समाज हो या सरकार, आगे तभी बढ़ सकते हैं, जब उनके पास सपने हों, वे सिद्धांतों कि कसौटी पर कसे हुए हो और उन सपनों को यथार्थ में बदलने का संकल्प हो| आजकल सपने रहे नहीं, सिद्धांतों से लगता है किसी का मतलब नहीं, फिर संकल्प कहाँ होगा ? चारों तरफ विश्वास का संकट दिखाई पड़ रहा है| ऐसे में आइये एक अभियान छेड़ें और लोगों को बताएं कि सपने बोलते हैं, सिद्धांत तौलते हैं और संकल्प राह खोलते हैं| हम झुकेंगे नहीं, रुकेंगे नहीं और कहेंगे, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा|
रविवार, 29 सितंबर 2024
एस्कोर्ट हॉस्पिटल की वो घटना
जिंदगी के झरोखे से जब मुलायम सिंह बोलने खड़े हो गए थे पर मेरी गाड़ी देखकर बैठ गए ।
बुधवार, 25 सितंबर 2024
जब समाजवादी साथी मोहन सिंह से एम्स में आखिरी मुलाकात हुयी थी
मोहन सिंह एक समाजवादी आन्दोलन का खांटी समाजवादी जो सरल थे साधारण थे पर जो जुझारू और संघर्षशील छात्र नेता रहे ,इलाहबाद विश्वविद्यालय के चर्चित छात्र संघ अध्यक्ष रहे तो विधान सभा ही विधान परिषद् हो ,लोकसभा या राज्यसभा सभी के प्रखर वक्ता और सदस्य रहे इस तरह लोकतंत्र के चारो सदनों के सदस्य रहे और हर साल संसद | के के दोनों सदनों में जो सर्वश्रेष्ठ सांसद का चयन होता है उसमे वो सर्वश्रेष्ठ सांसद चुने गए | उत्तर प्रदेश में १९७७ की सरकार में मंत्री थे तो पी ए सी का जुल्म होने पर उसको उजागर कर दिया की पी ए सी ने जुल्म किया हैं चाहे उसके करण सरकार और मंत्री पद चला गया |
मोहन सिंह जी लगातार अध्ययन से जुड़क रहे और लेखन भी करते रहे | तीन बार लोकसभा के लिए चुने गये तथा लोकसभा में अपनी मेहनत से अपनी पहचान बनाया और राज्य सभा में भी उनकी भूमिका को सभी लोगो की सराहना मिली | देवरिया में प्रसिद्ध समाजवादी उग्रसेन जी के परिवार में पैदा हुए मोहन सिह ने इलाहबाद में एक बात डा लोहिया को क्या सुना की फिर उन्ही के हो गए और आगे चल कर मधु लिमये जी से जुड़ गए | आपातकाल में गिरफ्तार हुए और छुटने पर विधायक का चुनाव जीता तो पहले पार्टी का महामंत्री और फिर सरकार में राज्यमंत्री बन गए | जीतते हारते ये सफ़र रुका नहीं चलता ही रहा | आखिरी में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री थे तथा राष्ट्रीय प्रवक्ता भी थे और राज्यसभा के सदस्य थे |
मोहन सिंह जी बहुत बीमार हो गए थे तथा आल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट में भर्ती थे | मैं एक दिन उनसे मिलने गया | एम्स में मेरे एक जानने वाले थे उनसे मिलता हुआ और मोहन सिंह जी का कमरा नंबर पता लगा कर मैं उनके कमरे में पहुच गया | मोहन सिह जी आँख बंद किये हो जैसे कुछ सोच रहे थे | मेरे अन्दर आ जाने पर उन्होंने आँख खोला और बोले की राय साहब आप मानो या मत मानो इस वक्त मैं आप के ही बारे में सोच रहा था | मैंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा की हम जैसे साधारण कार्यकर्ता की कैसे याद आ गयी तो बोले की जब अंतिम समय पास हो और आप को एकांत मिला हो तो बहुत कुछ और बहुत लोग याद आते है | मैंने कहा कैसी बात करते है अंतिम समय आप के दुश्मनों का हो ,आप को तो अभी बहुत कुछ करना है | उनके चेहरे पर कई भाव आये और चले गए और फीकी सी मुस्कान के साथ बोले की नहीं राय साहब मेरा समय पूरा हो गया है अब जाना है | जितना करना था मैं कर चूका मेरी भूमिका बस इतनी ही थी |
तभी अचानक बोले की काश मेरे जाने से पहले मुलायम सिंह जी मिलने आ जाते तो मैंने कहा की वो तो एक बार क्या बार बार आप से मिलने आयेंगे \| कहिये तो मैं ही फोन कर देता हूँ की आप उन्हें याद कर रहे है | इसपर बोले की उनसे मैं कुछ कहना चाहता हूँ और आप कहेंगे की मैंने बुलाया है तो बात का अर्थं बदल जाएगा | मैंने कहा की क्या फर्क पड़ता है किसी तरह उन्हे सूचना मिल जानी चाहिए तो बोले की बात ही कुछ वैसी है की आप का कहना ठीक नहीं रहेगा | बात करते करते वो थोडा भावुक हो गए और बोले समाजवादी आन्दोलन के वैचारिक साथी सब चले गए | पुराने लोगो को छोड़ भी दे तो इधर जनेश्वर