शुक्रवार, 13 अक्टूबर 2023

इतिहास के लिए मौत का तांडव आखिर कब तक ?

इतिहास के लिए मौत का तांडव आखिर कब तक ?

इतिहास में जीना कोई बीमारी है या सनक या स्वाभाविक है इतिहास में झांकते रहना ? पता नही क्यों काफी लोग इतिहास में जीते है और इतिहास के लिएं मार काट तक चले जाते है । जबकि इतिहास सबक लेने की चीज है की वो गलतियां दुबारा न की जाए जिनसे दुनिया का और इंसानियत का नुकसान हुआ । इतिहास शिक्षा के लिए है पर इतिहास कतलो गारत के काम आ रहा है और वो गलतियां बड़े पैमाने पर बार बार दोहराई जा रही है और इंसान का कतले आम किया जा रहा है । माना ये जाता था की ज्यो ज्यो शिक्षा बढ़ेगी और समाज विकसित तथा सभ्य होगा त्यों त्यों हिंसा खत्म होगी ,इंसान सभ्य होगा और सहस्तित्व के साथ जीना सीख जाएगा । विवाद संवाद से निपटाना सीख जाएगा और धरती पर खून बहना बंद हो जाएगा पर उसका ठीक उल्टा हो रहा है । चारो तरह आदमी हिंसक जानवर से बदतर होता हुआ दिखलाई पड़ रहा है । दुनिया में चाहे जितनी जंग हुई हो ,मैं उस वक्त की बात नही कर रहा जब काबिलाई समाज था और इस वक्त का भी नही जब राजा सुलतान जमीदार जैसे हिंसक गिरोह थे जिनका अपनी जमीन और संपत्ति से पेट नही भरता था और हर वक्त हथियार उठाए घूमते रहते थे और परिणाम एक ही होता था खुद मारा जाना या दूसरो का मारा जाना । चारो तरह लहू देखे बिना न सोने और न खाने की लत सी लगी हुई थी ।।इंसान ने पत्थर ,लकड़ी से होते हुए लोहे तक और फिर परमाणु बम तक बनाए की आत्मरक्षा के काम आयेंगे पर हथियार भी कही रक्षा करते है किसी की ? ये सब तो बस विनाश के लिए बने और बनते जा रहे है और उतना ही दुनिया का विनाश होता जा रहा है । पूरी दुनिया हर वक्त मौत के मुहाने पर खड़ी है फिर भी कोई पीछे हटने को तैयार नहीं है ।
ताजा मामला यूक्रेन का और उसके ठीक पीछे इजराइल और फिलिस्तीन का है । पहला विश्व युद्ध हुआ हो या दूसरा या कोई युद्ध सबका अंत सेनाओं के बैरक में वापसी से हुआ है और टेबल पर बैठ कर शांति वार्ता से हुआ है । फिर सवाल ये उठता है की एक बड़ी आबादी को बरबादी , हजारो या लाखो का कत्ल , परिवारों में फैला मातम ,इतनी विधवा हुई औरते और अनाथ हुए बच्चे आखिर ये सब क्यों ? वार्ता युद्ध से पहले ही क्यों नही ? हथियारों का उत्पादन और प्रयोग ही क्यों अगर जुबान और दिमाग तथा दिल के प्रयोग से समस्याएं निपटाई जा सकती है ? 
इजराइल और फिलिस्तीन में दोनो तरफ के हजारों बेगुनाह नागरिकों की हत्या हो गई तीन दिन में 
पर हजारों की संख्या में हमास के आतंकी भी मारे गए ।
हासिल क्या हुआ इस मौत के खेल से किसी को भी ? 
अब हमास युद्ध विराम मांग रहा है तो सवाल है की युद्ध हुआ ही क्यों ? सुना है की सिर्फ 35 एकड़ जमीन का झगड़ा है । यहूदी कहते है की 3000 साल से ज्यादा हो गए जब कुछ दिन यहां रहे थे और उनकी धार्मिक किताब में इसका जिक्र है जबकि फिलिस्तीन कहता है की बदहाल हाल में आए यहूदियों को तो उसने शरण दिया था और फिर उसने दुनिया भर से यहूदियों को इकट्ठा कर लिया और अपनी चादर फैलाता जा रहा है । ये सच है की अमरीका तथा संयुक्त राष्ट्र ने यहूदियों के लिए कुछ हिस्सा तय किया और उन्हें बसा दिया पर विवाद एक छोटे से टुकड़े के लिए बना रहा और लगातार ये विवाद हिंसक होता रहा । 
