होने मेरे घर का कार्यक्रम बनाया , जनता दल क्या पूर्ण विपक्ष का एक सबसे बडा स्तम्भ और धुरी बन गए थे उस वक्त वो और देश के सारे नेता उनकी तरफ देखने लगे थे, वही प्रेरणा थे , वही फैसलाकुन होते थे और उन्ही की सहयता पर सब आश्रित हो गए थे ।
वो तो मुझे 1989 का चुनाव भी लड़वाना चाहते थे और संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के नाते उनका फैसला आखिरी होता और बोर्ड के सदस्यो मे से बहुमत मेरे पक्ष मे था ।
पर हरियाणा भवन मे बोर्ड की बैठक मे  मुलायम सिंह यादव जी ने ये कह दिया की मैं देश मे प्रचार करूँगा तो सी पी राय मेरा चुनाव देखेंगे और जब मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो फिर एम एल ए और एम पी क्या होता है उनका ऐसा स्थान हो जायेगा । बोर्ड की बैठक से आकर पहले जॉर्ज फर्नांडीज साहब ने कहा की जब होने वाला सी एम आप को अपना चुनाव इंचार्ज बनाना चाहता है तो चुनाव मत लडो उसका काम देखो ।फिर विश्वनाथ प्रताप सिंह और अन्य भी निकल कर यही बोले ।
एक दिन सुबह 4 बजे अशोका होटल दिल्ली मे भी कुछ ऐसा ही हुआ और फिर दिल्ली एयरपोर्ट के वी आई पी लाऊन्ज मे ।
वो सब किस्से फिर कभी ।
मैं मुलायम सिंह यादव जी के पूरे चुनाव मे जान की बाजी लगाकर जुटा रहा कि एक दिन वो बहुत गुस्से मे बोले की यहा से इलाहबाद जनेश्वर जी के यहा चले जाओ वर्ना आप की यहा हड्डियां भी नही मिलेंगी भट्टे मे झोंक दिये जावोगे जैसा दुस्साहस आप कर रहे हो ।
मेरा जवाब क्या था वो जाने देते है 
पर मैं रिजल्ट तक वही डटा रहा ।
बल्की मुलायम सिंह यादव जी अपने क्षेत्र के दौरे मे मुझे साथ रखते और अपने से पहले मेरा भाषण करवाते थे ।जो क्रम 1993 के बद तक के चुनावो मे भी चलता रहा की उनकी सभावो मे उनसे पहले मेरा भाषण होने लगा सब जगह ।
और बाद मे या आज तक क्या हुआ वो लिखने की जरूरत इसलिए नही की सब जानते है ।

मुलायम सिंह

मुलायम सिंह यादव के बारे मे कहा से बात शुरु करे ? उनकी जिन्दगी के इतने छोर है और सब उलझे हुये ।एक नितांत गरीब घर मे और अभाव मे पैदा होकर 1967 मे विधायक बन जाना और 1977 की सरकार मे सहकारिता मंत्री से चला सफर 1989 मे मुख्यमंत्री बनकर रुकता नही है बल्कि बार बार सरकार बनाता है और एक समय ऐसा आता है जब 39 सांसद होते है पार्टी के तथा बंगाल बिहार महाराष्ट्र उत्तराखंड और मध्यप्रदेश मे भी विधायक हो जाते है और लगता था की पार्टी राश्ट्रीय स्तर पर पहुच जायेगी ।फिर एक समय आता है जब पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा जी ,मुख्यमंत्री नितीश कुमार ,लालू यादव और अजीत सिंह सहित कई लोग उन्हे नेता मान लेते है और समाजवादी पार्टी के नाम और झंडे की भी स्वीकार कर लेते है ।ऐसा हो गया होता तो देश मे एक नया विकल्प बन गया होता पर कुछ लोगो ने साज़िशन फ़ेल कर दिया ।