जी चले गए ,ब्रजभूषण तिवारी जी चले गए ,मैं जाने वाला हूँ अब बच ही कौन रहा है | प्रो आनंद कुमार जैसे साथी है ऊँ लोगो की दिशा अलग हो गयी है | समाजवादी पार्टी में तो एक आप ही बच रहे है और आप ने जितना काम किया है उसके हिसाब से आप के साथ न्याय नहीं हुआ | मैंने कहा जाने दीजिये अपनी अपनी किस्मत है आया मेरी ही कोई कमी होगी तो बोले नहीं आप केव साथ न्याय नहीं हुआ | मैं चाहता हूँ की मेरे जाने के बाद मुलायम सिंह जी मेरी जगह आप को अपर हाउस में ले आये | वो अगर मिलने आये तो मैं उनसे यही कहूँगा | मैंने कहा की आप बहुत जल्दी पूर्ण स्वस्थ होकर फिर से हम लोगो का नेत्रत्व करेंगे और संसद में दहाड़ेंगे | तब तक एक दो लोग और आ गए और मैं उनके स्वस्थ होने की एक बार फिर कामना कर निकल गया क्योकि मुझे आगरा पहुचना था |
कुछ ही दिन में मोहन सिंह जी का निधन हो गया । मुलायम सिंह यादव जी उनसे उनके अंतिम संस्कार में ही मिले । उनके निधन के बाद रिक्त राज्यसभा सीट पर बचे हुए कार्यकाल के लिए मोहन सिंह जी की बेटी को सांसद बना कर मुलायम सिंह यादव जी ने मोहन सिंह जी को श्रद्धांजलि दिया । कितने अच्छे और सच्चे चंद लोग भी थे समाजवादी आन्दोलन में |
#जिंदगी के झरोखे से= जब स्वतंत्रता सेनानी आदरणीय ह्रदय नारायण कुजरू से मैं क्लास के लिए पंखा मांगने पहुच गया था
(कौन थे कुजरू साहब ? हृदयनाथ कुंजरू (1 अक्टूबर 1887 - 3 अप्रैल 1978) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और सार्वजनिक व्यक्ति थे। वे लंबे समय तक सांसद रहे, उन्होंने लगभग चार दशकों तक प्रांतीय और केंद्रीय स्तर पर विभिन्न विधायी निकायों में सेवा की। वे भारत की संविधान सभा (1946-50) के सदस्य थे, जिसने भारत का संविधान तैयार किया । [ 1 ] उन्हें अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भी गहरी दिलचस्पी थी और उन्होंने भारतीय विश्व मामलों की परिषद और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विद्यालय की सह-स्थापना की ।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
संपादन करनाकुंजरू कश्मीरी पंडित अयोध्या नाथ कुंजरू और उनकी दूसरी पत्नी जनकेश्वरी के दूसरे बेटे थे । उनका जन्म 1 अक्टूबर 1887 को इलाहाबाद में हुआ था। हालाँकि उनकी शादी 1908 में हुई थी, लेकिन 1911 में प्रसव के दौरान उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई , उसके छह महीने बाद बच्चे की भी मृत्यु हो गई। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था और उन्होंने अपना जीवन सार्वजनिक सेवा के लिए समर्पित करने का संकल्प लिया। [ 2 ] उन्होंने 1903 में मैट्रिक और 1905 में आगरा कॉलेज से एफए किया। उन्होंने 1907 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा पास की । इसके बाद, वे 1910 में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स चले गए जहाँ उन्होंने राजनीति विज्ञान में बीएससी की डिग्री पूरी की। [ 3 ]
राजनीति मीमांसा
संपादन करनापंडित कुंजरू ने अपना राजनीतिक जीवन कांग्रेस से शुरू किया, लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और तेज बहादुर सप्रू और मदन मोहन मालवीय जैसे अन्य उदारवादियों के साथ मिलकर नेशनल लिबरल फेडरेशन का गठन किया । 1934 में वे इसके अध्यक्ष बने। नेशनल लिबरल फेडरेशन उच्च विचार वाले व्यक्तियों का एक ढीला-ढाला समूह था और कुंजरू उस परंपरा के प्रति सच्चे रहे, उन्होंने अपना पहला चुनाव और उसके बाद हर चुनाव में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। गैर-सरकारी संगठनों के प्रति उनका जोरदार समर्थन भी उदारवादी दर्शन से जुड़ा था कि लोकतंत्र में सरकार को सर्वशक्तिमान नहीं होना चाहिए। संविधान सभा की बहसों में उनके कई हस्तक्षेप लोगों पर सरकार की शक्ति को कम करने के लिए भी थे।
एक सांसद के रूप में
संपादन करनावे संयुक्त प्रांत की विधान परिषद (1921-26) के सदस्य बने, और तत्पश्चात केन्द्रीय विधान सभा (1926-30), राज्य परिषद (1936), अनंतिम संसद (1950-52) और राज्य सभा (1952-64) के सदस्य बने।