अभी हाल में हमास ने बहुत घृणित काम किया और इजराइल में घुस कर आम इंसानों बच्चो औरतों का कत्ल किया जिसकी निंदा पूरी दुनिया को करना चाहिए । पर उसके बाद इजराइल द्वारा भी वही करने को भी सही नही ठहराया जा सकता है । हमास तो सब कर के कही छिप गया और शायद उसकी एक टुकड़ी अभी भी इजराइल के दक्षिण में है तथा सैकड़ों बेगुनाह यहूदियों को बंधक भी बनाए हुए है । हमास पर चाहे जितना हमले इजराइल करता वो जायज होता पर हमास की तरह ही गाज़ा पर भारी बमबारी कर आम इंसानों का कत्ल तो उतना बड़ा गुनाह ही है । कोई नही बच रहा चाहे वो बूढ़े हो औरते या बच्चे । तमाम लोगो के घर खंडहर में बदल गए है ।लाखो लोगो ने इधर उधर शरण ले रखा है और जो बम से बच रहे है वो दोहरी मार से मर रहे है । एक तरह पूरे इलाके की बिजली और पानी काट दिया गया है और खाने का अभाव हो गया है तो दूसरी तरफ अस्पतालों को भी ध्वस्त कर दिया गया है और इलाज के बिना लोग मर रहे है ।फिलिस्तीन के राजदूत ने कहा है की इजराइल पर हमला फिलिस्तीन ने नही बल्कि आतंकवादी गुट ने किया है ।
दूसरी तरफ इजराइल के अखबारों ने इजराइल के हमले की निंदा किया है ।वहा से सबसे बड़े अखबार ने अपने संपादकीय में लिखा है की हमे रोना चाहिए इजराइल के बेगुनाहों के लिए पर हमे गाज़ा के लिए भी रोना चाहिए । इजराइल के अखबारो ने प्रधानमंत्री नेतन्याहू की कड़ी आलोचना किया है तथा उनके लिए कड़े शब्दो का इस्तेमाल किया है । 
भारत के प्रधानमंत्री ने शायद जल्दबाजी में इजराइल को लेकर बयान दे दिया क्योंकि उनके बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है की भारत की फिलिस्तीन को लेकर जो नीति पीछे से चली आ रही है भारत आज भी उसपर कायम है । भारत ने हमेशा से फिलिस्तीन की सार्वभौमिकता का साथ दिया और उसकी जमीन पर उसके हक के साथ खड़ा रहा है । बुद्ध और गांधी का देश भारत कैसे किसी भी ऐसे युद्ध या सामूहिक हत्या के पक्ष में खड़ा हो सकता है । भारत का रवैया तो हमेशा किसी भी तरह की हिंसा और युद्ध के खिलाफ ही होना चाहिए वो चाहे जहा और चाहे जिसके द्वारा हो ।अच्छा हुआ की विदेश ने बात को सम्हाल लिया। 
इजराइल और फिलिस्तीन के मामले में क्या ऐसा नहीं हो सकता की उस 35 एकड़ में दोनो संयुक्त शासन व्यवस्था कायम कर ले या 17,5 और 17,5  एकड़ आपस में बांट ले ? न जाने कब से लड़ रहे है और कितने हजार या लाख लोग मारे जा चुके है । झगड़ा किसी भी धार्मिक स्थल विचार या किताब का हो सवाल ये है की वो कोई भी धर्म स्थल जो भी हो मंदिर,मस्जिद,चर्च या गुरद्वारा उसमे जाएगा कौन और किसी भी धर्म की किताब चाहे गीता हो ,कुरान , बाइबिल या गुरग्रंथ साहब उसको पढ़ेगा कौन ?