वो गरीबी और परेशानी से निकले तो गरीब का दर्द नही भूले ।पहली सरकार मे किसानो को तकलीफ दे रही चुंगी माफ कर दिया तो डा लोहिया का अनुसरण करते हुये गरीब और गाव की महिलाओ के शौचालय का मुद्दा प्रमुखता से उठाया ।दवा पढाई मुफ्ती होगी रोटी कपडा सस्ती होगी का डा लोहिया का मन्त्र उन्हे याद रहा ।समाजवादियो की मांग थी की रोजगार दो या बेरोजगारी भत्ता दो तो उन्होने वक्त आने पर 12 हजार भत्ता ही नही दिया बल्कि गरीब कन्याओ को 30 हजार कन्याधन भी दिया ।उन्होने ग्रामिण क्षेत्रो को स्कूल कालेज बनाने को सरकारी प्रोत्साहन दिया तो किसान की फसल सुरक्षित रहे इसके लिये कोल्ड स्टोरेज को भी प्रोत्साहित किया ।चिकत्सा के क्षेत्र मे बडा काम किया तो अपने समय मे नौकरिया भी खूब निकाला ।
जितने अदर से मुलायम थे निर्णय लेने मे उतने ही कठोर थे ।वो अयोध्या मे कानून व्यव्स्था का सवाल हो या सीमा पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्यवाही वो विचलित नही हुये । उन्होने ने वैचारिक विरोध को दुश्मनी नही माना और विरोधियो का भी सम्मान किया था उनके भी सभी जायज काम किया ।
मुलायम सिंह मे अहंकार रंच मात्र नही था और सभी से जुडे रहना , अपनो को सहेज कर रखना तथा गैरो को अपना बना लेना उनकी विशेषता थी इसीलिये उन्होने गरीब से निकल कर उस उंचाई को छुवा ।
राजनीतिक तौर पर वो किसी के साथ जो भी व्यव्हार करते थे पर सामजिक सम्मान का ध्यान रखते थे ।
जब उनका पद छीन लिया गया उसके बाद वो अदर से टूट गये थे पर फिर सम्हल कर अपने बेटे और अपनी बनायी पार्टी का साथ दिया पर कही न कही पार्टी और परिवार मे टूटन से वो दुखी थे और क्यो न होते जब एक समय सभी ने उनका साथ छोड दिया था ।
धरतीपुत्र बिरले ही होते है और दिल से जुड़ कर रिश्ते निभाने वालो का राजनीति मे अभाव है ऐसे मे मुलायम सिंह यादव का चले जाना उनके बिना स्वार्थ जुडे हुये लोगो के लिये एक सदमे के समान है ।
मुलायम सिंह यादव जी की यादों को नमन और विनम्र श्रद्धांजलि।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में वी पी सिंह का पलीता

उत्तर प्रदेश की जाट राजनीति को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पलीता लगाया था 1994 मे ।वैसे तो अजीत सिंह जी की अस्थिरता और राजनीति के प्रति कुछ चीजो का अभाव भी जिम्मेदार रहा ।
1989 मे जो चुनाव हुये थे उसमे शुरू दे स्पष्ट था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री पद के और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री पद के अघोसित प्रत्याशी है ।
पर चुनाव के बाद पुरानी अदावत के कारण विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अजीत सिंह को चढा दिया और मुख्यमंत्री का दावेदार बना दिया जबकी टिकेट के बटवारे मे ही मुलायम सिंह के लोग अधिक थे ।
अजित सिंह जी लखनऊ आ गये । 