कुंजरू ने रेलवे की जांच के लिए गठित दो विशेषज्ञ समितियों का नेतृत्व किया, पहली समिति 1944 में विभिन्न मौजूदा रेलवे कंपनियों को भारतीय रेलवे में मिलाने के लिए स्थापित की गई थी । उन्होंने 1962 में स्थापित रेलवे दुर्घटना समिति की भी अध्यक्षता की। वह 1946 में स्थापित समिति के अध्यक्ष थे जिसने एक कैडेट कोर की स्थापना की सिफारिश की, जिसने अंततः 1948 में राष्ट्रीय कैडेट कोर के रूप में आकार लिया। उन्होंने एक अन्य समिति की अध्यक्षता की जिसने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी की स्थापना की सिफारिश की । वह 1953 से 1955 तक राज्य पुनर्गठन आयोग के सदस्य थे। उन्होंने ने व्यापक रूप से यात्रा की और दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और पाकिस्तान सहित कई देशों में संसदीय और अन्य प्रतिनिधिमंडलों का हिस्सा थे। उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ पेसिफिक रिलेशंस द्वारा आयोजित 1950, 1954 और 1958 के प्रशांत सम्मेलनों की भी अध्यक्षता की ।
एक शिक्षाविद् के रूप में
कुंजरू साहब ने भारत में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के अध्ययन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने भारतीय विश्व मामलों की परिषद और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन स्कूल की स्थापना में मदद की , अपने प्रभाव और संपर्कों का उपयोग करके भारतीय विश्व मामलों की परिषद के मुख्यालय सप्रू हाउस के निर्माण के लिए 600,000 रुपये की राशि जुटाने के लिए। विभिन्न समयों पर, वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय , दिल्ली विश्वविद्यालय , इलाहाबाद विश्वविद्यालय और श्री राम संस्थान, दिल्ली की सीनेट और कार्यकारी परिषद के सदस्य थे। उनके काम के सम्मान में, उन्हें इनमें से कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियाँ प्रदान की गईं। वे १९५३ से १९६६ तक १२ वर्षों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सदस्य रहे और १९६६ में थोड़े समय के लिए इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
अन्य उपलब्धियां
संपादन करनावे भारतीय स्काउटिंग के संस्थापकों में से एक थे , और भारत स्काउट्स और गाइड्स के पहले राष्ट्रीय आयुक्त के रूप में कार्य किया । वे 1909 में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित सर्वेंट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटी में शामिल हुए और 1936 में इसके आजीवन अध्यक्ष बने। वे चिल्ड्रन्स फ़िल्म सोसाइटी के पहले अध्यक्ष भी थे ।
कुजरू साहब इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की स्थापना करने वाली तैयारी समिति का हिस्सा थे और इसके पाँच मूल आजीवन ट्रस्टियों में से एक थे। वह राज्य पुनर्गठन आयोग का भी हिस्सा थे ।
- कुंजरू साहब को 1968 में सर्वोच्च भारतीय नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न के लिए नामांकित किया गया था , लेकिन उन्होंने एक गणतंत्र में ऐसे सम्मानों के प्रति अपने विरोध का हवाला देते हुए इसे अस्वीकार कर दिया, जिसे उन्होंने पहली बार संविधान सभा की बहस के दौरान आवाज़ दी थी।
- 1987 में भारत के एक डाक टिकट पर उन्हें सम्मानित किया गया।
- 1972 में उनके संरक्षण में पुणे में स्थापित रक्षा मामलों के अध्ययन केंद्र का नाम उनकी मृत्यु के बाद 1980 में कुंजरू केंद्र रखा गया।
- भारतीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विद्यालय ने उनके नाम पर वार्षिक व्याख्यानों की एक श्रृंखला शुरू की, जो आज भी जारी है।
- उनकी मानद डिग्रियों में एल.एल.डी. ( इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ), डी. लिट. ( अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ) और डी.एल. ( बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से ) शामिल हैं। सोर्स विकिपीडिया )
मंगलवार, 24 सितंबर 2024
एक देश एक चुनाव क्या व्यवहारिक हैं ?