इंसान जिंदा रहेगा तभी सब धर्म स्थल आबाद रहेंगे और सभी धार्मिक किताबे पढ़ी जाएगी । अगर इंसान ही नही रहेगा तो सभी धर्म स्थल खंडहर हो जाएंगे और किताबो को कीड़े चाट जायेंगे । इसलिए जरूरत तो इस बात की है की इंसान जिंदा रहे । सवाल ये भी है की धर्म और धर्म स्थल तथा धार्मिक किताबे इंसानों के लिए है या इंसानों इन चीजों के लिए है ? सवाल ये भी है की पहले इंसान पैदा हुआ और उसने इन चीजों की अपने लिए रचना किया या पहले ये सब चीजे बनी और उन्होंने इंसान को रचा ? इन सवालों के जवाब में हो इन मुद्दों का हल है बशर्ते ठंडे दिमाग से सोचा और समझा जाए । सवाल ये भी है की जो बाते अब या आगे चल कर होगी वो मौत के खेल से पहले ही क्यों नही ?
क्यों नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ और बड़े देश मिल कर ऐसी सभी समस्याओं के सार्थक और आखिरी हल निकालते है की मानवता जिंदा रहे और पूरी दुनिया हथियार तथा युद्ध से दूर खुशहाल जिंदगी जी सके ।
वरना भंग कर दे संयुक्त राष्ट्र सहित सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को और बड़े देशों को बड़ा मानना बंद कर दे ।।
क्या फिर से जरूरी नहीं दिखता की के नेहरू जी द्वारा स्थापित गुट निरपेक्ष संगठन को फिर से जिंदा किया जाए और उसमे एक प्रभावी ग्रुप बनाया जाए जो इन देशों के विवादो का बिना रुके और बिना थके निदान ढूढे और लागू करवाए ? 
महात्मा  गांधी के देश भारत की भूमिका इस समय प्रमुख हो सकती है अगर  कोई सक्षम और दूरदर्शी नेता  नेतृत्व कर रहा होता की वो गांधी जी के विचारो की मशाल दुनिया के कोने कोने में पहुंचाए और युद्ध तथा आतंकवाद मुक्त दुनिया बनाने के लिए आगे बढ़ कर नेतृत्व करे । भारत में अगर हिंदू मुसलमान ईसाई सब रह सकते है । अमरीका में सभी धर्म के लोग रह सकते है और अपने घर में या धर्म स्थल के अंदर तक अपने धर्म का पालन कर सकते है लेकिन घर के बाहर निकलते ही सभी का धर्म देश के संविधान और कानून का पालन करना हो जाता है तो ऐसा इजराइल और फिलिस्तीन या किसी और देश में क्यों नहीं हो सकता है ?भारत में भी एक धार्मिक स्थल का विवाद अंततः कानून और न्यायालय द्वारा ही हल हो गया शांति से और उस दिन भी सवाल उठा था की फिर इसके लिए विवाद या दंगे हुए ही क्यों और उसके बाद इसे सभी विवाद अदालत द्वारा ही देखे जा रहे है । क्यों नहीं ऐसी ही व्यवस्था दुनिया के सभी  विवादो के लिए हो जाए और हथियार अपनी जगहो पर रखे रखे खुद ही खत्म हो जाए ? क्या तब ये सचमुच में एक खुशहाल दुनिया नही होगी । जरूरत है पूरी दुनिया के सोचने की । मैं भी सोचू तू भी सोच की मुहिम चलाने की । वरना आज यूक्रेन और फिलिस्तीन तथा इजराइल में मानवता चीत्कार कर रही है कल दुनिया कब कहा चीत्कार करने लगेगी कौन कह सकता है । इसलिए इस मौत के खेल को बंद करना ही होगा , हथियार के उत्पादन को रोकना ही होगा और मानवता को बचाना ही होगा ।