उस चुनाव मे मैं मुलायम सिंह यादव का चुनाव देख रहा था क्योकी जब जनता दल के संसदीय बोर्ड मे खेरागढ से मेरे नाम पर ज्यादा सहमती बनी तो उन्होने कह दिया था की इस चुनाव मे सी पी राय मेरा चुनाव देखे क्योकी मैं तो देश और प्रदेश के दौरे पर रहूंगा और जब मैं मुख्यमंत्री बन जाऊंगा तो एम एल ए क्या होता है सी पी राय उससे बहुत बड़े होगे । बैठक खत्म होने पर सबसे पहले जोर्ज फर्नांडीज निकले तो मुझे सामने देखते ही बोले "राय आप मुलायम सिंह यादव का चुनाव देखो वो बैठक मे बोला कि मैं मुख्यमंत्री हो जाऊंगा तो सी पी राय एंम एल ए से बड़े होंगे ।हो सकता है वो आप को राज्य सभा मे रखे या एम एल सी बना कर मंत्री बना दे । बाद मे यही बात चौ देवीलाल ,चंद्रशेखर जी ,विश्वनाथ प्रताप सिंह इत्यादि सभी ने मुझसे कहा पर जो हुआ वो दुनिया को पता है पर ये कम लोग जानते है कि उस चुनाव के बाद मुख्यमंत्री बन कर मुलायम सिंह यादव जी मुझे मिले ही नही और जब सरकार गिर गयी तब मिले और मुझे संगठन मे जुट जाने के लिये बोल कर प्रदेश का महामंत्री बनाया ।
खैर उस समय प्रेक्षक बन कर मधू दंदवते ,जोर्ज फर्नांडीज और चिमन भाई पटेल लखनऊ आये थे । मधू जी और जोर्ज ने कोशिश किया की आम सहमती से मुख्यमंत्री चुन जाये और प्रारम्भ मे ही दरार न पड़े । तब मधू दंड्वते के साथ मुलायम सिंह यादव मिलने स्टेट गेस्ट हाउस गये और अजीत सिंह से उन्होने कहा की आप मेरे नेता हो क्योकी चौ साहब के बेटे हो ।आप दिल्ली मे रहो और वहा की राजनीति सम्हालो और मुझे प्रदेश मे रहने दो ।एक बार लगा की सहमती बन जाएगी ।अजीत सिंह ने थोडा समय मांगा और वही चूक हो गयी । साथ के लोग जिनका नाम नही लिख रहा हूँ ने अजीत सिंह से कहा की राजा साथ है और ज्यादा विधायक हमारे पक्ष मे है ।इन लोगो को पता ही नही था की बसो मे भर कर विधायक कही और भेज दिये गये थे पिकनिक मनाने जो विधायको की बैठक के एक दिन पहले वाली शाम को सीधे मुलायम सिंह यादव के घर पर आये जहा वो अकेले रहते थे और ऊपर ही खाने का इन्तजाम था तथा उस दौरान उदय प्रताप जी और मेरी कविताए होती रही ।
अजीत सिंह जी चुनाव के लिये अड़ गये और मजबूरी मे चुनाव हुआ ।
इससे पहले चुनाव के पहले वाली शाम को हम लोग मुलायम सिंह यादव के घर मे ऊपर बैठे थे तभी नीचे से जगजीवन का फोन आया कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के दो विधायक मिलने आये है । उन्हे ऊपर बुला लिया गया वो थे सच्चिदानंद वाजपेयी जो सरकार मे उच्च शिक्षा मंत्री बने और मुहमद असलम जो वन और पर्यावरण मंत्री बने । दोनो ने बताया की राजा साहब ने अपने ग्रुप के विधायको को आप का साथ देने का आदेश दिया है ।
राजा ने खेल कर दिया था आमने सामने कर के ।
चुनाव हुआ ,मुलायम सिंह यादव को कही बहुत ज्यादा वोट पड़ा तो मंच पर मधू दंदवते जी ने अजित सिंह जी से गिनती के बाद पूछा की वोट डिक्लेयर करे या रहने दे तो अजीत सिंह जी खिन्न होकर चले गये ।
आगे की कहानी सबको पता है और उसके पहले की भी ।
यदि उस दिन अजीत सिंह जी दिल्ली मे मुलायम सिंह का नेता बनना स्वीकार कर उन्हे मुख्यमंत्री बना गये होते तो शायद पुराने लोक दल का आधार बना रहता और इस फार्मूले पर राजनीति की लम्बी पारी चली होती ।