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में पहले चार लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। बाद में कई मौकों पर लोकसभा समय से पहले भंग होने और कई मौकों पर विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण, लोकसभा और विभिन्न राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे ।एक साथ चुनाव कराने का विचार अतीत में भारत के चुनाव आयोग 1983 और विधि आयोग द्वारा रखा गया था पर इंदिरा जी ने उस पर ध्यान देना उचित नहीं समझा । आजादी के बाद केवल सरकार भंग होना ही कारण नही था बल्कि भाषा के आधार पर और अन्य कारणों से राज्यो का बटवारा हो रहा था ,नए राज्य बन रहे थे इसलिए भी अलग अलग समय चुनाव होने लगे थे ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश एक चुनाव की बात करना शुरू किया । इसके पक्ष में तर्क दिया गया की एक साथ चुनाव कराने पर खर्च कम हो जायेगा और अनुमान लगाया गया की करीब 4000 करोड़ रुपया बाख जायेगा | इसके जवाब में विरोध करने वालो का कहना है की एक तो ये पैसा जनता के टैक्स से आता है और भारत के चुनाव का ख्जर्च्ग दुनिया में सबसे कम है दूसर राजनीतिक दल जप ५०/६० हजार करोड़ खर्च करते है उसका क्या होगा तथा सरकारे जो तमाम फिजूलखर्ची करती है वो बचाने का प्रयास क्यों नहीं करती है | एक पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त का कहना है की सारे चुनाव यदि एक साथ कराये जायेंगे तो तईं से चार गुना वोटिंग मशीन तथा वी वी पेट मशीन की जरूरत पड़ेगी जिनको बनाने में भी बहुत समय लगेगा तथा काफी पैसा खर्च होगा | दूसरी तरह के विद्वानों का कहना है की नेता लोग चुनाव के बाद ५ साल तक तो जनता का हाल पूछते ही नहीं हैं | बार बार चुनाव होने पर उनको आना पड़ता है और वाडे याद रखने पड़ते है तथा चुनाव के चक्कर में कुच्ग वादे पूरे भी करने पड़ते है | एक सोच ये भी है की चुनाव देश की अर्थव्यवस्था को गति देता है ,नेताओं तथा डालो का पैसा बाजार में चलन में आता है तथा हर तरह का काम करने वालो की आमदनी होती है |
एक तर्क ये दिया जाता है की बार बार चुनाव से विकास कार्य रुक जाता है और बार बार आचार संहिता लगाने से नए निर्णय नहीं हो पाते है तथा विकास कार्य रुक जाता है | विद्वान लोग इसका जवाब देते है की पहले तो पहले से चल रहे विकास कार्य चलते रहते है उनपर कोई रोक नहीं होती है ,हा नए निर्णय लेने पर रोक होती है तथा चुनाव से जुड़े अधिकारियो के ट्रांसफर ;पर रोक होती है लेकिन वो भी चुनाव आयोग की इजाजत से हो जाते है और एक सवाल ये उठता है की जो फैसले चार साल १० महीने में नहीं लिए गए उनके लिए सरकार के अंतिम दो तीन महीने का इंतजार ही क्यों किया जा रहा था | समिति ने सुझाव दिया है की यदि किसी करण से कोई सरकार गिर जाति है और लोकसभा या विधानसभा भंग हो जाती है तो उसका चुनाव अगले पांच साल के लिए नही बल्कि सिर्फ बचे कार्यकाल के लिए ही कराया जाए तो इससे तो ५ साल सरकार की अवधारणा भी ख़त्म होगी और थोड़े समय के लिए होने वाले चुनाव में भी पूरा पैसा खर्च होगा तथा मशीनरी लगेगी तब भी उद्देश्य बेकार हो जाएगा |