डा सी पी राय
स्वतंत्र राजनीतिक विचारक एवं वरिष्ठ पत्रकार

5 प्रदेशों का चुनाव क्या कहता है

एक तरफ विघटन के शिकार रही कांग्रेस ने पहले छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टी एस सिंहदेव के विवाद को सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बना कर खत्म करा दिया जिसके बाद सिंहदेव ने बयान दिया की चुनाव भूपेश बघेल के नेतृत्व में लड़ा जाएगा तो दूसरी तरफ राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट को भी एक साथ खड़ा करने और मिलकर चुनाव अभियान चलाने के लिए तैयार करने में कामयाबी जाफिल कर लिया जबकि मध्य प्रदेश में ज्योतिराज सिंधिया के चले जाने से पहले ही गुटबाजी खत्म हो चुकी थी तो दूसरी तरफ भाजपा इन सभी प्रदेशों में जबरदस्त अंतर कलह का शिकार है ।
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को किनारे करना तथा अपमानित करना भाजपा को भारी पड़ सकता है ।बड़ी जद्दोजहद के बाद शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह टिकट पाने में कामयाब पर उनके समर्थकों के टिकट काट दिए गए पर वसुंधरा राजे को ये लिखते वक्त तक टिकट नहीं मिला है तथा जनसंघ से भाजपा तक दिग्गज नेता रहे और उप राष्ट्रपति रहे भैरो सिंह शेखावत के दामाद को भी टिकट नहीं मिला है । दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश के कई प्रमुख नेताओं ने पिछले दिनों कांग्रेस का दामन थाम लिया है यहां तक कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रभावशाली नेता रहे कैलाश जोशी के पुत्र ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया तो भवर सिंह शेखावत और अरुणोदय चौबे जैसे अपने क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओ ने भी कांग्रेस में आना पसंद किया । चतीसगढ़ ने नंद कुमार साय पहले मध्यप्रदेश के बटवारे के पहले भाजपा के अध्यक्ष थे और छत्तीसगढ़ बनाने के बाद वहा के भाजपा के अध्यक्ष बने और वो सिर्फ भाजपा के बड़े नेता ही नही थे बल्कि दोनो प्रदेशों में सबसे बड़ा आदिवासी चेहरा भी थे वो भी कांग्रेस में शामिल हो गए । ऐसे में तीनो प्रदेशों में भाजपा की राह कंटकपूर्ण हो गई है । राजस्थान में वसुंधरा राजे का खेमा क्या फैसला लेगा ये अभी भविष्य के गर्भ में है तो शिवराज सिंह चौहान ने भाजपा में पहली बार मोदीजी के नेतृत्व को चुनौती दिया है और छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान की खबरे भी कुछ इससे अलग नहीं है ।
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने अपने शासन से लोकप्रियता हासिल किया है वहा यदि कुछ नाराजगी है तो कुछ जनता के बीच न रहने वाले विधायकों से है पर अगर इन लोगो को चिन्हित कर उनका टिकट बदल दिया गया तो छत्तीसगढ़ सीधे सीधे कांग्रेस की झोली में जाता हुआ दिख रहा है । पिछले चुनाव में 90 सीट में कांग्रेस के खाते में 68 जबकि भाजपा को 15 और अन्य के खाते में 7 सीट गई थी । इस बार भी वहां के लोग कांग्रेस को प्लेस माइनस 6 सीट मिलने की बात कर रहे है । 
मध्य प्रदेश में तो पिछली बार भी कांग्रेस ही जीती थी पर ज्योतिराज सिंधिया के नेतृत्व हुए दल बदल से सरकार गिर गई थी और उससे वहा की जनता ने अपने को ठगा हुआ महसूस किया । इस बीच सिंधिया के साथ भाजपा में गए प्रभावशाली लोग लंबे लबे काफिले के साथ कांग्रेस में वापस आ गए । पिछले समय में प्रधान मंत्री मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच जो खीचतान दिखलाई पड़ी और शिवराज सिंह चौहान ने प्रत्युत्तर में जो रुख अख्तियार किया उसका व्यापक असर भी मध्य प्रदेश की राजनीति पर दिखलाई पड़ रहा है और वो असर नकारतक है । वैसे भी भाजपा की सरकार के प्रति एक नाराजगी सब जगह जनता में दिखलाई पड़ रही है ।इस वक्त मध्य प्रदेश की 230 सीट में भाजपा के पास 127  तो कांग्रेस के पास 96 सीट है जबकि बाकी अन्य के खाते में है । मध्य प्रदेश के लोगो से बात कर ऐसा लगता है की इस बार भाजपा 70 सीट के आसपास सिमट जाएगी और कांग्रेस पूर्ण बहुमत की सरकार बनाएगी ।