मैं जब सपा से निकाल दिया गया था और लाख कोशिश के बाद भी मुलायम सिंह यादव वापस लेने को तैयार नही थे तो डेढ साल इन्तजार के बाद जितेन्द्र प्रसाद जी तब प्रधानमंत्री के राजनैतिक सचिव थे के बुलावे पर कांग्रेस मे शामिल हो गया था और अजित सिह जी भी कांग्रेस मे आ गये थे तो एक बार अजीत सिंह जी के साथ मुझे पूरे दिन हेलिकोप्टर मे साथ रह कर सभाए करने का मौका मिला । उसी मे मैने उनसे कहा की कांग्रेस के पास जनाधार वाले नेता नही है ,आप यदि इसमे बने रहेंगे तो बहुत बड़े और प्रभावशाली नेता तो होंगे ही उत्तर प्रदेश में आप के बिना कुछ नही होगा और आप के कारण बहुत से पुराने लोक दली तथा।समाज वादी आप के कारन इसमे मिल जायेगे और आप मजबूत ताकत बन जायेंगे ।
पर वो नही हुआ ।आगे का सब जानते ही है ।

मेरा ग्रेटर आगरा का प्लान

#जिंदगी_के_झरोखे_से
और 
कुछ आज की चर्चा भी ---
आज अखबार मे ग्रेटर आगरा के संदर्भ मे समाचार पढा और ये कवायद आगरा विकास प्राधिकरण ने शुरू किया है ।
दर असल इस पर मैने काफी काम किया था और तत्कालीन कमिश्नर आगरा प्रदीप भटनागर जी के साथ सभी विभागो के प्रमुखो की ये बैठक कर विस्तार से चर्चा किया था ,शंकावो का समाधान किया था और फिर बैठक से प्रस्ताव पास करवा कर शासन को भेजा था । इससे पहले अपने प्रस्ताव पर डा पारीख सहित आगरा के कई प्रबुद्ध जनो से भी चर्चा कर लिया था ।
उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मेरे बहुत अच्छे मित्र और आगरा के पूर्व जिलाधिकारी अलोक रंजन जी थे ।प्रस्ताव उनके पास पहुचने पर मैने उनको भी इसके बारे मे विस्तार से बताया था तथा इसके प्रभाव और परिणाम के बारे मे अपनी सोच से अवगत करवा दिया था ।आलोक रंजन जी मेरे प्रस्ताव से पूर्ण सहमत थे और तय हुआ कि जल्दी ही मुख्यमंत्री से समय तय कर मीटिंग रख लिया जाये जिसमे संबंधित विभागो के अधिकारी , आगरा के अधिकारी तथा   कुछ प्रमुख लोगो को बुला लिया जाये और उसमे मैं वही प्रसेन्टेशन दूँगा और मुख्यमंत्री की सहमती के बाद ये काम रफ्तार पकड लगा ।
इस पूरी योजना से एक नये नॉएडा का निर्माण होता ,आगरा के साथ साथ आसपास के जिले प्रभावित होते ,बड़े पैमाने पर कई सालो के लिये रोजगार पैदा होता और आगरा तथा पास के जिलो की अर्थव्यवस्था पर भी असर पडता ।
पर इतने लम्बे समय मे मुख्यमंत्री समय नही दे पाये और एक ऐतिहासिक फैसला जिससे आगरा के साथ पहली बार न्याय होता होने से रह गया ।
इसी बैठक मे मैने आगरा एयर फोर्स मे मौजूद सिविल एयरपोर्ट को खुले रूप से सचमुच एयरपोर्ट मे तब्दील करने और तरीके का भी सुझाव दिया था ।
आगरा की यमुना नदी के साथ प्रदेश और देश की सभी नदियो की कम से जहा तक वो शहरो को छूती है डीसिल्टींग के कारण,परिणाम सहित रचनात्मक सुझाव दिया था जिससे नदी का स्वरूप वापस आता , पानी की कमी दूर होती , पानी की गुणवत्ता अच्छी होती और शहरो वाटर लेबल बढता ।