विरोध करने वालो का कहना है की भारत के संविधान में एक संघीय ढांचा स्वीकार किया गया है पर यदि इस समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया जाता है तो संघीय ढांचा भी रटूटता है तथा संविधान के मूल ढाँचे पर भी आक्रमण होता है | ये रिपोर्ट लागू करने के लिए कई संविधान संशोधन करने होंगे जो पहले तो वर्तमान सरकार की लोकसभा और राज्यसभा में संख्या को देखते हुए असम्भव है | दूसरा यदि संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन के लिए देखा जाए तो आधे राज्यों की सहमति भी चाहिए और यदि कोई ऐसा रास्ता निकालने का प्रयास होता है की राज्यों के बिना केंद्र ही विधान सभाओ के बारे में फैसला कर ले तो वो संविधान के मूल ढांचे पर हमला हॉग और फिर वो मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय के सामने जरूर जायेगा | इसी तरह से स्थानीय निकायों का चुनाव पूरी तरह राज्य के क्षेत्र में आता है उसका भी अतिक्रमण होगा |
सबसे बड़ा सवाल तो अभी उठा खडा हुआ है की अभी कश्मीर का १० साल बाद चुनाव करवाया जा रहा है और वो भी उसे बिना पूर्ण राज्य का दर्जा दिए हुए | आलोचक कह रहे है की किसी केंद्र शासित क्षेत्र को राज्य बनते तो देखा गया है लोकतंत्र के लिए पर किसी राज्य को केंद्र शासित क्षेत्र बनते पहली बार देखा गया है और उसमें भी लद्दाख का लोकतान्त्रिक अधिकार चीन लिया गया है || हरियाणा का चुनाव घोसित कर दिया गया है पर अगले महीने ही होने वाला महाराष्ट्र तथा झारखण्ड का चुनाव साथ नहीं करवाया गया है | जो सरकार चार प्रदेश का चुनाव साथ नहीं करवा सकती कैसे विश्वास किया जाये की वो एक साथ चुनाव के लिए गंभीर है और चुनाव आयोग ने जो तर्क दिया है की मौसम तथा महाराष्ट्र के त्यौहार के करण साथ चुनाव नहीं करवाया गया तो मौसम तो भारत के अलग अलग क्षेत्र में हमेशा ही अलग रहेगा और त्यौहार भी अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग समय पर होते ही रहेंगे |
एक बड़ा आरोप ये है की एक देश एक चुनाव सत्ता का केन्द्रीयकरण करने को है जिसमे जनता राष्ट्रीय स्तर के नेताओं और दलों में ही चुनाव करेगी और क्षेत्रीय दल घटे में रहेंगे तथा अमरीका की राष्ट्रपति प्रणाली की तरह हो जाएगा की राष्ट्रीय स्तर पर जिन दो नेताओं में मुकाबला होगा देश के मतदाता का ध्रूविकरण उन्ही दो में हो जाएगा | एक अध्ययन से निष्कर्ष निकला है की एक देश एक चुनाव में जीतती दिखने वाली पार्टी तथा नेता के ही जीत जाने के ७० प्रतिशत चांस होंगे और ऐसे में तानाशाही आ जाने की सम्भावना भी बनी रहेगी | जो भी है अब समिति की रिपोर्ट सरकार ने स्वीकार कर लिया है | आगे सत्ता अपने दाव आजमाएगी और एक देश एक चुनाव करवाने की कोशिश करेगी और इसका विरोध करने वाले अपने तर्कों के साथ इस राजनैतिक और संवैधानिक बहस के मैदान में होंगे | इन्तजार करना होगा सभी को की सत्ता का असल इरादा क्या है केवल शगूफा या इसम इ गंभीरता है और संवैधानिक सवालो तथा शंकाओं का समाधान वो क्या तथा किस तरह से सामने लाती है और इससे सशंकित लोग सड़क से संसद तक ,जनता की अदालत से सर्वोच्च न्यायलय तक किन तर्कों और हथियारो से मुकाबला करते है |