राजस्थान का इतिहास रहा है की हर बार वहा सत्ता बदल जाती है परन्तु वहा दो चीजे एक साथ हुई है । पहली जहा अशोक गहलोत ने सचिन पायलट के विद्रोह से भी सरकार को बचा लिया था वही पिछले कुछ समय में जनहित के कई बड़े फैसले कर उन्होंने लोकप्रियता भी हासिल किया और खुद को मजबूत नेता भी सिद्ध किया , साथ ही केंद्रीय नेतृत्व के सहयोग से सचिन पायलट को साधने और चुनावी महासमर में साथ रखने और सक्रीय करने में कामयाबी भी हासिल कर लिया जबकि दूसरी बार वसुंधरा राजे लगातार अपने को अपमानित महसूस कर रही है और उन्होंने उसे छुपाया भी नही है । इन दोनो घटनाक्रम को एक साथ रखकर आकलन करने से ऐसा लगता है की इस बार राजस्थान में सरकार बदलने की परंपरा पर ब्रेक लगने जा रहा है और कांग्रेस का दावा है की वो हर हाल में सरकार बना लेगी । राजस्थान विधान सभा की 200 सीट में पिछले चुनाव में कांग्रेस 100 ,भाजपा 73 ,निर्दलीय 13 तथा बाकी अन्य जीते थे । कांग्रेस का दावा है की वो सरकार बना लेगी जबकि राजस्थान के लोगो का कहना है की यदि भाजपा में कलह नहीं होती तो कांग्रेस के सामने मुश्किल आ सकती थी पर अब वो मुश्किल दूर होती दिखलाई पड़ रही है ।
तेलंगाना में बड़ा उठापटक दिखलाई पड़ रहा है । राहुल गांधी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कई दिन तेलंगाना में बिताया था और उसका व्यापक असर इधर दिखलाई पड़ा जब दूसरे दलों के कई दिग्गजों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया । कांग्रेस ने तेलंगाना को लेकर आक्रमक रवैया अपनाया और अपनी कार्यसमिति को बैठक वही किया और फिर समापन पर रैली भी । तब से कांग्रेस ने तेलंगाना में पूरी ताकत झोंक रखा है ।यदि भीड़ को पैमाना माना जाए तो कांग्रेस के कार्यक्रमों में और खासकर राहुल गांधी के कार्यक्रमों में जनसैलाब उमड़ रहा है । सत्ताधारी पार्टी के खाते में तेलंगाना आंदोलन और गठन है तो सत्ता में भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद भी है तथा एंटी इंकम्बेंसी भी है पर उमड़ती भीड़ से कांग्रेस उत्साहित है । परिमाण तो 3 दिसंबर को पता लगेगा लेकिन कांग्रेस मान चुकी है की वो वहा सरकार बना रही है । तेलंगाना विधान सभा की 119 सीट में पिछले चुनाव में सत्ताधारी तेरास को 90 जबकि कांग्रेस को केवल 13 सीट मिली थी और बाकी अन्य के खाते में गई थी । देखना ये है की कांग्रेस की रैलियों में जुटती भीड़ उसे सत्ता में पहुंचा देती है या तेरास सारी बुराइयों और एंटी इंकबेंसी के बावजूद अपना किला बचा लेती है। वहा के सूत्र काग्रेस की तरफ झुके हुए दिखलाई पड़ते है और अगर ये जीत होती है तो दक्षिण में कर्नाटक के बाद ये कांग्रेस की दूसरी बड़ी कामयाबी होगी ।
मिजोरम इकलौता नॉर्थ ईस्ट का राज्य है जहां मणिपुर की घटना के बाद चुनाव है ।मणिपुर की घटनाओं ने क्या नॉर्थ ईस्ट की राजनीति को भी प्रभावित किया है ? क्या भाजपा की सत्ता को लेकर पूरे नॉर्थ ईस्ट में कोई उल्टा प्रभाव पड़ा है इसका एक पैमाना भी साबित हो सकता है मिजोरम । मिजोरम लंबे समय तक कांग्रेस शासित राज्य रहा है । मिजोरम की विधान सभा की 40 सीट में एम एन एफ को 27 सीट है जबकि भाजपा की 1 और जेड पी एम की 6 सीट है तो कांग्रेस की 5 और 1 सीट टी एम सी की भी है । इस कांग्रेस वहा सत्ता में आने के लिए हाथ पैर मार रही है और ऐसा लगता है की गटबंधन के साथ कांग्रेस वहा  इस बार सरकार बना सकती है बाकी परिणाम का इंतजार तो करना ही होगा ।
ये चुनाव इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है की देश के अलग अलग हिस्सों में 5 विधान सभा के चुनाव हो रहे है जिसमे नॉर्थ ईस्ट है तो दक्षिण भी और उत्तर भारत के तीन वो प्रदेश भी है जिसमे काफी समय से भाजपा भी बहुत प्रभावशाली है और इन प्रदेशों में पिछले लोकसभा चुनाव में अधिकांश लोकसभा सीट भाजपा ही जीती थी । केवल मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में ही 65 लोकसभा सीट है जबकि तेलंगाना 17 लोकसभा सीट है । इसलिए  इस चुनाव को लोकसभा चुनाव के ठीक पहले मिनी आम चुनाव भी माना जा सकता है ।याद्दपी पिछले चुनाव में प्रदेशों के कांग्रेस के जीत  के बावजूद लोकसभा चुनाव में पुलवामा और बालाकोट की छाया में अधिकतर लोकसभा सीट भाजपा ने जीत लिया था पर 2019 से 2024 में राजनीति की गंगा में काफी पानी बह चुका है ।।
पर एक बात साफ है की केंद्र और राज्य की भाजपा की सरकार के खिलाफ विपक्ष माहौल बनाने में कामयाब होता दिख रहा है और इंडिया गठबंधन के रूप में एक मजबूत विकल्प और चुनौती पेश करने में कामयाब होता दिख रहा है ।

 
डा सी पी राय

बुधवार, 11 अक्टूबर 2023

पग यात्रा ,पद यात्रा और पथ यात्रा

पग यात्रा ,पद यात्रा और पथ यात्रा और राहुल गांधी ।

पद यात्रा देती है पद प्रतिष्ठा और पहचान ।

भारत क्या पूरी दुनिया मे अनंत काल से पग यात्रा चल रही है ।इंसान रोज अपने पैरो पर चलता है अपने कामो से उद्देश्य कुछ भी हो यूँ ही टहलना ,किसी भी काम से जाना , पूजा पाठ के लिये या नौकरी और व्यापार के लिये जाना पर पग यात्रा व्यक्तियो के स्वयं तक सीमित होती है ।

पद यात्रा का अपना इतिहास है वो अमरीका मे मार्टिन लूथर किंग के नेतृत्व मे कालो के अधिकारो के संघर्ष के लिये हुयी हो जब 1960 के दशक मे वो लड़ रहे थे और 1965 मे सेल्मा अल्बामा से मोन्टगोमरी तक यात्रा निकली तथा अन्ततः अफ्रीकी अमरीकी नागरिको के साथ न्याय हुआ ।  भारत मे अभिनेता सुनील दत्त ने आतंकवाद खिलाफ पद यात्रा किया तो जापान जाकर परमाणु हथियार के खिलाफ । चन्द्रशेखर जी की भारत यात्रा भी एक दौर मे देश के उत्सुकता जा कारण बनी जब उन्होने कन्याकुमारी से दिल्ली तक की यात्रा किया , यद्दपि उसी समय इन्दिरा जी हत्या ने उनकी यात्रा का असर फीका कर दिया पर उनको नेता के रूप मे राष्ट्रीय फलक पर स्थापित कर दिया जिसके कारण वो आगे चल कर प्रधानमंत्री बने ।आन्ध्र प्रदेश मे वाई एस राजशेखर रेड्डी ने पद यात्रा से सत्ता हासिल किया तो उनके पुत्र जगन रेड्डी को भी सत्ता दिलाने का काम किया पद यात्रा ने और चन्द्र बाबू नायडू ने भी ऐसे ही सत्ता हासिल किया ।सीमित मामलो मे इन्दिरा गाँधी के काम आई ऐसे यात्रा 1977 के बाद तो 2017 मे  दिग्विजय सिंह की यात्रा मध्य प्रदेश में कांग्रेस के काम आयी । ऐसी तमाम छोटी बड़ी पद यात्राए होती रही है। अब राहुल गांधी पद यात्रा पर निकले है ।

पद यात्राओ ने हमेशा अपने यात्री को पद प्रतिष्ठा और पहचान दिया है तो राजनीतिक पद यात्राओ ने सत्ता दिया है । यद्दपि सत्ता तो रथ यात्राओ ने भी दिया पर उन्होने साथ ही हिंसा , विध्वस और नफरत भी दिया तथा उनसे मिली सत्ताए लोगो के पैरो के छाले देखने तथा भूखे पेटो की आवाज सुनने मे नाकाम रही क्योकी उनका पाला ही नही पड़ा और वो केवल एकल प्रवचन करते हुये जनता को अपने मनचाहे शोर और स्वार्थ मे डुबोते हुये गुजर गयी ।

जबकि पथ यात्रा विचार यात्रा होती है जो परिवर्तन कारी होती है और गौतम बुद्ध से लेकर महत्मा गाँधी होते हुये विनोबा भावे तक ने अपने अपने स्तर की पथ यात्राए ही किया वैसे अमरीका मे मार्टिन लूथर किंग की यात्रा को भी इसमे शामिल किया जा सकता है ।जहा सिद्धार्थ ने राजपाट छोडा और महत्मा बुद्ध बन गये और एक ऐसा पथ बनाया जिसका अनुगामी विश्व का एक बडा हिस्सा हो गया वही महत्मा गाँधी की चम्पारन से शुरु हुयी यात्रा 1930 के डांडी मार्च तक जाते जाते पूरे भारत को सन्देश दे चुकी थी और जन जन  को गांधी जी से जोड़ चुकी थी और इन यात्राओ ने  अजेय सत्ता को बेदखल ही नही किया बल्कि पूरे विश्व को अहिंसा और सत्याग्रह नामक एक नया और बहुत असरदार हथियार दे दिया । तो विनोबा भावे ने अपनी सीमित यात्रा मे लाखो बेघरो को घर और भूखो को रोटी का साधन दिलवा दिया उन लोगो से जिनके पास ज्यादा था ।

इस वक्त भारत ही नही बल्कि दुनिया की निगाह राहुल गांधी की यात्रा पर है ।राहुल की यात्रा भी इतनी चर्चित नही होती और उत्सुकता पैदा नही करती अगर उन्होने सिरे से सारे पद नही लेने और सत्ता के प्रति निर्मोही होने का मजबूत एलान नही किया होता और भारत के जन सरोकारो से जुडे मुद्दो को धारदार तरीके से उठाते हुये हर तरह की टूटन के खिलाफ और हर तरह के जुडाव के लिये खुद को झोंक नही दिया होता ।अगर एक यात्रा पूरी कर राहुल गाँधी भी काम पूरा किये बिना अपनी पुरानी जिन्दगी मे जाकर रम जाते है तो हो सकता है इसका तत्कालिक लाभ कांग्रेस की मिल जाये और सत्ता भी हासिल हो जाये पर ये बाकी पद यात्राओ की श्रेणी मे से ही एक होकर रह जायेगी और फिर बहुत दिनो के लिये पद यात्राओ का आकर्षण खत्म हो जायेगा ।पर जैसा की दिख रहा है राहुल गाँधी सत्ता के मोह से दूर अपने बौद्धिक चिंतन के साथ एक बडा इरादा और मजबूत समर्पण लेकर चलते हुये दिख रहे है । अगर ये यात्रा अन्तिम नही बल्कि बापू की तरह परिणाम हासिल करने तक निरन्तर चलती रही और देश के कोने कोने तथा जन जन को उद्वेलित कर जोडने मे कामयाब रही तो फिर ये पद यात्रा नही बल्कि पथ यात्रा हो जाएगी । समय इस बात का जवाब देगा की राहुल पद यात्रा तक सीमित रहते है या पथ यात्रा पर चल पडते है क्योकी उनको पद मिल रहा था उन्होने ठुकरा दिया और पहचान की उन्हे जरूरत नही ,हा उस प्रतिष्ठा के लिये वो खुद को तपा सकते है जो पथ यात्रा से ही मिलती है ।

इसका उत्तर केवल आने वाला समय दे पायेगा ।